100% तक छात्रवृत्ति जीतें

रजिस्टर करें

भारतीय न्यायपालिका और लैंगिक अंतराल

Lokesh Pal March 10, 2025 05:00 9 0

“एक झूठ आधी दुनिया का सफर तय कर सकता है, जबकि सच अपनी जगह पर खड़ा होता है।” – मार्क ट्वेन

संदर्भ:

उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय में महिलाओं का प्रतिनिधित्व कम होने के कारण, भारत की शीर्ष न्यायपालिका में महिलाओं को प्रणालीगत बाधाओं का सामना करना पड़ रहा है।

न्यायपालिका का इतिहास और महिलाएँ

  • वर्ष 1924: कॉर्नेलिया सोराबजी भारत की पहली महिला वकील बनीं।
  • वर्ष 1959: अन्ना चांडी केरल उच्च न्यायालय की पहली महिला न्यायाधीश बनीं। 
  • वर्ष 1989: न्यायमूर्ति एम. फातिमा बीवी सर्वोच्च न्यायालय की पहली महिला न्यायाधीश बनीं। 
  • वर्तमान: अधीनस्थ न्यायपालिका में महिला न्यायाधीशों की संख्या अधिक है, लेकिन उच्च न्यायालयों में उनकी संख्या बहुत कम है।

वर्तमान स्थिति

  • उच्च न्यायालय: महिला न्यायाधीशों की संख्या केवल 14.27% है (764 में से 109)। उत्तराखंड, मेघालय और त्रिपुरा सहित कई उच्च न्यायालयों में कोई महिला न्यायाधीश नहीं है। 
    • भारत के सबसे बड़े उच्च न्यायालय- इलाहाबाद उच्च न्यायालय में 79 में से सिर्फ 3 महिला न्यायाधीश हैं (लगभग 2%)।
  • सर्वोच्च न्यायालय: शीर्ष अदालत में वर्तमान में केवल दो महिला न्यायाधीश हैं – न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना और न्यायमूर्ति बेला त्रिवेदी। जून 2025 में न्यायमूर्ति बेला त्रिवेदी की आसन्न सेवानिवृत्ति के साथ, सर्वोच्च न्यायालय में केवल एक महिला न्यायाधीश रह जाएंगी।
  • आयु असमानता: महिला न्यायाधीशों की नियुक्ति औसतन 53 वर्ष की आयु में की जाती है, जबकि पुरुषों की नियुक्ति औसतन 51.8 वर्ष की आयु में की जाती है, जिससे वरिष्ठता या नेतृत्व की भूमिका तक पहुँचने की उनकी संभावनाएँ कम हो जाती हैं।
  • नेतृत्व की कमी: 25 उच्च न्यायालयों में से केवल गुजरात उच्च न्यायालय में एक महिला मुख्य न्यायाधीश है।

न्यायपालिका में महिलाओं की कम संख्या के कारण

  • प्रणालीगत असमानता: न्यायिक नियुक्तियों में महिला वकीलों को कठोर जाँच का सामना करना पड़ता है, जबकि पुरुषों की योग्यता को पहले से ही बेहतर माना जाता है| महिलाओं को प्रायः अपनी योग्यता को सिद्ध करने की आवश्यकता होती है।
  • अपारदर्शी कॉलेजियम प्रणाली: कॉलेजियम में स्पष्ट पात्रता मानदंड का अभाव है और यह लिंग-समावेशी सिफारिशें सुनिश्चित करने में विफल रहता है। यह अपारदर्शिता महिला उम्मीदवारों को असमान रूप से प्रभावित करती है।
  • अनुशंसाओं में लैंगिक पूर्वाग्रह: 2020 से, उच्च न्यायालय के न्यायाधीश पद के लिए अनुशंसित नौ महिलाओं की सरकार द्वारा पुष्टि  नहीं की गई।
    • इनमें से पाँच नाम ही ऐसे थे, जिन्हें उनकी संबंधित सूचियों में अस्वीकृत कर दिया गया, जिससे प्रणालीगत पूर्वाग्रह को रेखांकित किया गया।
  • सीमित पदोन्नति75 वर्षों में केवल एक महिला, जबकि नौ पुरुषों को बार काउंसिल से सीधे सर्वोच्च न्यायालय में पदोन्नत किया गया है।
  • संस्थागत बाधाएँ: महिला वकीलों को कम अवसरअपर्याप्त मार्गदर्शन और वरिष्ठ पदों तक सीमित पहुँच का सामना करना पड़ता है, जिससे उनकी उच्च न्यायिक पदों पर नियुक्ति न्यूनतम होती है।

