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भारत की अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था

Lokesh Pal April 11, 2024 05:00 152 0

प्रारंभिक परीक्षा के लिए प्रासंगिकता: भारतीय अंतरिक्ष नीति 2023,  अंतरिक्ष क्षेत्र में FDI

मुख्य परीक्षा के लिए प्रासंगिकता: भारतीय अंतरिक्ष क्षेत्र से संबंधित मुद्दे

संदर्भ :

विश्व आर्थिक मंच (WEF) की हालिया रिपोर्ट के अनुसार वैश्विक अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था के 2035 तक 1.8 ट्रिलियन डॉलर के मूल्य तक पहुँचने की संभावना जताई गई है , यह विश्व के सेमीकंडक्टर उद्योग के पैमाने पर लगभग समान है।

  • “अंतरिक्ष: वैश्विक आर्थिक विकास अवसर के लिए $1.8 ट्रिलियन (Space: The $1.8 Trillion Opportunity for Global Economic Growth) शीर्षक वाली रिपोर्ट विश्व आर्थिक मंच (WEF) और परामर्शदात्री फर्म मैकिन्से एंड कंपनी द्वारा प्रस्तुत की गई है।

अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था के संचालक:

  • प्रक्षेपण लागत : उपग्रहों और रॉकेटों की प्रक्षेपण लागत में गिरावट दर्ज की गई है। 
    • इसमें पिछले 20 वर्षों में तकरीबन 10 गुना तक की कमी दर्ज की गई है।
  • डेटा और कनेक्टिविटी: वर्ष 2035 तक संबंधित माँग में 60 प्रतिशत तक की वृद्धि के कारण डेटा और कनेक्टिविटी की कीमत में भी कम-से-कम 10 प्रतिशत तक की गिरावट आने की संभावना है।
  • वाणिज्यिक नवाचार: वाणिज्यिक नवचाचार यथा पृथ्वी-अवलोकन प्रौद्योगिकी के रिज़ॉल्यूशन में सुधार के कारण उक्त प्रौद्योगिकियों तक पहुँच की कीमत में कमी आ जाती है।
  • प्रौद्योगिकियों का विविधीकरण: अंतरिक्ष-आधारित प्रौद्योगिकियों और अंतरिक्ष पर्यटन जैसी गतिविधियों का तेजी से विविधीकरण हो रहा है।
  • जागरूकता: हाल के दिनों में अंतरिक्ष के प्रति सांस्कृतिक जागरूकता और सामान्य उत्साह, भविष्य की पीढ़ियों के लिए अंतरिक्ष में रुचि के एक प्रमुख संचालक के रूप में कार्य करेंगे ।
  • विस्तार :
    • विभिन्न उद्योग अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी के तीन प्रमुख पहलुओं में सुधार करके विकास और विविधीकरण के संचालक और लाभार्थी दोनों बन रहे हैं:
      • समानीकरण (Harmonisation),
      • प्रयोज्यता और पहुँच में आसानी बढ़ाना (Increasing ease of usability and accessibility)
      • बढ़ती प्रौद्योगिकी के बारे में शिक्षा और जागरूकता (Education and awareness of growing technology)।
  • भारत में कई स्टार्ट-अप के कारण नई अंतरिक्ष उद्यमिता का विकास हुआ है जो न्यू स्पेस (New Space) के उपयोग द्वारा बिजनेस-टू-बिजनेस और बिजनेस-टू-कंज्यूमर के भाग के रूप में एंड-टू-एंड सेवाओं के महत्त्व को उजागर करते हैं ।

भारत की अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था:

  • वैश्विक अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था में हिस्सेदारी: वर्तमान में, भारत के अंतरिक्ष क्षेत्र का हिस्सा वैश्विक अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था का लगभग दो प्रतिशत है।
    •  भारत की अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था के वर्ष 2033 तक 44 बिलियन डॉलर तक पहुँचने की क्षमता है।
  •  भारतीय अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था का आकार: एक अनुमान के अनुसार भारतीय अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था का आकार लगभग 8.4 बिलियन अमरीकी डालर है। 
    • इसमें से, मुख्य रूप से संचार और डेटा अनुप्रयोगों का डाउनस्ट्रीम सेवा बाजार का हिस्सा कुल अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था का लगभग 80% है, जिसमें निजी क्षेत्र एक प्रमुख योगदानकर्ता है।
  • चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर (CAGR): विभिन्न बाजार सर्वेक्षणों के अनुसार, अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था में 8% की औसत CAGR के साथ वृद्धि हुई है।
  • स्पेस स्टार्ट-अप की संख्या में वृद्धि: DPIIT स्टार्ट-अप इंडिया पोर्टल के अनुसार, स्पेस स्टार्ट-अप की संख्या 2014 में सिर्फ 1 से बढ़कर 2023 में 189 हो गई है।
    • भारतीय अंतरिक्ष स्टार्ट-अप में निवेश 2023 में बढ़कर 124.7 मिलियन डॉलर हो गया है।
  • निजी क्षेत्र की बढ़ती भूमिका: निजी कंपनियों द्वारा उपग्रह-आधारित संचार समाधान, उपग्रह एकीकरण और परीक्षण सुविधाओं की खोज की जा रही हैं।
  • सैटेलाइट लॉन्च में वृद्धि: इसरो द्वारा किए गए लॉन्च की संख्या में वृद्धि हुई है। 1990 के दशक से इसरो द्वारा लॉन्च किए गए 424 विदेशी उपग्रहों में से, 389 (90% से अधिक) विगत  नौ वर्षों में लॉन्च किए जा चुके हैं ।
    •  भारत ने विदेशी उपग्रहों के प्रक्षेपण द्वारा 174 मिलियन डॉलर अर्जित किया हैं।

