प्रारंभिक परीक्षा के लिए प्रासंगिकता: गिनी गुणांक, लोरेंज कर्व, धन कर
मुख्य परीक्षा के लिए प्रासंगिकता: भारत में आय असमानता और इसके कारण
संदर्भ:
हाल ही में, फ्रांसीसी अर्थशास्त्री थॉमस पिकेटी, कुछ अन्य अर्थशास्त्रियों के साथ, पिछली सदी में भारत में आर्थिक असमानता के रुझानों पर कुछ चौंकाने वाले निष्कर्ष प्रस्तुत किए हैं ।
भारत में आय और संपत्ति असमानता का अवलोकन:
धन और आय असमानता सांख्यिकी 2022: 2022 में, शीर्ष 1% के पास कुल संपत्ति का 40.1% हिस्सा था और उन्होंने कुल आय का 22.6% अर्जित किया, जबकि निचले 50% के पास केवल 6.4% संपत्ति थी और उन्होंने 15% आय अर्जित की।
धन और आय असमानता विश्लेषण: शीर्ष 10% के साथ तुलना करने पर निचले 50% की स्थिति और भी बुरी दिखाई देती है।
कुछ ऐसे भी लग थे जिनके पास कुल संपत्ति का 65% हिस्सा था और उन्होंने कुल राष्ट्रीय आय का 57.7% अर्जित किया।
असमानता पर ध्यान देना : इस तरह की असमानता प्रतिगामी कर नीतियों पर ध्यान देने के लिए अमीरों पर संपत्ति कर लगाने की माँग को प्रेरित करती है।
आर्थिक विकास एवं असमानता
असमानता में वृद्धि: बाजार नीतियों को अपनाने के साथ 1980 के दशक से असमानता में वृद्धि हुई है।
उदाहरण के लिए, कुल राष्ट्रीय आय में निचले 50% की हिस्सेदारी 1982 में 23.6% से घटकर 2022 में 15% हो गई, जबकि शीर्ष 10% की आय हिस्सेदारी इस अवधि के दौरान 30.1% से बढ़कर 57.7% हो गई।
भारत में स्थिर आर्थिक विकास: भारत में आर्थिक विकास समाजवादी दशकों में स्थिर था, और 1990 के बाद ही बढ़ना शुरू हुआ।
भारत के विकास में बदलाव: पिकेटी और अन्य लोगों का कहना है कि भारत की अर्थव्यवस्था 1960 और 1990 के मध्य प्रति वर्ष 1.6% की दर से बढ़ी है, लेकिन 1990 तथा 2022 के मध्य प्रति वर्ष तकरीबन 3.6% की अधिक मजबूत दर से बढ़ी है ।
वास्तविक आय में वृद्धि: निचले 50% की राष्ट्रीय आय में हिस्सेदारी घटने के बावजूद (1982 से 23.6% से 15% तक), उनकी वास्तविक आय 1991 और 2022 के मध्य चार गुना से अधिक बढ़ गई।
भारत की कुल आर्थिक हिस्सेदारी का आकार पिछले 30 वर्षों में इतना बढ़ गया है कि राष्ट्रीय आय का बहुत कम हिस्सा प्राप्त करने के बावजूद निचले 50% को अब अधिक वास्तविक आय प्राप्त है।
आय शेयर: 1980 के दशक से विभिन्न समूहों के आय शेयरों में रुझान से पता चलता है कि निचले 50% को शीर्ष 1% या यहाँ तक कि शीर्ष 10% जितनी आर्थिक स्वतंत्रता का लाभ नहीं मिल पाता है।
भारत में आय असमानता: पिकेटी का अनुमान है कि भारत में शीर्ष 1% के लोगों की सालाना औसतन तकरीबन ₹53 लाख तक है, जबकि निचले 50% लोग की आय केवल ₹71,000 है।
आर्थिक गतिशीलता में बाधाएँ:
मुक्त बाजार में असमानता: एक मुक्त बाजार अर्थव्यवस्था में, आय के स्तर में इस तरह के बड़े अंतर आकर्षक मध्यस्थता के अवसर पर्स्तुत करेंगे तथा सबसे अमीर एवं सबसे गरीब के मध्य अंतर को कम करने में मदद करेंगे।
उदाहरण के लिए, यह देखते हुए कि भारत में न्यूरोसर्जन प्रत्येक वर्ष कई करोड़ रुपये की आय अर्जित करते हैं, जिससे निम्न आय वर्ग के अधिक लोग न्यूरोसर्जन बनने का प्रयास करेंगे।
