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भारत का मध्य एशिया के प्रति विकास-केंद्रित दृष्टिकोण : एक नई दिशा का संकेत

Lokesh Pal June 14, 2025 05:00 11 0

संदर्भ:

ईरान की एससीओ (SCO) और ब्रिक्स (BRICS) में सदस्यता और तालिबान और क्षेत्रीय देशों के बीच बढ़ती बातचीत मध्य एशिया को नया स्वरूप दे रही है। भारत को मध्य एशियाई गणराज्यों (CARs) के साथ विकासात्मक संबंधों को मजबूत करने का एक नया अवसर मिला है।

क्षेत्रीय समीकरणों में बदलाव:

  • क्षेत्रीय अस्थिरता: हाल के दिनों में, मध्य एशियाई क्षेत्र में महत्वपूर्ण परिवर्तन देखे जा रहे हैं, जिनमें ईरान की शंघाई सहयोग संगठन (SCO) और ब्रिक्स (BRICS) में सदस्यता तथा तालिबान की चीन, ईरान और अब भारत के साथ बढ़ती साझेदारी शामिल है।
  • उभरते अवसर: ये परिवर्तित समीकरण भारत के लिए मध्य एशियाई गणराज्यों (CARs) के साथ विशेष रूप से विकास क्षेत्र में अपने संबंधों को गहरा करने के नवीन अवसर सुनिश्चित कर रहा है।

भारत-मध्य एशिया वार्ता:

  • प्रमुख केंद्रबिंदु: भारत-मध्य एशिया वार्ता की चौथी बैठक में चर्चा का मुख्य केंद्रबिंदु विशेष रूप से विकास क्षेत्र पर केंद्रित रहा।
  • विमर्श में बदलाव: यह पहले के मध्य एशियाई भू-राजनीति, ‘नए ग्रेट गेम’, तेल और गैस सौदों तथा पाइपलाइन मार्गों पर केंद्रित दृष्टिकोण से एक बदलाव को दर्शाता है।
  • भारत की क्षमताओं का प्रदर्शन: भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर की अध्यक्षता में आयोजित इस वार्ता में कजाकिस्तान, किर्गिज गणराज्य, ताजिकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान और उज्बेकिस्तान के विदेश मंत्रियों ने भाग लिया। इसमें भारत की विकासात्मक क्षमताओं और उन्हें मध्य एशिया से जोड़ने की संभावनाओं को उजागर किया गया है।

भारत-मध्य एशिया संबंधों का विकास:

  • ऐतिहासिक संबंध: मध्य एशिया लंबे समय से भारत की कल्पना का हिस्सा रहा है, इसके पीछे ऐतिहासिक सभ्यतागत और सांस्कृतिक जुड़ाव हैं।
  • सोवियत संघ के विघटन के बाद अवसर: सोवियत संघ के विघटन के बाद नए भू-राजनीतिक परिदृश्य और आर्थिक अवसर उत्पन्न हुए, जिन्होंने विशेष रूप से ऊर्जा आयात, व्यापार और पारगमन के लिए भारत के दृष्टिकोण को अत्यधिक प्रभावित किया।
  • रणनीतिक हित: धार्मिक कट्टरता के बढ़ने, अफगानिस्तान में अस्थिरता और चीन की क्षेत्रीय उपस्थिति के बढ़ने की चिंताओं ने भारत के रणनीतिक हितों को और मजबूत किया।
  • कनेक्ट सेंट्रल एशियानीति (2012): कजाकिस्तान (2009), उज्बेकिस्तान (2011), और ताजिकिस्तान (2012) के साथ रणनीतिक साझेदारियों के बाद इस नीति को विशेष महत्त्व दिया गया।
    • भारत ने 2012 में अपनी 12-सूत्रीय कनेक्ट सेंट्रल एशियानीति की घोषणा की। जिसका उद्देश्य राजनीतिक, सुरक्षा, आर्थिक और सांस्कृतिक संबंधों को मजबूत करने के लिए एक सक्रिय और सामूहिक दृष्टिकोण अपनाना था।
  • उच्च-स्तरीय संधि वार्ताएँ और समझौते: जुलाई 2015 में, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मध्य एशिया के सभी पाँच देशों का दौरा किया, जिसके परिणामस्वरूप विभिन्न क्षेत्रों में 22 समझौतों पर हस्ताक्षर किए गए।
    • भारत ने कजाकिस्तान (2009), उज्बेकिस्तान (2011), और ताजिकिस्तान (2012) के साथ रणनीतिक साझेदारी को सफल बनाया।

