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भारत की समुद्री युद्ध क्षमता

Lokesh Pal December 23, 2024 05:15 10 0

संदर्भ:

वर्ष 2024 भारतीय नौसेना के लिए एक महत्वपूर्ण मोड़ तब साबित हुआ जबकि भारत ने अनेक परिचालन संबंधी उपलब्धियाँ अर्जित की, इन उपब्धियों ने भारत को एक अग्रणी समुद्री शक्ति के रूप में इसकी वैश्विक स्थिति को मजबूत किया। सबसे उल्लेखनीय प्रगति में से, समुद्री युद्ध के एक महत्वपूर्ण क्षेत्र के रूप में उभरना माना जा रहा है।

नोट : आधुनिक भारत की तटरेखा लगभग 7,500 किलोमीटर लंबी है। 

  • भारत की समुद्री युद्ध क्षमताओं का अर्थ है पानी के अंदर मौजूद उन्नत पहचान प्रणाली, जिसका इस्तेमाल भारत के राष्ट्रीय हितों की रक्षा के लिए दुश्मन की पनडुब्बियों और अन्य जलमग्न वाहनों सहित संभावित खतरों की पहचान करने और उनका मुकाबला करने के लिए किया जाता है।

ऑपरेशन संकल्प

  • भारतीय नौसेना का ऑपरेशन: वर्ष 2024 की शुरुआत में, भारतीय नौसेना के ऑपरेशन संकल्प ने अपने कार्यक्षेत्र का विस्तार किया, जो होर्मुज जलडमरूमध्य से लाल सागर तक विस्तारित किया गया।
  • उद्देश्य: इस पहल का मुख्य उद्देश्य समुद्री डकैती, अपहरण और ड्रोन हमलों से शिपिंग लेन की सुरक्षा करना है, साथ ही हौथियों द्वारा लक्षित जहाजों को सहायता प्रदान करना है।
  • भारत की छवि को बढ़ावा देना: इन क्षेत्रों में नौसेना के सक्रिय रुख ने वैश्विक समुद्री सुरक्षा के लिए एक रुचिकर सुरक्षा भागीदार और पहले उत्तरदाता के रूप में अपनी प्रतिष्ठा को मजबूत किया है।

समुद्र के अंदर युद्ध में प्रगति

  • आईएनएस अरिघाट: वर्ष 2024 में एक महत्वपूर्ण उपलब्धि भारत की दूसरी स्वदेशी परमाणु ऊर्जा चालित बैलिस्टिक मिसाइल पनडुब्बी (एसएसबीएन), आईएनएस अरिघाट का जलावतरण है।
    • परमाणु क्षमताओं में वृद्धि: अगस्त में लॉन्च की गई यह पनडुब्बी भारत की परमाणु त्रिभुज और परमाणु निरोध क्षमताओं को बढ़ाती है।
    • आईएनएस अरिहंत से तुलना : आईएनएस अरिघाट आकार और प्रणोदन के मामले में अपने पूर्ववर्ती आईएनएस अरिहंत की तरह ही है, लेकिन इसमें उच्च स्वदेशी सामग्री और उन्नत सोनार (गंदे पानी में भी चल सकता है) और प्रणोदन प्रणाली शामिल हैं।
    • समुद्री युद्ध में योगदान: ये उन्नयन भारत की समुद्री युद्ध क्षमताओं में महत्वपूर्ण रूप से योगदान करते हैं।

परमाणु त्रय : 

परमाणु त्रय एक सैन्य रणनीति है जिसमें तीन प्रकार की ताकतें शामिल होती हैं: भूमि-आधारित परमाणु मिसाइलें, पनडुब्बियों से प्रक्षेपित परमाणु मिसाइलें, और परमाणु बम या मिसाइल ले जाने वाले रणनीतिक विमान। अतः परमाणु त्रय का यह त्रि-आयामी दृष्टिकोण सुनिश्चित करता है कि किसी देश के पास परमाणु हमला करने के कई तरीके हो सकते हैं, जिससे उसकी रक्षा अधिक सुरक्षित और विश्वसनीय हो जाती है।

