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भारतीय कार्यस्थल संस्कृति तथा उसकी आवश्यकता

Lokesh Pal November 05, 2024 05:15 61 0

संदर्भ :

भारत के निगम (कॉर्पोरेट) क्षेत्र में विषाक्त कार्यस्थल संस्कृति का मुद्दा, एक युवा चार्टर्ड अकाउंटेंट अन्ना सेबेस्टियन की कथित रूप से कार्य-संबंधित तनाव के कारण हुई दुखद मृत्यु के बाद चर्चा का विषय बन गया है। 

मुख्य बिंदु

  • उनकी माँ का यह मार्मिक कथन कि “हमारे बच्चे अभी भी गुलामों की तरह काम कर रहे हैं” भारतीय कर्मचारियों द्वारा सामना किए जाने वाले गंभीर दबावों को उजागर करता है।
  • श्रम मंत्रालय की जाँच रिपोर्ट, जिसे 10 दिनों के अन्दर देने का वादा किया गया था, अभी भी प्रतीक्षित है।
  • कॉर्पोरेट जगत ने इस त्रासदी पर काफी हद तक चुप्पी साधे रखी है। कौन सा कॉर्पोरेट नेता दूसरों पर उंगली उठाने की हिम्मत करेगा, जब उनकी स्वयं की कंपनी में भी हालात कुछ अलग नहीं हैं?

प्रमुख समस्याएँ 

  • लंबे कार्य घंटे और बर्नआउट : भारत के कॉर्पोरेट क्षेत्र में कर्मचारी अक्सर  कम कर्मचारियों और लागत-बचत उपायों के कारण लंबे समय तक कार्य करते हैं। इससे स्वास्थ्य और सेहत पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
  • मान्यता और सम्मान का अभाव : भारतीय कर्मचारी अक्सर अपने द्वारा लगाए गए अतिरिक्त घंटों के लिए स्वयं को कमतर आँकते हैं और उनकी सराहना नहीं की जाती। पर्याप्त मान्यता या उचित व्यवहार के बिना कार्यस्थल का मनोबल गिरता है।

पश्चिमी कार्य संस्कृतियों के साथ तुलना

  • यूरोपीय कार्य मानक : फ्रांस जैसे यूरोपीय देश 35-40 घंटे के कार्य सप्ताह के साथ कार्य-जीवन संतुलन पर बल देते हैं। कर्मचारियों को श्रम कानूनों द्वारा संरक्षित किया जाता है, जो अत्यधिक कार्य घंटों को रोकते हैं और एक स्वस्थ कार्यस्थल संस्कृति को बढ़ावा देते हैं।
  • अमेरिकी कार्य मानक : हालाँकि अमेरिकी कॉर्पोरेट संस्कृति भी लंबे समय तक कार्य करने की मांग करती है, लेकिन जीवन स्तर और कार्य स्थितियाँ बेहतर हैं, जिनमें आवास, स्वास्थ्य और अवकाश के मामले भी शामिल हैं।

