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सबका बीमा सबकी रक्षा (बीमा कानून संशोधन) विधेयक, 2025

Lokesh Pal December 15, 2025 05:00 22 0

सन्दर्भ:

हाल ही में, केंद्रीय मंत्रिमंडल ने सबका बीमा सबकी रक्षा (बीमा कानून संशोधन) विधेयक, 2025 को मंजूरी दे दी हैजिससे इसे संसद में प्रस्तुत करने का मार्ग स्पष्ट हो गया है।

बीमा क्या है?

  • परिभाषा: बीमा जोखिम प्रबंधन का एक रूप है, जिसमें कोई व्यक्ति या व्यवसाय दुर्घटना, बीमारी या क्षति जैसी अनिश्चित घटनाओं से होने वाले वित्तीय नुकसान से सुरक्षा पाने के लिए प्रीमियम का भुगतान करता है।
  • अर्थव्यवस्था का सुरक्षा स्तम्भ: यह अधिक जोखिम प्रक्रिया को सक्षम बनाती है, जिससे नवाचार और निवेश को बढ़ावा मिलता है, और अंततः अप्रत्याशित खर्चों के कारण व्यक्तियों को ऋण-जाल में फंसने से बचाकर गरीबी को कम करने में मदद मिलती है।

सबका बीमा सबकी रक्षा (बीमा कानून संशोधन) विधेयक, 2025

  • संशोधनों का विस्तार: विधेयक में बीमा अधिनियम, 1938; जीवन बीमा निगम अधिनियम, 1956 और भारतीय बीमा नियामक एवं विकास प्राधिकरण अधिनियम, 1999 में परिवर्तन प्रस्तावित हैं।
  • घोषित उद्देश्य: इसका उद्देश्य बीमा ढाँच का आधुनिकीकरण करना,बीमा कवरेज का विस्तार और विनियामकीय निरीक्षण को मजबूत करना है।

बीमा विधेयक के प्रमुख प्रावधान

  • प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) सीमा में वृद्धि: विधेयक में बीमा कंपनियों के लिए एफडीआई सीमा को 74% से बढ़ाकर 100% करने का प्रस्ताव है।
    • इस सुधार का उद्देश्य स्थिर एवं सतत विदेशी निवेश को आकर्षित करना है
    • इससे प्रौद्योगिकी हस्तांतरण को सुगम बनाने, बीमा की पहुँच विस्तार तथा सामाजिक सुरक्षा को मजबूत करने की उम्मीद है।
    • वैश्विक बीमा कंपनियाँ बेहतर अंडरराइटिंग मॉडल,जोखिम का आकलन तथा प्रीमियम की गणना करने के लिए एआई टूल प्रस्तुत कर सकती हैं, जिनकी वर्तमान में भारत में कमी है।
    • यह प्रयास “2047 तक सभी के लिए बीमा” – लक्ष्य के अनुरूप है।
    • भारत में वर्तमान में लगभग 70 बीमा कंपनियाँ हैं, जबकि वैश्विक स्तर पर लगभग 10,000 हैं जो बड़े पैमाने पर संभावित पूँजी प्रवाह का संकेत देती हैं।
  • IRDAI को सुदृढ़ बनाना: भारतीय बीमा नियामक एवं विकास प्राधिकरण (IRDAI) को SEBI के समान शक्तियाँ एवं अधिकार प्रदान किए जा रहे हैं।
    • इसमें अवैध लाभ की वसूली की शक्ति भी शामिल है, जो भारतीय बीमा नियामक एवं विकास प्राधिकरण (IRDAI) को अवैध रूप से अर्जित लाभ को वापस लेने तथा उसे ग्राहकों को लौटाने की अनुमति देती है। 
    • प्रदत्त इक्विटी पूँजी के हस्तांतरण के लिए भारतीय बीमा नियामक एवं विकास प्राधिकरण (IRDAI) की मंजूरी की सीमा 1% से बढ़ाकर 5% कर दी जाएगी।
    • बीमा मध्यस्थों के लिए एक बार पंजीकरण प्रणाली का प्रस्ताव है।
    • इस विधेयक में अधिनियम के भीतर नियम बनाने के लिए एक औपचारिक मानक परिचालन प्रक्रिया (SOP) को शामिल करने का प्रस्ताव है, जिससे नियम बनाने की प्रक्रिया अधिक संरचित तथा बेहतर हो सके।
    • इसके अतिरिक्त विधेयक में जुर्माने लगाने के लिए स्पष्ट मानदंड पेश किए गए हैं, जिससे प्रवर्तन अधिक तर्कसंगत, पारदर्शी और सभी मामलों में सुसंगत हो जाता है।
  • एलआईसी को अधिक स्वायत्तता: विधेयक में भारतीय जीवन बीमा निगम (LIC) को सरकार की पूर्व स्वीकृति के बिना नए क्षेत्रीय कार्यालय स्थापित करने का अधिकार देने का प्रस्ताव है।
    • इसे उन देशों के कानूनों तथा नियामक मानदंडों के अनुरूप अपने विदेशी परिचालन का पुनर्गठन और संरेखण करने की अनुमति दी जाएगी, जिनमें यह परिचालन करता है।
    • यह लचीलापन भारतीय जीवन बीमा निगम (LIC) को विदेशी अनुपालन आवश्यकताओं के अनुकूल तेजी से ढलने, अपनी वैश्विक उपस्थिति को मजबूत तथा अपने देश में अनुमोदन की कई प्रक्रियाओं से गुजरने के कारण होने वाली देरी को कम करने में मदद करेगा।

