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आत्मनिर्भर भारत के लिए भारत की खनन नीतियाँ और उनका क्रियान्वयन

Lokesh Pal October 02, 2025 06:15 27 0

संदर्भ:

2047 तक आत्मनिर्भर भारत और विकसित भारत के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए घरेलू प्राकृतिक संसाधन खनन को बढ़ावा देने की आवश्यकता है।

वर्तमान परिदृश्य:

  • आयात बोझ: भारत 90% तेल, 95% तांबा और 99% से अधिक सोना आयात करता है।
    • वृहद घरेलू भंडार के बावजूद कोयला और बॉक्साइट का भी आयात किया जाता है।
    • आयात पर निर्भरता से अर्थव्यवस्था पर बोझ पड़ता है, चालू खाता घाटा में कमी तथा रणनीतिक स्वायत्तता से समझौता होता है।
  • घरेलू इलेक्ट्रॉनिक्स में वृद्धि, प्राकृतिक संसाधनों का निम्न उपयोग: यद्यपि घरेलू इलेक्ट्रॉनिक्स उत्पादन में सुधार हुआ है, लेकिन प्राकृतिक संसाधन क्षेत्र का अभी भी कम उपयोग हो रहा है।

भारत में खनन संभावनाएँ:

  • विशाल भू-वैज्ञानिक संसाधन: भारत में ऑस्ट्रेलिया, अफ्रीका और दक्षिण अमेरिका के बराबर भू-वैज्ञानिक संसाधन हैं।
  • साझा महाद्वीपीय इतिहास: लाखों वर्ष पूर्व, ये भूभाग समृद्ध खनिज और हाइड्रोकार्बन संपदा वाले एक ही सुपरकॉन्टिनेंट (महाद्वीप) का भाग थे।
  • अप्रयुक्त क्षमता: अन्य क्षेत्रों के विपरीत, भारत को अभी तक इन संसाधनों का पूर्णतः अन्वेषण और उपयोग करना शेष है।

भारत में खनन को बढ़ावा देने के उपाय:

  • अन्वेषण के लिए नया दृष्टिकोण: वैश्विक स्तर पर, अन्वेषण का कार्य छोटी अन्वेषण कंपनियों द्वारा किया जाता है, जो बड़ी कंपनियों की तुलना में स्टार्ट-अप की भाँति कार्य करती हैं।
    • ये कम्पनियाँ उच्च जोखिम, उच्च लाभ वाले अन्वेषण कार्य करती हैं
    • सरकार को नीलामी प्रणाली में बदलाव, युवा उद्यमियों के लिए अन्वेषण को मुक्त तथा तत्काल राजस्व पर कम ध्यान केंद्रित करना चाहिए, क्योंकि कर राजस्व तब उत्पन्न होगा जब खनन शुरू होगा
  • स्व-प्रमाणन के माध्यम से त्वरित प्रक्रियाएँ: एक स्व-प्रमाणन मॉडल लागू किया जाना चाहिए, जहाँ उद्यमी अनुपालन प्रमाणित करें।
    • बाद में, ऑडिट प्रक्रिया के माध्यम से सरकार किसी भी चूक के लिए उन्हें जवाबदेह ठहरा सकती है।
  • मौजूदा परिसंपत्तियों का पुनरुद्धार: जो परिसंपत्तियाँ बंद हो चुकी हैं या जिनका प्रदर्शन खराब है, उन्हें बढ़ावा दिया जाना चाहिए।
    • उदाहरणस्वरूप, बंद हो चुकी कोलार गोल्ड फील्ड्स और तांबे में कम उत्पादन करने वाली हिंदुस्तान कॉपर या हट्टी गोल्ड माइन शामिल हैं।
    • नए निवेश और नवीनतम प्रौद्योगिकियों को आकर्षित करने के लिए इन परिसंपत्तियों को निजी क्षेत्र के लिए खोला जाना चाहिए।
    • इससे नई खदानें शुरू करने की तुलना में तुरंत और तेज़ी से परिणाम मिलेंगे और यह राष्ट्रीय मुद्रीकरण पाइपलाइन के अनुरूप भी होगा |
  • सार्वजनिक और निजी क्षेत्र के लिए समान अवसर: सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयों (पीएसयू) का प्रभुत्व, जिन्हें प्रायः तरजीही व्यवहार प्राप्त होता है, समाप्त होना चाहिए।
    • सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों और निजी कंपनियों के मध्य समान प्रतिस्पर्धा और अवसर सृजित करने से कार्यकुशलता बढ़ेगी और देश को लाभ होगा।