  • आयातित मॉडलों के साथ असंगति : भारत के विशिष्ट सामाजिक-आर्थिक संदर्भ में अमेरिकी कॉर्पोरेट संस्कृति को अपनाना उचित नहीं है।
    • प्रति व्यक्ति आय में अंतर : $85,000 की प्रति व्यक्ति आय के साथ, अमेरिकी कर्मचारियों को उच्च जीवन स्तर और बेहतर सुविधाओं तक पहुँच प्राप्त होती है। 
      • इसके विपरीत भारत की प्रति व्यक्ति आय $2,700 है, जिससे श्रमिकों के लिए लंबे समय तक कार्य करना अधिक बोझिल हो जाता है।
    • बुनियादी ढाँचे और संसाधनों का अभाव : भारतीय कर्मचारियों को लंबी यात्रा, सीमित संसाधनों, बच्चों की उच्च शिक्षा लागत और परिवार के बुजुर्ग सदस्यों की देखभाल की समस्याओं से जूझना पड़ता है, जिससे कार्यस्थल पर तनाव बढ़ता है।
  • सुरक्षात्मक तंत्र का अभाव : अमेरिका और यूरोप के विपरीत, जहाँ कर्मचारी अपमानजनक व्यवहार और मानसिक तनाव के लिए मुकदमा कर सकते हैं, भारतीय श्रमिकों के पास कार्यस्थल पर शिकायतों के लिए विधिक उपायों का अभाव है।
  • लाभ-संचालित कार्यभार : भारतीय निगम कर्मचारी कल्याण की तुलना में लाभ को प्राथमिकता देते हैं, कर्मचारियों की संख्या कम करते हैं जबकि शेष कर्मचारियों को अतिरिक्त कार्य करने के लिए मजबूर करने के लिए वेतन में मामूली वृद्धि करते हैं । इस फोकस से तनाव और असंतोष बढ़ता है।
  • शोषण को उचित ठहराने वाली कॉर्पोरेट शब्दावली : ऑर्गनाइजेशनल स्ट्रेच (संगठनात्मक खिंचाव) और परर्फामेंस कल्चर (प्रदर्शन संस्कृति) जैसे शब्द कर्मचारियों पर लगाए गए गहन कार्यभार को छिपाते हैं, स्टॉक विकल्पों के माध्यम से शीर्ष प्रबंधन को लाभ पहुँचाते हैं, जबकि श्रमिक कल्याण से समझौता करते हैं।
  • दोषपूर्ण निष्पादन मूल्यांकन प्रणालियाँ :
    • बेल कर्व और निर्मम मूल्यांकन : प्रदर्शन मूल्यांकन में अक्सर बेल कर्व का उपयोग किया जाता है, जिससे प्रतिस्पर्द्धा को बढ़ावा मिलता है, जहाँ केवल कुछ को ही उच्च प्रदर्शनकर्ता के रूप में लेबल किया जाता है, जिसके परिणामस्वरूप कई कर्मचारियों को ‘कम प्रदर्शन करने वाले’ के रूप में बर्खास्त कर दिया जाता है।
    • मृत लकड़ी को हटाना : यह दृष्टिकोण कर्मचारियों के प्रति उपेक्षा को दर्शाता है, क्योंकि प्रबंधन कथित रूप से कम उपलब्धि वाले लोगों को हटाने को प्राथमिकता देता है, जिससे असंतोष और विषाक्तता पैदा होती है, विशेष रूप से वरिष्ठ प्रबंधन के पक्ष में विषम परिवर्तनीय वेतन के साथ।
  • सतही कार्यशालाएँ : कई कंपनियाँ  सकारात्मक सार्वजनिक छवि के लिए “मानसिक तनाव प्रबंधन” कार्यशालाएँ आयोजित करती हैं, लेकिन सार्थक प्रणालीगत परिवर्तन के अभाव में बर्नआउट के मूल कारणों को दूर करने में विफल रहती हैं।
  • अव्यवसायिक और अपमानजनक व्यवहार : प्रबंधन अक्सर अव्यवसायिक या अपमानजनक भाषा का सहारा लेता है, जिससे कार्यस्थल वातावरण प्रतिकूल हो जाता है।

अंतर्राष्ट्रीय जवाबदेहिता संबंधी विवाद

  • ब्रिटेन में प्रधानमंत्री ऋषि सुनक के उप प्रधानमंत्री डोमिनिक राब पर उन अधिकारियों द्वारा धमकाने के आरोप लगाए गए, जिनके साथ वे पहले कार्य कर चुके थे। 
  • यद्यपि जाँच में उनके व्यवहार को ‘आक्रामक’ और ‘डराने वाला’ (किन्तु अपमानजनक नहीं) पाया गया, फिर भी रॉब को इस्तीफा देने के लिए मजबूर होना पड़ा। 
  • यह उदाहरण भारत के साथ एक विपरीत स्थिति को उजागर करता है, जहाँ कॉर्पोरेट क्षेत्र में अक्सर इसी तरह का व्यवहार अनियंत्रित रहता है और इसके लिए कोई दंड भी नहीं दिया जाता।