विधेयक में प्रमुख खामियाँ

  • समग्र लाइसेंसिंग का अभाव: बीमा अधिनियम, 1938 – जीवन और सामान्य बीमा व्यवसायों के बीच कठोर अलगाव अनिवार्य करता है
    • संयुक्त लाइसेंस का महत्त्व: एक संयुक्त लाइसेंस बीमाकर्ताओं को जीवन तथा गैर-जीवन दोनों क्षेत्रों में कार्य करने की अनुमति देता।
      • इससे एक ही इकाई के तहत एकीकृत और बंडल किए गए बीमा उत्पादों को उपलब्ध कराना संभव हो जाता।
      • इस तरह के लाइसेंस वैश्विक सर्वोत्तम प्रथाओं के अनुरूप माने जाते हैं।
    • चूक संबंधी निहितार्थ: इस बहिष्करण से दीर्घकालिक संरचनात्मक विभाजन बरकरार रहता है
      • इसे प्रतिस्पर्धा, नवाचार और ग्राहक सुविधा के क्षेत्र में एक छूटे हुए अवसर के रूप में देखा जाता है।
  • पूँजी संबंधी मानदंड: वर्तमान में, कानून के तहत बीमाकर्ताओं के लिए न्यूनतम ₹100 करोड़ और पुनर्बीमाकर्ताओं के लिए ₹200 करोड़ की चुकता पूँजी अनिवार्य है, ये सीमाएँ लंबे समय से बहुत अधिक और प्रतिबंधात्मक होने के लिए आलोचना का शिकार रही हैं, खासकर बाजार में प्रवेश करने की इच्छुक विशेषीकृत, क्षेत्रीय या विशिष्ट अभिकर्ताओं के लिए।
    • ऐसी उम्मीद थी कि इस बाधा को कम किया जाएगा
    • हालाँकि, इस चूक से नए प्रवेश, उत्पाद विविधता और ग्रामीण क्षेत्रों, गिग वर्कर्स तथा कम आय वाले परिवारों जैसे कम सेवा प्राप्त वर्गों तक बीमा के विस्तार में बाधा उत्पन्न होती है
  • कैप्टिव बीमा: कैप्टिव बीमाकर्ता पूर्ण स्वामित्व वाली बीमा सहायक कंपनियाँ हैं, जिन्हें अपनी मूल कंपनियों के जोखिमों का बीमा करने के लिए बनाया जाता है
    • इनका उपयोग विश्व स्तर पर प्रमुख निगमों द्वारा जटिल जोखिमों के प्रबंधन, बीमा लागत को कम करने और बीमा लेखन तथा दावों पर अधिक नियंत्रण रखने के लिए व्यापक रूप से किया जाता है।
    • इस विधेयक में बड़े निगमों को कैप्टिव बीमा संस्थाएँ स्थापित करने की अनुमति देने वाले प्रावधान शामिल नहीं हैं
    • इस चूक से भारत में कॉर्पोरेट जोखिम प्रबंधन प्रथाओं के आधुनिकीकरण में बाधा उत्पन्न होती है।
  • अन्य वित्तीय उत्पादों का वितरण: बीमा कंपनियों को म्यूचुअल फंड, ऋण या क्रेडिट कार्ड बेचने की अनुमति देना।

निष्कर्ष

स्पष्ट है, इसे एक ऐसे विधेयक के रूप में वर्णित किया गया है, जो 100% प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) और एक मजबूत आईआरडीएआई जैसे प्रगतिशील प्रयास तो प्रस्तुत करता है, लेकिन समग्र लाइसेंसिंग, पूंजी आवश्यकताओं और कैप्टिव बीमा के क्षेत्र में अवसरों की कमी को दर्शाता है।

मुख्य परीक्षा हेतु अभ्यास प्रश्न:

प्रश्न: “सबका बीमा सबकी रक्षा (बीमा कानून संशोधन) विधेयक, 2025” का उद्देश्य महत्त्वपूर्ण संरचनात्मक सुधारों के माध्यम से भारतीय बीमा क्षेत्र में क्रांति लाना है। बीमा क्षेत्र पर इसके संभावित प्रभाव तथा अनसुलझी चुनौतियों पर प्रकाश डालते हुए, विधेयक के प्रमुख प्रावधानों का आलोचनात्मक विश्लेषण कीजिए।

(10 अंक, 150 शब्द)

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