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भारतीय शिपिंग उद्योग और उसकी आवश्यकता

Lokesh Pal November 13, 2024 05:45 33 0

संदर्भ :

वैश्विक जहाज निर्माण और स्वामित्व में भारत की स्थिति इसके आर्थिक विकास के बावजूद कमज़ोर है। जैसे-जैसे यह विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की ओर अग्रसर है, ऐसे में भारत को अपने घरेलू जहाज निर्माण उद्योग (शिपिंग उद्योग) को मज़बूत करना आर्थिक विकास तथा रणनीतिक सुरक्षा दोनों के लिए आवश्यक है।

भारत के जहाज निर्माण और शिपिंग उद्योग की वर्तमान स्थिति

  • जहाज स्वामित्व : दिसंबर 2023 तक भारत के पास 13.75 मिलियन सकल टन क्षमता वाले केवल 1,526 जहाज़ हैं, जो जहाज़ स्वामित्व में वैश्विक भागीदारी का केवल 1.2% योगदान देते हैं।
  • अंतर्राष्ट्रीय व्यापार बेड़ा : भारत के स्वामित्व वाले जहाजों में से केवल 487 जहाजों का उपयोग विदेशी व्यापार के लिए किया जाता है, जो वैश्विक समुद्री परिवहन में सीमित भागीदारी को दर्शाता है।
  • झंडे का मुद्दा : वैश्विक जहाजों में से केवल 0.77% भारतीय झंडे के तहत पंजीकृत हैं, जिनमें से अधिकांश जहाजों पर लाइबेरिया, पनामा और मार्शल द्वीप जैसे देशों के झंडे लगे हुए हैं।
    • ये अधिकार क्षेत्र महत्त्वपूर्ण वित्तीय लाभ प्रदान करते हैं, जैसे कि कर छूट या शिपिंग कंपनियों पर कम कर दरें, जो उन्हें जहाज़ मालिकों के लिए आकर्षक बनाती हैं। 
  • जहाज निर्माण और बाजार में हिस्सेदारी : जहाज निर्माण में वैश्विक बाजार में भारत की हिस्सेदारी मात्र 0.07% है, जबकि इसके विपरीत चीन (46.6%), दक्षिण कोरिया (29.2%) और जापान (17.2%) का इस उद्योग पर प्रभुत्व है।

नोट : जहाज निर्माण क्षेत्र में तीन अलग-अलग लेकिन परस्पर जुड़े हुए घटक शामिल हैं- निर्माण, स्वामित्व और झंडा लगाना।

  • जहाज का निर्माण एक देश में हो सकता है, उसका स्वामित्व दूसरे देश के पास हो सकता है और वह तीसरे देश के झंडे के तहत पंजीकृत हो सकता है, जो एक मजबूत घरेलू शिपिंग उद्योग विकसित करने की जटिलता को उजागर करता है।

भारत के शिपिंग उद्योग की चुनौतियों के निहितार्थ

  • विदेशी मुद्रा का बढ़ता प्रवाह : भारत अपने 95% अंतर्राष्ट्रीय कार्गो के लिए विदेशी स्वामित्व वाले और ध्वजांकित जहाजों पर निर्भर है, जिसके परिणामस्वरूप विदेशी मुद्रा का पर्याप्त बहिर्वाह होता है।
    • 2022-23 में भारत ने समुद्री माल ढुलाई पर लगभग $75 बिलियन खर्च किए, जिसके जल्द ही $100 बिलियन से अधिक हो जाने का अनुमान है।
  • भू-रणनीतिक जोखिम : राजनीतिक या आर्थिक व्यवधानों के समय भारत का व्यापार कमज़ोर हो सकता है, क्योंकि विदेशी जहाजों और वैश्विक शिपिंग लेन तक पहुँच प्रतिबंधित हो सकती है, जिससे भारत की व्यापार सुरक्षा और समुद्री हितों से समझौता हो सकता है।
  • व्यापार निर्भरता : शिपिंग के लिए विदेशी देशों पर भारत की निर्भरता आपूर्ति शृंखला के लचीलेपन को कमज़ोर करती है, जिससे देश को माल ढुलाई मूल्य में अस्थिरता, व्यवधान और भू-राजनीतिक तनाव जैसे जोखिमों का सामना करना पड़ता है, जो सेवा उपलब्धता को प्रभावित कर सकते हैं।

