वायनाड अघोषित युद्ध की स्थिति में है,जैसा कि जिले में बढ़ते मानव-पशु संघर्ष से देखा जा सकता है।
प्रारंभिक परीक्षा के लिए प्रासंगिकता : जलवायु परिवर्तन और पारिस्थितिकी संतुलन का मुद्दा ।
मुख्य परीक्षा के लिए प्रासंगिकता : वर्तमान में मानव और पशुओं के मध्य बढ़ता संघर्ष चुनौतियाँ और समाधान ।
संबंधित तथ्य :
केरल में दुखद घटनाएँ: केरल में हाल के दिनों की दो दुखद घटनाओं के कारण विरोध प्रदर्शन, हड़तालें शुरू हो गई हैं और केरल में राजनीतिक अशांति पैदा हो गई है।
हाल की एक घटना में, बेलूर मखना नाम के एक जंगली हाथी ने एक 47 वर्षीय किसान को कुचल कर मार डाला।
इसके बाद एक और घटना हुई जहाँ कुरुवद्वीप द्वीप समूह (Kuruvadweep Islands) में हाथियों के झुंड ने एक इकोटूरिज्म गाइड पर हमला किया और उसे मार डाला।
वन्यजीवों पर पारिस्थितिक विखंडन का प्रभाव: यह पारिस्थितिक कनेक्टिविटी और आवास के महत्वपूर्ण नुकसान को इंगित करता है, और इसके परिणामस्वरूप वन्यजीवों को खंडित जंगलों में कैद कर दिया जाता है, जिससे उन्हें आसपास के क्षेत्रों में आक्रमण करने के लिए मजबूर होना पड़ता है।
संबंधित आँकड़े:
मानव-वन्यजीव संघर्ष के कारण मौतें: वायनाड में, पिछले 10 वर्षों के दौरान वन्यजीवों के हमलों के कारण तकरीबन 51 मानव मौतें दर्ज की गई हैं।
वित्तीय वर्ष 2022-23 में 8,873 हमले की घटनाओं को मिलाकर यह संख्या बढ़कर कुल 98 मौतों तक पहुँच गई, जिनमें से तकरीबन 27 मौतें हाथियों के हमलों की वजह से हुईं थीं ।
कृषि क्षेत्र पर प्रभाव: इन हमलों ने केरल के कृषि क्षेत्र को काफी नुकसान पहुँचाया है।
पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं में संकट:
मोनोकल्चर और रासायनिक उपयोग का प्रभाव: मोनोकल्चर वृक्षारोपण की प्रवृत्ति और कीटनाशकों के उपयोग की वजह से मिट्टी की गुणवत्ता प्रभावित हुई है।
मानवीय गतिविधियों में वृद्धि और गिरावट: यूकेलिप्टस और बबूल जैसे विदेशी वृक्षों के वृक्षारोपण ने जंगली जानवरों को भोजन और पानी से वंचित कर दिया है, जिसके कारण वन क्षेत्रों से जानवरों को निष्काषित किया जा रहा है, क्योंकि इससे आंतरिक भाग बंजर भूमि में बदल रहे हैं।
वर्तमान में वायनाड के 1 लाख हेक्टेयर के जंगलों में से 36,000 हेक्टेयर में यूकेलिप्टस जैसे मोनोकल्चर बागान हैं।
ऑपरेशन जंबो परेड: इसमें नौ हाथियों को पकड़ा गया और दो को पर्याप्त निगरानी के साथ रेडियो कॉलर लगाकर केरल के जंगलों में छोड़ दिया गया है ।
आगे की राह :
सरकारी सहायता बढ़ाना: सरकार को उचित निगरानी, निरंतर संरक्षण और सार्वजनिक जागरूकता सुनिश्चित करने के लिए अपने प्रयासों को बढ़ाने की आवश्यकता है।
वैधानिक निकाय की आवश्यकता: केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के तहत तीन दक्षिण भारतीय राज्यों में फैले वन से संबंधित मुद्दों के समन्वयन के लिए एक वैधानिक निकाय की आवश्यकता है।
एफसीए का प्रवर्तन: वन संरक्षण अधिनियम (FCA) को स्वतंत्र और पूर्व सूचित सहमति (FPIC) सिद्धांत के साथ सख्ती से लागू किया जाना चाहिए, जिसे वनों की गिरावट को कम करने के लिए हितधारक जुड़ाव की एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया के रूप में व्यापक रूप से मान्यता प्राप्त है।
मुख्य परीक्षा पर आधारित प्रश्न : हाल में मानव प्रेरित प्राकृतिक असंतुलन से चरम प्राकृतिक घटनाओं में वृद्धि देखी गई है। वर्तमान में बढ़ते मानव-वन्यजीव संघर्ष को ध्यान में रखते हुए इसके समाधान हेतु मानव द्वारा अपने को प्रकृति के केंद्र के रूप में देखने की मूल प्रवृत्ति में परिवर्तन की आवश्यकता है। टिप्पणी कीजिये।
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