ऊर्ध्वगामी गतिशीलता को सुगम बनाना: वित्त और शिक्षा जैसे क्षेत्रों को उदार बनाने से उच्च-भुगतान वाले कौशल में निवेश को सक्षम करके ऊर्ध्वगामी गतिशीलता को सुगम बनाया जा सकता है।
श्रम गतिशीलता: आय को पुनर्वितरित करने के लिए न्यूरोसर्जनों पर अधिक कर, केवल उच्च-भुगतान वाली नौकरियों की ओर श्रमिकों की आवाजाही को बाधित करेगा यहाँ तक कि न्यूरोसर्जनों की वर्तमान आपूर्ति को भी कम कर देगा।
संपत्ति के अधिकार और आय की गतिशीलता: निचले 50% को अपनी संपत्ति के अधिकारों की बहुत कम सुरक्षा प्राप्त है, जिससे उनके लिए जीवन यापन करना भी मुश्किल हो जाता है।
संपत्ति असमानता:
भारत में संपत्ति असमानता: भारत के शीर्ष 1% लोगों के पास औसतन ₹5.4 करोड़ की शुद्ध संपत्ति है, जबकि निचले 50% लोगों के पास केवल ₹1.7 लाख तक की संपत्ति है।
बाजार अर्थव्यवस्था की गतिशीलता: बाजार अर्थव्यवस्था में संपत्ति की असमानता आवश्यक है क्योंकि बाजार उन लोगों को पुरस्कृत करता है जो पूँजी निवेश करने या आवंटित करने में बेहतर हैं।
सरकारी पूर्वाग्रह: शीर्ष 1% के प्रति सरकारी पक्षपात, प्रतिस्पर्धा में बाधा तथा असमानताओं के कारण भारत में संपत्ति के मामले में असमानता अधिक बढ़ गई है।
संपत्ति कर का प्रभाव:
पूँजी निवेश में कमी: निवेशक वास्तव में अपनी अपेक्षित कर-पश्चात आय के आधार पर किसी भी उद्यम में निवेश की गई पूँजी की मात्रा को कम करके उच्च करों (संपत्ति कर सहित) से खुद को बचा सकते हैं।
श्रमिकों की आय: जो लोग वास्तव में अमीरों पर उच्च करों से प्रभावित होंगे वे श्रमिक और भूमि मालिक होंगे जिन्हें निवेशक रिटर्न बनाए रखने के लिए कम भुगतान किया जाएगा।
यह कर अप्रत्यक्ष रूप से आम श्रमिकों की आय को प्रभावित करेगा, जिनमें से अधिकांश आबादी के निचले 50% या मध्य 40% से संबंधित हैं, इसलिए उनके उत्पादन को भी प्रभावित करेंगे।
संपत्ति कर सीमा: इसके अतिरिक्त, शीर्ष 1% की अधिकांश संपत्ति पूँजीगत संपत्तियों में है, उपभोक्ता वस्तुओं में नहीं, इसलिए उन पर कर लगाने से सीधे तौर पर निम्न जीवन स्तर पर ध्यान नहीं दिया जाएगा।
आगे की राह:
विशेष विशेषाधिकारों को खत्म करना: ऐसे विशेष विशेषाधिकारों से छुटकारा पाया जाए और अर्थव्यवस्था में अधिक प्रतिस्पर्धा की अनुमति दी जाए।
प्रतिस्पर्धा को प्रोत्साहित करना: इससे स्वाभाविक रूप से शीर्ष 1% की संपत्ति में हिस्सेदारी कम हो जाएगी तथा अर्थव्यवस्था को भी लाभ होगा क्योंकि प्रतिस्पर्धा यह सुनिश्चित करती है कि सर्वश्रेष्ठ निवेशक धन पदानुक्रम के शीर्ष पर पहुँचे ।
गरीबों को सशक्त बनाना: गरीबों को अधिक आर्थिक स्वतंत्रता प्रदान करने से वे बाजार में बेहतर प्रतिस्पर्धा कर सकेंगे और आर्थिक हिस्से में बड़ी हिस्सेदारी का दावा कर सकेंगे।
निष्कर्ष:
निष्कर्षतः यह कहा जा सकता है कि आर्थिक गतिशीलता में बाधाओं को दूर करने तथा प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा देने से असमानता को कम करने एवं सभी के लिए जीवन स्तर में सुधार करने के लिए अधिक टिकाऊ समाधान पेश किए जा सकते हैं।
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