भारत में अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने के लिए उठाए गए कदम:

  • भारतीय अंतरिक्ष नीति, 2023: यह नीति अंतरिक्ष गतिविधियों से संबंधित सभी क्षेत्रों में शुरूआत से अंत तक गैर-सरकारी संस्थाओं (NGE) की भागीदारी को सक्षम बनाती है।
    • स्वचालित मार्ग के तहत FDI : यह नीति उपग्रहों, धरातलीय खंडों और उपयोगकर्ता खंडों हेतु घटकों, प्रणालियों और उप-प्रणालियों के निर्माण के लिए  स्वचालित मार्ग से 100 प्रतिशत तक निवेश की अनुमति देती है।
      •  संपूर्ण उपग्रह के निर्माण और संचालन के लिए स्वचालित मार्ग के तहत 74 प्रतिशत तक के निवेश की अनुमति प्रदान की गई है ।
    • सरकारी अनुमोदन के तहत FDI मानदंड: नियत सीमा के अलावा किसी भी चीज़ के लिये सरकारी अनुमोदन प्रक्रिया से गुजरना होगा।
      •  वर्तमान नीति के तहत, उपग्रहों के निर्माण और संचालन में किसी भी विदेशी निवेश को केवल सरकारी मंजूरी के साथ ही अनुमति दी जाती है।
  • ASAT क्षमता: 27 मार्च, 2019 को, भारत द्वारा ‘मिशन शक्ति’ नामक एक ऑपरेशन कोड के दौरान एक एंटी-सैटेलाइट हथियार का परीक्षण किया गया था ।
  • IndSpaceX: प्रथम टेबल-टॉप अंतरिक्ष युद्ध अभ्यास  ‘IndSpaceX’  के तहत  उन्नत बुद्धिमत्ता और मारक क्षमता हेतु  एकीकृत उपग्रह संचार और टोही विमान का प्रदर्शन किया गया ।
  • रक्षा अंतरिक्ष एजेंसी (DSA): वर्ष 2019 में, भारत द्वारा  DSA और रक्षा अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (DSRO) की स्थापना की गई ।

अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था द्वारा प्रस्तुत अवसर:

  • वैज्ञानिक ज्ञान को आगे बढ़ाना: अंतरिक्ष स्टेशन का निर्माण भारत के लिये अत्यधिक महत्त्व का है, यह भारत को खगोल विज्ञान, जीव विज्ञान, भौतिकी, चिकित्सा और इंजीनियरिंग जैसे विभिन्न क्षेत्रों में अत्याधुनिक अनुसंधान करने में सक्षम बनाता है।
  • राष्ट्र की प्रतिष्ठा में अभिवृद्धि : यह अंतरिक्ष में भारत की उपलब्धियों और क्षमताओं को प्रदर्शित करेगा और मानवता से संबंधित क्षमताओं को आगे बढ़ाने में इसकी प्रतिबद्धता और नेतृत्व को दर्शाएगा।
  • वैश्विक सहयोग और शांति को बढ़ावा देना: यह अंतरिक्ष में अन्य देशों और संगठनों के साथ सहयोग और आदान-प्रदान के अवसर प्रदान करेगा।
  • अंतरिक्ष खनन: क्षुद्रग्रह, उद्योगों के लिए महत्वपूर्ण माने जाते हैं क्योंकि वे बहुमूल्य संसाधनों से समृद्ध होते हैं। प्रचुर भंडार के साथ ही वे एक विकल्प भी प्रदान करते हैं क्योंकि यहाँ होने वाले निष्कर्षण के दौरान वन्यजीव संबंधी कोई क्षति नहीं होती, जिससे पर्यावरणीय चिंताओं का भी समाधान होता हैं।

चुनौतियाँ:

