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वैश्विक मंच पर भारत का फार्मास्युटिकल उद्योग

Lokesh Pal September 06, 2024 05:45 179 0

संदर्भ :

हालिया वैश्विक संकटों ने भारतीय फार्मास्युटिकल (दवा) उद्योग के भीतर महत्त्वपूर्ण चुनौतियों को उजागर किया है, जिससे दवाओं की सुरक्षा और विनियमन संबंधी गंभीर चिंताएँ पैदा हुई हैं।

हालिया मुद्दा

  • हाल ही में लगभग 141 बच्चों की जहरीले कफ सिरप पीने से मौत हो गई, जिनमें से सभी की मौत गुर्दे या कई अंगों के निष्क्रिय होने के कारण हुई। जाँच में पता चला कि दिल्ली की एक दवा कंपनी दूषित कफ सिरप का स्रोत थी। ऐसी घटनाओं से सवाल उठता है कि भारत के कफ सिरप का संबंध दूसरे देशों में बच्चों की मौतों से क्यों है।
  • जम्मू में एक और घटना में दूषित दवाओं से 12 बच्चों की मौत हो गई, जिससे दवा सुरक्षा को लेकर चिंताएँ और बढ़ गई हैं।
  • इन मुद्दों के जवाब में, भारत सरकार ने हाल ही में 156 दवाओं पर प्रतिबंध लगा दिया, जिनमें सन फार्मास्यूटिकल्स, सिप्ला, डॉ. रेड्डीज लैबोरेटरीज, टोरेंट फार्मास्यूटिकल्स आदि प्रमुख कंपनियों की दवाएँ शामिल हैं। प्रतिबंधित दवाओं में पैरासिटामोल और एंटीबायोटिक्स जैसी सामान्य दवाएँ शामिल थीं, जो उनकी सुरक्षा और प्रभावशीलता पर गंभीर चिंताओं को दर्शाती हैं|
  • मरीज़ अक्सर स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं और दवा कंपनियों के बीच संभावित हितों के टकराव या अघोषित सौदों पर सवाल उठाए बिना, निर्धारित दवाओं और चिकित्सकों पर भरोसा करते हैं। जब ऐसी दवाएँ लोगों को हानि पहुँचाती हैं, तो इससे फार्मा क्षेत्र पर जनता का भरोसा कम होता है।

वैश्विक मंच पर भारत का फार्मास्युटिकल उद्योग

  • भारत का दवा उद्योग वैश्विक मंच पर महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
  • यह जेनेरिक दवाओं का विश्व का सबसे बड़ा निर्यातक है, जो 200 देशों को आपूर्ति करता है, जहाँ भारतीय जेनेरिक दवाओं की उच्च मांग है।
  • यह उद्योग भारत के निर्यात राजस्व में 20% का योगदान देता है और वैश्विक वैक्सीन मांग का 60% पूरा करता है।
  • हालाँकि, दूषित दवाओं से होने वाली मौत जैसी घटनाएँ, फार्मास्यूटिकल क्षेत्र में भारत की वैश्विक प्रतिष्ठा को गंभीर रूप से नुकसान पहुँचाती हैं। ये घटनाएँ भारत में बनी दवाओं पर भरोसा कम करती हैं और अन्तर्रष्ट्रीय बाजार में देश की प्रतिष्ठित को नकारात्मक रूप से प्रभावित कर सकती हैं।

दूषित दवाओं से भारत की वैश्विक छवि पर प्रभाव

  • 2009 में सत्यम घोटाले में कंपनी वित्तीय कदाचार और राजस्व के आँकड़ों को बढ़ा-चढ़ाकर पेश करने में शामिल थी, जिसने भारतीय आईटी कंपनियों में निवेशकों के विश्वास को काफी हद तक हिला दिया था। हालाँकि बाद में सत्यम को टेक महिंद्रा ने अपने अधीन कर लिया, लेकिन इस घोटाले ने भारतीय आईटी क्षेत्र की प्रतिष्ठा को धूमिल कर दिया।
  • यदि इस समस्या का दीर्घकालिक समाधान नहीं किया गया, तो यह भारत के दवा उद्योग को गंभीर रूप से प्रभावित कर सकता है।

