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अंतरिक्ष के क्षेत्र में अग्रणी देश के रूप में भारत के कदम और भी मजबूत होते जा रहे हैं

Lokesh Pal December 11, 2024 05:45 41 0

संदर्भ:

भारत का लक्ष्य अगले दो दशकों में अपने महत्वाकांक्षी अंतरिक्ष के लक्ष्यों को प्राप्त करना है, जिसमें ISRO के नेक्स्ट जेनरेशन लॉन्च व्हीकल (NGLV) जैसे पुन: प्रयोज्य रॉकेट पर ध्यान केंद्रित करना इत्यादि शामिल है। अंतरिक्ष में रणनीतिक स्वायत्तता सुनिश्चित करने के लिए, भारत को ऐसे और रॉकेट विकसित करने के लिए अपने निजी क्षेत्र को भी शामिल करना चाहिए।

भारत के अंतरिक्ष विकास की पृष्ठभूमि 

  • पहला साउंडिंग रॉकेट: 21 नवंबर 1963 को भारत का पहला साउंडिंग रॉकेट (अमेरिका निर्मित नाइक-अपाचे रॉकेट) तिरुवनंतपुरम के पास थुंबा से प्रक्षेपित किया गया था ।

नोट : साउंडिंग रॉकेट एक या दो चरण वाले ठोस प्रणोदक रॉकेट होते हैं जिनका उपयोग ऊपरी वायुमंडलीय क्षेत्रों की जाँच और अंतरिक्ष अनुसंधान के लिए किया जाता है।

  • आर्यभट्ट उपग्रह: 19 अप्रैल 1975 को, भारत ने अपना पहला उपग्रह, आर्यभट्ट प्रक्षेपित किया, जिसका नाम प्रसिद्ध भारतीय खगोलशास्त्री के नाम पर रखा गया। 
    • इसे पूरी तरह से भारत में ही डिजाइन और निर्मित किया गया था, इसका प्रक्षेपण कपुस्टिन सोवियत कोस्मोस-3एम रॉकेट (Soviet Kosmos-3M rocket from Kapustin) द्वारा किया गया था।
  • रोहिणी उपग्रह: 18 जुलाई, 1980 को, भारत ने श्रीहरिकोटा रेंज (SHAR) से SLV-3 को सफलतापूर्वक लॉन्च किया, जिससे रोहिणी उपग्रह (RS-1) को कक्षा में स्थापित किया गया।
    • SLV-3 सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल-3 (SLV-3) भारत का पहला प्रायोगिक उपग्रह प्रक्षेपण यान था।
  • इसरो का विकास और महत्वाकांक्षी योजनाएँ: शुरू में आत्मनिर्भरता हासिल करने पर केंद्रित, इसरो ने अंतरिक्ष अन्वेषण के लिए प्रौद्योगिकी विकसित करने में उल्लेखनीय प्रगति की है।
    • वर्तमान में संगठन अपनी अंतरिक्ष क्षमताओं का विस्तार करने पर केंद्रित है, जिसमें मनुष्यों को अंतरिक्ष में भेजने के लिए गगनयान मिशन और अगले दशक के अंत तक एक अंतरिक्ष स्टेशन और चंद्र अन्वेषण और भविष्य की अन्य प्रमुख अन्तरिक्ष संबंधी योजनाएँ शामिल हैं।

भारत के अंतरिक्ष भविष्य के लिए रोडमैप

  • भारत का अंतरिक्ष कार्यक्रम अधिक महत्वाकांक्षी लक्ष्यों की ओर बढ़ रहा है, जिसमें शामिल हैं:
    • मानव रहित चंद्र मिशन: आवश्यक प्रौद्योगिकियों को पूर्ण करने के लिए चंद्रमा पर कई मानव रहित मिशन संचालित किए जाएँगे।
    • मानव-केंद्रित प्रौद्योगिकियाँ: सुरक्षित और टिकाऊ अंतरिक्ष यात्रा के लिए मानव-केंद्रित प्रौद्योगिकियों के क्षेत्र में सफलता हासिल करना, लंबी अवधि के मिशनों के लिए महत्वपूर्ण है, जिसमें चंद्रमा भी शामिल है।
    • शक्तिशाली नए रॉकेट: मानव मिशन और अन्य उन्नत अंतरिक्ष प्रयासों का समर्थन करने के लिए भारी पेलोड क्षमता वाले नए रॉकेट की आवश्यकता है।

