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भारत की प्रवेश परीक्षा प्रणाली तथा उसमें निहित समस्याएँ

Lokesh Pal August 30, 2025 05:00 15 0

संदर्भ:

प्रत्येक वर्ष भारत में लगभग 70 लाख विद्यार्थी JEE, NEET, CUET और CLAT जैसी स्नातक प्रवेश परीक्षाओं में शामिल होते हैं।

  • चूँकि सीटों की संख्या निश्चित है इसलिए प्रतिस्पर्धा अधिक होती है, जिसके कारण कोचिंग संस्थान उद्योग में अनियंत्रित वृद्धि हुई है।
  • कोचिंग शाखाओं का बंद होना, वित्तीय कदाचार, प्रवर्तन निदेशालय के छापे तथा विद्यार्थियों की आत्महत्याओं की बढ़ती संख्या जैसे हालिया विवाद, प्रवेश प्रणाली में गहन समस्याओं को दर्शाते हैं।

वर्तमान शिक्षा प्रणाली से संबंधित मुद्दे:

  • कोचिंग संस्थानों पर निर्भरता: प्रवेश परीक्षा की तैयारी की उच्च माँग ने एक कोचिंग साम्राज्य का निर्माण किया है, जहाँ कोचिंग संस्थान दो वर्षों के कार्यक्रम के लिए लगभग ₹6-7 लाख चार्ज करते हैं
    • 14 वर्ष की आयु के विद्यार्थी भी इस चक्र में प्रवेश कर जाते हैं तथा अपने समग्र विकास, शौक और सहपाठियों के साथ वार्ता आदि का त्याग कर देते हैं।
    • अत्यधिक व्यस्त दिनचर्या के कारण तनाव, अवसाद और अलगाव की भावना उत्पन्न होती है तथा कुछ विद्यार्थी इस बोझ को सहन करने में असमर्थ हो जाते हैं।
  • चयन में अनुचित सटीकता: JEE परीक्षा में लगभग 18,000 IIT सीटों के लिए लगभग 15 लाख अभ्यर्थी परीक्षा में शामिल होते हैं, जिससे विद्यार्थियों को 99.7 और 99.9 प्रतिशत के बीच के छोटे अंकों के अंतर के लिए प्रतिस्पर्धा करने के लिए बाध्य होना पड़ता है।
    • वर्तमान चयन मॉडल प्रतिस्पर्धा को बढ़ा-चढ़ाकर पेश करता है तथा अवास्तविक मानक थोपता है।
  • झूठी योग्यता-तंत्र प्रणालियाँ: यह प्रणाली धनी परिवारों के विद्यार्थियों को विशेषाधिकार देती है, जो उच्च स्तरीय कोचिंग का खर्च उठा सकते हैं, जिससे वंचित पृष्ठभूमि के समान रूप से सक्षम विद्यार्थियों की बड़ी संख्या प्रतिस्पर्धा से बाहर हो जाती है
    • इससे शहरी-ग्रामीण, लैंगिक और क्षेत्रीय असंतुलन उत्पन्न होता है।
    • जैसा कि दार्शनिक माइकल सैंडेल कहते हैं, ऐसी प्रणाली योग्यतावाद का भ्रम उत्पन्न करती है, जबकि विशेषाधिकार और भाग्य की भूमिका को नजरअंदाज कर देती है।
  • व्यापक परिणाम: वर्तमान मॉडल के परिणाम बहुआयामी हैं।
    • मनोवैज्ञानिक रूप से विद्यार्थियों पर अत्यधिक दबाव पड़ता है, जिसके कारण मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याएँ तथा आत्महत्याओं की घटनाएँ सामने आती आती हैं।
    • सामाजिक रूप से, यह प्रणाली गुणवत्तापूर्ण शिक्षा को मुख्य रूप से धनी लोगों तक ही सीमित रखकर असमानता में वृद्धि करती है।
    • शैक्षणिक दृष्टि से, यह अधिगम प्राथमिकताओं को विकृत कर देता है, परिणामस्वरूप विद्यार्थी बुनियादी स्नातक पाठ्यक्रमों के लिए योग्य हो जाते हैं।

वैश्विक मॉडल:

