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भारतीय टोल प्रणाली : प्रमुख मुद्दे एवं विकास

Lokesh Pal September 16, 2024 05:30 16 0

संदर्भ :

दिसंबर 2022 में गुजरात पुलिस ने गुजरात के मोरबी जिले में एक फर्जी टोल प्लाजा को पकड़ा, जो राष्ट्रीय राजमार्ग-8A पर आधिकारिक NHAI टोल प्लाजा से सिर्फ 600 मीटर की दूरी पर स्थित है। लगभग 1.5 वर्षों में पाँच आरोपियों ने वाहनों से ₹75 करोड़ से ज़्यादा की वसूली की। यह घटना भारत की टोल प्रणाली की दक्षता और सुरक्षा के बारे में गंभीर चिंताएँ पैदा करती है | यह इस जोखिम को भी उजागर करती है कि इसी तरह के धोखाधड़ी वाले टोल प्लाजा अन्य दूर-दराज या कम निगरानी वाले क्षेत्रों में भी चल रहे हो सकते हैं एवं बेहतर निगरानी और विनियमन की आवश्यकता पर बल देते हैं।              

ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

  • मौर्य साम्राज्य : टोल संग्रह की अवधारणा का प्रथम उल्लेख कौटिल्य के अर्थशास्त्र में किया गया है, जिसमें टोल संग्रह के लिए उत्तरदायी अधिकारी, ‘शुल्काध्यक्ष’ की भूमिका का वर्णन किया गया है ।
  • मध्यकाल : इस काल के दौरान, टोल और राजस्व ‘आमिल’ नामक अधिकारियों द्वारा एकत्र किए जाते थे ।
  • स्वतंत्रता पश्चात् : राष्ट्रीय राजमार्ग अधिनियम, 1956 कुछ सड़कों को राष्ट्रीय राजमार्ग के रूप में नामित करने के लिए लागू किया गया था। इस कानून का उद्देश्य सड़क के बुनियादी ढाँचे में सुधार करना था, जिसने भारतीय अर्थव्यवस्था में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। सड़क के रखरखाव और आगे के निर्माण के लिए राजस्व उत्पन्न करने हेतु टोल संग्रह लागू किया गया था। तब से सरकार सड़कों के निर्माण और रख-रखाव के साथ-साथ टोल वसूलने के लिए भी उत्तरदायी थी।
  • आधुनिक टोल प्रणाली : ब्रिटिशों द्वारा वर्ष 1851 के भारतीय टोल अधिनियम के साथ शुरू की गई, जिसने सार्वजनिक सड़कों और पुलों पर टोल वसूलने का अधिकार दिया।
  • वर्ष 1988 : सड़क विकास और टोल संग्रह की देखरेख के लिए भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (NHAI) की स्थापना की गई।
  • वर्ष 1995 : राष्ट्रीय राजमार्ग अधिनियम, 1956 में संशोधन करके निजी कंपनियों को सड़क निर्माण और टोल संग्रह में भाग लेने की अनुमति दी गई। इसके तहत दो सार्वजनिक-निजी भागीदारी (पीपीपी) मॉडल पेश किए गए :
    • बीओटी टोल मॉडल (निर्माण, संचालन, हस्तांतरण): निजी कंपनियाँ राजमार्गों का निर्माण करती हैं और स्वामित्व सरकार को हस्तांतरित करने से पूर्व एक निश्चित अवधि में टोल संग्रह के माध्यम से अपनी लागत वसूलती हैं।
    • बीओटी वार्षिकी मॉडल : यदि टोल राजस्व अनुमानित राशि से कम हो जाता है, तो सरकार निजी भागीदारों को मुआवजा देकर रिटर्न की गारंटी देती है।

