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भारत की आर्थिक वृद्धि और सेवाओं का निर्यात

Lokesh Pal June 05, 2024 05:00 140 0

संदर्भ:

भारत विकास को गति देने के लिए, अपनी सुशिक्षित और कुशल आबादी द्वारा प्रदान की जाने वाली सेवाओं के निर्यात पर ध्यान केंद्रित कर सकता है।

प्रारंभिक परीक्षा के लिए प्रासंगिकता: रिमोट सर्विसेज, अग्निकुल 3डी प्रिंटेड रॉकेट आदि। 

मुख्य परीक्षा के लिए प्रासंगिकता: भारत में सेवा क्षेत्र का महत्त्व, भारत में सेवा क्षेत्र का लाभ उठाकर रोजगार सृजन करना आदि।

सेवाओं के निर्यात पर ध्यान केंद्रित करना :

  • सुशिक्षित और कुशल जनसंख्या: यद्यपि यह समूह कुल जनसंख्या का एक छोटा सा हिस्सा है, फिर भी इसकी संख्या तकरीबन करोड़ों में है।
  • भारत की शक्तियों का लाभ: देश पहले से ही वैश्विक सॉफ्टवेयर उद्योग में अपनी भूमिका के लिए जाना जाता है, और अब यह कई अन्य सेवाओं का भी निर्यात करता है, जो विश्व के सेवा निर्यात में तकरीबन 5% से अधिक का योगदान देता है, जबकि इसका वस्तु निर्यात लगभग 2% से भी कम है।
  • भारतीय प्रतिभाओं को रोजगार: गोल्डमैन सैक्स से लेकर रोल्स रॉइस तक बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ भारत स्थित वैश्विक क्षमता केंद्रों (GCC) के लिए प्रतिभाशाली भारतीय स्नातकों को नियुक्त कर रही हैं, जहाँ इंजीनियर, आर्किटेक्ट, सलाहकार और वकील आदि डिजाइन, अनुबंध और सॉफ्टवेयर इत्यादि का निर्माण करते हैं, ये वैश्विक स्तर पर बेची जाने वाली निर्मित वस्तुओं और सेवाओं में अंतर्निहित होते हैं।
    • ये केंद्र पहले से ही वैश्विक स्तर पर सभी जीसीसी के 50% से अधिक का प्रतिनिधित्व करते हैं, जिनमें 1.66 मिलियन भारतीय कार्यरत हैं और मार्च 2023 तक तकरीबन 46 बिलियन डॉलर का वार्षिक राजस्व उत्पन्न कर रहे हैं।
  • दूरस्थ सेवाओं में वृद्धि: महामारी के कारण कार्य आदतों में आए परिवर्तन और संचार प्रौद्योगिकी में सुधार के बाद, भारतीयों ने परामर्श, टेलीमेडिसिन और यहाँ तक ​​कि योग निर्देश सहित दूरस्थ सेवाओं की एक व्यापक श्रृंखला प्रदान करना शुरू कर दिया है।
    • एक बार जब सेवा वर्चुअल हो जाती है, तो इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि प्रदाता दस मील दूर स्थित है अथवा 10,000 मील दूर।
    • हैदराबाद में एक भारतीय सलाहकार अब सिएटल में एक क्लाइंट के सामने एक ऐसी टीम की ओर से प्रेजेंटेशन दे सकता है जिसके सदस्य लगभग प्रत्येक महाद्वीप में फैले हुए हैं। 
    • वह न सिर्फ अच्छी तरह से प्रशिक्षित है और अंग्रेजी में धाराप्रवाह बोल सकता है; बल्कि उसकी लागत भी अमेरिकी समकक्ष की तुलना में एक-चौथाई है।
  • भारत के विनिर्माण क्षेत्र में वृद्धि: विनिर्माण को भी इन परिवर्तनों से लाभ हुआ है, लेकिन यह ठीक उन्हीं क्षेत्रों में हुआ है जहाँ इंजीनियरिंग, नवाचार और डिजाइन विनिर्माण प्रक्रिया से कहीं अधिक मायने रखते हैं।
    • इसलिए, अंतरिक्ष में छोटे उपग्रहों को प्रक्षेपित करने के लिए काम करने वाली चेन्नई स्थित कंपनी अग्निकुल ने अपने स्वयं के संयंत्र में अनुकूलित रॉकेटों को 3डी प्रिंटिंग करके विनिर्माण आपूर्ति श्रृंखलाओं को पूरी तरह से समाप्त कर दिया है।
    • इसके अतिरिक्त टिल्फी, जो अपनी वेबसाइट के माध्यम से विश्व स्तर पर हाथ से बुनी हुई बनारसी रेशमी साड़ियों की बिक्री करती है, वह पारंपरिक कारीगरों के लिए नए फैशन तैयार करने हेतु प्रशिक्षित डिजाइनरों को नियुक्त करती है और बदले में कारीगरों को नवाचार अपनाने के लिए प्रोत्साहित करने का कार्य करती है।
  • भारत को अपनी क्षमता को बढाने पर कार्य करना चाहिए: लाखों उच्च कुशल, रचनात्मक, शिक्षित कर्मचारी, जिनमें से कई विविध भाषाओं में संवाद कर सकने में सक्षम होते हैं। दुर्भाग्य से, ऐसे कर्मचारियों की संख्या में लगातार कमी आ रही हो।

