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भारतीय शिपिंग उद्योग : बजटीय प्रावधान

Lokesh Pal February 04, 2025 05:00 11 0

संदर्भ:

केंद्रीय बजट में, शिपिंग उद्योग की अधिकांश मांगें पूरी हो गई हैं; लेकिन आरोप है कि अभी भी यह कर असमानताओं को दूर करने का अवसर चूक गया है।

सागरमाला परियोजना का विश्लेषण:

  • बुनियादी ढांचे का विकास: भारत के समुद्री बुनियादी ढांचे को बढ़ाने के लिए शुरू किए गए सागरमाला कार्यक्रम ने बंदरगाहों के आधुनिकीकरण, कनेक्टिविटी में सुधार और औद्योगिक विकास को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण प्रगति की है।
  • परियोजना कार्यान्वयन: समुद्री बुनियादी ढांचे के विकास हेतु, सितंबर 2024 तक, ₹5.8 लाख करोड़ के निवेश की आवश्यकता वाली 839 परियोजनाओं की रूपरेखा तैयार की गई है, जिनमें निम्नलिखित उपलब्धियाँ शामिल हैं:
    • 241 परियोजनाएं (₹1.22 लाख करोड़) पूरी हुईं।
    • 234 परियोजनाएं (₹1.8 लाख करोड़) कार्यान्वयन के अधीन।
    • 364 परियोजनाएं (₹2.78 लाख करोड़) विकास के विभिन्न चरणों में पूर्णता की ओर।
  • प्रमुख फोकस क्षेत्र: इस कार्यक्रम ने चार प्रमुख क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित किया है:
    • बंदरगाह आधुनिकीकरण: बंदरगाहों को वैश्विक मानकों के अनुरूप उन्नत करने के लिए 2.91 लाख करोड़ रुपये आवंटित किए गए।
    • बंदरगाह संपर्क हेतु निवेश : रसद दक्षता में सुधार के लिए रेल और सड़क संपर्क में 2.06 लाख करोड़ रुपये का निवेश किया गया।
    • बंदरगाह-आधारित औद्योगीकरण: बंदरगाहों के पास औद्योगिक क्लस्टर विकसित करने के लिए 55.8 हजार करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं।
    • तटीय सामुदायिक विकास: तटीय समुदायों की आजीविका बढ़ाने के लिए विभिन्न योजनाओं के माध्यम से प्रयास किया गया है।
  • सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) वृद्धि: इन पहलों का प्रभाव भारत की आर्थिक वृद्धि में स्पष्ट है। कोविड-19 महामारी के कारण उत्पन्न बाधाओं के बावजूद जीडीपी 2016-17 में ₹153 ट्रिलियन से बढ़कर 2022-23 में ₹272 ट्रिलियन हो गई।
  • व्यापार विस्तार: भारत का एक्जिम व्यापार 2016-17 में 66 बिलियन डॉलर से बढ़कर 2022 में 116 बिलियन डॉलर हो गया, जो 77% संचयी वृद्धि को दर्शाता है
  • आर्थिक विकास का लक्ष्य: सरकार का लक्ष्य 2027 तक 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था हासिल करना है। इसके दीर्घकालिक अनुमानों में 2030 तक 7 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था का लक्ष्य रखा गया है। इस नीति के तहत वर्ष 2030 तक निर्यात 2 ट्रिलियन डॉलर तक पहुँचने की उम्मीद है

सागरमाला परियोजना:

  • सागरमाला कार्यक्रम भारत सरकार की एक समुद्र विकास की पहल है, जिसका उद्देश्य देश के लॉजिस्टिक्स क्षेत्र को बढ़ाने के लिए बंदरगाह आधारित विकास को बढ़ावा देना है। 
  • 2015 में प्रारंभ की गई इस योजना के प्राथमिक उद्देश्यों में घरेलू और एक्जिम (निर्यात-आयात) कार्गो दोनों के लिए रसद लागत को कम करना, बंदरगाह बुनियादी ढांचे को अनुकूलित करना और तटीय क्षेत्रों के पास औद्योगिक विकास को बढ़ावा देना शामिल है।
  • नवीनतम जानकारी के अनुसार, सागरमाला कार्यक्रम में कुल 839 परियोजनाएं शामिल हैं, जिनका अनुमानित निवेश लगभग 5.8 लाख करोड़ डॉलर है तथा इन्हें 2035 तक पूरा करने का लक्ष्य रखा गया है। 

