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भारत की ‘एक राष्ट्र, एक सदस्यता’ योजना

Lokesh Pal November 30, 2024 05:30 183 0

संदर्भ: 

भारत की ‘एक राष्ट्र, एक सदस्यता’  (‘One Nation, One Subscription’) (ONOS) पहल का उद्देश्य सरकारी वित्त पोषित संस्थानों के लिए एकल सदस्यता पर बातचीत करके अनुसंधान सुलभता को बढ़ाना है।

पृष्ठभूमि:

  • शोध पत्रिकाएं पाठकों और शोध संस्थानों दोनों से भारी शुल्क लेती हैं, जिससे कई संस्थानों, विशेषकर टियर 2 और टियर 3 शहरों के संस्थानों के लिए, छात्रों को गुणवत्तापूर्ण शोध सामग्री उपलब्ध कराना कठिन हो जाता है। 
  • इस असमर्थता से उनकी पढ़ाई बाधित होती है और महत्वपूर्ण शोध तक उनकी पहुँच सीमित हो जाती है। प्रकाशकों के साथ कंसोर्टिया बनाकर कम दरों पर बातचीत करने के बावजूद, टियर 1 शहरों के संस्थानों को भी चुनौतियों का सामना करना पड़ा है, क्योंकि भारी शुल्क अभी भी अहम समस्या बनी हुई है। 
  • ‘एक राष्ट्र, एक सदस्यता’ योजना के तहत, सरकार अब प्रकाशकों के साथ सीधे बातचीत करेगी, जिससे यह निश्चित होगा कि सरकारी वित्त पोषित संस्थानों में सभी छात्रों को शोध सामग्री तक समान पहुंच सुनिश्चित होगी।

‘एक राष्ट्र, एक सदस्यता’  के लाभ

  • पत्रिकाओं तक बेहतर पहुंच: महंगी पत्रिकाएं अब सरकारी वित्त पोषित संस्थानों के लिए सुलभ होंगी, जिससे शैक्षणिक पत्रों तक असमान पहुंच की समस्या का समाधान हो जाएगा।
  • केंद्रीकृत वार्ता: सरकार के नेतृत्व में, ‘एक राष्ट्र, एक सदस्यता’ योजना प्रक्रिया को सरल बनाती है, एकीकृत सदस्यता शुल्क की पेशकश करती है जिससे संस्थानों की एक व्यापक श्रेणी को लाभ हो सकता है।
  • बेहतर अनुसंधान और नवाचार: विद्वानों के लेखों और संसाधनों तक व्यापक पहुंच से अधिक मजबूत अनुसंधान वातावरण को बढ़ावा मिलता है, जिससे विभिन्न क्षेत्रों में नवाचार और शैक्षिक उत्कृष्टता सुनिश्चित होती है।

‘एक राष्ट्र, एक सदस्यता’ योजना की सीमाएं और चिंताएं

  • विशिष्टता : ‘एक राष्ट्र, एक सदस्यता’ योजना केवल सार्वजनिक रूप से वित्त पोषित संस्थानों पर लागू होगा , जिससे निजी विश्वविद्यालयों और अन्य शोधकर्ताओं को लाभ नहीं मिलेगा।
  • प्रकाशकों पर सतत निर्भरता: सार्वजनिक रूप से वित्त पोषित होने के बावजूद, अधिकांश शोध कार्य भुगतान के दायरे में रहते हैं, जिससे जनता को दो बार भुगतान करने के लिए बाध्य होना पड़ता है: पहला, शोध के लिए करों के माध्यम से धन जुटाना, तथा दूसरा,  पहुंच के लिए सदस्यता शुल्क को माध्यम बनाना। 
    • यह प्रणाली समतापूर्ण सार्वजनिक पहुंच की कीमत पर निजी प्रकाशकों के मुनाफे को बनाए रखती है।
  • धन का आवंटन: प्रमुख प्रकाशकों को भुगतान करने के लिए सरकार द्वारा तीन वर्षों में 6,000 करोड़ रुपये का आवंटन चिंता का विषय है। विशेष रूप से सकल घरेलू उत्पाद के प्रतिशत के रूप में भारत के अनुसंधान एवं विकास व्यय में स्थिरता को देखते हुए, जो पहले से ही सीमित अनुसंधान निधि पर दबाव को उजागर करता है।     
  • शिकारी प्रकाशक और मूल्य निर्धारण पर विचार: शिकारी प्रकाशक कम गुणवत्ता वाले या धोखाधड़ी वाले अध्ययनों को प्रकाशित करने के लिए अत्यधिक शुल्क लेकर शोधकर्ताओं का शोषण करते हैं, जिससे अकादमिक अखंडता कमजोर होती है। 
    • नैतिक प्रकाशन सुनिश्चित करने और शोध की विश्वसनीयता की रक्षा के लिए इस मुद्दे का समाधान करना अत्यंत महत्वपूर्ण है।
  • पारदर्शिता और लचीलेपन का अभाव: ‘एक राष्ट्र, एक सदस्यता’ योजना की पारदर्शिता को लेकर अनेक चिंताएं मौजूद है। जिसमें शामिल की जाने वाली पत्रिकाओं की सूची भी शामिल है, तथा यह भी कि क्या अप्रासंगिक या निम्न-गुणवत्ता वाली पत्रिकाओं को हटाया जाएगा या नई, उभरती हुई पत्रिकाओं को जोड़ा जाएगा।
  • आधुनिक प्रकाशन प्रवृत्तियों की अनदेखी : ‘गोल्ड’ ओपन-एक्सेस का उदय, जहां लेखक प्रकाशन के लिए भुगतान करते हैं और शोधपत्र स्वतंत्र रूप से उपलब्ध होते हैं, तथा प्रीप्रिंट (प्रारंभिक चरण के शोधपत्र) की बढ़ती लोकप्रियता ‘एक राष्ट्र, एक सदस्यता’ योजना रणनीति को इसके वर्तमान स्वरूप में कम आकर्षक बनाती है।

