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भारत की जनसांख्यिकी में उतार-चढ़ाव

Lokesh Pal July 11, 2024 05:00 99 0

संदर्भ:

11 जुलाई को विश्व जनसंख्या दिवस मनाया जाता है, पिछले दशकों में भारत की जनसांख्यिकी परिदृश्य पर गौर करने की आवश्यकता है।

प्रारंभिक परीक्षा के लिए प्रासंगिकता: सतत विकास लक्ष्य (एसडीजी), राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस)-5, कुल प्रजनन दर (टीएफआर), जनसांख्यिकी लाभांश, महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (एमजीएनआरईजीए), जननी सुरक्षा योजना 2005, पोषण अभियान, मातृ मृत्यु दर (एमएमआर) आदि।

मुख्य परीक्षा के लिए प्रासंगिकता: सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी) को प्राप्त करने की दिशा में भारत की यात्रा, भारत की जनसंख्या प्रवृत्तियों द्वारा प्रस्तुत चुनौतियाँ और अवसर आदि।

भारत की जनसांख्यिकी में उतार-चढ़ाव:

  • 1989 में संयुक्त राष्ट्र ने इस दिवस की घोषणा की थी, जब प्रसिद्ध जनसांख्यिकीविद् डॉ. के.सी. जकारिया ने ‘विश्व जनसंख्या दिवस’ की अवधारणा को प्रस्तावित किया था।
  • 1987 में विश्व की जनसंख्या पाँच अरब तक पहुँच गई थी और गरीबी, स्वास्थ्य और लैंगिक असमानता जैसी चुनौतियाँ विश्व, विशेषकर विकासशील देशों के लिए चिंता का प्रमुख कारक थीं।
  • 1960 और 1970 के दशक के दौरान वैश्विक जनसंख्या 2% की वार्षिक दर से बढ़ रही थी।
  • भारत के लिए, यह विनाश की का कारण थी। इस बढ़त का मतलब था कि अगले दशकों में जल्द ही व्यापक गरीबी, भुखमरी और मौतें होने वाली थी।
  • हालाँकि, भविष्यवाणियों के बावजूद, अगले दशकों ने एक अलग कहानी बनी, जबकि वैश्विक प्रजनन दर में तेजी से गिरावट दर्ज की गई।
  • जीवन स्थितियों और चिकित्सा बुनियादी ढाँचे में सुधार के कारण जीवन प्रत्याशा में वृद्धि हुई।
  • भारत की प्रजनन दर में वर्ष 1970 के दशक के बाद से गिरावट दर्ज की गई और यह वर्तमान में प्रतिस्थापन स्तर से नीचे है।
  • कई स्वास्थ्य मापदंडों के क्षेत्र में भारत में प्रगति दर्ज की गई, मातृ एवं शिशु मृत्यु दर में उल्लेखनीय कमी आई है।
  • 2015 में, संयुक्त राष्ट्र ने सतत विकास लक्ष्यों (SDG) को अपनाया, जिन्हें शीघ्र ही राष्ट्रों की प्रगति के आकलन में महत्त्वपूर्ण मानदंड के रूप में मान्यता दी गई।
  • जैसे-जैसे लक्ष्य वर्ष 2030 नजदीक आ रहा है, सतत विकास लक्ष्यों में भारत की प्रगति को विशेष रूप से इसकी जनसंख्या गतिशीलता को समझा जाना चाहिए।
  • तीन घटक, मुख्य रूप से प्रजनन क्षमता, मृत्यु दर और प्रवासन, भारत के जनसांख्यिकीय परिदृश्य को आकार देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
  • भारत ने अपनी प्रजनन क्षमता को कम करने में प्रगति की है।
  • राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस)-5 के अनुसार, भारत की कुल प्रजनन दर (टीएफआर) 1992 और 2021 के मध्य यह 3.4 से घटकर 2 हो गई है, जो 2.1 के प्रतिस्थापन स्तर से नीचे है।
  •  मृत्यु दर में गिरावट दर्ज की गई है। समय के साथ भारतीयों की औसत जीवन प्रत्याशा में भी वृद्धि दर्ज की गई है।
  • इसके साथ ही, भारत में जनसांख्यिकी बदलाव देखने को मिल रहा है, जो कि वृद्ध होती आबादी की ओर है।

अन्य प्रमुख तथ्य : 