भारत के शिपिंग क्षेत्र के समक्ष आने वाली प्रमुख बाधाएँ

  • रणनीतिक चर्चाओं में जहाजों के विषय में चर्चा का न होना : जबकि बंदरगाह रसद और दक्षता पर बहुत अधिक ध्यान दिया जाता है, जहाजों, जो आर्थिक और रणनीतिक दोनों कारणों से समान रूप से महत्त्वपूर्ण हैं, को बड़े पैमाने पर नजरअंदाज किया गया है। 
  • वित्तीय बाधाएँ :
    • सीमित वित्तपोषण विकल्प : उद्योग की पूँजी-गहन प्रकृति के कारण जहाज़ निर्माताओं को प्रतिस्पर्द्धी ब्याज दरों पर दीर्घकालिक ऋण की आवश्यकता होती है, जो आसानी से उपलब्ध नहीं है।
    • SARFAESI अधिनियम बहिष्करण : SARFAESI अधिनियम की धारा-31(d) के तहत, जहाजों को उन परिसंपत्तियों के रूप में वर्गीकृत करने से बाहर रखा गया है जिन्हें गिरवी रखा जा सकता है, जो बैंकों को ऋण देने से हतोत्साहित करता है, क्योंकि जहाजों को ऋण के लिए संपार्श्विक के रूप में प्रयोग नहीं किया जा सकता है।
  • बुनियादी ढाँचे की सूची से बहिष्करण : जहाजों को बुनियादी ढाँचे के रूप में वर्गीकृत नहीं किया जाता है, जिसका अर्थ है कि जहाज निर्माता घरेलू और विदेशी स्रोतों, जैसे कि राष्ट्रीय बुनियादी ढाँचा निवेश कोष, से दीर्घकालिक वित्तपोषण प्राप्त नहीं कर सकते हैं या जहाजों के लिए बाहरी वाणिज्यिक उधार से धन नहीं जुटा सकते हैं।
  • महाद्वीपीय दृष्टिकोण : भारत का विकास केंद्र पारंपरिक रूप से भूमि आधारित रहा है, जिसमें समुद्री सुरक्षा और शिपिंग पर कम बल दिया गया है। यह महाद्वीपीय दृष्टिकोण समुद्री व्यापार और सुरक्षा की बात आने पर देश की रणनीतिक दृष्टि को सीमित करता है।

भारत में जहाज निर्माण महाशक्ति बनने की क्षमता

  • भारत के पास एक मजबूत जहाज निर्माण उद्योग के लिए आवश्यक घटक मौजूद हैं, जैसे कि परमाणु पनडुब्बी और विमान वाहक बनाने की क्षमता और कुशल कार्यबल।
  • भारत नाविकों का एक प्रमुख आपूर्तिकर्ता भी है, जो वैश्विक स्तर पर तीसरे स्थान पर है तथा शारीरिक रूप से कठिन इस उद्योग का समर्थन करने के लिए अपने युवा जनसांख्यिकी का लाभ उठा सकता है।
  • चीन, जापान और दक्षिण कोरिया की घटती जनसांख्यिकी भारत के युवा श्रमिकों को एक बड़ा बाजार हिस्सा प्राप्त करने के अवसर प्रदान करती है।

भारत के जहाज निर्माण विकास के लिए आवश्यक कदम

  • बुनियादी ढाँचे की सूची में जहाज़ों को शमिल करना :
    • बुनियादी ढाँचे की सामंजस्यपूर्ण सूची में जहाजों को शामिल किया जाना चाहिए, जिससे जहाज निर्माताओं को रंगराजन आयोग की सिफारिशों के अनुसार विकास के लिए आवश्यक दीर्घकालिक वित्तपोषण प्राप्त करने में मदद मिल सके। 
    • समावेशन से ब्याज दरें भी कम होंगी और उद्योग को दीर्घकालिक वित्तीय सहायता मिलेगी।
  • SARFAESI अधिनियम में संशोधन आवश्यक :
    • जहाजों को SARFAESI अधिनियम के अंतर्गत प्रतिभूतीकरण के लिए पात्र बनाया जाना चाहिए, जिससे उन्हें गिरवी रखने योग्य परिसंपत्ति बनाया जा सके तथा बेहतर वित्तपोषण विकल्प उपलब्ध हो सकें।
  • घरेलू संरक्षण इकाई का विकास :
    • भारतीय जहाजों के लिए सुरक्षा और क्षतिपूर्ति इकाई की स्थापना करना, जोखिम प्रबंधन समाधान प्रदान करना तथा भारत में अधिक जहाज स्वामित्व को प्रोत्साहित करना।

निष्कर्ष

जहाज निर्माण और शिपिंग में वैश्विक नेता बनने के लिए भारत को वित्तपोषण, बुनियादी ढाँचे की स्थिति और कानूनी सुधारों जैसी प्रमुख चुनौतियों का समाधान करना होगा। अपनी क्षमताओं और संसाधनों के साथ, भारत जहाज निर्माण उद्योग में रणनीतिक रूप से अपनी स्थिति बना सकता है, जिससे उसकी आर्थिक स्थिति और समुद्री सुरक्षा दोनों में वृद्धि होगी।

मुख्य परीक्षा हेतु अभ्यास प्रश्न 

भारत के जहाज निर्माण उद्योग के समक्ष आने वाली प्रमुख चुनौतियाँ क्या हैं? जहाजों को बुनियादी ढाँचा का दर्जा देने जैसे नीतिगत परिवर्तन इस क्षेत्र को बढ़ावा देने में कैसे सहायक हो सकते हैं?

(10 अंक, 150 शब्द)

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