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भारत का ‘स्टील फ्रेम’ तथा उसमें सुधार की आवश्यकता

Lokesh Pal December 24, 2024 05:15 8 0

संदर्भ:

वर्तमान समय में भारत की आर्थिक वृद्धि उल्लेखनीय है, लेकिन आय असमानता, निम्न निवेश और नौकरशाही की अक्षमता जैसी चुनौतियाँ अभी भी विद्यमान हैं, साथ ही ये चुनौतियाँ प्रशासनिक सुधारों की आवश्यकता को रेखांकित करती हैं, मुख्य रूप से भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS) के भीतर यह अधिक समस्यापूर्ण है ।

औपनिवेशिक विरासत सहित वर्तमान सीमाएँ

  • ऐतिहासिक पृष्ठभूमि : IAS, जिसे सामान्यतः भारत का “स्टील फ्रेम” के रूप में जाना जाता है, इसका विकास औपनिवेशिक भारतीय सिविल सेवा (ICS) से हुआ था और यह स्वतंत्रता के पश्चात् भारत की प्रशासनिक प्रणाली का आधार बन गया।
  • अप्रभावशीलता : राजनीतिक हस्तक्षेप, औपनिवेशिक परिदृश्य और विशेषज्ञता की कमी ने इसकी प्रभावशीलता को कमज़ोर कर दिया है।
  • राजनीतिकरण और भ्रष्टाचार : भ्रष्टाचार, अक्षमता और प्रशासनिक स्वतंत्रता की कमी बनी हुई है | भारत विश्व बैंक की सरकारी प्रभावशीलता माप (World Bank’s government effectiveness measure) में मध्यम स्थान पर है।
  • अक्षमता : अधिकारियों के बार-बार स्थानांतरण की वजह से उन्हें परिस्थितियों को पूरी तरह से समझने, निर्णय लेने और डोमेन विशेषज्ञता विकसित करने हेतु अपर्याप्त समय मिलता है।
  • केंद्रीकृत निर्णय प्रक्रिया : भारत की केंद्रीकृत शासन व्यवस्था ने तेजी से आर्थिक सुधारों को जन्म दिया है, लेकिन नीति कार्यान्वयन में बाधाएँ भी पैदा की हैं। 
    • नौकरशाहों की विशेषज्ञता को किनारे करने से नीतियों के प्रभावी क्रियान्वयन में बाधा उत्पन्न हुई है। 
      • उदाहरण: आलोचकों का तर्क है कि प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) के भीतर सत्ता को केंद्रीकृत करने से वरिष्ठ नौकरशाहों की शक्ति और क्षमता कम हो सकती है। 

विभिन्न प्रशासनिक सुधार 

  • ऐतिहासिक प्रयास : स्वतंत्रता के बाद से 50 से अधिक आयोगों ने विभिन्न सुधार संबंधी प्रस्ताव प्रस्तुत किए हैं । 
    • पहला प्रशासनिक सुधार आयोग : वर्ष 1966 में पहले प्रशासनिक सुधार आयोग (एआरसी) सहित अन्य आयोगों ने नौकरशाही के भीतर विशेषज्ञता, जवाबदेही और योग्यता-आधारित पदोन्नति के महत्त्व पर बल दिया है। 
    • द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग : वर्ष 2005 में स्थापित दूसरे एआरसी ने प्रशासनिक सुधारों के लिए एक योजना प्रस्तावित की, जिसमें सिविल सेवाओं में प्रवेश के लिए आयु कम करने, प्रदर्शन-आधारित पदोन्नति और लेटरल एंट्री (पार्श्व प्रवेश) शुरू करने तथा मनमाने तबादलों के विरुद्ध सुरक्षा उपाय करने के सुझाव शामिल थे। 
      • हालाँकि, नौकरशाही बाधाओं और राजनीतिक विरोध के कारण इनमें से कई सिफारिशें लागू नहीं की गई हैं। 
  • पार्श्व प्रवेश (लेटरल एंट्री) : आईएएस-केंद्रित मॉडल को तोड़ने के लिए, सरकार ने वरिष्ठ नौकरशाही पदों के लिए लेटरल एंट्री की व्यवस्था शुरू की है। 
    • 2018 से भर्ती : वर्ष 2018 से निजी उद्योग जैसे क्षेत्रों से विशिष्ट ज्ञान वाले 57 अधिकारियों की भर्ती की गई है।
    • यूपीएससी द्वारा हाल ही में की गई घोषणा : संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) ने हाल ही में विभिन्न मंत्रालयों में संयुक्त सचिवों और निदेशकों सहित 45 लेटरल एंट्री वाले पदों की घोषणा की है।
    • महत्त्वपूर्ण परिवर्तन : लेटरल एंट्री ने उच्च-स्तरीय पदों पर आईएएस के प्रभुत्व को कम कर दिया है, 2023 तक केंद्र में केवल 33% संयुक्त सचिव आईएएस से हैं।
  • पार्श्व प्रवेश का विरोध : इस पहल को आलोचकों से प्रतिरोध का सामना करना पड़ा है, जो तर्क देते हैं कि यह मनोबल को कमजोर कर सकता है और पदोन्नति प्रोत्साहन को बाधित कर सकता है।
    • विपक्ष : विपक्षी दलों ने हाशिए पर व्याप्त समूहों के लिए आरक्षण प्रावधानों की कमी संबंधी चिंता भी जताई है। परिणामस्वरूप सरकार ने लेटरल एंट्री के प्रस्ताव को वापस ले लिया है।