  • K-4 SLBM मिसाइल का परीक्षण: वर्ष 2024 के दौरान किए गए सबसे महत्वपूर्ण परीक्षणों में से एक INS अरिघाट से K-4 पनडुब्बी-लॉन्च बैलिस्टिक मिसाइल (SLBM) का सफल प्रक्षेपण था।
    • विशेषताएँ: 3,500 किलोमीटर की रेंज के साथ, K-4 मिसाइल चीन के अधिकांश हिस्से को मारक दूरी पर रखती है, जिससे भारत की रणनीतिक प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि होती है।
    • परीक्षण के परिणामों का विश्लेषण : परीक्षण के परिणामों का विश्लेषण किया जा रहा है, और भारत के SSBN में इस मिसाइल को शामिल करने से एक शक्तिशाली समग्र हथियार पैकेज मिलेगा।
  • प्रोजेक्ट-77 (P-77): हाल ही में, भारत सरकार ने प्रोजेक्ट-77 (P-77) को मंजूरी दी है। इसमें ₹40,000 करोड़ की लागत से दो परमाणु ऊर्जा चालित पनडुब्बियों (SSN) का निर्माण शामिल है।
    • 2036-37 तक डिलीवरी के लिए निर्धारित SSN में 90% से अधिक स्वदेशी होगी। 
    • एसएसएन के शामिल होने से सुरक्षा में वृद्धि होगी और भारत की पानी के भीतर युद्ध क्षमताओं में वृद्धि होगी, जिससे एसएसबीएन की भूमिका में वृद्धि होगी। 
    • भारत के लिए यह एक बड़ी उपलब्धि होगी क्योंकि इनके शामिल होने पर, भारत एकमात्र गैर-पी5 राष्ट्र बन जाएगा जो पनडुब्बी जहाज बैलिस्टिक परमाणु (एसएसबीएन) और पनडुब्बी जहाज परमाणु ऊर्जा से संचालित (एसएसएन) दोनों का संचालन करेगा, जो नौसेना की शक्ति में एक महत्वपूर्ण उपलब्धी है।

विशेषताएँ 

SSBN

SSN

फुल फॉर्म  न्यूक्लियर पावर्ड बैलिस्टिक मिसाइल पनडुब्बी (एसएसबीएन)  सबमर्सिबल जहाज परमाणु ऊर्जा से संचालित
प्राथमिक कार्य  परमाणु प्रतिरोध (प्रतिशोध या दुश्मन को डराना) आक्रमण (आक्रामक अभियान)
हथियार बैलिस्टिक परमाणु मिसाइलें टॉरपीडो, क्रूज मिसाइलें
डिजाइन फोकस धीमी और धैर्यता   गति और चपलता
रणनीतिक प्रासंगिकता दूसरी-स्ट्राइक क्षमता समुद्री नियंत्रण और प्रभुत्व
उदाहरण आईएनएस अरिहंत और आईएनएस अरिघाट 2036-37 तक परियोजना 77-श्रेणी की श्रेणी की पनडुब्बी

भारत की नौसेना रणनीति में पारंपरिक पनडुब्बियाँ

जबकि परमाणु पनडुब्बियाँ ध्यान का केंद्र हैं लेकिन इसके बावजूद भी पारंपरिक पनडुब्बियाँ भारत की नौसेना रणनीति के लिए महत्वपूर्ण बनी हुई हैं। अमेरिका ने परमाणु क्षमता की आवश्यकता न होने वाले मिशनों के लिए डीजल-इलेक्ट्रिक पनडुब्बियों को पुनर्जीवित करने पर भी विचार किया है।

  • प्रोजेक्ट-75: प्रोजेक्ट-75 के तहत छठी स्कॉर्पीन श्रेणी की पनडुब्बी आईएनएस वाघशीर का होना इस संबंध में महत्वपूर्ण है।
    • आगामी योजना : नौसेना ऐसी तीन और पनडुब्बियों का ऑर्डर देने की योजना बना रही है, जो पुराने जहाजों के बंद होने से उत्पन्न हुई भिन्नता को भरने में मदद करेंगी।
    • विशेषताएँ: ये पारंपरिक पनडुब्बियाँ उन्नत एयर-इंडिपेंडेंट प्रोपल्शन (AIP) सिस्टम से सुसज्जित हैं, जो उनकी परिचालन सीमा और स्टेल्थ को बढ़ाती हैं।
  • प्रोजेक्ट-75(I): समानांतर रूप से, प्रोजेक्ट-75(I) का उद्देश्य स्पेन और जर्मनी के सहयोग से एयर-इंडिपेंडेंट प्रोपल्शन (AIP)-सक्षम पनडुब्बियों को प्रस्तुत करके भारत के पनडुब्बी बेड़े को बढ़ाना है।
    • विनिर्देश: इस परियोजना से बेड़े में स्वदेशी पनडुब्बियों में वृद्धि होने की संभावना है। इसकी पहले पोत में तकरीबन 45% स्वदेशी घटक के होने की संभावना है, जो छठे पोत तक लगभग 60% तक बढ़ जाएगी। 
  • यह विकास सुनिश्चित करता है कि पारंपरिक पनडुब्बियाँ भारतीय नौसेना के रणनीतिक संचालन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती रहेंगी।

