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सरकारी स्कूलों का आधारभूत ढांचा: राजस्थान के झालावाड़ जिले का मुद्दा

Lokesh Pal July 30, 2025 05:00 28 0

संदर्भ

25 जुलाई, 2025 को राजस्थान के झालावाड़ जिले के पिपलोदी सरकारी स्कूल में सुबह की प्रार्थना सभा के दौरान स्कूल की इमारत का एक हिस्सा गिर गया, जिसकी वजह से सात बच्चों की मृत्यु हो गई और कक्षा 6 और 7 के कई छात्र घायल हो गए। मृतकों में से अधिकांश छात्र आदिवासी परिवारों से थे

  • 26 जुलाई, 2025 को नागौर जिले में भी ऐसी ही एक और घटना देखने को मिली लेकिन छुट्टी के कारण स्कुल बंद था, जिसके कारण कोई नुकसान नहीं हुआ।

बुनियादी ढाँचा एक गंभीर संकट

  • यूनिफाइड डिस्ट्रिक्ट इंफॉर्मेशन सिस्टम फॉर एजुकेशन (U-DISE) 2023-24 के आंकड़ों के अनुसार, राजस्थान में 70,000 से अधिक सरकारी स्कूल हैं, जो लगभग 84 लाख छात्रों को, विशेष रूप से गरीब और हाशिए पर रहने वाले वर्गों को शिक्षा प्रदान करते हैं।
  • शिक्षा विभाग के अनुसार इनमें से लगभग 8,000 स्कूलों की हालत खराब व जर्जर अवस्था में है।
  • हालांकि झालावाड़ जिले का यह स्कूल उन स्कूलों में शामिल नहीं था जिनकी स्थिति खराब बताई गई थी, जो समस्याओं की गंभीरता को दर्शाता है।
  • पिछले दो वर्षों में राजस्थान सरकार द्वारा बुनियादी ढांचे में सुधार के लिए 650 करोड़ रुपये के पर्याप्त धन के आवंटन के बावजूद, इन निवेशों से जमीनी स्तर पर कोई सकारात्मक बदलाव नहीं आया है।

नीतिगत कमियाँ

  • राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 का कार्यान्वयन: राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020 को भारत की शिक्षा प्रणाली को बदलने के उद्देश्य से पेश किया गया था।
    • इसमें शिक्षा पर सार्वजनिक व्यय को सकल घरेलू उत्पाद के 4.6% से बढ़ाकर 6% करने का प्रस्ताव किया गया।
    • इसमें बुनियादी ढांचे के विकास को सर्वोच्च प्राथमिकता के रूप में पहचाना गया।
  • सरकारी उदासीनता: इस नीति के कार्यान्वयन के बावजूद, इसके लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए केंद्र या राज्य सरकारों द्वारा कोई सक्रिय प्रयास नहीं किया गया, जो कि मुख्य चिंता का विषय बना हुआ है।
    • इसके बजाय, शिक्षा में सार्वजनिक निवेश को कम करने पर ध्यान केन्द्रित किया गया है यद्यपि ये उपाय उच्च शिक्षा पर लागू हो सकते हैं।
  • सरकार का प्राथमिक कर्तव्य: भारतीय संविधान के अनुसार बुनियादी स्कूली शिक्षा सरकार का प्राथमिक कर्तव्य है।
    • संविधान का अनुच्छेद 21-ए, 45 और 51ए(के) शिक्षा के अधिकार को मौलिक अधिकार बनाते हैं और राज्य को 6 से 14 वर्ष की आयु के बच्चों को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा प्रदान करने की जिम्मेदारी सौंपते हैं। इसके अतिरिक्त, भाषाई अल्पसंख्यकों को उनकी मातृभाषा में शिक्षा प्रदान करने का भी प्रावधान है।
  • जनसांख्यिकीय लाभांश के लिए आवश्यक: आधारभूत साक्षरता और संख्यात्मकता को कार्यबल उत्पादकता को बढ़ाने और जनसांख्यिकीय लाभांश को प्राप्त करने के लिए एक महत्वपूर्ण क्षेत्र के रूप में पहचाना गया है, जो भारत की जनसंख्या के वृद्ध होने के साथ ही शीघ्र प्रतिक्रिया करने में सक्षम होगा।
  • बुनियादी ढांचे की कमी शैक्षणिक नवाचार में कमजोरी: वर्तमान चर्चा अक्सर शैक्षणिक सुधारों और नए शैक्षिक ऐप्स पर केंद्रित होती है, लेकिन ये चर्चाएं निरर्थक हो जाती हैं जब आधारभूत तत्व – सुरक्षित भवन, पर्याप्त कक्षाएं और पर्याप्त शिक्षक – अनुपस्थित होते हैं।