भारत-मध्य एशिया हेतु कनेक्टिविटी परियोजनाएँ:

  • असमानता: हालांकि मजबूत राजनीतिक और रणनीतिक संबंधों के बावजूद, भारत की मध्य एशिया के साथ वाणिज्यिक भागीदारी सीमित रही है।
  • कनेक्टिविटी बाधाएँ: अस्थिर अफ़गानिस्तान और भारत-पाकिस्तान के तनावपूर्ण संबंधों ने प्रत्यक्ष संपर्क को बाधित किया है।
  • वैकल्पिक मार्ग: कनेक्टिविटी हेतु वैकल्पिक मार्ग संबंधी चुनौतियों का सामना करने के लिए, नई दिल्ली ने रूस और ईरान के साथ मिलकर अंतरराष्ट्रीय नॉर्थ-साउथ ट्रांसपोर्ट कॉरिडोर (INSTC) और इसके उपमार्गों पर सहयोग किया।
  • अफ़गानी बुनियादी संरचना में निवेश: इस रणनीति में अफगानिस्तान के बुनियादी संरचनाओं में निवेश एक महत्वपूर्ण हिस्सा था।
  • जरांज-डेलाराम रोड: अफगानिस्तान में 218 किलोमीटर लंबी जरांज-डेलाराम रोड का निर्माण एक महत्त्वपूर्ण उपलब्धि रही है।
  • चाबहार बंदरगाह: ईरान में चाबहार बंदरगाह का विकास भारत को ईरान और अफगानिस्तान की रिंग रोड के माध्यम से मध्य एशिया तक पहुंच को सुगम बनाने के उद्देश्य से किया गया।
  • समानांतर पहल: भारत की कनेक्टिविटी योजनाएँ अमेरिका की न्यू सिल्क रोडपहल के साथ मेल खाती थीं, जिसका उद्देश्य अफगानिस्तान के माध्यम से मध्य एशिया को दक्षिण एशिया से जोड़ना था।
  • तापी (TAPI) पाइपलाइन: तुर्कमेनिस्तान-अफगानिस्तान-पाकिस्तान-भारत (TAPI) गैस पाइपलाइन परियोजना भी भारत की रणनीति में एक महत्वपूर्ण केंद्र बनी रही।
  • राजनैतिक सत्ता में तालिबान की वापसी: अफगानिस्तान से अमेरिका की वापसी और तालिबान की पुनः सत्ता में वापसी ने पहले की योजनाओं और रणनीतियों को बाधित कर दिया।
  • चीन का विस्तार: इस बीच, चीन ने व्यापार और बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) परियोजनाओं के माध्यम से क्षेत्र में अपनी उपस्थिति का विस्तार किया है।
  • यूरेशियन आर्थिक संघ: कजाकिस्तान और किर्गिस्तान भी रूस के नेतृत्व वाले यूरेशियन आर्थिक संघ का हिस्सा हैं।

विकास सहयोग और क्षमता निर्माण:

