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वैश्विक दक्षिण के संस्थागत वास्तुकार के रूप में भारत की महत्त्वपूर्ण भूमिका

Lokesh Pal October 28, 2025 05:30 25 0

सन्दर्भ:

शीत युद्ध के बाद की अमेरिकी नेतृत्व वाली व्यवस्था भू-राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता, तकनीकी व्यवधानों और जलवायु तनाव के कारण टूट रही है, जबकि एक समय हाशिए पर विद्यमान वैश्विक दक्षिण बहुध्रुवीय विश्व में एक निर्णायक भू-राजनीतिक और भू-आर्थिक शक्ति के रूप में उभर रहा है

वैश्विक दक्षिण (ग्लोबल साउथ) के बारे में

  • वैश्विक दक्षिण से तात्पर्य विकासशील या उभरती अर्थव्यवस्थाओं से है, जो मुख्य रूप से एशिया, अफ्रीका, लैटिन अमेरिका और ओशिनिया में स्थित हैं, तथा प्रायः ऐतिहासिक उपनिवेशीकरणआर्थिक निर्भरता और विकासात्मक चुनौतियों से चिह्नित होते हैं
  • विरोधाभास: यह वैश्विक उत्तर के विपरीत है, जिसमें उत्तरी अमेरिका, यूरोप और पूर्वी एशिया (जापान, दक्षिण कोरिया) के कुछ हिस्सों में औद्योगिक, उच्च आय वाले राष्ट्र शामिल हैं।
  • ऐतिहासिक संदर्भ:
    • शीत-युद्ध काल: यह शब्द अल्फ्रेड सॉवी (1952) द्वारा गढ़े गए “तीसरी दुनिया” से विकसित हुआ है, जिसका उपयोग उन राष्ट्रों के लिए किया जाता था जो नाटो या सोवियत ब्लॉक के साथ गठबंधन नहीं करते थे
    • उत्तर-औपनिवेशिक परिवर्तन: उपनिवेशवाद के उन्मूलन के बाद, कई नव स्वतंत्र राष्ट्रों ने पश्चिमी पूंजीवाद और सोवियत समाजवाद के मुकाबले एक सामूहिक पहचान और वैकल्पिक विकास पथ की तलाश की।
    • दक्षिण-दक्षिण एकजुटता: आर्थिक सहयोग और राजनीतिक स्वतंत्रता को बढ़ावा देने के लिए संयुक्त राष्ट्र के तहत गुटनिरपेक्ष आंदोलन (NAM) (1961) और G77 (1964) जैसे मंचों के गठन का नेतृत्व किया।

वैश्विक दक्षिण में भारत की भूमिका

  • एक प्रमुख सिद्धांतकार और वास्तुकार के रूप में विकास: भारत न केवल एक भागीदार है, बल्कि अधिक समावेशी और प्रतिनिधि वैश्विक व्यवस्था के लिए वैश्विक दक्षिण के दृष्टिकोण को आकार देने में एक अग्रणी है।
  • रणनीतिक स्थिति: भारत द्विआधारी टकराव के आगे झुके बिना चीनरूस और पश्चिम के साथ संबंधों को संतुलित करके बहुध्रुवीयता में केंद्रीय भूमिका निभाता है।
  • व्यावहारिक बहु-संरेखण: भारत की विदेश नीति बहु-संरेखण को अपनाती है, रणनीतिक स्वायत्तता को प्राथमिकता देते हुए विविध वैश्विक शक्तियों के साथ साझेदारी बनाए रखती है, जिसका प्रतीक यूक्रेन और गाजा जैसे मुद्दों पर इसका सूक्ष्म दृष्टिकोण है।

प्रमुख भू-राजनीतिक और रणनीतिक संदर्भ

  • चीन की चुनौती: चीन की बेल्ट एंड रोड पहल (बीआरआई) चीन-केंद्रित आपूर्ति शृंखलाएँ बनाने का प्रयास करती है। भारत, वैश्विक दक्षिण के लिए संप्रभुता और आत्मनिर्भरता को प्राथमिकता देते हुए, संप्रभु क्षमता निर्माण के एक मॉडल के साथ इसका मुकाबला करता है।
  • रूस की भूमिका: चीन के साथ रूस का गठबंधन एक रणनीतिक विरोधाभास प्रस्तुत करता है। ऊर्जा सुरक्षा और रक्षा प्रौद्योगिकी के लिए रूस पर भारत की निर्भरता, मॉस्को के बीजिंग के साथ बढ़ते संबंधों के कारण और भी जटिल हो गई है।