भारत में बेरोजगारी के संकट का प्रमुख कारण :

  • उच्च गुणवत्ता वाली शिक्षा तक पहुँच का अभाव: जबकि भारत में प्रति वर्ष तकरीबन 1.5 मिलियन की संख्या में इंजीनियर तैयार करता है, उनमें से केवल कुछ ही अल्पसंख्यक वर्ग के लोग ऐसे संस्थानों में प्रवेश पाते हैं जो कि उच्च गुणवत्ता वाली शिक्षा प्रदान करते हैं, और जिसकी जीसीसी या अग्निकुल जैसी कंपनियों में माँग है।
  • कार्य-कौशल संतुलन का अभाव: कार्य-कौशल मूल्यांकन कंपनी व्हीबॉक्स के अनुमान के अनुसार सभी स्नातकों में से लगभग आधे रोजगार के योग्य नहीं होते हैं।
    • इनमें से कुछ स्नातकों को गति प्राप्त करने के लिए केवल सुधारात्मक शिक्षा की आवश्यकता होती है। लेकिन कई भारतीयों के लिए, शैक्षिक कमियाँ कहीं अधिक गहरी हैं। 
    • शुरूआती दिनों में जबकि लगभग सभी भारतीय बच्चे स्कूल जाना शुरू करते हैं, लेकिन ये बच्चे तीसरी कक्षा तक पहुँचने तक एक-चौथाई से भी कम बच्चे दूसरी कक्षा के स्तर पर ही पढ़ पाते हैं।
  • स्कूल छोड़ने की प्रवृत्ति : पिछड़े हुए बच्चे जितना पीछे रह जाते हैं, स्कूल में बने रहना उतना ही कम समझदारी भरा होता है। कई बच्चे अंततः स्कूल छोड़ देते हैं और वे अकुशल काम के अलावा कुछ भी करने को मजबूर होते हैं।
    • इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि वर्तमान भारत में कृषि क्षेत्र में श्रमिकों की हिस्सेदारी बढ़ रही है, जो तेजी से विकास करने वाले देशों के सामान्य रुझान के विपरीत है।

आगे की राह: 