  • अंतरिक्ष मलबा: नासा के अनुसार, एक मिलीमीटर या उससे बड़े आकार के अंतरिक्ष मलबे के 100 मिलियन से अधिक टुकड़े पृथ्वी की परिक्रमा कर रहे हैं।
  • विनियामक पारिस्थितिकी तंत्र का अभाव: विनियामक स्पष्टता के अभाव की वजह से  भारत में स्टार्ट-अप्स अभी भी आगे नहीं बढ़ पाए हैं।
  • साइबर हमले: अंतरिक्ष एजेंसियों सहित महत्वपूर्ण बुनियादी ढाँचे पर संभावित हमलों के बारे में भारतीय डेटा सुरक्षा परिषद द्वारा उठाई गई चिंताओं के बावजूद, राष्ट्रीय साइबर सुरक्षा रणनीति के मसौदे में अंतरिक्ष सुरक्षा पर ध्यान केंद्रित नहीं किया गया है।
  • वैश्विक अर्थव्यवस्था में न्यूनतम हिस्सेदारी: वैश्विक बाजार में भारत की हिस्सेदारी केवल 2% अनुमानित है।
  • अज्ञात विसंगतिपूर्ण घटना (UAP): भारत-तिब्बत सीमा पुलिस (ITBP) द्वारा लगातार UAP देखे जाने की सूचना दी जा चुकी  है। UAP मुद्दे को संबोधित करने में भारत अन्य देशों से काफी पीछे है।
    • UAP, गैर-मानवीय (एलियन) बुद्धिमत्ता से संबंधित उड़ने वाली वस्तुओं का द्योतक है।
  • मानव अंतरिक्ष उड़ान विशेषज्ञता: भारत में मानव अंतरिक्ष उड़ान से संबंधित अनुभव की कमी है, जो अंतरिक्ष स्टेशन के निर्माण और संचालन के लिए आवश्यक है।
  • अंतरिक्ष यात्रियों के स्वास्थ्य को समस्या: सही सुरक्षा उपकरणों और सावधानियों के बिना अंतरिक्ष वातावरण अंतरिक्ष  यात्रियों के स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो सकता है।

आगे की राह :

  • राष्ट्रीय साइबर सुरक्षा रणनीति में अंतरिक्ष को एकीकृत करना: भारत की राष्ट्रीय अंतरिक्ष नीति में महत्वपूर्ण साइबर सुरक्षा उपायों को राष्ट्रीय साइबर सुरक्षा रणनीति और राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति के साथ संरेखित करने की आवश्यकता है।
    • भारत को आक्रामक और रक्षात्मक क्षमताओं को बढ़ाने के लिए रक्षा और गृह मंत्रालय के तहत साइबर सुरक्षा रेड और ब्लू टीमिंग अभ्यास (Cyber Security Red and Blue Teaming Practice) को शामिल करते हुए बैंगनी क्रांति (Purple Revolution) को लागू करने की आवश्यकता है।
    • इसरो द्वारा प्रति दिन तकरीबन 100 से अधिक साइबर हमलों से बचाव किया जाता है।
    • भारत को अमेरिका का अनुकरण करने और सैटेलाइट हैकिंग सैंडबॉक्स तैयार करने की आवश्यकता है, जिसका उपयोग सिस्टम की कमियों का पता लगाने के लिए किया जा सकता है।
  • अंतरिक्ष बजट आवंटन में वृद्धि : अनुसंधान केंद्रों और अंतरिक्ष मानकों को बढ़ावा देने के लिए अंतरिक्ष बजट आवंटन को सकल घरेलू उत्पाद के 0.04 प्रतिशत से बढ़ाकर कम-से-कम 0.5 प्रतिशत किया जाना चाहिए।
  • भारतीय अंतरिक्ष प्रतिरोध क्षमता एजेंसी: भारत को क्वाड के अंतरिक्ष सहयोग के अंतर्गत  अंतरिक्ष आपूर्ति-श्रृंखला संबधी लोचता और सुरक्षा में वृद्धि करनी चाहिए एवं संयुक्त निगरानी और घटना अनुक्रिया अभ्यास के लिए एक केंद्रीय भारतीय अंतरिक्ष प्रतिरोध क्षमता एजेंसी की स्थापना करनी चाहिए।
  • UAP के लिए स्थायी निकाय: भारत को UAP अनुसंधान के लिए अमेरिका और ब्रिटेन की तरह रक्षा मंत्रालय या फ्रांसीसी मॉडल पर इसरो के तहत एक स्थायी निकाय स्थापित करना चाहिए।
  • अंतरिक्ष मलबे से सुरक्षा: वर्तमान में, भारत अपनी कक्षीय एसेट्स (Orbital assets) के संबंध में खतरों का पता लगाने के लिए नासा द्वारा संकलित आँकड़ों  पर निर्भर है। इस प्रकार, अंतरिक्ष मलबे से सुरक्षा के लिए संभावित खतरनाक मलबे को ट्रैक करने और कार्यात्मक हार्डवेयर के वर्तमान रूप को बदलने की आवश्यकता है।
    • इंटर एजेंसी स्पेस डेब्रिस कोऑर्डिनेशन कमेटी (IADC) के साथ सहयोग और ऐसे उपग्रह निकायों का विकास करने की आवश्यकता है  ।
  • अंतरिक्ष क्षमताओं को आगे बढ़ाना: अंतरिक्ष क्षमताओं का विस्तार, जैमिंग उपकरणों में परिष्कृत अंतरिक्ष-आधारित हथियार विकसित करके किया जा सकता है, जिसमें हार्ड किल गाइडेड मिसाइल सिस्टम (Hard kill guided missile system), एड ऊर्जा हथियार (Ed Energy Weapon) और अंतरिक्ष-से-अंतरिक्ष संचालन के लिए विद्युत चुम्बकीय पल्स सिस्टम शामिल हैं।

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