इन परियोजनाओं को पांच प्रमुख स्तंभों में वर्गीकृत किया गया है:

  • बंदरगाह आधुनिकीकरण और नए बंदरगाह विकास: इसका उद्देश्य क्षमता और दक्षता बढ़ाने के लिए मौजूदा बंदरगाह बुनियादी ढांचे को बढ़ाना और नए बंदरगाहों का विकास करना है।
  • बंदरगाह संपर्क वृद्धि: इसका उद्देश्य रेल, सड़क और जलमार्ग के माध्यम से बंदरगाहों और घरेलू उत्पादन और उपभोग केंद्रों के बीच संपर्क में सुधार करना है।
  • बंदरगाह-आधारित औद्योगीकरण: इसका उद्देश्य रसद लागत को कम करने और निर्यात-उन्मुख उद्योगों को बढ़ावा देने के लिए बंदरगाहों के पास औद्योगिक क्लस्टर और विशेष आर्थिक क्षेत्र स्थापित करना है।
  • तटीय सामुदायिक विकास: इसके माध्यम से कौशल विकास, मत्स्य पालन विकास और पर्यटन संवर्धन के माध्यम से तटीय समुदायों के सामाजिक-आर्थिक उत्थान पर ध्यान केंद्रित करना है।
  • तटीय नौवहन और अंतर्देशीय जल परिवहन: इसका उद्देश्य तटीय नौवहन और अंतर्देशीय जलमार्गों के उपयोग को पर्यावरण अनुकूल और लागत प्रभावी परिवहन साधनों के रूप में बढ़ावा देना है।

शिपिंग उद्योग में शिथिलता :

  • पोत संचालन में गिरावट: बुनियादी ढांचे में वृद्धि के बावजूद, बंदरगाहों पर संचालित पोतों की संख्या में 5.93% की गिरावट दर्ज की गई है, जो 2016-17 में 21,655 पोतों से घटकर 2020-21 में 20,371 हो गई।
  • पंजीकृत बेड़े के विस्तार की धीमी गति: भारतीय पंजीकृत बेड़े में धीमी वृद्धि हुई है, जो 2016-17 में 1,313 जहाजों से बढ़कर 2024 में 1,526 जहाजों तक पहुंच गयी है।
  • वैश्विक रैंकिंग में गिरावट: भारत की वैश्विक जहाज स्वामित्व रैंकिंग 17वें स्थान से गिरकर 19वें स्थान तक पहुँच गई है, जो दर्शाता है कि बंदरगाहों के बुनियादी ढांचे में सुधार से घरेलू शिपिंग क्षेत्र मजबूत नहीं हुआ है।
  • विदेशी प्रतिस्पर्धा: भारतीय शिपिंग कंपनियां एक्जिम (निर्यात-आयात) व्यापार में विदेशी जहाजों के मुकाबले बाजार हिस्सेदारी खो रही हैं, जिसका मुख्य कारण बेहतर वैश्विक प्रतिस्पर्धा और कम परिचालन लागत है।
  • वैकल्पिक परिवहन साधन: मौजूदा समय में, भारतीय घरेलू माल का परिवहन तेजी से रेल और सड़क परिवहन द्वारा सम्पन्न किया जा रहा है, जबकि शिपिंग लागत-प्रभावशीलता और बड़े पैमाने पर परिवहन की क्षमता के बावजूद इसे नजरअंदाज किया जा रहा है।

भारतीय शिपिंग उद्योग में निहित चुनौतियाँ:

