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वैश्विक भू-राजनीति के संवेदनशील ढाँचे के मध्य भारत की उपस्थिति

Lokesh Pal August 06, 2025 05:30 11 0

संदर्भ

ऐसे समय में जब वैश्विक भू-राजनीति नए सिरे से निर्मित हो रही है, भारत के लिए अपनी शक्ति प्रदर्शित करने और वैश्विक उपस्थिति बढ़ाने का समय आ गया है।

संयुक्त राज्य अमेरिका (यूएस) से चुनौतियाँ

  • परिवर्तित कथानक: ऑपरेशन सिंदूर के दौरान, अमेरिका सहित भारत के कई रणनीतिक साझेदार, पहलगाम हमले में शामिल संयुक्त राष्ट्र द्वारा प्रतिबंधित आतंकवादी समूहों को शरण देने के लिए पाकिस्तान की स्पष्ट रूप से निंदा करने के लिए तैयार नहीं थे
    • जबकि भारत की आतंकवादी शिविरों के खिलाफ जवाबी कार्रवाई निर्णायक थी, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने बारबार दावा किया, कि उन्होंने व्यापार को लाभ के रूप में प्रयोग करते हुए युद्धविराम घोषित किया तथा भारत की छवि को कमजोर बनाया।
    • ऑपरेशन सिंदूर के तुरंत बाद ट्रम्प द्वारा पाकिस्तान के फील्ड मार्शल असीम मुनीर को दोपहर के भोजन पर आमंत्रित करने से यह और भी जटिल हो गया।
    • इसके बावजूद, अमेरिका ने द रेजिस्टेंस फ्रंट (टीआरएफ) को एक विदेशी आतंकवादी संगठन और विशेष रूप से नामित वैश्विक आतंकवादी के रूप में नामित किया तथा संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने भी पहलगाम हमले के लिए टीआरएफ का नाम लिया।
  • आर्थिक दबाव: अमेरिकी नीतियों की अनिश्चितता स्पष्ट है
    • ऐतिहासिक निसार उपग्रह प्रक्षेपण के दिन, जो भारतअमेरिका का संयुक्त कार्यक्रम है, ट्रम्प ने भारत पर 25% टैरिफ लगाया।
    • उन्होंने व्यापार मुद्दों का राजनीतिकरण किया, रूसी तेल खरीद पर भारत को धमकी दी, इसके बावजूद कि अमेरिका स्वयं रूस से यूरेनियम, पैलेडियम, उर्वरक और रसायन आयात करता है।
    • ट्रम्प ने अमेरिकी कंपनियों से केवल अमेरिका में निवेश करने और केवल अमेरिकियों को रोजगार पर रखने का आग्रह किया है, जिसका सीधा प्रभाव भारत के आर्थिक हितों पर पड़ रहा है।
  • असंतुलित अनुबंध: अमेरिका ने अपने सहयोगियों के साथ असंतुलित सुरक्षा और व्यापार समझौते किए हैं। उसने अपनी तकनीकी दिग्गज कंपनी एनवीडिया को चीन को H20 AI चिप की बिक्री पुनः प्रारंभ करने की अनुमति दी, जबकि पहले राष्ट्रीय सुरक्षा संबंधी चिंताएँ थी, यहाँ तक कि उसने चीन को सौदे को अंतिम रूप देने के लिए और समय भी दे दिया।
    • यूक्रेन और पश्चिम एशिया संघर्षों में उलझे अमेरिका ने पूर्वी एशिया पर अपना ध्यान कम कर दिया है, तथा इस क्षेत्र में अमेरिका और चीन के बीच कोई भी व्यापक भू-राजनीतिक समझ भारत के रणनीतिक दायरे को सीमित कर देगी।
  • दक्षिण एशिया में विश्वास की कमी: दक्षिण एशिया में अमेरिका का रवैया समस्या पूर्ण रहा है। अमेरिकापाकिस्तान संबंधों का पुनरुत्थान एक सतत चिंता का विषय है, जहाँ अमेरिका पाकिस्तान के आतंकवादरोधी प्रयासों और क्षेत्रीय स्थिरता में योगदान की प्रशंसा करता है, वहीं भारत की सुरक्षा चिंताओं के प्रति स्पष्ट असंवेदनशीलता दर्शाता है।
    • बांग्लादेश में अमेरिका ने शेख हसीना विरोधी शक्तियों का समर्थन करके भारतीय हितों के विरुद्ध कार्य किया
    • इसी प्रकार, म्याँमार में सैन्यविरोधी सरकारी ताकतों को अमेरिकी और यूरोपीय समर्थन भारत के उत्तरपूर्व क्षेत्र को अस्थिर कर रहा है
    • इन कार्रवाइयों ने अमेरिका और भारत के मध्य आपसी विश्वास को तेजी से समाप्त कर दिया है, खासकर गलवान और पहलगाम जैसी घटनाओं के बाद, जहाँ क्षेत्रीय सुरक्षा पर बेहतर समन्वय की अपेक्षाएँ पूरी नहीं हुईं।