खनन और अन्वेषण से जुड़ी चिंताएँ:

  • पर्यावरणीय प्रभाव: खनन से वनों की कटाई, जल प्रदूषण और वायु प्रदूषण बढ़ता है, जिससे पारिस्थितिकी तंत्र और जैव विविधता के लिए खतरा उत्पन्न होता है
  • स्व-प्रमाणन का जोखिम: स्व-प्रमाणन मॉडल के खराब कार्यान्वयन से अवैध खनन बढ़ सकता है, जैसा कि गोवा और ओडिशा में देखा गया है (शाह आयोग के निष्कर्ष)। इसके लिए मज़बूत ऑडिटिंग और जवाबदेही की आवश्यकता है।
  • सामाजिक और जनजातीय अधिकार: खनन क्षेत्र अक्सर जनजातीय क्षेत्रों से आच्छादित होते हैं, जिससे सामुदायिक विस्थापन होता है। परिचालन आरंभ होने से पूर स्वतंत्र, पूर्व और सूचित सहमति (FPIC) की गारंटी दी जानी चाहिए।
  • सतत विकास: अनियमित खनन से असंतुलित दोहन का खतरा बना रहता है। सतत और समावेशी विकास पर ज़ोर दिया जाना चाहिए, जिसमें वृत्ताकार अर्थव्यवस्था और 3R (रिड्यूस, रीयूज़, रीसाइकल) को एकीकृत किया जाना चाहिए।

आगे की राह:

  • पर्यावरणीय सुरक्षा उपायों को मजबूत करें: प्रभाव आकलन, पुनर्वास योजनाओं और प्रदूषण नियंत्रण तंत्र सहित कठोर पर्यावरणीय मानदंडों को लागू करें।
  • सुदृढ़ लेखा परीक्षा और अनुपालन: सुनिश्चित करें, कि अवैध खनन को रोकने के लिए स्व-प्रमाणन के साथ नियमित लेखा परीक्षा और गैर-अनुपालन के लिए दंड भी हो
  • जनजातीय और सामुदायिक अधिकारों की रक्षा: FPIC सिद्धांतों को बनाए रखें, निर्णय प्रक्रिया में स्थानीय समुदायों को शामिल करें, और जहाँ विस्थापन होता है वहाँ उचित मुआवजा और पुनर्वास प्रदान करें।
  • सतत खनन प्रथाओं को बढ़ावा देना: दीर्घकालिक स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए पर्यावरण अनुकूल प्रौद्योगिकियों, संसाधन दक्षता और परिपत्र अर्थव्यवस्था के साथ एकीकरण पर ध्यान केंद्रित करना।

निष्कर्ष:

प्रस्तावित उपायों के लिए सरकारी बजटीय सहायता की आवश्यकता नहीं है और वास्तव में इनसे राजस्व में वृद्धि होगी, आजीविका को समर्थन तथा प्राकृतिक संसाधन क्षेत्र को 2047 तक विकसित भारत के लक्ष्य में महत्वपूर्ण योगदान करने में सक्षम बनाया जा सकेगा।

मुख्य परीक्षा हेतु अभ्यास प्रश्न

प्रश्न. आत्मनिर्भर भारत के लक्ष्य की प्राप्ति के लिए घरेलू खनन को बढ़ावा देना आवश्यक माना जाता है, फिर भी यह गंभीर पर्यावरणीय और सामाजिक चुनौतियाँ प्रस्तुत करता है। सतत और समावेशी विकास सुनिश्चित करते हुए भारत की खनन क्षमता को उजागर करने के लिए आवश्यक नीतिगत सुधारों का समालोचनात्मक परीक्षण कीजिए।

(15 अंक, 250 शब्द)

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