  • उच्च उधार लागत: भारतीय शिपिंग कंपनियों को किफायती वित्तपोषण तक पहुँचने में महत्वपूर्ण बाधाओं का सामना करना पड़ता है। इनमें उच्च ब्याज दरें, कम ऋण अवधि और कठोर संपार्श्विक आवश्यकताएँ शामिल हैं।
  • संपार्श्विक मुद्दे: विदेशी समकक्षों के विपरीत, भारतीय जहाज मालिक ऋण के लिए जहाजों को संपार्श्विक के रूप में उपयोग करने में असमर्थ हैं, जिससे वित्तपोषण अधिक कठिन हो जाता है।
  • ऋणदाताओं की गलतफहमी: बैंकों और वित्तीय संस्थानों में अक्सर शिपिंग उद्योग की चक्रीय प्रकृति की समझ का अभाव होता है, जिसके परिणामस्वरूप कठोर ऋण पुनर्गठन नीतियां बनती हैं, जो उद्योग-विशिष्ट आवश्यकताओं को पूरा करने में विफल रहती हैं।
  • भारतीय जहाजों पर एकीकृत माल और सेवा कर: भारतीय ध्वज वाले जहाजों को उनके खरीद मूल्य पर 5% एकीकृत माल और सेवा कर (आईजीएसटी) का सामना करना पड़ता है, जबकि भारतीय समुद्री जल में चलने वाले विदेशी जहाज इस कर के अधीन नहीं आते हैं, जिससे घरेलू जहाज कम प्रतिस्पर्धी हो जाते हैं।
  • नाविकों के वेतन पर टीडीएस: भारतीय जहाज मालिकों को नाविकों के वेतन पर स्रोत कर कटौती (टीडीएस) काटनी होगी, जबकि भारतीय नाविकों को नियुक्त करने वाले विदेशी जहाजों को ऐसा करने की आवश्यकता नहीं है।
  • प्रतिस्पर्धात्मकता पर प्रभाव: ये कर विसंगतियां भारतीय ध्वज वाले जहाजों को उनके विदेशी समकक्षों की तुलना में स्पष्ट रूप से नुकसान पहुँचाती हैं, जिससे उनके लिए घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय दोनों बाजारों में प्रतिस्पर्धा करना कठिन हो जाता है।
  • अपर्याप्त बुनियादी ढांचा: वर्तमान समय में, भारत का जहाज निर्माण उद्योग बुनियादी ढांचे से संबंधित मुद्दों का सामना कर रहा है, जो इसके विकास और प्रतिस्पर्धात्मकता में बाधा डालता है।
  • उच्च इनपुट लागत: भारतीय औद्योगिक क्षेत्र को कच्चे माल, विशेष रूप से इस्पात की उच्च लागत का सामना करना पड़ता है, जिससे उत्पादन लागत बढ़ जाती है।
  • आयात पर निर्भरता: स्पेयर पार्ट्स के लिए आयात पर भारी निर्भरता से जहाज निर्माण की लागत बढ़ती है और प्रयासों में विलंब होता है ।
  • सीमा शुल्क: जहाज निर्माण में प्रयुक्त मशीनरी और सामग्रियों पर आयात शुल्क से उत्पादन लागत और बढ़ जाती है।
  • कुशल श्रमिकों की कमी: जहाज निर्माण में कुशल श्रमिकों की कमी प्रमुख समस्या है, जो भारतीय शिपयार्डों में दक्षता और उत्पादकता में बाधा डालती है।
    • इन चुनौतियों के कारण जहाज़ों की डिलीवरी में विलंब हो रहा हैजिससे जहाज़ मालिक भारतीय शिपयार्डों में निवेश करने से हतोत्साहित हो रहे हैं।
  • टैक्स हेवन पंजीकरणविदेशी ध्वज वाले जहाज, जो अक्सर टैक्स हेवन में पंजीकृत होते हैं, उन्हें अधिक अनुकूल वित्तीय और विनियामक स्थितियों तक पहुंच प्राप्त होती है। उन्हें कम उधार लागत, पूंजी तक आसान पहुंच और कम विनियमन का लाभ मिलता है।
  • नियामक खामियां: ये जहाज न्यूनतम नियामक निगरानी के साथ संचालित होते हैं, जिससे उन्हें भारतीय ध्वज वाले जहाजों की तुलना में, उल्लेखनीय रूप से  कम परिचालन लागत बनाए रखने में मदद मिलती है।
    • परिणामस्वरूप, विदेशी ध्वज वाले जहाज घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय शिपिंग बाज़ारों के प्रति अधिक प्रतिस्पर्धी हो गए हैं, जिससे भारतीय शिपिंग कम्पनियों के समक्ष चुनौतियाँ और बढ़ गई हैं।
  • समुद्री विकास कोष जुटाने पर स्पष्टता: 25,000 करोड़ रुपये के समुद्री विकास कोष को जुटाने और वितरित करने की सटीक व्यवस्था अभी भी अस्पष्ट है, जिससे आने वाले वर्षों में उद्योगों  के विकास पर इसके प्रभाव के बारे में अनिश्चितता बनी हुई है।

