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सिंधु जल संधि विवाद तथा भारत के निहितार्थ

Lokesh Pal January 24, 2025 05:00 54 0

संदर्भ:

हाल ही में विश्व बैंक द्वारा नियुक्त एक तटस्थ विशेषज्ञ ने किशनगंगा और रातले जलविद्युत परियोजनाओं के संबंध में पाकिस्तान के साथ विवादों को सुलझाने में भारत की स्थिति का समर्थन किया है।

सिंधु जल संधि

  • परिचय : सिंधु और उसकी सहायक नदियों के जल का वितरण निर्धारित करने के लिए भारत तथा पाकिस्तान द्वारा 19 सितंबर, 1960 को सिंधु जल संधि पर हस्ताक्षर किए गए थे।
    • विश्व बैंक द्वारा आयोजित नौ वर्षों की वार्ता के बाद इस समझौते पर तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति अयूब खान  ने कराची में हस्ताक्षर किए थे।

सिंधु जल संधि के प्रमुख प्रावधान:

  • नदी आवंटन : IWT के तहत, भारत को तीन “पूर्वी नदियों” (ब्यास, रावी तथा सतलुज) का “अप्रतिबंधित उपयोग” प्राप्त है, जबकि पाकिस्तान को तीन “पश्चिमी नदियों” (सिंधु, चिनाब तथा झेलम) के जल पर नियंत्रण प्राप्त है।
    • इससे वास्तव में, सिंधु नदी प्रणाली द्वारा प्रवाहित जल का लगभग 30% भारत को तथा 70% पाकिस्तान को प्राप्त है।
  • दायित्व: संधि के अनुच्छेद III (1) के अनुसार, “भारत पश्चिमी नदियों के जल को पाकिस्तान में प्रवाहित होने देने के लिए बाध्य है।”

सिंधु जल संधि संबंधी विवाद (IWT):

  • पाकिस्तान की आपत्तियाँ : पाकिस्तान ने जम्मू और कश्मीर में दो जलविद्युत परियोजनाओं – किशनगंगा (झेलम की सहायक नदी) पर किशनगंगा जलविद्युत परियोजना और चिनाब पर रातले जलविद्युत परियोजना की संरचना संबंधी विशेषताओं पर आपत्ति जताई है।
    • “रन-ऑफ-द-रिवर” परियोजनाएँ होने के बावजूद, पाकिस्तान का दावा है कि वे सिंधु जल संधि का उल्लंघन करती हैं। 
    • पाकिस्तान का आरोप है कि ये परियोजनाएँ जल के प्राकृतिक प्रवाह को बाधित करती हैं, जो संधि का उल्लंघन है।
  • पाकिस्तान द्वारा अनुरोध : वर्ष 2015 में पाकिस्तान ने अपनी तकनीकी आपत्तियों की जाँच के लिए एक तटस्थ विशेषज्ञ समिति की नियुक्ति का अनुरोध किया और वर्ष 2016 में एकतरफा रूप से इस अनुरोध को वापस ले लिया तथा स्थायी मध्यस्थता न्यायालय (PCA) द्वारा निर्णय का प्रस्ताव रखा। 
  • भारत की स्थिति : भारत ने IWT में उल्लिखित क्रमिक तंत्र के अनुसार मामले को एक तटस्थ विशेषज्ञ को सौंपे जाने के लिए एक पृथक अनुरोध दायर किया।
    • भारत ने अपना तर्क देते हुए PCA में शामिल होने से मना कर दिया, कि यह IWT का उल्लंघन करता है।
  • IWT के तहत विवाद निपटान तंत्र (अनुच्छेद IX):
    • स्तर 1: विवादों को शुरू में दोनों देशों के सिंधु आयुक्तों (Indus Commissioners) द्वारा संबोधित किया जाता है। 
    • स्तर 2: यदि समाधान नहीं होता है, तो मामले को विश्व बैंक द्वारा नियुक्त “तटस्थ विशेषज्ञ” के पास भेजा जाता है। 
    • स्तर 3: यदि आवश्यक हो, तो मुद्दे को हेग में PCA में प्रस्तुत किया जाता है।
  • तटस्थ विशेषज्ञता द्वारा संबोधित किए जाने वाले क्षेत्र:
    • जलाशय क्षमता: क्या बाँध IWT की सीमाओं का अनुपालन करते हैं।
    • टरबाइन इनटेक: क्या डिजाइन IWT नियमों का पालन करता है।
    • डेड स्टोरेज लेवल आउटलेट: क्या आउटलेट, IWT दिशा-निर्देशों का पालन करते हैं।
    • गेटेड स्पिलवे: क्या उनका डिजाइन IWT प्रावधानों के अनुरूप है।
  • विश्व बैंक की दोहरी प्रक्रिया: 13 अक्तूबर, 2022 को विश्व बैंक ने दो समानांतर प्रक्रियाएँ शुरू कीं, इसने ‘मिशेल लिनो’ को तटस्थ विशेषज्ञ नियुक्त किया और पाकिस्तान के आग्रह पर PCA कार्यवाही शुरू की।
    • भारत ने PCA कार्यवाही का बहिष्कार किया और इसे “संधि के असंगत” बताया, जबकि तटस्थ विशेषज्ञ प्रक्रिया जारी रखी।