  • सहभागिता में बदलाव: बदलते क्षेत्रीय परिदृश्य में, विकास सहयोग और क्षमता निर्माण भारत की मध्य एशिया के साथ सहभागिता का प्रमुख केंद्र बन गए हैं।
  • नवीन संस्थाओं की स्थापना: इस बदलाव का समर्थन देने के लिए भारत ने स्थापित की हैं:
    •  भारत-मध्य एशिया विकास समूह
    •  भारत-मध्य एशिया व्यापार परिषद
  • ऋण रेखा (Line of Credit): बुनियादी संरचना, सूचना प्रौद्योगिकी, ऊर्जा और कृषि क्षेत्रों में विकास परियोजनाओं के लिए 1 अरब अमेरिकी डॉलर की ऋण सुविधा प्रदान की गई है।
  • सहयोग के प्रमुख क्षेत्र (भारत-मध्य एशिया व्यापार परिषद): विदेश मंत्री जयशंकर ने भारत की तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था और मध्य एशिया के बीच संबंधों को मजबूत करने के लिए पाँच महत्वपूर्ण क्षेत्रों को रेखांकित किया:
    •  डिजिटल अर्थव्यवस्था और नवाचार
    •  वित्तीय सेवाएँ
    •  स्वास्थ्य सेवा और दवा क्षेत्र
    •  कनेक्टिविटी बढ़ाना
    •  पारगमन प्रक्रियाओं को सरल बनाना
  • डिजिटल साझेदारी: भारत-मध्य एशिया डिजिटल साझेदारी मंच की स्थापना करना।
  • तकनीकी सहयोग: मध्य एशिया में सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज (UHC) मॉडल तैयार करने के लिए भारत द्वारा तकनीकी सहायता की पेशकश की गई।
  • दक्षिण (DAKSHIN): मध्य एशियाई साझेदारों का भारत के ग्लोबल साउथ सेंटर ऑफ एक्सीलेंस – दक्षिण (विकास और ज्ञान साझाकरण पहल) के साथ मिलकर विकास अनुभवों के आदान-प्रदान पर सहमति व्यक्त की गई।
  • डिजिटल सार्वजनिक अवसंरचना (DPI): भारत ने आधार और डिजीलॉकर जैसे अपने डिजिटल सार्वजनिक अवसंरचना प्लेटफॉर्म को मध्य एशियाई देशों के साथ साझा करने की पेशकश की है।

व्यापार और पर्यटन:

  • सीमित व्यापार नीतियाँ: कनेक्टिविटी और सीमा शुल्क संबंधी चुनौतियों के कारण, हाल के वर्षों में भारत और मध्य एशिया के बीच व्यापार लगभग 2 अरब अमेरिकी डॉलर तक सीमित रहा है।
  • प्रस्तावित दीर्घकालिक सहयोग: आपसी संबंधों को मजबूत करने के लिए, निम्न क्षेत्रों में दीर्घकालिक सहयोग का प्रस्ताव दिया गया है:
    •  यूरेनियम
    •  कच्चा तेल
    •  गैस
    •  खनन
    •  कोयला
    •  उर्वरक
  • भुगतान को सुविधाजनक बनाना: स्थानीय मुद्राओं में भुगतान को प्रोत्साहित करने का सुझाव भी दिया गया है।
  • उच्च संभावनाओं वाले क्षेत्र: पर्यटन और शिक्षा को भविष्य के विकास के लिए उच्च संभावनाओं वाले क्षेत्रों के रूप में चिन्हित किया गया है।
  • मौजूदा ऊर्जा आयात: भारत कजाकिस्तान और उज्बेकिस्तान से बड़ी मात्रा में यूरेनियम का आयात करता है।
  • संयुक्त खनिज अन्वेषण: मध्य एशियाई साझेदारों ने दुर्लभ पृथ्वी खनिजों के संयुक्त अन्वेषण में रुचि व्यक्त की है।

निष्कर्ष:

भारत का मध्य एशिया के प्रति दृष्टिकोण अब कनेक्टिविटी की कमी और सुरक्षा-केंद्रित सोच से आगे बढ़कर विकास साझेदारियों, डिजिटल नवाचार और ऊर्जा सहयोग को प्राथमिकता देने वाली दिशा में विकसित हो रहा है। INSTC, चाबहार और विकास वित्तपोषण जैसे रणनीतिक उपकरणों के माध्यम से वर्तमान समय में, भारत एक अधिक लचीला और विविधतापूर्ण सहयोग अवसंरचना तैयार कर रहा है।

 मुख्य परीक्षा हेतु अभ्यास प्रश्न

प्रश्न. मध्य एशिया में भारत का विकास-केंद्रित दृष्टिकोण पारंपरिक भू-राजनीति से सतत क्षेत्रीय सहभागिता की ओर एक रणनीतिक बदलाव को दर्शाता है। इस परिप्रेक्ष्य में भारत–मध्य एशिया वार्ता के बदलते स्वरूप की विवेचना कीजिए।

(15 अंक, 250 शब्द)

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