वैकल्पिक मॉडल: 

  • ओपन-एक्सेस मॉडल: सरकार ‘ग्रीन’ या ‘डायमंड’ ओपन-एक्सेस मॉडल का समर्थन कर सकती थी , जो डिफ़ॉल्ट रूप से अनुसंधान के लिए मुफ्त सार्वजनिक पहुंच की अनुमति देता है, या घरेलू पत्रिकाओं को बढ़ावा दे सकता था जो भारतीय विद्वानों की विशिष्ट आवश्यकताओं को पूरा करते हैं।
    • ग्रीन ओपन-एक्सेस मॉडल: शोधकर्ता अपने शोधपत्र के एक संस्करण को सार्वजनिक संग्रह या विश्वविद्यालय की वेबसाइट पर स्वयं संग्रहित करते हैं, जिससे प्रतिबंध अवधि के बाद यह सभी के लिए उपलब्ध हो जाता है।
    • डायमंड ओपन-एक्सेस मॉडल: प्रकाशक पाठकों और लेखकों अर्थात दोनों को मुफ्त पहुंच प्रदान करते हैं। प्रकाशन या सदस्यता के लिए कोई शुल्क नहीं लिया जाता है, अक्सर संस्थानों या अनुदानों द्वारा समर्थित होता है।
  • भारत को वर्तमान शोध प्रकाशन मॉडल में बदलाव की वकालत करनी चाहिए थी, क्योंकि  यह अधिकांश विकासशील देशों के लिए एक महत्वपूर्ण मुद्दा है। ओपन-एक्सेस मॉडल पर   जोर देकर, भारत सार्वजनिक रूप से वित्त पोषित शोध तक समान पहुंच सुनिश्चित कर  सकता है, जिससे पूरे देश में विद्वानों और संस्थानों को लाभ होगा।

निष्कर्ष:

‘एक राष्ट्र, एक सदस्यता’ योजना में कम वित्तपोषित सरकारी संस्थानों के लिए शोध तक पहुँच को बेहतर बनाने और व्यापक ज्ञान प्रसार को बढ़ावा देने की क्षमता है। हालाँकि, अधिक टिकाऊ ओपन-एक्सेस मॉडल और अधिक पारदर्शिता की ओर बदलाव वास्तव में न्यायसंगत और अभिनव शैक्षणिक वातावरण के लिए आवश्यक है।

मुख्य परीक्षा हेतु अभ्यास प्रश्न:

प्रश्न: “एक राष्ट्र, एक सदस्यता” (ONOS) योजना में, शोध तक सार्वजनिक पहुँच को बेहतर बनाने की क्षमता है, लेकिन यह दीर्घकालिक स्थिरता और समावेशिता के बारे में चिंताएँ भी पैदा करती है।” इस संदर्भ में ‘एक राष्ट्र, एक सदस्यता’ की खूबियों और सीमाओं पर चर्चा करें।

(15 मिनट, 250 शब्द) 

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