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भारतीय रेलवे और उसके निजीकरण की आवश्यकता

Lokesh Pal April 28, 2025 05:00 7 0

“एक गंभीर रूप से बीमार समाज में अच्छी तरह से समायोजित हो जाना, बेहतर स्वास्थ्य की कोई माप नहीं है।” – जिद्दू कृष्णमूर्ति

संदर्भ:

भारतीय रेलवे के निजीकरण की हालिया माँग का मुख्य उद्देश्य अकुशलता, पुराने बुनियादी ढाँचे और उच्च परिचालन लागत को दूर करना है।

पी. वी. नरसिंह राव के अधीन आर्थिक सुधार

  • आर्थिक सुधार (1992): 1992 में प्रधानमंत्री पी. वी. नरसिंह राव के नेतृत्व में भारतीय अर्थव्यवस्था में परिवर्तनकारी सुधार हुआ।
  • निजीकरण: अकुशल सार्वजनिक क्षेत्र की संस्थाओं के बोझ तले दबी स्थिर अर्थव्यवस्था को  व्यवस्थित निजीकरण के माध्यम से उदार बनाया गया।
  • लाइसेंस राज का अंत: कुख्यात लाइसेंस राज का अंत हो गया, जिससे आर्थिक स्वतंत्रता का एक नया युग प्रारंभ हुआ। 
  • आलोचना:  यद्यपि निजीकरण की धीमी गति के बारे में आलोचनाएँ मौजूद हैं, लेकिन इसके लाभ निर्विवाद हैं – उदाहरण के लिए, निजीकरण के बाद हवाई अड्डों का रूपांतरण।

भारतीय रेलवे से संबंधित चुनौतियाँ

  • परिवर्तन का अभाव: अन्यत्र उदारीकरण के बावजूद, भारतीय रेलवे पूर्व विनियामकीय ढाँचे में फँसी हुई है।  
    • वंदे भारत ट्रेनों और पुनर्निर्मित रेलवे स्टेशनों जैसे कुछ आधुनिक विकासों को छोड़कर, अधिकांश भारतीय रेलगाड़ियाँ अभी भी 1970 के दशक या उससे पहले की स्थिति को प्रतिबिंबित करती हैं।
  • एकाधिकार: भारतीय रेलवे का एकाधिकार अभी भी विद्यमान है, जो भारत के किसी भी अन्य क्षेत्र से बेहतर है। वास्तविक प्रतिस्पर्धा के अभाव के कारण ठहराव और अकुशलता उत्पन्न हुई है।
  • पुराने स्टेशन और भीड़भाड़: रेलवे स्टेशनों पर आम दृश्य काले और सफेद फिल्मों, टिमटिमाती रोशनी, एक साथ भीड़ में घिरे परिवारों तथा व्यवस्था और सुरक्षा की कमी के युग को दर्शाते हैं।
  • देरी: बार-बार होने वाली देरीभीड़भाड़ वाले कोच और पुरानी सुविधाएँ इस अनुभव पर नकारात्मक रूप से  हावी हैं। 
  • बिना टिकट यात्रा: प्रमुख मार्गों पर आरक्षित सीट प्राप्त करना लगभग असंभव हो गया है। टिकट होने पर भी सीट उपलब्ध होने की कोई गारंटी नहीं है, तथा बिना टिकट यात्रा सामान्य बात हो गई है।
  • खतरनाक परिचालन अनुपात: परिचालन अनुपात – परिचालन पर व्यय किए गए राजस्व का प्रतिशत – अस्थिर रूप से उच्च है। 2024 तक परिचालन अनुपात 98.43% था, जिसका अर्थ है कि भारतीय रेलवे अर्जित प्रत्येक रु॰ 100 पर रु॰ 98 से अधिक व्यय करता है।
  • सब्सिडी: भारतीय रेलवे टिकट बिक्री से परिचालन लागत का केवल 57% ही वसूल कर पाती है । यात्री ट्रेनें काफी घाटे में चलती हैं, माल ढुलाई शुल्क का प्रयोग यात्री सेवाओं को सब्सिडी देने के लिए किया जाता है।
  • सड़क परिवहन की ओर रुझान: अत्यधिक माल ढुलाई लागत के कारण, सड़क परिवहन माल ढुलाई के लिए पसंदीदा माध्यम बन गया है, जिससे रेलवे के राजस्व में और गिरावट आ रही है
  • पुराना अवसंरचनात्मक ढाँचा: पुराने ट्रैक और अप्रचलित उपकरणों के कारण प्रायः दुर्घटनाएँ होती हैं, जिससे गंभीर सुरक्षा चिंताएँ उत्पन्न होती हैं
  • उत्कृष्ट अचल संपत्ति की अवैध प्रयोग: ब्रिटिशकालीन प्रथाओं से ग्रस्त भारतीय रेलवे, भारतीय कस्बों और शहरों में प्रीमियम अचल संपत्ति का कम उपयोग कर रही है।
    • इस बहुमूल्य भूमि का अधिकांश उपयोग उत्पादक रूप में करने की बजाय, स्कूल और रेलवे कर्मचारियों के आवासों तथा सुख-सुविधाओं आदि में किया जा रहा है।