  • 2011 की जनगणना के अनुसार, 60 वर्ष या उससे अधिक की आयु वर्ग के व्यक्तियों की संख्या कुल जनसंख्या का 8.6% थी।
  • अनुमान है कि 2050 तक यह आँकड़ा 19.5% तक बढ़ जायेगा।
  • भारत की जनसंख्या गतिशीलता उसके ‘विकास’ परिदृश्य से जुड़ी हुई है।
  • प्रजनन क्षमता में कमी छोटे परिवार के मानदंडों की ओर संक्रमण का संकेत है।
  • इससे आश्रित जनसंख्या का अनुपात कम हो सकता है और परिणामतः जनसांख्यिकी लाभांश प्राप्त हो सकता है – एक ऐसी अवधि जिसमें कार्यशील आयु की जनसंख्या आश्रित जनसंख्या से अधिक होती है।
  • भारत रोजगार सृजन करके अपने युवा कार्यबल की क्षमता का दोहन कर सकता है।
  • मृत्यु दर में कमी और जीवन प्रत्याशा में वृद्धि, मजबूत स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली और बढ़े हुए जीवन स्तर का प्रतिबिंब है।
  • हालाँकि, जनसंख्या वृद्धावस्था के मुद्दे पर दीर्घकालिक योजना की आवश्यकता है – वृद्धावस्था देखभाल पर ध्यान केंद्रित करना और सामाजिक सुरक्षा लाभ प्रदान करना।
  • प्रवासन और शहरीकरण भी महत्त्वपूर्ण मुद्दे हैं।
  • गाँवों से शहरों की ओर तेजी से हो रहा पलायन मौजूदा शहरी बुनियादी ढाँचे के लिए खतरा पैदा कर रहा है।
  • इन सबके बीच लैंगिक समानता भी एक महत्त्वपूर्ण कारक है।
  • श्रम शक्ति में महिलाओं की भागीदारी, जो कि बहुत कम है, राजनीतिक प्रतिनिधित्व में उनकी उल्लेखनीय अनुपस्थिति और समाज में उनकी अंतहीन दुर्दशा, इत्यादि ऐसे मुद्दे हैं जो वर्ष 2030 तक भारत के मार्ग को अवरुद्ध कर सकते हैं।
  • लक्ष्यों को पूरा करने के लिए छह वर्ष का समय अभी शेष है, तथा 2030 तक भारत का मार्ग उसकी जनसंख्या गतिशीलता से भी जुड़ा है।
  • सतत विकास लक्ष्य को प्राप्त करने की यात्रा में लैंगिक समानता और सामाजिक-सांस्कृतिक विभाजन जैसे जनसंख्या संबंधी मुद्दों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।
  • केवल गहन समझ के साथ ही भारत ऐसा ‘विकास’ हासिल कर सकेगा जो सही मायनों में टिकाऊ हो।

देश की सतत विकास लक्ष्य यात्रा:

  • सरल शब्दों में ‘विकास’ का अर्थ है सभी के लिए भोजन, आवास और स्वास्थ्य जैसी बुनियादी आवश्यकताओं को सुनिश्चित करना।
  • ‘गरीबी उन्मूलन, भूखमरी शून्य और अच्छा स्वास्थ्य’ तीन सबसे महत्त्वपूर्ण सतत विकास लक्ष्य हैं जो ‘विकास’ का मूल आधार हैं।
  • जनसांख्यिकीय आपदा से लेकर वर्ष 2030 तक के ‘किसी को भी पीछे न छोडऩे’ के लक्ष्य की ओर बढ़ने तक की भारत की यात्रा में कुछ उतार-चढ़ाव देखने को मिल सकते हैं।
  • भारत ने गरीबी उन्मूलन के लक्ष्य की ओर बड़ी छलांग लगाई है।
  • 1990 और 2019 के मध्य गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वाली आबादी का अनुपात 48% से घटकर 10% के स्तर पर पहुँच गया है।
  • वर्ष 2006 में शुरू किया गया महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) ने ग्रामीण गरीबी को दूर करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
  • 2005 की जननी सुरक्षा योजना – जो गर्भवती महिलाओं को नकद लाभ प्रदान करती है – ने न केवल संस्थागत प्रसव को बढ़ावा दिया, बल्कि गरीब परिवारों को भारी स्वास्थ्य व्यय से भी बचाया।\
  • पॉल आर. एर्लिच ने अपनी विवादास्पद पुस्तक, द पॉपुलेशन बम (1968) में आने वाले वर्षों में भारत की अपनी आबादी को भोजन उपलब्ध कराने की क्षमता पर गंभीर सवाल उठाए थे।
  • हरित क्रांति के साथ, भारत फसल उत्पादन में आत्मनिर्भर हो गया है । भूख से पीड़ित आबादी का अनुपात 2001 में 18.3% से घटकर 2021 में 16.6% हो गया।
  • वैश्विक कुपोषण के बोझ में भारत का योगदान एक तिहाई है। यद्यपि भारत सरकार ने 2018 में प्रधानमंत्री समग्र पोषण योजना (पोषण) अभियान शुरू किया, फिर भी 2030 तक ‘भूख को शून्य’ करने के लक्ष्य को पूरा करने के लिए अधिक प्रयास किए जाने की आवश्यकता होगी।
  • भारत में स्वास्थ्य एक ऐसा क्षेत्र है जहाँ उल्लेखनीय प्रगति दर्ज की गई है। सभी प्रकार की मृत्यु दर संकेतकों में लगातार गिरावट दर्ज की गई है।
  • मातृ मृत्यु दर (एमएमआर) 2000 में 384.4 से घटकर 2020 में 102.7 हो गई। 2000 के बाद पाँच वर्ष से कम आयु के बच्चों की मृत्यु दर में उल्लेखनीय कमी आई है।
  • शिशु मृत्यु दर भी 2000 में प्रति 1,000 जीवित जन्मों पर 66.7 मृत्यु से घटकर 2021 में प्रति 1,000 जीवित जन्मों पर 25.5 मृत्यु हो गई।
  • ये उपलब्धियाँ दर्शाती हैं कि स्वास्थ्य देखभाल की गुणवत्ता और कवरेज में उल्लेखनीय सुधार हुआ है। इन उपलब्धियों के बावजूद, 2030 तक भारत की राह आसान नहीं है।
  • ऑक्सफैम के अनुसार, भारत की शीर्ष 10% आबादी के पास राष्ट्रीय संपत्ति का 77% हिस्सा है।
  • यदि विकास के लाभ समान रूप से वितरित नहीं किए जाते हैं और यदि विकास का लाभ सबसे गरीब व्यक्ति तक नहीं पहुँच पता है तथा धन का परिदृश्य वर्तमान की तरह ही विषम बना रहता है, तो ‘सतत विकास’ कभी भी सही अर्थों में प्राप्त नहीं किया जा सकता है।
  • सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के आँकड़ों में पूर्ण वृद्धि का उस देश के लिए सीमित महत्त्व है, जहाँ शीर्ष 1% लोगों के पास कुल संपत्ति का 40% हिस्सा है।
  • भूख और पोषण भी संकटग्रस्त क्षेत्र है। ग्लोबल हंगर इंडेक्स (2023) में भारत का स्थान 125 देशों की सूचि में 111वाँ था।
  • पोषण के मामले में, पाँच वर्ष से कम आयु वर्ग के बच्चों में बौनापन, कमज़ोरी और कम वज़न तथा महिलाओं में एनीमिया इत्यादि गंभीर चुनौतियाँ हैं। भारत के महामारी विज्ञान के प्रक्षेपवक्र से पता चलता है कि देश में संचारी और गैर-संचारी रोगों (एनसीडी) का दोहरा बोझ है।

