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भारत की जैव ईंधन क्षमता: सतत विमानन ईंधन के नेतृत्व को पूरक बनाने के तरीके

Lokesh Pal July 11, 2025 05:00 64 0

संदर्भ:

प्रतिवर्ष 10 जुलाई को मनाया जाने वाला वैश्विक ऊर्जा स्वतंत्रता दिवस, स्वच्छ एवं टिकाऊ ऊर्जा विकल्पों को अपनाने के लिए एक सामयिक अनुस्मारक के रूप में कार्य करता है।

टिकाऊ विमानन ईंधन के लिए अनिवार्य:

  • विमानन एक महत्वपूर्ण क्षेत्र के रूप में उभरा है, क्योंकि अनुमान है कि यह वैश्विक वार्षिक कार्बन डाइऑक्साइड (CO) उत्सर्जन में लगभग 2.5 प्रतिशत का योगदान देता है, साथ ही वैश्विक तापमान में कुल मानवजनित योगदान का लगभग 4 प्रतिशत योगदान देता है।
  • वैश्विक हवाई यात्रा के विस्तार और अन्य उच्च उत्सर्जन वाले क्षेत्रों के स्वच्छ विकल्पों की ओर बढ़ने के साथ ही इस क्षेत्र में और अधिक वृद्धि होने का अनुमान है।
  • SAF, जिसे विमानन जैव ईंधन के रूप में भी जाना जाता है, विमानन डीकार्बोनाइजेशन के लिए सबसे प्रभावी समाधान है, जिससे अपेक्षित कटौती का 60 प्रतिशत से अधिक प्राप्त होने की उम्मीद है।

टिकाऊ विमानन ईंधन के बारे में:

  • SAF एक प्रकार का जैव ईंधन: इसे सतत विमानन ईंधन के रूप में जाना जाता है। इसका अर्थ है कि यह जीवाश्म ईंधन के बजाय पौधों या पशु सामग्री से बनाया जाता है। इसमें पारंपरिक जेट ईंधन की तुलना में विमानन के ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को 80% तक कम करने की क्षमता है।
  • इसकी विशेषताएँ विमानन टरबाइन ईंधन (ATF) के समान ही हैं, लेकिन इसका कार्बन उत्सर्जन काफी कम है।
  • SAF एक ड्रॉप-इनईंधन है, जिसका अर्थ है कि यह मौजूदा विमान, इंजन या ईंधन भरने के बुनियादी ढांचे में किसी भी संशोधन की आवश्यकता के बिना ATF के साथ सहजता से मिश्रित हो जाता है।

SAF के लाभ:

  • उत्सर्जन में कमी: SAF पारंपरिक जेट ईंधन की तुलना में हवाई यात्रा में ग्रीनहाउस गैस (GHG) उत्सर्जन को 80 प्रतिशत तक कम कर सकता है।
    • इसके दहन से हानिकारक गैसों और कणों का उत्सर्जन भी बहुत कम होता है, जिससे आकाश स्वच्छ हो जाता है।
  • अनुकूलता: यह वर्तमान वैश्विक विमान बेड़े के साथ पूरी तरह से अनुकूल है, जिससे तत्काल उपयोगिता सुनिश्चित होती है।
  • आर्थिक अवसर: SAF को अपनाने से फीडस्टॉक की नई मांग को बढ़ावा मिल सकता है, जिससे कृषि और अपशिष्ट प्रबंधन क्षेत्रों में राजस्व के स्रोत उत्पन्न होते हैं।
    • यह स्थिरता क्षेत्र में रोजगार के अवसर भी पैदा करता है।
  • ऊर्जा सुरक्षा: SAF उत्पादन के माध्यम से ईंधन स्रोतों में विविधता लाने से आयातित तेल पर भारत की निर्भरता कम हो जाती है, जिससे विमानन क्षेत्र को वैश्विक तेल मूल्य अस्थिरता से सुरक्षा मिलती है और हवाई यात्रा अधिक सुलभ हो जाती है।
  • गैर-जैविक उत्पत्ति के नवीकरणीय ईंधन (RFNBO) जैसे अन्य नवाचार भी हैं।
    • इसका उत्पादन पावर टू लिक्विड (PTL) प्रौद्योगिकी के माध्यम से नवीकरणीय बिजली का उपयोग करके किया जाता है, जो वायुमंडलीय CO से प्राप्त कार्बन के साथ ग्रीन हाइड्रोजन को जोड़ती है।
    • यह शुद्ध नकारात्मक उत्सर्जन की भी संभावना सुनिश्चित करता है।
    • SAF दहन से बहुत कम हानिकारक गैसें और कणीय पदार्थ उत्पन्न होते हैं, जिससे आकाश स्वच्छ रहता है।