  • नीदरलैंड: नीदरलैंड ने 1972 में मेडिकल स्कूल में प्रवेश के लिए भारित लॉटरी प्रणाली शुरू की, जिसे 2023 में पुनः लागू किया गया
    • इस प्रणाली के अंतर्गत न्यूनतम सीमा को पूरा करने वाले आवेदकों को लॉटरी में शामिल किया जाता है, जहाँ उच्च ग्रेड से उनकी संभावनाएँ बढ़ जाती हैं।
    • यह प्रणाली पूर्वाग्रह को कम करती है, विविधता में सुधार, मनोवैज्ञानिक दबाव में कमी, तथा यह स्वीकार करती है कि अंकों में अत्यधिक सूक्ष्म अंतर अनावश्यक हैं।
  • चीन: चीन ने 2021 में ‘डबल रिडक्शन पॉलिसी’ लागू की, जिसने स्कूली विषयों के लिए लाभकारी ट्यूशन पर प्रतिबंध लगा दिया
    • इस सुधार से परिवारों पर वित्तीय बोझ काफी कम हो गया, शिक्षा तक पहुँच में असमानता दूर हुई, तथा अत्यधिक प्रतिस्पर्धा पर अंकुश लगाकर विद्यार्थियों के मानसिक स्वास्थ्य को सुदृढ़ किया गया।

आगे की राह:

  • प्रवेश प्रक्रिया को सरल बनाना: भारत को Tech. पात्रता के लिए मुख्य मानदंड के रूप में कक्षा 12 की बोर्ड परीक्षा पर भरोसा करना चाहिए।
    • भौतिकी, रसायन विज्ञान और गणित में न्यूनतम 80% अंक को सीमा के रूप में निर्धारित किया जा सकता है।
    • जो विद्यार्थी अर्हता प्राप्त कर लेते हैं, उनका चयन भारित लॉटरी प्रणाली के माध्यम से किया जाना चाहिए, जहाँ उच्च अंक से चयन की संभावना बढ़ जाती है।
    • मौजूदा आरक्षणों के साथ-साथ ग्रामीण, लैंगिक और क्षेत्रीय विविधता के लिए अतिरिक्त प्रावधानों को इस प्रणाली में एकीकृत किया जा सकता है।
  • समानता में वृद्धि: अधिक सामाजिक गतिशीलता सुनिश्चित करने के लिए, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (IIT) की 50% सीटें सरकारी स्कूलों में शिक्षा प्राप्त ग्रामीण विद्यार्थियों के लिए आरक्षित की जा सकती हैं।
    • यदि प्रवेश परीक्षाएँ जारी रखी जाएँ, तो कोचिंग सेंटरों पर या तो प्रतिबंध लगा देना चाहिए या उनका राष्ट्रीयकरण कर देना चाहिए तथा सरकार को समानता सुनिश्चित करने के लिए निःशुल्क ऑनलाइन अध्ययन सामग्री तथा व्याख्यान उपलब्ध कराने चाहिए।
  • विविधता और एकीकरण को बढ़ावा: भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान एक वार्षिक विद्यार्थी विनिमय कार्यक्रम शुरू कर सकते हैं, जो विद्यार्थियों को उनके चार वर्षीय पाठ्यक्रम के दौरान विभिन्न भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान परिसरों में अध्ययन करने के लिए यादृच्छिक रूप से आवंटित करता है।
    • इसी प्रकार, शैक्षणिक गुणवत्ता को मानकीकृत तथा संस्थानों के बीच पदानुक्रम को समाप्त करने के लिए भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (IIT) के बीच प्रोफेसरों के स्थानांतरण को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।

निष्कर्ष

भारत की शिक्षा व्यवस्था के समक्ष एक विकल्प है: विद्यार्थियों और समाज के मध्य एक अंतहीन दौड़ जारी रखना या निष्पक्षता, विवेक, समतावाद और समान अवसर को सुनिश्चित करते हुए एक बेहतर समतापूर्ण शिक्षा प्रणाली को बढ़ावा देना।

मुख्य परीक्षा हेतु अभ्यास प्रश्न:

प्रश्न: भारत की प्रवेश परीक्षाएँ कठोर प्रतिस्पर्धा और महत्त्वपूर्ण मनोवैज्ञानिक एवं सामाजिक लागतों से युक्त होती हैं। स्नातक प्रवेश परीक्षाओं की वर्तमान संरचना में प्रमुख चुनौतियों पर चर्चा कीजिए तथा वैश्विक प्रथाओं से सबक लेते हुए उपयुक्त सुधार सुझाइए।

(10 अंक, 150 शब्द)

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