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सिंधु, गंगा और ब्रह्मपुत्र नदियों के लिए एकीकृत नदी बेसिन प्रबंधन

Lokesh Pal March 23, 2024 05:15 170 0

संदर्भ:

  • काठमांडू स्थित इंटरनेशनल सेंटर फॉर इंटीग्रेटेड माउंटेन डेवलपमेंट (ICIMOD) और ऑस्ट्रेलियन वॉटर पार्टनरशिप (AWP) की हालिया रिपोर्ट में इस बात का जिक्र किया गया है कि जलवायु परिवर्तन की वजह से न सिर्फ ग्लेशियर ही पिघल रहे हैं बल्कि अनियमित वर्षा पैटर्न और बाढ़ जैसी समस्याएँ भी उत्त्पन्न हो रहीं हैं, ये समस्याएँ दक्षिण एशिया में लोगों को प्रभावित कर रही हैं।
  • ऐसी स्थिति में सिंधु, गंगा और ब्रह्मपुत्र नदियों के लिए एक एकीकृत नदी बेसिन प्रबंधन दृष्टिकोण इन नदी बेसिनों में रहने वाले लोगों को जलवायु परिवर्तन की वजह से होने वाली समस्या को कम कर सकने में मददगार साबित हो सकती है।

प्रारंभिक परीक्षा के लिए प्रासंगिकता: गंगा बेसिन, सिंधु बेसिन, ब्रह्मपुत्र बेसिन

मुख्य परीक्षा के लिए प्रासंगिकता: दुनिया भर में प्रमुख प्राकृतिक संसाधनों का वितरण, नदी बेसिन और खतरे।

रिपोर्ट संबंधी प्रमुख तथ्य :

  • नदियों पर अत्यधिक निर्भरता: भारत, चीन, पाकिस्तान, अफगानिस्तान, नेपाल और भूटान में लोग अपने भोजन और जल सुरक्षा के लिए इन तीन नदियों क्रमशः सिंधु, गंगा और ब्रह्मपुत्र (IGB) पर निर्भर हैं।
  • जलवायु परिवर्तन: मौजूदा संधियाँ और समझौते जलवायु परिवर्तन के व्यापक प्रभावों को संबोधित करने या हाशिए पर पड़े हितधारकों को शामिल करने में विफल रही हैं।
  • कोई बहुपक्षीय संधि नहीं: भारत और पाकिस्तान के मध्य सिंधु जल संधि या जल डेटा साझाकरण पर समझौते जैसी द्विपक्षीय संधियाँ हैं।
  • डेटा का अंतर: सामाजिक, आर्थिक और पर्यावरणीय वास्तविकताओं और जल के उपयोग के संबंध में गंगा नदी बेसिन में पर्याप्त डेटा का अंतर है ।
  • बहुआयामी चिंताएँ: एलिवेटिंग रिवर बेसिन गवर्नेंस एंड कोऑपरेशन इन द हिंदू कुश हिमालय रीजन (HKH) रिपोर्ट श्रृंखला प्रमुख आर्थिक, पारिस्थितिक, ऊर्जा, सामाजिक, भू-राजनीतिक और शासन संबंधी मुद्दों पर केंद्रित है।

नदी बेसिन और संबंधित खतरे :

  • गंगा नदी बेसिन: यह उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल से होकर बहती है, प्रमुख समस्याएँ निम्न हैं:
    • जलवायु परिवर्तन: यह मौजूदा चुनौतियों को बढ़ा रहा है, विशेषकर बाढ़ और सूखे के रूप में।
    • बाढ़ और सूखा: मानसून का मौसम अब विनाशकारी बाढ़ लाता है जबकि शुष्क मौसम में पानी की कमी बढ़ जाती है, खासकर बांग्लादेश जैसे निचले इलाकों में।
    • मानवजनित गतिविधियाँ: तेजी से हो रहे औद्योगीकरण, शहरीकरण और गहन कृषि पद्धतियाँ नदी के पारिस्थितिक स्वास्थ्य को गंभीर रूप से प्रभावित कर रही हैं।
    • औद्योगिक अपशिष्ट: यह मानव स्वास्थ्य और पर्यावरण दोनों के लिए चुनौतीपूर्ण है।