निजीकरण के संबंध में चिंताएँ

  • उच्च लागत: निजी ऑपरेटरों के आने से वैध आशंकाएँ उत्पन्न होती हैं – मुख्य रूप से उच्च लागत और आर्थिक रूप से वंचित लोगों के लिए पहुँच में कमी के बारे में।
  • आधुनिकीकरण और परंपरा में संतुलन: हालाँकि, आधुनिकीकरण का अर्थ परंपरा को त्यागना नहीं है। एक अच्छी तरह से संरचित निजीकरण रणनीति भारतीय रेलवे की विरासत के साथ नवाचार को समाहित कर सकती है।
  • विमानन क्षेत्र का अनुभव: 2000 के दशक के प्रारंभ में भारत के विमानन क्षेत्र के उदारीकरण से महत्त्वपूर्ण जानकारी मिलती है:
    • निजी एयरलाइनों का प्रसार;
    • बेहतर सेवा गुणवत्ता;
    • बेहतर परिचालन दक्षता और कनेक्टिविटी |
  • आगामी सफलता: यद्यपि आरंभ में विरोध हुआ, लेकिन निजीकरण के कारण किराये में कमी आई और कनेक्टिविटी बढ़ी – बावजूद इसके कि बाद में हवाईअड्डा परिचालन और एयरलाइनों में एकाधिकार विकसित हुआ

आगे की राह

  • आधुनिकीकरण संबंधी सिफारिशें: बिबेक देबरॉय समिति जैसे आयोग की रिपोर्ट्स में लगातार परिचालन ढाँचे के पुनर्गठन, निजी क्षेत्र के निवेश को बढ़ाने एवं बुनियादी ढाँचे के आधुनिकीकरण का समर्थन किया गया है।
  • नया अवसंरचना मॉडल: अब समय आ गया है, कि रेलवे लाइनों और स्टेशनों को राष्ट्रीय राजमार्गों की तरह माना जाए – जहाँ सरकार अवसंरचना का मालिक है और निजी तथा सार्वजनिक क्षेत्र के ऑपरेटर इस पर परिचालन के लिए टोल टैक्स का भुगतान करते हैं।
  • उत्प्रेरक प्रयास: बुलेट ट्रेनों की शुरुआत भारतीय रेलवे के लिए आधुनिकीकरण की दिशा में आगे बढ़ने का एक सुनहरा अवसर प्रस्तुत करती है। तीव्र, कुशल विकल्प विकसित हो रही भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए यात्रा को पुनः परिभाषित कर सकते हैं
  • मजबूत विनियामक ढाँचा: एक बेहतर ढंग से परिभाषित विनियामक ढाँचा सुरक्षा मानकों के प्रति जवाबदेही सुनिश्चित कर सकता है और सार्वजनिक हितों की रक्षा करते हुए नवाचार को बढ़ावा दे सकता है।
  • विशाल पैमाना: भारतीय रेलवे प्रतिवर्ष लगभग 67 करोड़ यात्रियों को ले जाती है – यदि इसे चतुराई से प्रबंधित किया जाए, तो यह एक ऐसा पैमाना है जो निजी और बहुराष्ट्रीय निवेश को आकर्षित कर सकता है।
  • चीन का मॉडल : चीन के रेलवे सुधार गैर-मुख्य कार्यों को अलग करने तथा विश्व स्तरीय नेटवर्क बनाने जैसे मूल्यवान सबक प्रदान करते हैं।

निष्कर्ष

यदि भारत आगामी पाँच दशकों में चीन के मानकों के बराबर पहुँचना चाहता है, तो वृद्धिशील परिवर्तन अब पर्याप्त नहीं हैं। निजी क्षेत्र की भागीदारी और मजबूत शासन के नेतृत्व में एक गंभीर संरचनात्मक परिवर्तन समय की माँग है।

मुख्य परीक्षा हेतु अभ्यास प्रश्न

भारत की रेलवे अवसंरचना के आधुनिकीकरण में निजी क्षेत्र की भागीदारी की संभावना का मूल्यांकन कीजिए। मौजूदा सार्वजनिक प्रणालियों के साथ निजी निवेश को एकीकृत करने में कौन-सी चुनौतियाँ आती हैं, तथा इनका  किस प्रकार समाधान किया जा सकता है?

(15 अंक, 250 शब्द)

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