  • रोजगार सृजन: भारत को रचनात्मक उच्च-कुशल क्षेत्र का विस्तार करने के अलावा, ऐसे रोजगारों का सृजन करना होगा जो मोटे तौर पर लोगों के कौशल पर आधारित हों।
  • शिक्षा और कौशल में सुधार: इसके लिए अल्पावधि और दीर्घावधि दोनों में शिक्षा एवं कौशल में सुधार की आवश्यकता है, ताकि भारतीय श्रमिक भविष्य की नौकरियाँ कर सकें।
  • शिक्षित मानव संसाधन के लिए रोजगार सृजन: समझदारी भरे सुधारों से यह पता चलता है कि दोनों चुनौतियों के समाधान आपस में जुड़े हुए हैं। 
    • उदाहरण: एक अध्ययन से इस बात की जानकारी मिलती है कि यदि सरकार द्वारा संचालित डेकेयर में अंशकालिक कर्मचारी, खासकर हाई स्कूल तक पढ़ी-लिखी माँ को काम पर रखा जाता है, तो बच्चों की शिक्षा में सुधार होता है।
    • आज भारत में दस लाख से अधिक ऐसे डेकेयर संस्थान हैं, जिससे संभावित रूप से दस लाख से अधिक कर्मचारी दीर्घकालिक रोजगार की राह पर अग्रसर हैं।
  • व्यावसायिक प्रशिक्षण: इसी प्रकार, व्यावसायिक और प्रशिक्षुता कार्यक्रमों के लिए सार्वजनिक वित्त पोषण, जो छात्रों को रोजगार की प्राप्ति के लिए अवसर प्रदान करता है, लाखों लोगों को उत्पादक श्रमिकों में परिवर्तित कर सकता है।
    • स्वास्थ्य देखभाल प्रदाताओं, प्लंबरों, बढ़ईयों और इलेक्ट्रीशियनों की माँग में कोई कमी नहीं है।
  • सुधारों की शुरुआत: जब व्यवसायों को समर्थन देने के लिए सुधारों को जोड़ा जाता है – विशेष रूप से श्रम-प्रधान क्षेत्रों, जैसे- वस्त्र, आतिथ्य और पर्यटन में लघु एवं मध्यम आकार की फर्मों को – तो भारत अधिक लोगों को रोजगार प्रदान कर सकने में सक्षम हो सकता है।
    • लेकिन इसके लिए सावधानीपूर्वक डिजाइन किए गए कार्यक्रमों की आवश्यकता होगी, जिनका वित्तपोषण आंशिक रूप से उन अरबों डॉलर के पुनर्आबंटन से किया जाएगा, जो अब बड़े निर्माताओं को सब्सिडी के रूप में देने का वादा किया जा रहा है।
  • दीर्घकालिक दृष्टिकोण: दीर्घावधि में, भारत की सबसे बड़ी संपत्ति – उसके लोगों – से लाभ उठाने के लिए बाल देखभाल, शिक्षा और स्वास्थ्य देखभाल संस्थानों की संख्या तथा गुणवत्ता बढ़ाने के अलावा कोई अन्य विकल्प नहीं है।
    • इन क्षेत्रों में सार्वजनिक व्यय के वर्तमान निम्न स्तर को एक अवसर के रूप में देखा जाना चाहिए, क्योंकि इसका अर्थ है कि इसमें वृद्धि की काफी गुंजाइश है।
  • प्रवासी समुदाय का लाभ उठाना: भारत अपने विशाल प्रवासी समुदाय का लाभ उठाकर कुछ नए उच्च शिक्षा और अनुसंधान संस्थानों की स्थापना कर सकता है, जिनकी स्थापना उसे उच्च कुशल लोगों की संख्या में वृद्धि करने के लिए करनी होगी।
    • जब लोगों के पास उच्च कौशल होगा और वे विचार-उत्पादक संस्थानों से जुड़ेंगे, तो उद्यमिता रोजगार सृजन में योगदान कर सकेगी। 
    • भारत के सॉफ्टवेयर उद्योग का निर्माण सरकार ने नहीं किया है।
  • संरक्षणवाद पर काबू पाना: क्या बढ़ता संरक्षणवाद इस मार्ग में बाधक बन सकता है? जरूरी नहीं, क्योंकि अगर उच्च-स्तरीय सेवाओं का निर्यात वर्चुअल तरीके से किया जाए तो उसे रोकना मुश्किल है।
    • इसके अलावा, औद्योगिक देश भी वैश्विक स्तर पर ऐसी सेवाएँ उपलब्ध कराते हैं (अमेरिकी प्रबंधन सलाहकारों और उद्यम पूंजीपतियों के बारे में सोचें), जिसका अर्थ यह हो सकता है कि इन क्षेत्रों में संरक्षणवाद कम आकर्षक होगा।
    • तथा, अपनी वृद्ध होती आबादी को देखते हुए, औद्योगिक देशों को भारत द्वारा प्रदान की जाने वाली टेलीमेडिसिन जैसी सेवाओं से बहुत लाभ होगा, क्योंकि इससे विदेशी डॉक्टरों और नर्सों को आकर्षित करने और उन्हें अपने देश के रोजगार में शामिल करने की आवश्यकता कम हो जाएगी।

निष्कर्ष: निष्कर्षस्वरुप यह कहा जा सकता है कि भारत को कौशल प्रशिक्षण, सुधारों और सतत विकास के लिए अपने प्रवासी समुदाय का लाभ उठाकर अपने शिक्षा और नौकरी संकट का समाधान करने की आवश्यकता है ।

मुख्य परीक्षा पर आधारित प्रश्न:

जीएस-03: उदारीकरण का अर्थव्यवस्था पर प्रभाव, औद्योगिक नीति में परिवर्तन और औद्योगिक विकास पर उनका प्रभाव।

प्रश्न . भारत में वैश्विक सेवा निर्यात में एक प्रमुख देश के रूप में विकसित होने की क्षमता है। उन कारकों का विश्लेषण कीजिए जो भारत को इस क्षमता को साकार करने में मदद कर सकते हैं और मौजूदा चुनौतियों को नियंत्रित करने के लिए कौन-कौन से आवश्यक कदम उठाएँ जा सकते हैं? टिपण्णी कीजिए | (15 अंक, 250 शब्द)

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