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भारत का जनसांख्यिकीय लाभांश: भविष्य की परिसंपत्ति या उत्तरदायित्व

Lokesh Pal August 29, 2025 05:30 15 0

संदर्भ:

भारत की जनसांख्यिकीय ‘परिसंपत्ति’ – इसकी विशाल युवा आबादी – के ‘दायित्व’ (या भार) में परिवर्तन होने का खतरा है, क्योंकि शिक्षा और कौशल विकास, के चलते डिग्री और रोजगार के बीच का अंतर बढ़ता जा रहा है।

भारत में पारंपरिक शिक्षा प्रणाली:

  • भारत में शिक्षा प्रणाली विद्यार्थियों को ऐसे रोज़गार के लिए तैयार कर रही है, जो तेजी से लुप्त हो रहे हैं।
  • पाठ्यक्रम अद्यतन की प्रक्रिया धीमी है (3-वर्षीय चक्र), तकनीकी व्यवधानों के कारण पिछड़ रही है।
  • रवींद्रनाथ टैगोर की यह बात आज भी प्रासंगिक है: विद्यार्थियों को ‘एक और समय’ के लिए तैयार रहना चाहिए।

एआई और कार्य का भविष्य:

  • एआई (कृत्रिम बुद्धिमत्ता) सबसे अधिक विघटनकारी तकनीक है, जो वैश्विक स्तर पर 70% नौकरियों को प्रभावित करती है।
  • मौजूदा नौकरियों में लगभग 30% कार्य पूर्णतः स्वचालित हो सकते हैं।
  • विश्व आर्थिक मंच (WEF) ने अनुमान लगाया है, कि 2030 तक 170 मिलियन नए रोजगारों का सृजन होगा, लेकिन साथ ही 92 मिलियन लोग विस्थापित भी होंगे।
  • अपस्किलिंग, रीस्किलिंग और क्रॉस-स्किलिंग की तत्काल आवश्यकता है।

जनसांख्यिकीय लाभांश – खतरे में:

  • भारत में 35 वर्ष से कम आयु के 800 मिलियन से अधिक लोग हैं।
  • बेरोजगारी के कारण इस संभावित ‘परिसंपत्ति’ के ’दायित्व’ में बदल जाने का खतरा है।
  • लाखों स्नातक अल्प-रोजगार या बेरोज़गार बने हुए हैं।
  • 40-50% इंजीनियरिंग स्नातकों को नौकरी नहीं मिलती, जो उद्योग-शिक्षा जगत के बीच असंतुलन को उजागर करता है।

उच्चतर शिक्षा में कौशल संकट:

  • उच्चतर शिक्षा के 61% नेता मानते हैं, कि पाठ्यक्रम बाजार की जरूरतों के अनुरूप नहीं है
  • नियोक्ताओं का कहना है, कि स्नातकों की बड़ी संख्या के बावजूद रोज़गार के लिए बेहतर प्रतिभाओं को ढूंढने में कठिनाई हो रही है।
  • स्नातक कौशल सूचकांक-2025: केवल 43% भारतीय स्नातकों को रोजगार योग्य माना जाता है।

प्रारंभिक चरण का मिसलिग्न्मेंट (हाई स्कूल):

  • विद्यार्थी पारंपरिक भूमिकाओं (चिकित्सक, इंजीनियर, वकील, शिक्षक) से परे करियर विकल्पों से अनभिज्ञ हैं।
  • माइंडलर सर्वेक्षण (2022): 93% विद्यार्थी उपलब्ध 20,000+ करियर विकल्पों में से केवल 7 के बारे में जानते हैं।
  • केवल 7% विद्यार्थियों को औपचारिक करियर मार्गदर्शन प्राप्त होता है।
  • भारत कौशल रिपोर्ट-2024: 65% विद्यार्थी अपनी रुचि/क्षमताओं के अनुरूप डिग्रियाँ या शिक्षा प्राप्त नहीं करते हैं।

जनसांख्यिकीय लाभांश का उपयोग करने में चुनौतियाँ:

  • शैक्षणिक चुनौतियाँ: स्मार्टफोन की पहुँच और सरकारी एआई प्रयोगशालाएँ मौजूद हैं, लेकिन शिक्षण-प्रणाली अभी भी परीक्षा-केंद्रित है।
    • करियर अन्वेषण या व्यावहारिक कौशल पर सीमित ध्यान।
  • सीमित फोकस: एडटेक (Edtech) प्लेटफॉर्म बड़े पैमाने पर परीक्षाओं की तैयारी को बढ़ावा देते हैं, न कि रोजगार या करियर की खोज को।
    • कोर्सेरा, यूडेमी और अन्य समान कंपनियों ने इस समस्या का समाधान करने का प्रयास किया है, लेकिन इनसे प्राप्त प्रमाणपत्र तेजी से वस्तुगत होते जा रहे हैं।
    • स्कूल पाठ्यक्रम उभरते रोजगार बाजार से अलग-थलग रहते हैं, जिससे विद्यार्थी आगे आने वाली चुनौतियों के लिए तैयार नहीं हो पाते।
    • केवल कुछ राज्य बोर्डों और केंद्रीय निकायों ने ही करियर तत्परता ढाँचे की शुरुआत की है तथा उनमें से भी बहुत कम ने उभरते करियर मार्गों को अपने पाठ्यक्रम में शामिल किया है।

सरकारी पहल और अंतराल:

  • प्रमुख कार्यक्रम: कौशल भारत मिशन, प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना (PMKVY), प्रधानमंत्री कौशल केंद्र (PMKK), जन शिक्षण संस्थान (JSS), प्रधानमंत्री युवा योजना (PMYY), आजीविका संवर्धन के लिए कौशल अधिग्रहण और ज्ञान जागरूकता (SANKALP) तथा प्रधानमंत्री इंटर्नशिप योजना।
    • कौशल भारत मिशन का लक्ष्य 2022 तक 400 मिलियन लोगों को प्रशिक्षित करना था, लेकिन यह लक्ष्य से काफी पीछे रह गया।
  • खंडित नीतियाँ, खराब समन्वय और उद्योग संरेखण की कमी भारत के कौशल पारिस्थितिकी तंत्र को कमजोर करने वाली प्रमुख संरचनात्मक चुनौतियाँ हैं।

निर्णायक दशक:

  • भारत के लिए अपने जनसांख्यिकीय लाभ का लाभ उठाने हेतु अगले 5-10 वर्ष महत्त्वपूर्ण हैं।
  • युवा बेरोजगारी अस्थिरता को जन्म दे सकती है।
    • 1990 में मंडल आयोग के समय में विद्यार्थियों द्वारा किया गया सविनय अवज्ञा आंदोलन इस बात का प्रमाण है, कि युवाओं के नेतृत्व में होने वाले विरोध प्रदर्शन किस प्रकार की तबाही मचा सकते हैं, जो हिंसा, पुलिस के साथ झड़प, संपत्ति के विनाश और कुछ मामलों में पुलिस गोलीबारी के कारण होने वाली मौतों में बदल सकती है।
  • असफलता से साक्षर लेकिन बेरोजगार युवाओं की एक पीढ़ी पैदा हो सकती है – एक “जनसांख्यिकीय टाइम बम।”
  • सफलता युवाओं को भविष्य के करियर के लिए तैयार करने पर निर्भर करती है, न कि बीते कल के लिए

एक सुसंगत रणनीति की आवश्यकता:

  • भारत को प्रौद्योगिकी, शिक्षा और रोजगार को एकीकृत करने वाले एक राष्ट्रीय ढाँचे की आवश्यकता है|
  • सरकार, निजी क्षेत्र और शिक्षा जगत के मध्य सहयोग महत्त्वपूर्ण है।
  • ध्यान डिग्री से हटकर नौकरी के लिए तैयार कौशल तथा भविष्य के करियर के मार्ग पर पर केंद्रित होना चाहिए।

निष्कर्ष

भारत का जनसांख्यिकीय लाभांश उसे या तो एक वैश्विक महाशक्ति बना सकता है या फिर जनसांख्यिकीय दायित्व में बदल सकता है। समय बीत रहा है और कौशल विकास, शिक्षा में नवाचार तथा उद्योग समन्वय ही आगे बढ़ने के एकमात्र रास्ते हैं।

मुख्य परीक्षा हेतु अभ्यास प्रश्न:

भारत का जनसांख्यिकीय लाभांश एक “जनसांख्यिकीय टाइम बम” बन सकता है। भारत में सामाजिक गतिशीलता को आकार देने में शिक्षा की भूमिका पर चर्चा कीजिए। शिक्षा और रोज़गार के मध्य विद्यमान अंतराल भारत के जनसांख्यिकीय लाभांश के लिए किस प्रकार एक ख़तरा है?

(15 अंक, 250 शब्द)

 

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