भारतीय टोल प्रणाली संबंधी समस्याएँ

  • यातायात संसाधनों की अधिकता : खराब तरीके से प्रबंधित टोल प्रणाली के कारण टोल प्लाजा पर लंबा इंतजार करना पड़ता है, जिसके परिणामस्वरूप ट्रैफिक जाम होता है, जिससे अत्यधिक ईंधन की खपत, समय की हानि और आर्थिक अक्षमता होती है। 
    • उदाहरण के लिए, महाराष्ट्र के खेड़-शिवपुर टोल प्लाजा पर मैनुअल और इलेक्ट्रॉनिक दोनों तरह के टोल संग्रह के तरीके प्रयोग किए जा रहे हैं, फिर भी ट्रैफिक जाम की समस्या बनी रहती है। जेएसपीएम राजर्षि कॉलेज द्वारा किए गए एक केस स्टडी से पता चला है, कि वाहन अक्सर प्लाजा पर 10 मिनट से ज़्यादा समय बिताते हैं, जिससे ईंधन और समय की काफी बर्बादी होती है और कार्यप्रणाली में अक्षमताएँ उजागर होती हैं। 
    • इसके अलावा, NHAI के नियमों के अनुसार 3 मिनट से अधिक समय तक इंतजार करने वाले वाहनों से टोल नहीं लिया जाना चाहिए, लेकिन इस नियम की सामान्यतः अनदेखी की जाती है।
  • पारदर्शिता संबंधी मुद्दे : निजी कंपनियों द्वारा टोल संग्रह के संबंध में पारदर्शिता की कमी है। आरटीआई कार्यकर्त्ता संजय शिरोडकर और सजग नागरिक मंच के विवेक वेलंकर ने पुणे एक्सप्रेस-वे पर टोल डेटा में विसंगतियों को उजागर किया है, जिसमें बताया गया है कि ठेकेदारों ने आर्थिक विकास के बावजूद एक दशक से अधिक समय तक वाहनों की संख्या को एकसमान बनाए रखने के लिए आँकड़ों में हेरा-फेरी की। यह विसंगति उन्हें अपने टोल संचालन की समय-सीमा को अनुचित तरीके से बढ़ाने की अनुमति देती है।
  • सड़कों की खराब गुणवत्ता : भारत में टोल दरें तुलनात्मक रूप से कम यानी ₹2.25 प्रति किमी. हैं, लेकिन सड़कों और सुविधाओं की गुणवत्ता अपर्याप्त बनी हुई है। 
    • इसके विपरीत फ्रांस और जापान जैसे देश, जहाँ टोल दरें बहुत अधिक हैं (क्रमशः ₹9.05 प्रति किमी. और ₹13 प्रति किमी.),  बेहतर सड़क अवसंरचना और सुविधाएँ प्रदान करते हैं।
  • दोहरा कराधान : वाहन मालिक वाहन खरीदते समय सड़क कर का भुगतान करते हैं (जैसे- बंगलूरू में 17%), लेकिन टोल अभी भी वसूला जाता है। इससे उपभोक्ताओं पर बोझ पड़ता है, जिन्हें सड़क उपयोग के लिए कई तरह के कराधान का सामना करना पड़ता है।
  • अपराधियों द्वारा जबरन वसूली : टोल प्लाजा कर्मचारियों से अपराधियों द्वारा जबरन वसूली की खबरें अक्सर आती रहती हैं। स्थानीय अपराधी कभी-कभी टोल प्लाजा कर्मचारियों में घुसपैठ करके ड्राइवरों का शोषण करते हैं, जिससे समस्या और भी बढ़ जाती है।

 प्रमुख सरकारी पहलें

  • सीसीटीवी निगरानी और हाइब्रिड लेन : अत्यधिक दबाव को कम करने और यातायात प्रवाह में सुधार करने के लिए हाइब्रिड लेन और फास्ट-ट्रैक सड़कों के माध्यम से निगरानी बढ़ाना।
  • फास्टैग कार्यान्वयन : सुगम परिवहन और सटीक टोल डेटा के लिए इलेक्ट्रॉनिक टोल संग्रह को अनिवार्य बनाना। हालाँकि फास्टैग ने प्रक्रिया को सुव्यवस्थित किया है, फिर भी ट्रैफिक जाम की समस्या बनी रहती है। इस संबंध में भविष्य की योजनाओं में जीपीएस-आधारित टोलिंग सिस्टम शामिल हैं :
    • उपग्रह-आधारित टोल संग्रह : स्वचालित टोल गणना के लिए GNSS (ग्लोबल नेविगेशन सैटेलाइट सिस्टम) और GPS का उपयोग करना।
    • ऑन-बोर्ड यूनिट (OBU) : किसी भी वाहन के राजमार्गों पर प्रवेश करने पर तय की गई दूरी के आधार पर स्वचालित टोल कटौती के लिए कारों में उपकरण लगाना। इस प्रकार, इसका उद्देश्य राजमार्गों में प्रवेश करने से पहले मैन्युअल या इलेक्ट्रॉनिक टोल संग्रह के लिए कारों को गेट पर रुकने की आवश्यकता को समाप्त करके भीड़-भाड़ को कम करना है। यात्रा के पहले 20 किमी. टोल-मुक्त होंगे।

निष्कर्ष

भारत की टोल प्रणाली में ऐतिहासिक प्रथाओं से लेकर सार्वजनिक-निजी भागीदारी को शामिल करने वाले आधुनिक ढाँचों तक महत्त्वपूर्ण विकास हुआ है। FASTag और उपग्रह-आधारित टोल संग्रह प्रणाली, प्रगति दक्षता बढ़ाने और भीड़-भाड़ को कम करने के लिए आशाजनक समाधान प्रदान करती हैं। इन तकनीकों की पूर्ण क्षमता का दोहन करने के लिए मौजूदा मुद्दों को हल करने एवं टोल प्रणाली के समग्र प्रदर्शन को बेहतर बनाने के साथ, इन तकनीकों का प्रभावी कार्यान्वयन और निरंतर परिशोधन भी आवश्यक है।

 

मुख्य परीक्षा पर आधारित प्रश्न

वर्तमान में भारत की टोल प्रणाली के समक्ष व्याप्त चुनौतियाँ को रेखांकित कीजिए | इन चुनौतियों को हल करने के लिए शुरू की गई सरकारी पहलों पर चर्चा करें तथा इस प्रणाली को बेहतर बनाने के लिए उठाए जा सकने वाले उपायों को भी बताइए।

(15 अंक, 250 शब्द)

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