वैश्विक उदाहरण

  • ब्रिटेन के सर्वोच्च न्यायालय में 12 में से केवल 3 न्यायाधीश महिलाएँ हैं।
  • अमेरिकी सर्वोच्च न्यायालय में कुल 9 में से 4 न्यायाधीश महिलाएँ हैं।
  • कनाडा में लगभग 50% न्यायाधीश महिलाएँ हैं।
  • अन्य राष्ट्र: कई देश अपनी न्यायपालिका में लैंगिक संतुलन की दिशा में सक्रिय रूप से कार्य कर रहे हैं।

आगे की राह

  • पारदर्शी कॉलेजियम प्रक्रिया : कॉलेजियम को न्यायिक नियुक्तियों के लिए स्पष्ट मानदंड स्थापित करना चाहिए, जिसमें महिला वकीलों के लिए अपनी रुचि व्यक्त करने हेतु एक संरचित आवेदन प्रक्रिया भी शामिल होनी चाहिए।
  • अनिवार्य लैंगिक प्रतिनिधित्व: न्यायपालिका को एक नीति या कानून लागू करना चाहिए, जो यह सुनिश्चित करे कि उच्च न्यायपालिका में कम-से-कम एक तिहाई न्यायाधीश महिलाएँ हों।
  • योग्यता आधारित चयन:  विविधता और योग्यता को एक-दूसरे के पूरक के रूप में देखा जाना चाहिए तथा यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए, कि चयन उत्कृष्टता और योग्यता पर आधारित हो तथा लिंग समावेशन को प्राथमिकता दी जाए।
  • मार्गदर्शन सहायता: नेतृत्वकारी भूमिकाओं के लिए महिला वकीलों को मार्गदर्शन और प्रशिक्षण देने के लिए समर्पित कार्यक्रम, प्रणालीगत बाधाओं को तोड़ने में मदद करेंगे।
  • अस्वीकृत सिफारिशों की समीक्षा: सरकार को एक नीति अपनानी चाहिए, जिसमें कॉलेजियम द्वारा अनुशंसित उम्मीदवारों, विशेषकर महिलाओं को अस्वीकृत करते समय स्पष्टीकरण देना अनिवार्य हो।

निष्कर्ष

शीर्ष न्यायपालिका में लैंगिक समानता प्राप्त करना समानता, समावेशिता और न्याय के संवैधानिक मूल्यों को बनाए रखने हेतु महत्त्वपूर्ण है। जैसा कि न्यायमूर्ति इंदिरा बनर्जी ने कहा, कि महिलाओं की नियुक्तियों को असाधारण के रूप में जश्न मनाने की बजाय एक सामान्य घटना बनाया जाना चाहिए।

मुख्य परीक्षा हेतु अभ्यास प्रश्न

समानता के संवैधानिक सिद्धांतों के बावजूद, भारत की शीर्ष न्यायपालिका में महिलाओं का प्रतिनिधित्व कम है। इस लैंगिक अंतराल के लिए उत्तरदायी संरचनात्मक, संस्थागत और सामाजिक-सांस्कृतिक बाधाओं की जाँच कीजिए तथा अधिक न्यायिक विविधता सुनिश्चित करने के लिए व्यापक सुधारों का सुझाव दीजिए।

(15 अंक, 250 शब्द)

Final Result – CIVIL SERVICES EXAMINATION, 2023. PWOnlyIAS is NOW at three new locations Mukherjee Nagar ,Lucknow and Patna , Explore all centers Download UPSC Mains 2023 Question Papers PDF Free Initiative links -1) Download Prahaar 3.0 for Mains Current Affairs PDF both in English and Hindi 2) Daily Main Answer Writing , 3) Daily Current Affairs , Editorial Analysis and quiz , 4) PDF Downloads UPSC Prelims 2023 Trend Analysis cut-off and answer key

THE MOST
LEARNING PLATFORM

Learn From India's Best Faculty

      

Final Result – CIVIL SERVICES EXAMINATION, 2023. PWOnlyIAS is NOW at three new locations Mukherjee Nagar ,Lucknow and Patna , Explore all centers Download UPSC Mains 2023 Question Papers PDF Free Initiative links -1) Download Prahaar 3.0 for Mains Current Affairs PDF both in English and Hindi 2) Daily Main Answer Writing , 3) Daily Current Affairs , Editorial Analysis and quiz , 4) PDF Downloads UPSC Prelims 2023 Trend Analysis cut-off and answer key

<div class="new-fform">







    </div>

    Subscribe our Newsletter
    Sign up now for our exclusive newsletter and be the first to know about our latest Initiatives, Quality Content, and much more.
    *Promise! We won't spam you.
    Yes! I want to Subscribe.