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भारत का राष्ट्रीय गीत ‘वंदे मातरम’ – एक अमूल्य धरोहर

Lokesh Pal December 10, 2025 05:15 10 0

सन्दर्भ:

लोकसभा में राष्ट्रीय गीत ‘वंदे मातरम’ की 150वीं वर्षगाँठ के उपलक्ष्य में एक चर्चा आयोजित की गई।

वंदे मातरम (‘मैं तुम्हें प्रणाम करता हूँ, माँ’)

  • रचना एवं प्रकाशन: वंदे मातरम की रचना बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय ने लगभग 1870 -1875 के दौरान की थी
    • उन्होंने सबसे पहले इसे अपनी पत्रिका बंगदर्शन में प्रकाशित किया और बाद में इसे अपने उपन्यास आनंदमठ (1882) में शामिल किया।
    • आनंदमठ उपन्यास भीषण अकाल के बाद, अंग्रेजों के खिलाफ बंगाल में हुए संन्यासी विद्रोह (18वीं शताब्दी) पर आधारित है।
  • पहला सार्वजनिक प्रदर्शन: संस्कृत और बंगाली के मिश्रण में रचित वंदे मातरम का पहला सार्वजनिक प्रदर्शन रवींद्रनाथ टैगोर द्वारा 1896 के कांग्रेस अधिवेशन में किया गया था।
  • स्वतंत्रता संग्राम में भूमिका: लॉर्ड कर्जन के नेतृत्व में 1905 में हुए बंगाल विभाजन के दौरान, वंदे मातरम एक राष्ट्रीय युद्धघोष और प्रतिरोध का नारा बन गया, जिसने भारतीय समाज के विभिन्न वर्गों को एकजुट किया।
    • इसका प्रभाव इतना अधिक था, कि अंग्रेजों ने इस गीत पर प्रतिबंध लगा दिया।

कांग्रेस अधिवेशन, 1937 

  • केवल पहले दो श्लोक गाने का निर्णय: वर्तमान विवाद का मूल 1937 के कांग्रेस अधिवेशन में विद्यमान है, जहाँ यह निर्णय लिया गया था कि वंदे मातरम के केवल पहले दो श्लोक ही गाए जाएंगे।
  • विभाजन का कारण: पहले दो छंदों को विशुद्ध रूप से धर्मनिरपेक्ष माना जाता था, जो मातृभूमि की प्राकृतिक सुंदरता का वर्णन करते थे, जैसे- सु-जलम सु-फलम
    • हालाँकि, बाद के छंदों में मातृभूमि की तुलना दुर्गा और लक्ष्मी जैसी हिंदू देवियों से करने वाली कल्पनाएँ शामिल थी।
  • मुस्लिम लीग की आपत्ति: चूँकि इस्लाम जैसे एकेश्वरवादी धर्म मूर्ति पूजा का विरोध करते हैं, इसलिए मुस्लिम लीग ने वंदे मातरम के उत्तरार्ध के छंदों पर आपत्ति जताई
  • संकल्प: पंडित नेहरू, सुभाष चंद्र बोस और मौलाना आजाद जैसे नेताओं ने रवींद्रनाथ टैगोर से परामर्श किया, जिन्होंने केवल धर्मनिरपेक्ष प्रारंभिक छंदों को अपनाने की सलाह दी
    • राष्ट्रीय एकता बनाए रखने के लिए कांग्रेस की कार्यकारी समिति ने अक्तूबर 1937 में यह प्रस्ताव पारित किया था।

 स्वतंत्रता के बाद की स्थिति और वर्तमान संघर्ष

  • संवैधानिक दर्जा: 24 जनवरी, 1950 कोडॉ. राजेंद्र प्रसाद ने घोषणा की, कि जन गण मन राष्ट्रगान और वंदे मातरम राष्ट्रगीत होगा।
    • स्वतंत्रता संग्राम में वंदे मातरम की ऐतिहासिक भूमिका के कारण दोनों को समान दर्जा दिया गया था।
  • संसद में सरकार का दृष्टिकोण: 150वीं वर्षगांठ की चर्चा के दौरान यह तर्क दिया गया, कि 1937 में छंदों को काटने का निर्णय मुस्लिम तुष्टीकरण की शुरुआत थी जिसने मुस्लिम लीग को मजबूत किया और विभाजन के बीज बोने में मदद की।
  • विपरीत मत: उन्होंने कहा, कि उस समय प्राथमिकता राष्ट्रीय एकता बनाए रखना और विभाजन से बचना था, और सुझाव दिया कि संसद को रोजगार और अर्थव्यवस्था जैसे मौजूदा मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।

आगे की राह:

  • इतिहास का दुरुपयोग करने से बचें:इतिहास का प्रयोग विभाजन पैदा करने के लिए नहीं किया जाना चाहिए।
  • बहुलतावादी भागीदारी को पहचानें: यह स्वीकार करना आवश्यक है, कि राष्ट्रीय आंदोलन ने सामंजस्य को बढ़ावा दिया जिसमें लाखों मुसलमानों ने वंदे मातरम गाते हुए संघर्ष में भाग लिया।
  • धर्मनिरपेक्ष पहचान पर बल: 1937 के निर्णय को ’तुष्टीकरण’ के रूप में चित्रित करने से सांप्रदायिक विभाजन और गहरा होता है; सामाजिक सामंजस्यविकास और स्थिरता की रक्षा के लिए संसद को धार्मिक कथाओं की बजाय धर्मनिरपेक्ष पहचान को प्राथमिकता देनी चाहिए

निष्कर्ष

भारत को पुनर्जीवित राष्ट्रीय उद्देश्य के साथ एकता और सद्भाव को बनाएरखना चाहिए। यही वास्तव में भारत माता को सबसे बड़ा सम्मान है।

मुख्य परीक्षा हेतु अभ्यास प्रश्न:

प्रश्न: जहाँ एक ओर ‘वंदे मातरम’ ब्रिटिश उपनिवेशवाद के विरुद्ध एक सशक्त युद्धघोष के रूप में कार्य करता था, वहीं इसे राष्ट्रगान के रूप में अपनाने में राष्ट्रवाद और धार्मिक संवेदनशीलता के मध्य एक संतुलन बनाए रखना आवश्यक था। स्वदेशी आंदोलन में इस गीत की भूमिका पर चर्चा कीजिए और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस द्वारा 1937 में पारित प्रस्ताव के पीछे के तर्क का विश्लेषण कीजिए।

(10 अंक, 150 शब्द)

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