यूरोपीय संघ (ईयू) से चुनौतियाँ

  • भारत की ऊर्जा सुरक्षा को लक्ष्य बनाना: यूरोपीय संघ ऐसे समय में भारत की आयात-आधारित ऊर्जा सुरक्षा को लक्ष्य बना रहा है, जब भारत, भारतयूरोपीय संघ व्यापकआधारित व्यापार और निवेश समझौते पर वार्ता कर रहा है।
    • यूरोपीय संघ ने भारत की वाडिनार रिफाइनरी पर प्रतिबंध लगा दिया है, जिसमें रूसी रोसनेफ्ट की बड़ी हिस्सेदारी है, यह जानते हुए कि भारत में रूसी तेल को रोकने से तेल की कीमतों पर भारी दबाव पड़ेगा।
    • दूसरी ओर हंगरी, स्लोवाकिया, बेल्जियम, स्पेन और अन्य देश छूट प्राप्त करके या मौजूदा अनुबंधों के तहत, पाइपलाइनों के माध्यम से और एलएनजी के रूप में रूसी तेल का आयात कर रहे हैं।
    • रूस के एलएनजी निर्यात का 51% यूरोप को प्राप्त होता है।
  • व्यापार बाधाएँ: भारत के विरुद्ध यूरोपीय संघ का कार्बन सीमा कर तथा अन्य डिजिटल एवं व्यापार बाधाएँ बनी हुई हैं।
  • भारत को उम्मीद है, कि हाल ही में संपन्न भारतब्रिटेन व्यापक आर्थिक एवं व्यापार समझौता (सीईटीए) यूरोपीय संघ को विद्यमान व्यापार वार्ताओं में अपनी माँगों को कम करने के लिए बाध्य करेगा।

चीन से चुनौतियाँ

  • अलगाव संबंधी प्रयास: चीन भारत को अलग-थलग करने के लिए सक्रिय रूप से प्रयास कर रहा है। उसने पाकिस्तान और बांग्लादेश के साथ एक त्रिपक्षीय पहल का प्रस्ताव रखा है, हालाँकि बांग्लादेश अभी तक इस पर सहमत नहीं हुआ है।
    • चीन, बांग्लादेश को लालमोनिरहाट में द्वितीय विश्व युद्ध के समय के एयरबेस को पुनः सक्रिय करने में भी सहायता कर रहा है, जो भारत के रणनीतिक रूप से महत्त्वपूर्ण सिलीगुड़ी कॉरिडोर के अत्यंत करीब है।
  • विरोधियों को समर्थन और सीमा संबंधी दावे: ऑपरेशन सिंदूर के दौरान चीन ने पाकिस्तान को व्यापक समर्थन प्रदान किया।
    • इसने अरुणाचल प्रदेश के भीतर स्थानों के लिए मनमाने ढंग से मंदारिन नामों का मानकीकरण भी किया है, जिससे उसका दावा पुष्ट होता है
    • दलाई लामा की संस्था के भविष्य को नियंत्रित करना है तथा इसका उद्देश्य है, कि उनका उत्तराधिकारी भारत की बजाय चीन से हो।
  • आर्थिक दबाव और बुनियादी ढाँचा परियोजनाएँ: भारत के साथ अपने वृहद व्यापार अधिशेष का लाभ उठाते हुए चीन भारत की महत्त्वपूर्ण आपूर्ति शृंखलाओं पर दबाव डाल रहा है, जिसमें दुर्लभ खनिज, उर्वरक, सक्रिय औषधि अवयव, सुरंग खोदने वाली मशीनें और तकनीकी कार्मिक शामिल हैं, जिन पर भारत निर्भर है।
  • एक और चिंता का विषय यह है, कि चीन भारतीय सीमा के निकट तिब्बत में यारलुंग जांग्बो (ब्रह्मपुत्र) नदी पर अपना सबसे बड़ा बाँध बनाने की योजना बना रहा है

आगे की राह

भारत वर्तमान में अप्रत्याशित अमेरिका, अनुत्तरदायी यूरोपीय संघ और आक्रामक चीन का मुकाबला करने के लिए एक संतुलन बनाने का प्रयास कर रहा है। इसके दृष्टिकोण को पारंपरिक ढाँचों से आगे बढ़ना होगा:

  • वैश्विक संघर्षों पर अपने दृष्टिकोण पर पुनर्विचार: भारत को वैश्विक संघर्षों में हाशिए पर बने रहने के अपने रुख पर गंभीरता से पुनर्विचार करना चाहिए। विश्व संघर्षों पर सक्रिय रुख न अपनाने का उसका समग्र दृष्टिकोण उसके व्यापक हितों को नुकसान पहुँचा सकता है और जब तक वह हाशिए पर रहेगा, तब तक उसके भू-राजनीतिक प्रभाव को कम कर सकता है।
  • उदाहरण:
    • इजरायलगाजा युद्ध के मुद्दे पर, जो एक बहुआयामी मानवीय त्रासदी है, काफी हद तक चुप रहा है, भले ही वह खुले तौर पर इजरायल का समर्थन नहीं करता हो।
    • भारत हाल ही में हुए इजरायलईरान संघर्ष और अमेरिकी बमबारी पर भी काफी हद तक चुप रहा, जबकि दोनों युद्धरत पक्षों के साथ उसके महत्त्वपूर्ण संबंध हैं और खाड़ी में उसकी बड़ी हिस्सेदारी है।
    • यूक्रेन संघर्ष पर संयुक्त राष्ट्र के मतदान में भाग लेना सही था।
  • ऑपरेशन सिंदूर से सबक: ऑपरेशन सिंदूर ने भारत को दिखाया है, कि अगर वह अपने संघर्षों और मुद्दों में अपने सहयोगियों की अधिक भागीदारी चाहता है, तो उसे वैश्विक संघर्षों और मुद्दों में और अधिक भागीदारी करनी होगी। अंतर्राष्ट्रीय संबंध प्रायः ‘सही’ या ‘गलत’ की अमूर्त धारणाओं की बजाय रणनीतिक गठबंधनों और समूह की शक्ति को प्राथमिकता देते हैं।
  • दृढ़ता और रणनीतिक स्वायत्तता: भारत को अपनी रणनीतिक स्वायत्तता की रक्षा के लिए वैश्विक संघर्षों में अधिक दृढ़ता दिखानी होगी।
    • इसमें अमेरिका के साथ कठिन वार्ता में शामिल होना तथा वर्तमान परिवेश में विश्वास निर्माण के लिए रणनीतिक रूप से समझौतों पर हस्ताक्षर करना शामिल है।
    • संबंधों को और बिगड़ने से रोकने तथा क्वाड शिखर सम्मेलन के लिए अमेरिकी राष्ट्रपति की यात्रा को प्रोत्साहित करने के लिए भारत-अमेरिका व्यापार समझौते को शीघ्रता से पूर्ण करना महत्त्वपूर्ण है।
  • बहुसंरेखण को अपनाना: भारत को केवल अमेरिका पर निर्भर नहीं रहना चाहिए।
    • उसे ब्रिक्स (भारत में 2026 शिखर सम्मेलन के साथ), शंघाई सहयोग संगठन (SCO) जैसे मंचों में अपनी स्थिति सुदृढ़ करने की आवश्यकता है तथा क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (RCEP) के छूटे हुए अवसर को स्वीकार करते हुए पूर्वी एशिया के साथ सक्रिय रूप से जुड़ने की जरूरत है

निष्कर्ष

यह धारणा, कि भारत इस विखंडित विश्व में केवल “अपना सिर झुकाए” रह सकता है तथा केवल आर्थिक विकास पर ध्यान केंद्रित कर सकता है, पुरानी हो चुकी है।

  • भूराजनीति, दबाव, धमकियाँ और संरक्षणवाद अब पारंपरिक व्यापार मानदंडों को दरकिनार करते हुए आर्थिक एवं तकनीकी परिणामों को परिभाषित कर रहे हैं।
  • अतः भारत के आर्थिक और तकनीकी लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए एक परिष्कृत और मुखर भू-राजनीतिक रणनीति की आवश्यकता है।

मुख्य परीक्षा हेतु अभ्यास प्रश्न

परिवर्तित भू-राजनीति के बीच, भारत को अप्रत्याशित अमेरिका और आक्रामक चीन से चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। इन खतरों का विश्लेषण कीजिए और भारत के लिए रणनीतिक स्वायत्तता को बनाए रखते हुए इनके प्रभावों को संतुलित करने के उपाय सुझाइए।

(10 अंक, 150 शब्द)

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