अमेरिकी सरकार दक्षता विभाग मॉडल

  • अमेरिकी मॉडल : अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प द्वारा प्रस्तावित “सरकारी दक्षता विभाग” (DOGE) का उद्देश्य है:
    • एलन मस्क और विवेक रामास्वामी जैसे नेताओं की विशेषज्ञता का उपयोग करते हुए अनावश्यक संस्थानों को समाप्त करना
    • अनावश्यक व्यय में कटौती करना
    • जवाबदेही का परिचय देना
  • भारत के लिए सबक : भारत में एक समान सलाहकार निकाय सिविल सेवा के भीतर अक्षमताओं की पहचान कर सकता है, डेटा-संचालित निर्णय को बढ़ावा दे सकता है तथा नौकरशाही के प्रदर्शन का मूल्यांकन करने के लिए एक व्यवस्थित संरचना विकसित कर सकता है।

सुधार संबंधी चुनौतियाँ

  • संस्थागत प्रतिरोध : भारत की नौकरशाही में सुधार लाना चुनौतीपूर्ण है, क्योंकि यहाँ वरिष्ठता-आधारित व्यवस्था, राजनीतिक हस्तक्षेप और सेवा के भीतर से प्रतिरोध व्याप्त है।
  • प्रवर्तन में कमी : इसी प्रकार, न्यायिक हस्तक्षेप, जैसे- भारत के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा 2013 में सिविल सेवा बोर्ड स्थापित करने के निर्देश का क्रियान्वयन में कमी के कारण बहुत कम प्रभाव पड़ा है।
  • विधेयकों का क्रियान्वयन :  सिविल सेवा मानक, प्रदर्शन और जवाबदेही विधेयक (2010) जैसे प्रस्ताव, जिनका उद्देश्य सिविल सेवकों  को मनमाने तबादलों से बचाना था, विधायी अधर में लटके हुए हैं।
  • सुधार संबंधी बहुआयामी दृष्टिकोण : सिविल सेवा की अक्षमताओं को दूर करने के लिए भारत को एक व्यापक सुधार रणनीति की आवश्यकता है, जो योग्यता-आधारित भर्ती, प्रदर्शन-संबंधी पदोन्नति और नीति निर्माण भूमिकाओं में विशेषज्ञता को प्राथमिकता दे।
    • इसके अतिरिक्त नौकरशाही के प्रदर्शन का आकलन, सूचित निर्णय लेने और शासन में सुधार करने हेतु एक मजबूत डेटा अवसंरचना की आवश्यकता है।

निष्कर्ष

निष्कर्षतः देश की विस्तृत सामाजिक, राजनीतिक तथा आर्थिक क्षमता का प्रयोग करने के लिए भारतीय सिविल सेवा में सुधार वांक्षनीय है। प्रशासनिक सुधार के लिए योग्यता, विशेषज्ञता और जवाबदेहिता पर केंद्रित एक बहुआयामी दृष्टिकोण,  प्रशासन को सुदृढ़ करने और यह सुनिश्चित करने के लिए महत्त्वपूर्ण है, कि यह भारतीय लोगों की आवश्यकताओं को पूरा कर सके ।

मुख्य परीक्षा हेतु अभ्यास प्रश्न 

जबकि भारतीय ‘स्टील फ्रेम’ अभिशासन के लिए महत्त्वपूर्ण रहा है, यह राजनीतिकरण और अकुशलता की आधुनिक चुनौतियों का सामना करता है। दिए गए कथन के आलोक में परिवर्तन हेतु लेटरल एंट्री पहलों सहित प्रशासनिक सुधारों की आवश्यकताओं का आलोचनात्मक विश्लेषण कीजिए । संस्थागत शक्ति को संरक्षित करते हुए नौकरशाही के आधुनिकीकरण के लिए एक संतुलित दृष्टिकोण का सुझाव प्रस्तुत कीजिए ।

(15 अंक, 250 शब्द)

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