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UCC के आलोक में भारत में अंतरधार्मिक संबंध तथा इनकी सुरक्षा

Lokesh Pal February 25, 2025 05:45 10 0

संदर्भ:

हाल ही में, उत्तराखंड समान नागरिक संहिता (UCC) को लागू करने वाला पहला भारतीय राज्य बन गया।

भारत में अंतरधार्मिक संबंधों के समक्ष विद्यमान चुनौतियाँ

  • सामाजिक बाधाएँ: भारत में अंतरधार्मिक संबंधों को प्रारंभ से ही विरोध का सामना करना पड़ रहा है। 2014 के एक सर्वेक्षण (70,000 उत्तरदाताओं) में पाया गया, कि 
    • शहरी भारतीयों में से 10% से भी कम लोगों के परिवार में कोई ऐसा सदस्य था, जिसने अपनी जाति से बाहर विवाह किया हो। केवल 5% ने अपने परिवारों में अंतरधार्मिक विवाहों की सूचना दी।
  • कानूनी बाधाएँ: विशेष विवाह अधिनियम, 1954 के तहत 30-दिन की सार्वजनिक सूचना अवधि की आवश्यकता होती है, जिससे अंतरधार्मिक विवाह करने की इच्छा रखने वाले युगल जाँच और सामाजिक या पारिवारिक उत्पीड़न के शिकार हो जाते हैं।
    • उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और राजस्थान में धर्मांतरण विरोधी कानूनों ने स्थिति को और दयनीय बना दिया है।
  • नौकरशाही बाधाएँ: निम्नलिखित कानून नौकरशाही बाधाएँ उत्पन्न करते हैं:
    • धर्मांतरण की अनिवार्य घोषणा
    • अनुमोदन के लिए प्रतीक्षा अवधि
    • जिला मजिस्ट्रेट की निगरानी, ​​व्यक्तिगत विकल्पों पर राज्य का नियंत्रण बढ़ाना।
  • सतर्कता की भागीदारी: इन कानूनों ने सतर्कता समूहों को बढ़ावा दिया है, जो प्रायः दक्षिणपंथी संगठनों से जुड़े होते हैं। उत्तर प्रदेश में किए गए एक अध्ययन में पाया गया, कि 
    • ईसाइयों के खिलाफ धर्मांतरण विरोधी कानून के तहत 101 में से 63 पुलिस शिकायतें तीसरे पक्ष के निगरानी समूहों से आई थीं।
  • विधिक सहमति: व्यक्तिगत अधिकारों की रक्षा करने की बजाय, ये कानून व्यक्तिगत संबंधों की न्यायेतर पुलिसिंग के लिए विधिक सहमति प्रदान करते हैं।