प्रमुख चुनौतियाँ

  • वैश्विक प्रतियोगिता
    • भारतीय दवा उद्योग को सक्रिय दवा सामग्री (Active Pharmaceutical Ingredients – API) के उत्पादन में विशेष रूप से चीन से तीव्र वैश्विक प्रतिस्पर्द्धा का सामना करना पड़ रहा है। एपीआई मुख्य घटक हैं, जो दवाओं को प्रभावी बनाते हैं।
    • भारत इन सामग्रियों (एपीआई) के लिए चीन से आयात पर बहुत अधिक निर्भर करता है, जिससे आपूर्ति शृंखला में निर्भरता और भेद्यता बढ़ जाती है।
  • कठोर नियामकीय मानक
    • अमेरिका और यूरोप की एजेंसियों द्वारा निर्धारित कठोर विनियामक मानकों को पूरा करना एक बड़ी चुनौती है। भारतीय दवा कंपनियों को अक्सर गुणवत्ता मानकों को पूरा न करने के लिए अमेरिकी FDA (खाद्य एवं औषधि प्रशासन) से प्रतिबंध और दंड का सामना करना पड़ता है।
    • ऐसी कार्रवाइयों से न केवल भारतीय कंपनियों की वैश्विक प्रतिष्ठा प्रभावित होती है, बल्कि वित्तीय नुकसान भी होता है।
  • अनुसंधान एवं निवेश में कमी
    • वैश्विक समकक्षों की तुलना में, भारतीय दवा कंपनियाँ अनुसंधान और विकास (आरएंडडी) में कम निवेश करती हैं।
    • यह सीमित निवेश नवाचार और नई दवाओं के विकास में बाधा डालता है, जिससे वैश्विक स्तर पर उद्योग की प्रतिस्पर्द्धात्मकता प्रभावित होती है।
  • पेटेंट कानून विवाद
    • भारतीय पेटेंट कानून सस्ती दवाओं की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए बनाए गए हैं, जिससे कभी-कभी विदेशी सरकारों और दवा कंपनियों के साथ विवाद पैदा हो जाते हैं।
    • भारत सरकार ने आपातकालीन स्थितियों के दौरान पेटेंट अधिकारों की छूट की अनुमति देने वाले कानून बनाए हैं, ताकि आवश्यक दवाओं तक पहुँच आसान हो सके। हालाँकि इस उदार नीति का उद्देश्य सार्वजनिक स्वास्थ्य को प्राथमिकता देना है, लेकिन इससे अक्सर वैश्विक दवा कंपनियों और विदेशी सरकारों के साथ टकराव होता है।
    • इन विवादों के कारण अक्सर भारत के दवा क्षेत्र में विदेशी निवेश कम हो जाता है।
  • एपीआई और कच्चे माल के लिए अन्य देशों पर निर्भरता
    • कोविड-19 महामारी ने एपीआई और कच्चे माल के लिए दूसरे देशों पर भारत की जोखिम भरी निर्भरता को उजागर किया है।
    • संकट के समय, आपूर्तिकर्त्ता राष्ट्र निर्यात से मना कर सकते हैं, जिससे भारत की आवश्यक दवाओं का उत्पादन करने की क्षमता ख़तरे में पड़ सकती है। इस निर्भरता को कम करना उद्योग की स्थिरता के लिए महत्त्वपूर्ण है।
  • कार्यबल में कौशल अंतराल
    • पर्याप्त रूप से कुशल कार्यबल की कमी भारत के फार्मास्युटिकल उद्योग के विकास में बाधा डालती है, विशेष रूप से अनुसंधान एवं विकास में। नवाचार को बढ़ावा देने और वैश्विक प्रतिस्पर्द्धा को बनाए रखने के लिए अधिक कुशल श्रम शक्ति आवश्यक है।
  • सरकारी मूल्य नियंत्रण
    • भारत सरकार पर अक्सर दवाओं की कीमतों को नियंत्रित करने का आरोप लगाया जाता है, जिसके बारे में आलोचकों का तर्क है कि इससे दवा कंपनियों की लाभप्रदता सीमित हो जाती है।
    • इन मूल्य नियंत्रणों का उद्देश्य लोगों के लिए सामर्थ्य सुनिश्चित करना है, लेकिन कहा जाता है कि ये विदेशी दवा कंपनियों को भारत में निवेश करने से हतोत्साहित करते हैं।
    • इस स्थिति को देश में दवा क्षेत्र के विकास और वृद्धि में बाधा के रूप में देखा जाता है।

उपर्युक्त चुनौतियों के बावजूद, भारतीय फार्मास्युटिक्लस उद्योग में अपार संभावनाएँ हैं। रणनीतिक योजना और बढ़े हुए निवेश के माध्यम से इन मुद्दों का समाधान करना, भारत के लिए वैश्विक दवा क्षेत्र में अपने नेतृत्व को बनाए रखने और बढ़ाने के लिए आवश्यक है।