एनजीएलवी: भारत का अगली पीढ़ी का प्रक्षेपण यान

  • भारत की अंतरिक्ष महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने में एक बड़ा कदम एनजीएलवी का विकास है, जिसे हाल ही में केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा मंजूरी प्रदान की जा चुकी है।
  • अधिक भार उठाने की क्षमता: यह इसरो के सबसे शक्तिशाली रॉकेट, एलवीएम3 (जियोसिंक्रोनस सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल एमके III) की पेलोड क्षमता को तीन गुना कर देगा।
    • पेलोड क्षमता में यह वृद्धि वजन और आयतन पर प्रतिबंधों को कम करेगी, जिससे अधिक जटिल और बड़े मिशनों के लिए अनुमति मिलेगी।
  • पुन: प्रयोज्यता: एनजीएलवी का एक बड़ा हिस्सा पुन: प्रयोज्य होगा, जो इसरो के वर्तमान व्यय योग्य रॉकेटों से एक महत्वपूर्ण बदलाव है।
    • पुन: प्रयोज्यता नियंत्रित तरीके से पृथ्वी पर वापस उतरने की अनुमति देगी, जिससे लागत कम होगी । 
    • रॉकेट को दीर्घ अवधि में वित्तीय रूप से व्यवहार्य बनाने के लिए यह समझौता आवश्यक है।
  • पहली बार, भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) की वाणिज्यिक शाखा न्यूस्पेस इंडिया लिमिटेड (एनएसआईएल) ने स्पेसएक्स के फाल्कन-9 रॉकेट पर संचार उपग्रह जीसैट-20 (जिसका नाम बदलकर जीसैट-एन2 रखा गया है) को लॉन्च किया गया । इस उपग्रह का वजन तकरीबन 4,700 किलोग्राम था।

वैश्विक प्रतिस्पर्धा

  • स्पेसएक्स का फाल्कन 9 और फाल्कन हेवी: फाल्कन 9 रॉकेट, जो पुन: प्रयोज्य रूप में जियोस्टेशनरी ट्रांसफर ऑर्बिट (जीटीओ) में 5,500 किलोग्राम की क्षमता रखता है, इसरो के एलवीएम3 से बेहतर प्रदर्शन करता है, जो जीटीओ में केवल 4,000 किलोग्राम ले जा सकता है।
    • एक अधिक शक्तिशाली व्यय योग्य फाल्कन 9 8,300 किलोग्राम तक का भारवहन कर सकता है, जबकि फाल्कन हेवी और स्पेसएक्स के स्टारशिप रॉकेट की क्षमता और भी अधिक है।
  • स्टारशिप की उन्नति: स्पेसएक्स का स्टारशिप, जिसने हाल ही में अपनी छठी परीक्षण उड़ान पूरी की, क्षमता और पुन: प्रयोज्यता के मामले में पहले से ही बहुत आगे है।
    • 21,000 किलोग्राम से अधिक जीटीओ और 100,000 किलोग्राम से अधिक लो अर्थ ऑर्बिट (एलईओ) तक ले जाने की क्षमता के साथ, स्टारशिप पुन: प्रयोज्य रॉकेट की सीमाओं से आगे है।
  • अन्य प्रतिस्पर्धी: ब्लू ओरिजिन, अमेरिकी एयरोस्पेस कंपनी, चाइना नेशनल स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन (CNSA), आदि भी पुन: प्रयोज्य रॉकेट पर काम कर रहे हैं।

आगे की राह

  • सार्वजनिक-निजी भागीदारी: पुन: प्रयोज्य, रॉकेट विकसित करने के लिए भारतीय निजी कंपनियों को अनुबंध देकर, अंतरिक्ष विभाग निजी क्षेत्र के नवाचार का लाभ उठा सकता है।
  • विदेशी सहयोग: भारतीय कंपनियाँ विशेषज्ञता और प्रौद्योगिकी में अंतर को दूर करने के लिए विदेशी रॉकेट इंजन निर्माताओं जैसे अंतर्राष्ट्रीय भागीदारों के साथ सहयोग कर सकती हैं।
  • फंडिंग: एक फंडिंग तंत्र जहाँ निजी फर्मों को प्रमुख अंतरिक्ष संबंधी अन्वेषणों को पूरा करने के आधार पर भुगतान प्राप्त होता है|
    • इसकी जवाबदेहिता सुनिश्चित की जा सकती है और लागत में कमी की जा सकती है।

निष्कर्ष

निष्कर्षतः एक मजबूत अंतरिक्ष पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण करके और चुनौतियों का सामना करके, भारत आने वाले दशकों तक अंतरिक्ष अन्वेषण के क्षेत्र में अपना निरंतर नेतृत्व सुनिश्चित कर सकता है।

मुख्य परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न 

प्रश्न . भारत का अंतरिक्ष क्षेत्र तेजी से प्रगति कर रहा है, फिर भी भारत को बड़े स्तर की प्रक्षेपण क्षमताओं में आत्मनिर्भरता हासिल करने में चुनौतियों का सामना कर रहा है। भारत के अंतरिक्ष बुनियादी ढाँचे को मजबूत करने में सार्वजनिक-निजी भागीदारी की भूमिका की आलोचनात्मक परिक्षण कीजिए, साथ ही भारत की अंतरिक्ष महत्वाकांक्षाओं के लिए स्वदेशी पुन: प्रयोज्य रॉकेटों के रणनीतिक महत्व पर चर्चा कीजिए ।

(15 अंक, 250 शब्द)

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