SAF को व्यापक रूप से अपनाने में चुनौतियाँ:

  • उच्च उत्पादन लागत: SAF उत्पादन वर्तमान में पारंपरिक ईंधन की लागत से दोगुने से भी अधिक है, जिससे उपभोक्ताओं पर बोझ डाले बिना बड़े पैमाने पर इसे अपनाना चुनौतीपूर्ण हो जाता है।
  • बुनियादी ढांचे का विकास: SAF के उत्पादन, भंडारण, सम्मिश्रण और परिवहन के लिए नए बुनियादी ढांचे के विकास की आवश्यकता होती है, जिससे अपनाने की प्रारंभिक लागत में काफी वृद्धि होगी।
  • फीडस्टॉक आपूर्ति: एक अन्य प्रमुख मुद्दा SAF उत्पादन के लिए आवश्यक फीडस्टॉक की उपलब्धता और स्थिरता है।
    • आवश्यक फीडस्टॉक की विविधता का अर्थ है कि वर्ष भर आपूर्ति की कोई गारंटी नहीं है।
  • पर्यावरणीय प्रभाव प्रबंधन: SAF को वास्तव में टिकाऊ माना जाने के लिए तथा हरित ग्रह प्रभाव (जीएचजी) उत्सर्जन में उल्लेखनीय कमी सुनिश्चित करने के लिए, यह सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण है कि इसके उत्पादन का नकारात्मक सामाजिक या पर्यावरणीय प्रभाव न हो।

SAF द्वारा वैश्विक और भारतीय विमानन को नया रूप देना:

  • ICAO’s कॉर्सिया: अंतर्राष्ट्रीय नागरिक उड्डयन संगठन (ICAO) – वायु परिवहन के विकास के लिए संयुक्त राष्ट्र की विशेष एजेंसी है। इसने अंतर्राष्ट्रीय विमानन के लिए कार्बन ऑफसेटिंग और न्यूनीकरण योजना (CORSIA) की स्थापना की है।
    • इसमें यह अनिवार्य किया गया है कि अंतर्राष्ट्रीय एयरलाइनों को 2020 के बाद अपने उत्सर्जन में वृद्धि को संतुलित करना होगा, तथा अनुपालन तंत्र के रूप में SAF के उपयोग को प्रोत्साहित करने पर ध्यान देना होगा।
  • यूरोपीय संघ का ReFuelEU विमानन: कानूनी रूप से बाध्यकारी SAF सम्मिश्रण लक्ष्य:
    • 2025 तक 2%
    • 2030 तक 6%
    • 2050 तक 70%
    • सिंथेटिक ईंधन के लिए उप-अधिदेशों के साथ।
  • विश्व आर्थिक मंच की कल के लिए स्वच्छ आकाश पहल: 2030 तक 10% SAF सम्मिश्रण का लक्ष्य।
    • यह नवीन वित्तपोषण और सहायक नीतिगत ढांचे के माध्यम से SAF की उच्च लागत को भी संबोधित करना चाहता है।

भारत की मजबूत जैव ईंधन क्षमता:

  • SAF विनिर्माण में भारत की क्षमता अपार है, 2050 तक इसकी अनुमानित क्षमता 40 मिलियन टन होगी
  • यह क्षमता देश में उपलब्ध टिकाऊ फीडस्टॉक सामग्रियों की विविध श्रृंखला पर आधारित है:
    • तेल और वसा: इसमें प्रयुक्त खाना पकाने का तेल (UCO), पौधों से प्राप्त तेल युक्त बीज, शैवाल तेल और पशु वसा शामिल हैं।
    • अपशिष्ट धाराएँ: नगरपालिका ठोस अपशिष्ट (MSW) एक व्यवहार्य कच्चे माल के रूप में कार्य करता है।
    • कृषि एवं वानिकी अवशेष: लकड़ी का अपशिष्ट, गन्ने की खोई, मक्का का चारा, भूसा, पुआल, शर्करा और स्टार्च जैसे प्रचुर संसाधन महत्वपूर्ण इनपुट हैं।
      • भारत में प्रचुर मात्रा में उपलब्ध कृषि अवशेष, विशेष रूप से SAF निर्यातक बनने की उसकी महत्वाकांक्षा को बल प्रदान करते हैं।
    • SAF को वास्तव में टिकाऊ बनाने के लिए यह आवश्यक है कि इसका उत्पादन खाद्य उत्पादन के साथ प्रतिस्पर्धा न करे, वनों की कटाई का कारण न बने, या जैव विविधता को किसी भी कीमत पर कोई नुकसान न पहुंचाए