  • सिंधु नदी बेसिन: यह जम्मू और कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, पंजाब, राजस्थान, हरियाणा और चंडीगढ़ (यूटी) से होकर बहती है। इसके सामने आने वाली प्रमुख समस्याएँ निम्नलिखित हैं :
    • जलवायु परिवर्तन: बढ़ता तापमान, अनियमित मानसून और पर्यावरण संबंधी समस्याएँ खाद्य सुरक्षा, आजीविका और जल सुरक्षा को प्रभावित कर रही है।
    • पर्यावरण: बढ़ते कृषि और औद्योगिक प्रदूषण की वजह से मीठे पानी की मछली पालन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है और इसका नदी के पारिस्थितिक तंत्र पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
    • कमजोर समूहों पर प्रभाव: सामाजिक-आर्थिक रूप से पिछड़े और हाशिए पर रहने वाले समुदायों को जल की कमी, बाढ़ एवं सुखा की वजह से समस्याओं का सामना करना पड़ता है।
  • ब्रह्मपुत्र नदी बेसिन: यह अरुणाचल प्रदेश, असम और अन्य राज्यों से होकर बहती है। इसके सामने आने वाली प्रमुख समस्याएँ निम्न हैं:
    • जलवायु परिवर्तन: बांधों और विकास कार्यों के साथ-साथ जलवायु परिवर्तन से बाढ़ और सूखा बढ़ रहा है, खासकर इसके निचले बेसिन में।
    • अपस्ट्रीम बांध निर्माण और जलवायु परिवर्तन: इनसे डाउनस्ट्रीम क्षेत्रों में शुष्क मौसम में कमी आने की संभावना बढ़ जाती है, जिससे लाखों लोगों का जीवन प्रभावित हो सकता है ।
    • हिमनदों के पिघलने की दर में वृद्धि: इससे पूरे क्षेत्र में पानी की उपलब्धता प्रभावित हो रही है।
    • कमजोर समूहों पर प्रभाव: अनुमानित जलवायु प्रभावों के कारण महिलाओं, गरीबों तथा हाशिए पर रहने वाले समुदायों की भेद्यता बढ़ रही है।

आगे की राह :

  • स्थानीय समुदाय किसी संकट के दौरान समस्याओं को शीघ्र और प्रभावी ढंग से हल कर सकते हैं, उदा. पूर्व- “सिंधु कॉलिंग” कार्यक्रम।
  • ‘संपूर्ण बेसिन’ अनुसंधान दृष्टिकोण का उपयोग करके डेटा विकसित करने से अतिरिक्त लाभ होगा।
  • ‘एकीकृत नदी बेसिन प्रबंधन’ (आईआरबीएम) दृष्टिकोण के माध्यम से मौजूदा संधियों और सहयोग के नए रूपों को पुनर्जीवित करने की आवश्यकता है ।
  • जलवायु परिवर्तन संबंधी प्रभावों के समाधान के लिए क्षेत्रीय सहयोग की आवश्यकता होती है, उदा. हिंदू कुश हिमालय क्षेत्र (HKH) कॉल टू एक्शन।
  • दीर्घकालिक रणनीतियों में अनुकूली बुनियादी ढाँचे, लचीली शासन संरचनाओं और समावेशी नीतियों को प्राथमिकता दी जानी चाहिए।
  • देशों के मध्य विश्वास कायम रखने और अधिक संवाद की दिशा में आगे बढ़ने के लिए शोधकर्ताओं के बीच अधिक ‘हाइड्रो-सॉलिडैरिटी’ और जलवायु कूटनीति की आवश्यकता है।

News Source: The Indian Express

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