गुणवत्तायुक्त स्कूली शिक्षा में प्रमुख बाधाएँ

  • उपस्थिति को हतोत्साहित करना: स्कूल के असुरक्षित वातावरण का तात्कालिक परिणाम यह होता है कि माता-पिता अपने बच्चों को स्कूल भेजने में अनिच्छुक हो जाते हैं।
  • शिक्षकों की भारी कमी: सुरक्षा के अलावा, सरकारी स्कूलों की एक प्रमुख समस्या यह है कि वहाँ पर आवश्यकतानुसार शिक्षकों की भारी कमी देखी जा सकती है
  • आधारभूत शिक्षा से समझौता: कई ग्रामीण क्षेत्रों में, एक ही शिक्षक एक साथ कई कक्षाओं को पढ़ाने के लिए जिम्मेदार हो सकता है (उदाहरण के लिए, कक्षा 1 से 5 तक संयुक्त रूप से), जिससे शिक्षा की गुणवत्ता से गंभीर रूप से समझौता करना पड़ता है।
  • भारत के आर्थिक भविष्य पर प्रभाव: अनेक प्रणालीगत विफलताएं आधारभूत साक्षरता और संख्यात्मकता के विकास को सीधे प्रभावित करती हैं, जो कार्यबल उत्पादकता और भारत के लिए अपने जनसांख्यिकीय लाभांश का सही मायने में दोहन करने के लिए महत्वपूर्ण हैं
    • यदि बच्चों में बुनियादी शिक्षा व आधारभूत कौशल का अभाव होगा, तो वे उन्नत कौशल हासिल नहीं कर सकते, जिससे अर्थव्यवस्था में योगदान देने की उनकी क्षमता बाधित होगी।

आगे की राह

  • सरकार की जिम्मेदारी: प्राथमिक शिक्षा को 100% सरकारी जिम्मेदारी के रूप में मान्यता दी जानी चाहिए, तथा बुनियादी स्कूली शिक्षा के लिए स्व-वित्तपोषण मॉडल से हटना चाहिए।
  • सुरक्षा ऑडिट और सुधार: देश भर के सभी पुराने स्कूली भवनों की तत्काल सुरक्षा ऑडिट की आवश्यकता है। यदि उन्हें असुरक्षित पाया जाता है, तो नए, सुरक्षित ढाँचे के निर्माण तक छात्रों के लिए वैकल्पिक व्यवस्था की जानी चाहिए।
  • व्याप्त भ्रष्टाचार पर अंकुश: सरकारें बुनियादी ढाँचे के लिए धन आवंटित करती हैं, लेकिन व्यापक भ्रष्टाचार और चोरी को रोकने के लिए कठोर उपायों की आवश्यकता है। ताकि वास्तविक सुधार और रखरखाव सुनिश्चित करने के लिए धन को जमीनी स्तर तक पहुँचाया जा सके।
  • शिक्षक भर्ती एवं प्रशिक्षण: शैक्षिक गुणवत्ता में सुधार के लिए पर्याप्त शिक्षकों की भर्ती और उन्हें उचित प्रशिक्षण प्रदान करने पर निरंतर ध्यान देना अत्यंत महत्वपूर्ण है।
  • सफलताओं से सीख: केरल और दिल्ली जैसे राज्यों ने अपने शैक्षिक ढांचे में उल्लेखनीय सुधार किया है। अन्य राज्यों को उनकी सफल रणनीतियों का अध्ययन करके उन्हें अपनाना चाहिए।

निष्कर्ष

वर्तमान समय की राजस्थान की यह त्रासदी एक चेतावनी है, जो सरकारों को भारत में प्रत्येक बच्चे की सुरक्षा और बुनियादी शिक्षा को प्राथमिकता देने के लिए बाध्य करती है।

मुख्य परीक्षा हेतु अभ्यास प्रश्न:

प्रश्न: राजस्थान में हाल ही में स्कूल भवन ढहने की घटना भारत के सरकारी स्कूलों में बुनियादी ढाँचे और प्रशासन के गहरे संकट को उजागर करती है। इस संदर्भ में, सरकारी स्कूलों के सामने सुरक्षित और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा सुनिश्चित करने में आने वाली चुनौतियों का आलोचनात्मक परीक्षण कीजिए। साथ ही, उन्हें सुरक्षा और शिक्षा दोनों का केंद्र बनाने के लिए एक व्यापक रोडमैप भी सुझाइए।

(250 शब्द, 15 अंक)

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