भारत का अद्वितीय रणनीतिक दृष्टिकोण

  • भारत की “सॉफ्ट पावर 2.0”: भारत का नेतृत्व डिजिटल सार्वजनिक अवसंरचना, हरित प्रौद्योगिकी सहयोग (जैसे- अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन) और मानवीय एकजुटता (जैसे- वैक्सीन मैत्री) पर केंद्रित है, जो वैश्विक दक्षिण के लिए मापनीय, प्रतिकृति योग्य शासन प्रणाली प्रदान करता है।
  • भू-राजनीति से भू-अर्थशास्त्र की ओर बदलाव: वैश्विक प्रभाव के लिए नया क्षेत्र प्रौद्योगिकी मानकोंडिजिटल बुनियादी ढाँचे और आपूर्ति शृंखलाओं में है – ऐसे क्षेत्र जहाँ भारत एक महत्वपूर्ण अभिकर्ता है।

वैश्विक दक्षिण की आकांक्षाएँ

  • ब्रिक्स और आईएसए जैसे गठबंधन: इन गठबंधनों में भारत की सक्रिय भागीदारी वैश्विक दक्षिण की अधिक प्रतिनिधित्वपूर्ण वैश्विक व्यवस्था बनाने की महत्वाकांक्षा को दर्शाती है।
    • न्यू डेवलपमेंट बैंक और वैकल्पिक वित्तीय तंत्र में भारत का नेतृत्व पश्चिम के वित्तीय प्रभुत्व को चुनौती देता है।
  • G-20 अध्यक्षता की सफलता: जी-20 में भारत का नेतृत्व, अफ्रीकी संघ की स्थायी सदस्यता सुनिश्चित करना, उत्तर और दक्षिण के मध्य एक सेतु से एक प्रमुख संस्थागत गठजोड़ के रूप में भारत की उभरती भूमिका को दर्शाता है।

भारत के नेतृत्व के समक्ष विद्यमान चुनौतियाँ

  • वैश्विक दक्षिण में विविध हित: भारत को पेट्रोलियम-राज्योंअल्प-विकसित राष्ट्रों और उभरती अर्थव्यवस्थाओं के भिन्न हितों को ध्यान में रखना होगा।
  • चीन-रूस धुरी: भारत के सामने चुनौती है, कि वह अपनी रणनीतिक स्वायत्तता सुनिश्चित करते हुए चीन-रूसी धुरी को दक्षिणी असंतोष को अपने साथ शामिल करने से रोके
  • आंतरिक चुनौतियाँ: भारत को अपने वैश्विक नेतृत्व को मज़बूत करने के लिए अपने आर्थिक और तकनीकी विकास में तेज़ी लानी होगी। अपनी मानक अपील बनाए रखने के लिए, इसकी घरेलू प्रगति समतापूर्ण और आत्मनिर्भर होनी चाहिए।

भारतीय रणनीति

  • द्विआधारी टकराव को रोकना: भारत शीत युद्ध शैली की वैश्विक व्यवस्था से बचना चाहता है, जहाँ वैश्विक दक्षिण एक विवादित परिधि बन जाता है।
  • वैश्विक व्यवस्था में परिवर्तन: भारत का लक्ष्य एक बहुकेन्द्रित विश्व व्यवस्था का निर्माण करना है, जहाँ शासन नेटवर्कयुक्त और समावेशी हो तथा वैश्विक दक्षिण को इतिहास के विषय की बजाय इतिहास के लेखक के रूप में स्थापित किया जाए।
  • अंतर्राष्ट्रीय संबंधों का नवीन व्याकरण: भारत का नेतृत्व संप्रभुता, न्याय और समावेशी प्रगति पर आधारित एक नए अंतर्राष्ट्रीय संबंध व्याकरण के निर्यात पर केंद्रित है

निष्कर्ष

वैश्विक दक्षिण के भविष्य को नया आकार देने में भारत की भूमिका केवल भू-राजनीतिक ही नहीं, बल्कि संस्थागत भी है। व्यावहारिक बहु-संरेखण और नवोन्मेषी शासन-कौशल के माध्यम से भारत एक खंडित वैश्विक व्यवस्था को एक अधिक न्यायसंगत और समावेशी प्रणाली में बदलने का नेतृत्व करना चाहता है।

मुख्य परीक्षा हेतु अभ्यास प्रश्न:

प्रश्न: शीत युद्धोत्तर परिदृश्य में वैश्विक कूटनीति असममित बहुध्रुवीयता का मार्ग प्रशस्त कर रही है। चर्चा कीजिए, कि यह परिवर्तन वैश्विक दक्षिण और इसके प्रमुख संस्थागत वास्तुकार के रूप में भारत की उभरती भूमिका को किस प्रकार नया रूप दे रहा है।

(15 अंक, 250 शब्द)

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