तटस्थ विशेषज्ञ के निर्णय का महत्त्व:

  • तटस्थ विशेषज्ञ के अधिकार की पुष्टि : तटस्थ विशेषज्ञ मिशेल लिनो ने 7 जनवरी को निर्णय दिया, कि वह भारत द्वारा उठाए गए “मतभेदों” पर निर्णय लेने के लिए सक्षम हैं। यह निर्णय भारत के तर्क के अनुरूप है कि ये मुद्दे पूर्ण रूप से सिंधु जल संधि (IWT) के अनुलग्नक F के भाग I के अंतर्गत आते हैं। 
  • पाकिस्तान की स्थिति : पाकिस्तान ने दावा किया कि ‘मतभेदों’ से संबंधित मुद्दे तटस्थ विशेषज्ञ के अधिकार क्षेत्र में नहीं आते हैं, जिससे यह मुद्दा उसके अधिकार क्षेत्र से बाहर हो जाता है। 
  • भारत का तर्क : भारत ने जोर देकर कहा, कि तटस्थ विशेषज्ञ संधि के तहत मतभेदों के गुण-दोष पर निर्णय लेने के लिए “कर्तव्यबद्ध” है।
  • प्रक्रिया और प्रगति : तटस्थ विशेषज्ञ ने जून 2023 में तीन बैठकें कीं तथा किशनगंगा और रातले जलविद्युत परियोजनाओं के स्थल का दौरा किया।
    • अपने निर्णय के बाद, लिनो अब मतभेदों के गुण-दोष पर निर्णय देने से पूर्व दोनों पक्षों की बात पुनः सुनेंगे।
  • समानांतर PCA कार्यवाही : जुलाई 2023 में स्थायी मध्यस्थता न्यायालय (PCA) ने भी मामले पर विचार करने के लिए स्वयं को “सक्षम” घोषित किया।

आगे की राह

  • संधि में संशोधन की संभावना : संधि की समीक्षा और संशोधन के लिए वर्ष 2023 और 2024 में भारत की औपचारिक सूचनाएँ जनसांख्यिकीय परिवर्तन, स्वच्छ ऊर्जा उद्देश्य, पर्यावरणीय चुनौतियों और सीमापार आतंकवाद के प्रभावों को संबोधित करने के महत्त्व पर प्रकाश डालती हैं।
  • संधि के ढाँचे का अद्यतन करना : जलवायु परिवर्तन के प्रभावों, बढ़ती औद्योगिक और कृषि माँगों तथा जनसांख्यिकीय रुझानों जैसी बदलती प्राथमिकताओं को समायोजित करने के लिए संशोधनों का प्रस्ताव करना, निष्पक्ष और सतत जल-साझाकरण व्यवस्था सुनिश्चित करना।
  • IWT का अनुच्छेद XII(3): संधि के प्रावधानों को भारत और पाकिस्तान के बीच पारस्परिक रूप से सहमत तथा विधिवत अनुसमर्थित संधि के माध्यम से संशोधित किया जा सकता है।

निष्कर्ष

स्पष्ट है कि संधि के 65 वर्ष पूरे होने पर इसका भविष्य इस बात पर निर्भर करेगा, कि क्या दोनों राष्ट्र  साझा आधार तलाश पाते हैं या सिंधु नदी जल-बँटवारे को लेकर तनाव को बढ़ने का जोखिम उठाते हैं।

मुख्य परीक्षा हेतु अभ्यास प्रश्न

जल संसाधन अंतर्राष्ट्रीय भू-राजनीति में रणनीतिक परिसंपत्तियों के रूप में तेजी से उभर रहे हैं, जो क्षेत्रीय सहयोग और संघर्ष को आकार दे रहे हैं। भारत-पाकिस्तान संबंधों के संदर्भ में, सीमापार जल प्रबंधन द्वारा उत्पन्न चुनौतियों और अवसरों का विश्लेषण कीजिए। भारत द्वारा हाल ही में इसमें संशोधन की माँग करने वाले प्रस्तावों के आलोक में सिंधु नदी जल संधि के भविष्य पर चर्चा कीजिए।

(15 अंक, 250 शब्द)

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