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भारतीय उपमहाद्वीप : दो टाइम ज़ोन की आवश्यकता

Lokesh Pal July 02, 2025 05:00 10 0

संदर्भ:

यह विचार कि “जिस विचार का समय आ गया है उसे कोई नहीं रोक सकता” भारत     में दो टाइम ज़ोन (time zone) को लागू करने की सामयिक प्रासंगिकता को दर्शाता है।

  • भारत ने इस सुधार को अपनाने के लिए पर्याप्त आर्थिक, शैक्षिक, तकनीकी और तार्किक परिपक्वता हासिल कर ली है। 

सरकार द्वारा बदलाव के समर्थन में संकेत:

  • राइजिंग नॉर्थईस्ट इन्वेस्टर्स समिट 2025 में प्रधानमंत्री मोदी ने ईस्ट पर जोर देते हुए कहा कि यह शब्द सशक्तीकरण (Empower), कार्य (Act), सुदृढ़ीकरण (Strengthen), परिवर्तन (Transform) का संक्षिप्त रूप है।
  • नीति आयोग ने विकसित भारत @2047 पर चर्चा के दौरान राज्यों को अद्वितीय भौगोलिक और जनसांख्यिकीय लाभांश का लाभ उठाने के लिए प्रोत्साहित किया।

वर्तमान दुविधा : सूर्योदय और क्षेत्रीय असमानता

  • भारत का देशांतरीय विस्तार पश्चिम (गुजरात) में 68°7′ से लेकर पूर्व में 97°25′ तक है, जिसमें 29° का विस्तार है जो कि भौगोलिक दृष्टिकोण से दो घंटे से अधिक का प्राकृतिक समय अंतराल उत्पन्न करता है। 
  • हालाँकि, वर्तमान समय में भारत एक ही IST का पालन करता है, जिसे 82.5° E देशांतर के आधार पर निर्धारित किया गया है, जो उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर से होकर गुजरता है। यह मानक ग्रीनविच मीन टाइम (GMT) से लगभग 5 घंटे 30 मिनट आगे है। 
  • भारतीय मानक समय (IST) के इस अंतराल के परिणामस्वरूप पूर्वी और पूर्वोत्तर के राज्य अपने प्रारंभिक सूर्योदय का पूर्ण लाभ नहीं उठा पाते हैं। 

एकल टाइम ज़ोन के परिणाम:

  • मानक समय के मुताबिक बर्बाद घंटे: पूर्व में, सूरज भारतीय मानक समय के आधार पर घड़ी के संकेत से काफी पहले उगता है। इससे मूल्यवान दिन के उजाले के घंटों का काफी नुकसान होता है
  • उत्पादक घंटों का ह्रास : प्राकृतिक दिन के प्रकाश और आधिकारिक कार्य समय के बीच असंतुलन के परिणामस्वरूप उत्पादकता में महत्वपूर्ण हानि होती है।  
    • उदाहरण के लिए, पूर्वोत्तर में चाय बागान पहले से ही एक अलग “चाय बागान टाइम ज़ोन” पर काम करते हैं, जो दिन के उजाले का बेहतर उपयोग करने और उत्पादकता बनाए रखने के लिए भारतीय मानक समय (IST) से एक घंटा आगे है।
  • ऊर्जा अकुशलता: पूर्व में सूर्योदय और सूर्यास्त जल्दी होने के कारण, भारतीय मानक समय पर काम करने का मतलब है कि शाम की गतिविधियों के लिए अक्सर कृत्रिम प्रकाश की आवश्यकता होती है, जिसके परिणामस्वरूप बिजली की खपत बढ़ जाती है।

ऐतिहासिक मिसाल और पिछली आपत्तियाँ:  

  • ऐतिहासिक रूप से, ब्रिटिश भारत ने इन भौगोलिक वास्तविकताओं को मान्यता दी और कई टाइम ज़ोन के साथ काम किया।  
  • 1884 में, कलकत्ता समय (90वीं मध्याह्न रेखा पूर्व पर आधारित) और बॉम्बे समय (75वीं मध्याह्न रेखा पूर्व पर आधारित) और मद्रास समय प्रयोग में थे। 
  • कलकत्ता का समय भारतीय मानक समय से 23 मिनट और 20 सेकंड आगे था तथा बम्बई के समय से 1 घंटा, 2 मिनट और 20 सेकंड आगे था। 
  • कलकत्ता और बम्बई क्षेत्रीय टाइम ज़ोनक्रमशः 1948 और 1955 तक जारी रहे।

एकल टाइम ज़ोन अपनाने के कारण:

  • एकल टाइम ज़ोन की ओर कदम प्रशासनिक सरलता और भ्रम से बचने के तर्कों से प्रेरित था, विशेष रूप से रेलवे समय-सारिणी, बैंकिंग और सरकारी समय-सारिणी के संबंध में आसानी व समानता हेतु यह जरूरी था।
  • लंबी दूरी की कनेक्टिविटी के प्राथमिक प्रदाता के रूप में रेलवे ने परिचालन चुनौतियों के कारण विशेष रूप से बहु-टाइम ज़ोन के विरोध में आवाज उठाई थी। 
  • इसके अतिरिक्त, उस समय कम साक्षरता दर को भी संभावित सार्वजनिक भ्रम का कारण बताया गया।

वर्तमान समय में दो टाइम ज़ोन लागू करने के पक्ष में तर्क:

20वीं सदी के मध्य में उठाई गई आपत्तियाँ आज काफी हद तक अप्रासंगिक हैं। दो     टाइम ज़ोन  के लिए एक महत्त्वपूर्ण व मजबूत रणनीति के साथ अनेक कारकों पर आधारित है:

  • राष्ट्रीय परिपक्वता: 1947 के बाद से आर्थिक विकास, शिक्षा, प्रौद्योगिकी और लॉजिस्टिक्स में भारत की महत्वपूर्ण प्रगति विभिन्न टाइम ज़ोन की जटिलताओं को प्रभावी ढंग से प्रबंधित करने की तत्परता को दर्शाती है।
  • उत्पादकता में वृद्धि: दो टाइम ज़ोन को अपनाने से पूर्वी और पूर्वोत्तर राज्यों को अपने शुरुआती सूर्योदय का बेहतर लाभ उठाने में मदद मिलेगी, जिससे दिन के महत्वपूर्ण घंटों की बचत होगी और उत्पादकता में भारी नुकसान को रोका जा सकेगा। इससे राष्ट्रीय सकल घरेलू उत्पाद पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ेगा, विशेष रूप से कृषि-अर्थव्यवस्था को लाभ होगा जो स्वाभाविक रूप से सूर्य की गतिशीलता व उपस्थिति का अनुसरण करती है।
  • उल्लेखनीय ऊर्जा बचत: प्रयास (पुणे स्थित गैर-लाभकारी संस्था) और मोतीलाल ओसवाल जैसे संगठनों द्वारा किए गए एक अध्ययन से संकेत मिलता है कि दो टाइम ज़ोन  के साथ परिचालन करने से नियोजित 80 गीगावाट तापीय क्षमता में 10% की कमी हो सकती है, जिससे पूंजीगत व्यय में लगभग 7,000 करोड़ रुपये की बचत होने के अनुमान हैं।
    • आवर्ती ऊर्जा खपत बचत 7.5% से 10% के बीच अनुमानित है।
    • ऊर्जा खपत का यह युक्तिकरण व्यापक आर्थिक और पर्यावरणीय लक्ष्यों के अनुरूप है।
  • जैविक और सामाजिक कल्याण: प्राकृतिक दिन के प्रकाश चक्रों के साथ टाइम ज़ोन  को संरेखित करना व्यक्तियों की जैविक सर्कैडियन लय का समर्थन करता है, जो नींद और जागने को नियंत्रित करता है, जिससे समग्र कल्याण में सुधार होता है। इससे यह भी सुनिश्चित होता है कि पूर्व में नागरिक अपने प्राकृतिक दैनिक जीवन के भीतर सरकारी, व्यावसायिक और नागरिक सेवाओं तक पहुँच सकते हैं।
  • नागरिक उड्डयन उपयोग में सुधार: नागरिक उड्डयन मंत्रालय द्वारा किए गए शोध सहित अन्य केस अध्ययन यह सुझाव देते हैं कि एक घंटे के अंतर के साथ दो-समय-क्षेत्र प्रणाली से विमान उपयोग में 20% की वृद्धि हो सकती है। वर्तमान बेड़े की कमी को देखते हुए यह एक महत्वपूर्ण लाभ का संकेत देता है।
  • तकनीकी उन्नति और उच्च साक्षरता: एक से अधिक टाइम ज़ोन के कारण “भ्रम” का तर्क अब मान्य नहीं है। सर्वव्यापी इलेक्ट्रॉनिक गैजेट स्वचालित रूप से टाइम ज़ोन  को समायोजित करते हैं।
    • भारत की साक्षरता दर 78% है, जो वैश्विक औसत 86% के बराबर है। जनसंख्या धीरे-धीरे समायोजन के साथ इस तरह के बदलाव के अनुकूल होने में सक्षम है।
  • वैश्विक मिसालों से सीख : दुनिया भर में कई देश एक से अधिक टाइम ज़ोन का सफलतापूर्वक प्रबंधन करते हैं। उदाहरण के लिए, इंडोनेशिया, 46° के अनुदैर्ध्य अंतर के साथ, तीन टाइम ज़ोन पर काम करता है।
    • फ्रांस में अनेक टाइम ज़ोन हैं, तथा कई राष्ट्र डेलाइट सेविंग के लिए मौसमी समय मानकों का प्रबंधन करते हैं। 
  • आर्थिक अवसर: समय का छोटा सा अंतर कोलकाता को एक अग्रणी वित्तीय बाजार के रूप में पुनः स्थापित करने में मदद कर सकता है, जो संभवतः सिंगापुर और हांगकांग जैसे अन्य एशियाई केंद्रों के साथ प्रतिस्पर्धा कर सकता है।

निष्कर्ष:

अतः इस संदर्भ में, यह अनुशंसा की जाती है कि प्रधानमंत्री कार्यालय के अंतर्गत एक अंतर-मंत्रालयी टास्क फोर्स का गठन किया जाए, जिसमें नीति आयोग की सक्रिय भागीदारी हो, ताकि देश के लिए कम से कम दो टाइम ज़ोन शुरू करने के प्रस्ताव की गहन जांच और क्रियान्वयन किया जा सके। यह अधिक कुशल, उत्पादक और सुव्यवस्थित भारत को बढ़ावा देने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम हो सकता है।

मुख्य परीक्षा हेतु अभ्यास प्रश्न:

प्रश्न: विश्लेषण कीजिए कि दो टाइम ज़ोन भारत में शासन दक्षता और आर्थिक उत्पादकता को बेहतर बनाने में किस प्रकार योगदान दे सकते हैं। 

(15 अंक, 250 शब्द)

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