हाल की सरकारी पहल:

  • समुद्री विकास निधि (एमडीएफ): जहाज मालिकों के लिए पूंजी पहुंच बढ़ाने, बेड़े के आधुनिकीकरण और प्रतिस्पर्धात्मकता को बढ़ावा देने के लिए वित्तीय सहायता प्रदान करने हेतु 25,000 करोड़ रुपये की समुद्री विकास निधि (एमडीएफ) की स्थापना की गई है।
    • हालांकि इसके तहत यह प्रावधान किया गया है कि सरकार इस कोष में 49% का योगदान करेगी, शेष 51% प्रमुख बंदरगाहों से आएगा, जिससे कोष की स्थिरता और दीर्घकालिक व्यवहार्यता के बारे में चिंताएं बढ़ गई हैं।
    • इस बात पर सवाल बने हुए हैं कि इस फंड को किस तरह प्रभावी ढंग से जुटाया जाएगा और उद्योग में वितरित किया जाएगा। शिपिंग क्षेत्र में सभी हितधारकों के लिए स्थिर और समान पहुंच सुनिश्चित करना एक प्रमुख चुनौती है।
  • प्रोत्साहन नीतियाँ : बड़े जहाजों को बुनियादी ढांचे का दर्जा देने से शिपिंग कंपनियों को अन्य बुनियादी ढांचा क्षेत्रों के लिए आरक्षित लाभों तक पहुंच प्राप्त करने की सुविधा मिलती है। उदाहरण के लिए, आसान वित्तपोषण और कर लाभ प्रदान करना।
    • इस दर्जे से बड़े जहाजों में निवेश को बढ़ावा मिलने तथा भारतीय शिपिंग कंपनियों की वृद्धि और प्रतिस्पर्धात्मकता में वृद्धि होने की उम्मीद है।
  • सीमा शुल्क संबंधी छूट का विस्तारीकरण : सरकार ने जहाज निर्माण क्षेत्र पर सीमा शुल्क से छूट को अगले 10 वर्षों के लिए बढ़ा दिया है।
    • यह कदम जहाज निर्माण की लागत को कम करने के लिए उठाया गया है, जिससे भारतीय शिपयार्डों के लिए वैश्विक बाजार में प्रतिस्पर्धा करना अधिक किफायती हो जाएगा।
  • जहाज तोड़ने के लिए ऋण प्रोत्साहन: सरकार ने जहाज तोड़ने की गतिविधियों का समर्थन करने तथा पुराने जहाजों के पुनर्चक्रण को प्रोत्साहित करने के लिए ऋण प्रोत्साहन की शुरुआत की है।
  • टन भार कर योजना का विस्तारटन भार कर योजना, जो लाभ के बजाय उनके बेड़े के आकार के आधार पर शिपिंग कंपनियों को लाभ पहुंचाती है। इस योजना को अंतर्देशीय जहाजों तक बढ़ा दिया गया है। इस विस्तार का उद्देश्य अंतर्देशीय शिपिंग क्षेत्र को बढ़ावा देना और परिवहन लागत को कम करना है।

आगे की राह:

  • ऋण अवधि और ब्याज दरें: जैसा कि विदित है शिपिंग उद्योग को जहाजों के अधिग्रहण और आधुनिकीकरण की सुविधा के लिए 7-10 साल की अवधि वाले दीर्घकालिक ऋणों की आवश्यकता होती है। कम ब्याज दरों पर ऋण देने से जहाज मालिकों के लिए वित्तपोषण अधिक किफायती और सुलभ हो जाएगा।
  • वित्तीय उत्पाद विकास: वित्तीय संस्थाएं उद्योग की चक्रीय प्रकृति के अनुरूप उत्पाद विकसित कर सकती हैं, जैसे लचीले ऋण चुकौती विकल्प या आस्थगित भुगतान योजनाएं, ताकि शिपिंग कंपनियों पर वित्तीय बोझ कम किया जा सके।
  • नए शिपयार्डों में निवेश: भारत को बड़े जहाजों के निर्माण हेतु सुसज्जित नए शिपयार्डों के निर्माण में निवेश करना चाहिए, जिससे आयातित जहाजों पर देश की निर्भरता कम करने में मदद मिलेगी।
  • मौजूदा शिपयार्डों का आधुनिकीकरण: उन्नत प्रौद्योगिकी और बेहतर उत्पादन क्षमताओं के साथ मौजूदा शिपयार्डों को उन्नत करने से जहाजों को अधिक कुशलतापूर्वक और प्रतिस्पर्धी कीमतों पर वितरित करने की उनकी क्षमता में वृद्धि हो सकती है।
  • जहाज खरीद पर आईजीएसटी हटाना: भारतीय ध्वज वाले जहाजों को उनके खरीद मूल्य पर 5% एकीकृत माल और सेवा कर (आईजीएसटी) से छूट देने से जहाजों को खरीदने की लागत की समस्या को कम करने में मदद मिलेगी और विदेशी ध्वज वाले जहाजों की तुलना में भारतीय जहाज अधिक प्रतिस्पर्धी बनेंगे।
  • भारतीय नाविकों के लिए टीडीएस से छूट: भारतीय जहाज मालिकों को नाविकों के वेतन पर टैक्स डिडक्टेड एट सोर्स यानि स्त्रोत पर की गई टैक्स (कर) कटौती (टीडीएस) काटने से छूट दी जानी चाहिए, जिससे उन्हें उन विदेशी जहाजों के बराबर लाया जा सके जो कर के बोझ के बिना भारतीय चालक दल के सदस्यों को नियुक्त करते हैं।
  • ईसीबी का रणनीतिक उपयोग: समुद्री क्षेत्र में पूंजी अंतर को पाटने के लिए बाह्य वाणिज्यिक उधार (ईसीबी) वित्तपोषण का एक प्रभावी स्रोत हो सकता है । विदेशी पूंजी को आकर्षित करके, भारतीय शिपिंग उद्योग बेड़े के विस्तार और आधुनिकीकरण के लिए अधिक किफायती वित्तपोषण प्राप्त कर सकता है ।
  • नियामक लचीलापन ढाँचा : सरकार बाह्य वाणिज्यिक उधार (ईसीबी) के लिए अधिक अनुकूल नियामक वातावरण बना सकती है, जिससे शिपिंग कंपनियों के लिए वित्तपोषण हेतु अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय बाजारों का उपयोग करना आसान हो जाएगा।
  • पर्यावरण अनुकूल जहाज निर्माण: जैसे-जैसे वैश्विक उत्सर्जन कटौती लक्ष्य सख्त होते जा रहे हैं, भारत को पर्यावरण अनुकूल जहाज निर्माण प्रथाओं के विकास में निवेश करना चाहिए। इसमें नए जहाजों में ऊर्जा-कुशल सामग्री, नवीकरणीय ऊर्जा प्रणाली और वैकल्पिक ईंधन को अपनाना शामिल है ।
  • मौजूदा जहाजों में सुधार करना : पर्यावरण नियमों का पालन करने के लिए, भारतीय शिपिंग कंपनियों को मौजूदा जहाजों में हरित प्रौद्योगिकियों के अनुपालन को प्रोत्साहित करना चाहिए। साथ ही निकास गैस सफाई प्रणालियों (स्क्रबर्स) और ऊर्जा-बचत उपकरणों को शामिल करने के लिए, प्रोत्साहित करने का प्रयास करना चाहिए।

निष्कर्ष:

सागरमाला कार्यक्रम ने भारत के बंदरगाह बुनियादी ढांचे को बढ़ाने, कनेक्टिविटी में सुधार करने और रसद लागत को कम करने में, महत्वपूर्ण प्रगति की है। इस कार्यक्रम में भारत को वैश्विक समुद्री केंद्र बनाने की क्षमता है।

मुख्य परीक्षा हेतु अभ्यास प्रश्न:

प्रश्न: सागरमाला के माध्यम से समुद्री अवसंरचना में महत्वपूर्ण निवेश और मजबूत जीडीपी वृद्धि के बावजूद, भारत का शिपिंग उद्योग स्थिर बना हुआ है। इस क्षेत्र के सामने आने वाली चुनौतियों का विश्लेषण करें और सतत विकास सुनिश्चित करते हुए भारत को वैश्विक समुद्री शक्ति में बदलने के लिए आवश्यक उपायों का सुझाव दें। (15 अंक, 250 शब्द)

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