सार्वजनिक क्षेत्र के साथ तुलना

  • रोज़गार की सुरक्षा : सार्वजनिक क्षेत्र के कर्मचारियों को रोज़गार की अधिक सुरक्षा मिलती है, जिससे तनाव कम और कार्य का माहौल सकारात्मक होता है।
  • प्रबंधन पर नियंत्रण : नागरिक संगठन कर्मचारी अधिकारों की रक्षा करती हैं और प्रबंधन को जवाबदेह बनाती हैं, जिससे श्रमिकों को उचित अधिकार प्राप्त होते हैं ।
  • न्यायसंगत मुआवजा : सार्वजनिक क्षेत्र में वेतन असमानताएँ कम होती हैं, जिससे कर्मचारियों के बीच निष्पक्षता की भावना बढ़ती है।
  • सहायक वातावरण : मध्यम और वरिष्ठ अधिकारियों के लिए लंबे समय तक कार्य करने के बावजूद, विषाक्त संस्कृति संबंधी शिकायतों की संख्या अत्यंत कम है, जो एक स्वस्थ कार्य-जीवन संतुलन का संकेत देती हैं।

आवश्यक उपाय एवं समाधान

  • संतुलन स्थापित करना : उत्पादकता और सेवा गुणवत्ता को प्रोत्साहित करते हुए कर्मचारियों को मनमाने ढंग से बर्खास्तगी से बचाना।
  • कार्य-जीवन संतुलन के लिए कॉर्पोरेट प्रतिबद्धता : कॉर्पोरेट्स को प्रबंधन के लिए आचार संहिता लागू करनी चाहिए, कार्य-जीवन संतुलन को बढ़ावा देने वाले कार्यक्रम शुरू करने चाहिए तथा कर्मचारियों की प्रतिक्रिया और खुले संचार के लिए टाउन हॉल बैठकों की सुविधा प्रदान करनी चाहिए।
  • बोर्ड की सहभागिता : बोर्ड को कंपनी की संस्कृति की सक्रिय निगरानी करनी चाहिए, आवश्यक संसाधन आवंटित करने चाहिए तथा सुधारात्मक कार्रवाई शुरू करनी चाहिए।
  • विनियामक उपाय : भारत की कॉर्पोरेट संस्कृति में व्याप्त कमियों को दूर करने के लिए विनियमन आवश्यक है। यह कार्यस्थल संस्कृति के लिए संस्थान को जवाबदेह बना सकता है, कर्मचारियों के साथ अधिक जुड़ाव को बढ़ावा देकर  उनके अनुभवों की गहरी समझ विकसित कर सकता है।

निष्कर्ष:

अन्ना सेबेस्टियन की मौत से जुड़ी दुखद घटना भारत की कॉर्पोरेट संस्कृति के लिए एक चेतावनी के रूप में कार्य करनी चाहिए। यह घटना भारत में कार्यस्थल संस्कृति में सुधार के लिए एक निर्णायक क्षण को उत्प्रेरित कर सकती है, जो संगठनों के भीतर सार्थक सुधारों और अधिक जवाबदेही की आवश्यकता पर बल देती है।

मुख्य परीक्षा हेतु अभ्यास प्रश्न

“कार्य के अधिक घंटे व्यक्तिगत कल्याण और व्यावसायिक ईमानदारी को कमजोर करते हैं।” इस कथन के आलोक में कार्य-जीवन संतुलन के संबंध में निगमों के नैतिक उत्तरदायित्वों की जाँच कीजिए ।

(10 अंक, 150 शब्द)

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