यूसीसी के निहितार्थ

  • राज्य नियंत्रण: समान नागरिक संहिता (यूसीसी) राज्य विनियमन को औपचारिक विवाहों से आगे बढ़ाकर अनौपचारिक संबंधों को भी शामिल करती है। लिव-इन रिलेशनशिप को अब जिला अधिकारियों के पास पंजीकृत होना चाहिए।
  • पंजीकरण आवश्यकताएँ: युगल को पहचान प्रमाण (जैसे- आधार, निवास दस्तावेज़) के साथ 16-पृष्ठ का आवेदन प्रस्तुत करना होगा।
    • धार्मिक नेताओं या समुदाय के प्रमुखों से अनुमोदन की आवश्यकता है।
    • परिवारों को सूचित किया जाना चाहिए, जिससे युगलों को सामाजिक जाँच और दबाव का सामना करना पड़ सकता है।
  • गैर-अनुपालन: पंजीकरण न कराने पर निम्नलिखित दंड हो सकते हैं:
    • छह महीने तक की कैद
    • ₹25,000 का जुर्माना
  • अनुपातहीन प्रभाव: कई अंतरधार्मिक जोड़े सामाजिक कलंक और दबाव के कारण गोपनीय रहना चाहते हैं। रिपोर्ट के अनुसार,
    • उत्तराखंड में केवल एक जोड़े ने अपने लिव-इन रिलेशनशिप को सफलतापूर्वक पंजीकृत किया है।
    • अन्य लोगों ने उत्पीड़न से सुरक्षा की माँग करते हुए उच्च न्यायालय में अपील दायर की है।
  • धार्मिक संस्थाओं को सशक्त बनाना: विवाह और धर्मांतरण के लिए अब धार्मिक प्रमाणीकरण की आवश्यकता होती है, जिससे धार्मिक नेताओं को व्यक्तिगत संबंधों पर औपचारिक अधिकार मिल जाता है।
  • विरोधाभासी: यह भारत के धर्मनिरपेक्षता और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के संवैधानिक सिद्धांतों का खंडन करता है। यह व्यक्तिगत इच्छा पर सामाजिक मानदंडों को मजबूत करता है, रिश्तों में स्वायत्तता को सीमित करता है।
  • पारिवारिक नियंत्रण: लिव-इन रिलेशनशिप में अनिवार्य पारिवारिक अधिसूचनाएँ निम्नलिखित जोखिमों को बढ़ाती हैं:
    • बाध्यता
    • सम्मान-आधारित हिंसा
    • जबरन अलगाव
  • स्वायत्तता को कम करना: पितृसत्तात्मक व्यवस्था अंतरधार्मिक संबंधों में महिलाओं को पीड़ित के रूप में प्रस्तुत करती है, उनकी स्वायत्तता को कम करती है।
    • ये कानून महिलाओं की पसंद पर परिवार और समुदाय के नियंत्रण को मज़बूत करते हैं।
  • सतर्कता को वैध बनाना: चरमपंथी समूहों को अंतरधार्मिक संबंधों की निगरानी और हस्तक्षेप करने के लिए विधिक समर्थन मिलता है।
    • सार्वजनिक नोटिस और पारिवारिक अधिसूचनाएँ उत्पीड़न और न्यायेतर पुलिसिंग के लिए उपकरण प्रदान करती हैं।
    • व्यक्तियों की रक्षा करने की बजाय, ये कानून परंपरा की आड़ में सांप्रदायिक तनाव को बढ़ावा देते हैं।
  • समान नागरिक संहिता मॉडल का प्रसार: उत्तराखंड की समान नागरिक संहिता अन्य राज्यों के लिए एक खाका अथवा मॉडल तैयार करती है। राजस्थान उच्च न्यायालय ने समान समान नागरिक संहिता पंजीकरण आवश्यकताओं का प्रस्ताव दिया है और धर्मांतरण विरोधी कानून बनाया है।
    • गुजरात उत्तराखंड के ढाँचे पर आधारित एक समान नागरिक संहिता (यूसीसी) मसौदे पर विचार कर रहा है।

निष्कर्ष

प्रेम और धार्मिक आस्था गहरे व्यक्तिगत अनुभव हैं, जिन्हें व्यक्ति अपनी शर्तों और इच्छाओं के अनुसार  परिभाषित करता है। ये विधिक परिवर्तन न केवल व्यक्तिगत अधिकारों का उल्लंघन करते हैं, बल्कि भारत की बहुलवादी सामाजिक संरचना को भी कमजोर करते हैं।

मुख्य परीक्षा हेतु अभ्यास प्रश्न

उत्तराखंड में लागू “समान नागरिक संहिता” कानून लिव-इन रिलेशनशिप के पंजीकरण को अनिवार्य बनाता है और व्यक्तिगत विकल्पों पर विधिक जाँच की शुरुआत करता है। भारत में अंतरधार्मिक संबंधों और सामाजिक सौहार्द पर ऐसे कानूनी उपायों के दीर्घकालिक प्रभाव का आकलन कीजिए।

(15 अंक, 250 शब्द)

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