फार्मास्युटिकल क्षेत्र का आर्थिक प्रभाव

  • जीडीपी में योगदान और रोजगार सृजन : फार्मास्युटिकल क्षेत्र भारत की अर्थव्यवस्था का एक प्रमुख चालक है, जो जीडीपी में महत्त्वपूर्ण योगदान देता है। यह सीधे तौर पर लगभग 2.7 मिलियन लोगों को रोजगार से जोड़ता है तथा अप्रत्यक्ष रूप से 24 मिलियन रोजगार का समर्थन करता है, जो श्रम बाजार में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
  • शीर्ष निर्यात क्षेत्र : फार्मास्युटिकल उद्योग भारत के शीर्ष पाँच निर्यात क्षेत्रों में से एक है, जिसके द्वारा वित्त वर्ष 2022-23 के दौरान $24 बिलियन से अधिक का राजस्व उत्पन्न किया गया था। यह मजबूत निर्यात प्रदर्शन भारत के व्यापार संतुलन को मजबूत करता है और विदेशी मुद्रा भंडार को बढ़ाता है।
  • वहनीय स्वास्थ्य सेवा और वैश्विक प्रभाव : विकासशील देशों को सस्ती दवाइयाँ उपलब्ध कराकर, भारत दुनिया भर में स्वास्थ्य सेवा तक पहुँच बढ़ाता है। यह न केवल वैश्विक स्वास्थ्य परिणामों को बेहतर बनाने में मदद करता है, बल्कि भारत की सॉफ्ट पावर और कूटनीतिक संबंधों को भी मजबूत करता है।
  • राष्ट्रीय लक्ष्यों के साथ संरेखण : फार्मास्युटिकल क्षेत्र भारत के व्यापक आर्थिक और कूटनीतिक उद्देश्यों के साथ संरेखित है, जो स्वास्थ्य सेवा में वैश्विक नेता और अन्य विकासशील देशों के लिए एक विश्वसनीय भागीदार बनने के दृष्टिकोण में योगदान देता है।

आवश्यक सुझाव

  • पेटेंट सुरक्षा और सुलभता में संतुलन : भारत को बौद्धिक संपदा अधिकारों की सुरक्षा और सस्ती दवाओं तक लोगों की पहुँच सुनिश्चित करने के बीच सावधानीपूर्वक संतुलन बनाना चाहिए। इसमें उन खामियों को दूर करना शामिल है, जिनका फायदा बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ अनुचित तरीके से पेटेंट अवधि बढ़ाने के लिए उठाती हैं, जिससे आवश्यक दवाओं की अत्यधिक कीमत को रोका जा सके।
  • फार्मास्यूटिकल्स में गुणवत्ता और जवाबदेही को प्रोत्साहन : हाल की घटनाओं के मद्देनजर, फार्मास्युटिकल कंपनियों को सख्त गुणवत्ता प्रबंधन प्रणाली और आत्म-सुधार पहल अपनाने के लिए प्रोत्साहित और प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।
    • इसके साथ ही, उन्हें दंड और प्रतिबंधों के कड़े प्रवर्तन के माध्यम से किसी भी चूक के लिए जवाबदेह ठहराया जाना चाहिए, जिससे उद्योग के भीतर उत्तरदायित्व और अनुपालन की संस्कृति को बढ़ावा मिले।
  • व्यापक निगरानी : फार्मास्युटिकल उत्पादों से संबंधित संभावित समस्याओं की शीघ्र पहचान करने और उनका समाधान करने के लिए एक मजबूत निगरानी प्रणाली आवश्यक है।
    • इस प्रणाली से शीघ्र जाँच और सुधारात्मक कार्रवाई का कार्यान्वयन संभव हो सकेगा, जिससे सार्वजनिक स्वास्थ्य की सुरक्षा होगी और फार्मास्युटिकल क्षेत्र में विश्वास बना रहेगा।
  • एकीकृत नियामक प्राधिकरण की स्थापना : भारत को फार्मास्यूटिकल क्षेत्र की देख-रेख के लिए आवश्यक संसाधनों, विशेषज्ञता और स्वायत्तता के साथ एक एकल, सशक्त नियामक प्राधिकरण की स्थापना करनी चाहिए।
    • इस प्राधिकरण को विनियमों को लागू करने, अनुपालन सुनिश्चित करने और उभरती चुनौतियों का प्रभावी ढंग से समाधान करने के लिए उत्तरदायी होना चाहिए, जिससे एक अच्छी तरह से विनियमित और भरोसेमंद दवा उद्योग सुनिश्चित हो सके।

निष्कर्ष 

फार्मास्युटिकल्स उद्योग में अपने वैश्विक नेतृत्व को सुरक्षित करने के लिए, भारत को बेहतर विनियामक निरीक्षण, बेहतर गुणवत्ता नियंत्रण और अनुसंधान एवं विकास में रणनीतिक निवेश के माध्यम से इन चुनौतियों का समाधान करना चाहिए। इन सिफारिशों को लागू करके भारत जनता का विश्वास बहाल कर सकता है और वैश्विक स्वास्थ्य सेवा परिदृश्य में अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका बनाए रख सकता है।

मुख्य परीक्षा पर आधारित प्रश्न

भारतीय फार्मास्युटिकल्स उद्योग जेनेरिक दवा निर्यात में वैश्विक रूप से अग्रणी होने के बावजूद, अपनी प्रतिस्पर्द्धात्मक बढ़त बनाए रखने तथा उत्पाद की गुणवत्ता सुनिश्चित करने में महत्त्वपूर्ण चुनौतियों का सामना कर रहा है। उद्योग के सामने आने वाले प्रमुख मुद्दों की आलोचनात्मक जाँच कीजिए एवं इन चुनौतियों से निपटने हेतु संभावित उपाय सुझाइए। 

(15 अंक, 250 शब्द)

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