किस मुद्दे पर अधिक ध्यान देने की आवश्यकता है? 

  • भारत को सतत विकास लक्ष्य हासिल करने के लिए नीतियों का निर्माण करते समय बदलती जनसंख्या गतिशीलता को स्वीकार करने की आवश्यकता है।
  • भारत को आय असमानता की समस्या का समाधान करने के लिए, भारत के युवाओं के लिए रोजगार के अवसर पैदा करके अपने जनसांख्यिकीय लाभांश का दोहन करने और बदलती स्वास्थ्य आवश्यकताओं पर अधिक ध्यान देने की आवश्यकता है।
  • एनसीडी, जो उच्च आउट-ऑफ-पॉकेट व्यय वहन करती है, कुछ परिवारों के लिए विनाशकारी है।
  • इन परिवारों को अत्यंत गरीबी में जाने से बचाने के लिए भारत को एक मजबूत सुरक्षा जाल की आवश्यकता है।
  • विविध पोषण संबंधी योजनाओं/कार्यक्रमों के कार्यान्वयन में आने वाली चुनौतियों का समाधान करके पोषण परिदृश्य को ठीक किए जाने की आवश्यकता है।
  • इसके लिए स्वास्थ्य और पोषण क्षेत्रों के लिए बजटीय आवंटन में वृद्धि की आवश्यकता होगी।
  • लैंगिक समानता का दृष्टिकोण और कमजोर महिलाओं का सशक्तिकरण अधिकांश मुद्दों को हल कर सकता है तथा सतत विकास लक्ष्यों में भारत की प्रगति को गति दे सकता है।
  • सतत विकास लक्ष्यों में भारत की प्रगति सीधे तौर पर इसकी आबादी के समानुपाती है और प्रगति का मार्ग इसकी जनसंख्या गतिशीलता की बेहतर समझ और मुद्दों को प्रबंधित करने में निहित है।

निष्कर्ष :

निष्कर्ष स्वरुप सतत विकास लक्ष्यों की दिशा में भारत की प्रगति जनसंख्या गतिशीलता, आय असमानता, लैंगिक समानता और स्वास्थ्य आवश्यकताओं पर निर्भर करती है, जिसके लिए बहु-क्षेत्रीय सहयोग और मजबूत राजनीतिक इच्छाशक्ति की आवश्यकता है।

मुख्य परीक्षा पर आधारित प्रश्न :

प्रश्न: सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी) को प्राप्त करने की दिशा में भारत की यात्रा इसकी जनसांख्यिकी गतिशीलता से जटिल रूप से जुड़ी हुई है। एसडीजी कार्यान्वयन के संदर्भ में भारत की जनसंख्या प्रवृत्तियों द्वारा प्रस्तुत चुनौतियों और अवसरों इत्यादि का आलोचनात्मक परिक्षण कीजिए। (15 अंक, 250 शब्द)

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