वैश्विक SAF परिदृश्य में भारत का नेतृत्व:

  • व्यावहारिक और सूक्ष्म दृष्टिकोण: भारत ने SAF के लिए एक व्यावहारिक और सूक्ष्म दृष्टिकोण अपनाया है, जिसमें ऊर्जा सुरक्षा और खाद्य सुरक्षा को प्राथमिकता दी गई है, जबकि यात्री मांग के साथ स्थिरता लक्ष्यों को संतुलित किया गया है।
  • कार्बन ऑफसेटिंग और न्यूनीकरण योजना का पक्षधर: बाध्यकारी अंतर्राष्ट्रीय अधिदेशों की अपेक्षा राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित लक्ष्यों की वकालत करने के बावजूद, भारत अंतर्राष्ट्रीय विमानन के लिए कार्बन ऑफसेटिंग और न्यूनीकरण योजना (CORSIA) का एक पक्षकार है।

भारत के नेतृत्व को प्रदर्शित करने वाली प्रमुख पहलें:

  • वैश्विक जैव ईंधन गठबंधन (GBA): नई दिल्ली में 2023 जी20 शिखर सम्मेलन के दौरान भारत द्वारा शुरू किया गया था। इसका उद्देश्य SAF सहित जैव ईंधन को दुनिया भर में अपनाने में तेजी लाना है।
  • घरेलू सम्मिश्रण लक्ष्य: भारत ने कुछ स्पष्ट SAF सम्मिश्रण लक्ष्य निर्धारित किए हैं:
    • 2025 तक घरेलू एयरलाइनों के लिए 1 प्रतिशत।
    • 2027-2028 तक अंतर्राष्ट्रीय उड़ानों के लिए 1-2 प्रतिशत।
    • 2030 तक 5 प्रतिशत तथा 2040 तक 15 प्रतिशत तक बढ़ने की संभावना है।
      • यह दृढ़ रुख भारत को वैश्विक विमानन डीकार्बोनाइजेशन के भविष्य को आकार देने में एक प्रमुख अभिकर्ता के रूप में स्थापित करता है।

आगे की राह:

ऐसे मुद्दों से निपटने के लिए, कर प्रोत्साहन और सार्वजनिक-निजी भागीदारी जैसी नीतियाँ प्रस्तावित की गई हैं। SAF विमानन क्षेत्र से उत्सर्जन को कम करने के लिए एक निकट-आवधिक, ड्रॉप-इन समाधान प्रस्तुत करता है, जबकि दीर्घकालिक डीकार्बोनाइजेशन तकनीकों का विकास जारी है।

निष्कर्ष:

भारत की पर्यावरण अनुकूल जैव ईंधन क्षमता, विशेष रूप से इसके प्रचुर कृषि अवशेष, SAF क्षेत्र में बाजार अग्रणी और निर्यातक बनने की इसकी महत्वाकांक्षा को सीधे तौर पर पूरा करते हैं।

  • अपने घरेलू संसाधनों और रणनीतिक वैश्विक पहलों का लाभ उठाकर, भारत वैश्विक डीकार्बोनाइजेशन में महत्वपूर्ण योगदान देने के लिए तैयार है, साथ ही साथ अपनी राष्ट्रीय ऊर्जा सुरक्षा और आर्थिक विकास के उद्देश्यों को भी प्राप्त कर रहा है।

मुख्य परीक्षा हेतु अभ्यास प्रश्न:

प्रश्न: “सतत विमानन ईंधन (SAF) विमानन क्षेत्र को कार्बन-मुक्त करने के लिए एक प्रमुख समाधान के रूप में उभरा है।” इस विकास को ध्यान में रखते हुए, विमानन उत्सर्जन को कम करने में SAF की क्षमता का परीक्षण कीजिए। इसके बड़े पैमाने पर अपनाने में आने वाली प्रमुख चुनौतियों पर चर्चा कीजिए, और CORSIA तथा ReFuelEU जैसी वैश्विक पहलों के साथ सामंजस्य स्थापित करते हुए भारत के लिए आगे की राह सुझाइए।

(15 अंक, 250 शब्द)

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