पनडुब्बियों में एयर-इंडिपेंडेंट प्रोपल्शन (AIP) सिस्टम

  • एयर-इंडिपेंडेंट प्रोपल्शन (AIP) सिस्टम का मुख्य कार्य पनडुब्बी को अपना ऑक्सीजन स्वयं बनाने में सक्षम बनाना है, जिससे पानी के अंदर उसकी सहनशक्ति में उल्लेखनीय वृद्धि होती है।
  • पनडुब्बियों में एयर-इंडिपेंडेंट प्रोपल्शन (AIP) पनडुब्बी को बैटरी चार्ज के बीच तीन से चार गुना अधिक समय तक पानी में रहने में स्कश्म बनाता है, जिससे इसके खोज की संभावना कम हो जाती है।

मानवरहित अंडरवाटर व्हीकल्स (UUVs)

  • 100 टन के UUVs के लिए स्वीकृति: अपनी अंडरवाटर युद्ध क्षमताओं को आधुनिक बनाने के लिए भारतीय नौसेना ने 2,500 करोड़ रुपये की अनुमानित लागत से 100 टन के मानवरहित अंडरवाटर व्हीकल्स (UUVs) के निर्माण के लिए स्वीकृति प्राप्त की है।
  • लाभ: मानवरहित अंडरवाटर व्हीकल्स (UUVs) कम लागत पर उच्च रिटर्न वाला समाधान प्रदान करके भारत की अंडरवाटर क्षमताओं को बढ़ाएगा।

यह परियोजना समुद्री क्षेत्र में बढ़ती जटिलता और उभरते खतरों से निपटने के लिए प्रमुख सक्षमकर्ता के रूप में विशिष्ट प्रौद्योगिकियों का लाभ उठाने पर भारत के रणनीति को दर्शाती है।

चुनौतियाँ और समाधान

  • बजटीय और खरीद संबंधी चुनौतियाँ: नियोजित अधिग्रहण और उपलब्ध निधि के बीच लगातार बेमेल है, जिससे प्रमुख परियोजनाओं में विलंब देखा जा रहा है।
  • समाधान हेतु सुझाव : निरंतर निधि सुनिश्चित करना, खरीद प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित करना और जटिल परियोजनाओं के लिए लंबी अवधि की तैयारी पर ध्यान देना नौसेना के लिए अपनी परिचालन तत्परता और प्रभावशीलता बनाए रखने के लिए महत्वपूर्ण है।

निष्कर्ष

अपने बेड़े का आधुनिकीकरण करके, नई तकनीकों को अपनाकर और अपनी परिचालन पहुंच का विस्तार करके, भारत अपने समुद्री हितों की रक्षा करने और महत्वपूर्ण समुद्री मार्गों की सुरक्षा सुनिश्चित करने की अपनी प्रतिबद्धता को मजबूत कर रहा है। जैसे-जैसे नौसेना विकसित और मजबूत होकर आगे बढ़ती है, तेजी से जटिल होते वैश्विक समुद्री वातावरण में भविष्य की चुनौतियों का सामना करने के लिए रणनीतिक और तकनीकी क्षमताओं दोनों में निरंतर निवेश आवश्यक होगा।

मुख्य परीक्षा हेतु अभ्यास प्रश्न 

प्रश्न. भारत की अंडरसी युद्ध क्षमताओं की खोज उसकी समुद्री आकांक्षाओं और रणनीतिक प्राथमिकताओं को दर्शाती है। हालाँकि, स्वदेशी विकास और बजटीय बाधाओं में चुनौतियाँ बनी हुई हैं। आलोचनात्मक रूप से विश्लेषण करें कि भारत इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में एक विश्वसनीय नौसैनिक शक्ति के रूप में अपनी स्थिति बनाए रखते हुए इन प्रतिस्पर्धी मांगों को कैसे संतुलित कर सकता है। 

(10अंक, 150 शब्द)

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