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सेमीकंडक्टर उद्योग में निवेश: निवेशकों को क्या जानना चाहिए (Investing In The Semiconductor Industry: What Investors Should Know)

Lokesh Pal March 19, 2024 05:00 180 0

संदर्भ:  

सेमीकंडक्टर उद्योग के क्षेत्र में दिन-ब-दिन बढ़ते निवेश ने वैश्विक स्तर पर सेमीकंडक्टर चिप उद्योग के महत्व को और इसके भू-राजनीतिक निहितार्थों को काफी हद तक बढ़ा दिया है।

प्रारंभिक परीक्षा के लिए प्रासंगिकता: सेमीकंडक्टर और उसका अनुप्रयोग

मुख्य परीक्षा के लिए प्रासंगिकता: सेमीकंडक्टर उद्योग में भारत की प्रगति और सेमीकंडक्टर विनिर्माण के भूराजनीतिक निहितार्थ।

पृष्ठभूमि: 

  • अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन की चेतावनी कि अमेरिका चीनी आक्रामकता के खिलाफ ताइवान की रक्षा करेगा वर्तमान में यह सुर्ख़ियों में है।
  • यह संयुक्त राज्य अमेरिका की सामरिक अस्पष्टता की पारंपरिक नीति से एक विचलन है।
  • अमेरिका के रुख में यह बदलाव काफी हद तक वर्ष 2020 के लॉकडाउन के दौरान सेमीकंडक्टर चिप्स उद्योग के वैश्विक स्तर पर बढ़ते महत्व के कारण था।

सेमीकंडक्टर उद्योग में ताइवान का महत्व:

TSMC पर संयुक्त राज्य अमेरिका की निर्भरता

ताइवानी चिप्स का वैश्विक स्तर पर  प्रभुत्व

सेमीकंडक्टर को लेकर बढ़ता भूराजनीतिक तनाव

यूएसए की सिलिकॉन वैली माइक्रोचिप्स के लिए ताइवान की सेमीकंडक्टर मैन्युफैक्चरिंग कंपनी (TSMC) पर काफी हद तक निर्भर है। विश्व के तकरीबन 60% सेमीकंडक्टर चिप्स और 90% उन्नत चिप्स ताइवान से आयात किए जाते हैं। चीन का लक्ष्य ताइवान को नियंत्रित करने का है, जबकि संयुक्त राज्य अमेरिका ताइवान की रक्षा करना चाहता है, इस विरोधाभाष की वजह से राष्ट्रों के मध्य चिप युद्ध के छिड़ने की संभावना है।

सेमीकंडक्टर चिप्स का महत्व:

  • विभिन्न उत्पादों के लिए महत्वपूर्ण: सेमीकंडक्टर चिप्स इलेक्ट्रॉनिक्स और सैन्य उपकरणों सहित विभिन्न उत्पादों के लिए काफी महत्वपूर्ण हैं।
  • संयुक्त राज्य अमेरिका और भारत की सुरक्षा: यदि चीन ताइवान पर नियंत्रण हासिल कर लेता है, तो इससे अमेरिका और भारत दोनों की सुरक्षा को खतरा हो सकता है।
  • भारत की ताइवान पर निर्भरता: भारत अपनी चिप आवश्यकताओं के लिए शत-प्रतिशत आयात पर निर्भर है, जिसमें से ज्यादातर ताइवान से किया जाता है।
  • दुनिया में बहुत कम फैब इकाइयाँ: सेमीकंडक्टर चिप्स कंडक्टर और इंसुलेटर के बीच चालकता वाली सामग्रियों से बनाए जाते हैं, और विनिर्माण संयंत्रों को फैब्रिकेशन या फैब इकाइयाँ कहा जाता है।

सेमीकंडक्टर उद्योग में भारत द्वरा किए जा रहे प्रयास:

  • 1980 का दशक: भारत में सेमीकंडक्टर उद्योग स्थापित करने का प्रयास किया जा रहा था लेकिन इस दौरान इसे पर्याप्त महत्व नहीं दिया गया।
  • 2007, भारत की पहली सेमीकंडक्टर नीति का शुभारंभ: लेकिन यह बहुत कठोर थी, इंटेल और एएमडी जैसी प्रमुख कंपनियों ने वित्तीय सहायता की कमी के कारण निवेश करने से इनकार कर दिया।
  • 2021 में, भारत ने प्रोडक्शन लिंक्ड इंसेंटिव (PLI) योजना के माध्यम से 72,000 करोड़ रुपये की सब्सिडी की पेशकश करते हुए इंडिया सेमीकंडक्टर मिशन लॉन्च किया।
  • माइक्रोन द्वारा निवेश: माइक्रोन ने गुजरात के साणंद (Sanand) में एक संयंत्र में तकरीबन 2.75 बिलियन डॉलर का निवेश किया है, और टाटा ने वर्ष 2026 तक 28-नैनोमीटर चिप्स का उत्पादन करने के लिए ताइवान के पीएसएमसी के साथ सहयोग कर रहा है।

भारत के सेमीकंडक्टर उद्योग के लिए चुनौतियाँ:

  • कच्चे माल की कमी: भारत में पर्याप्त कच्चे माल, जैसे- सिलिका, जर्मेनियम और गैलियम जैसे दुर्लभ पृथ्वी खनिज, जो चिप निर्माण के लिए आवश्यक हैं की कमी है।
  • बिजली आपूर्ति और पानी की कमी: भारत की अनियमित बिजली आपूर्ति और पानी की कमी सेमीकंडक्टर उद्योग के लिए प्रमुख चुनौतियों में से एक है। 
    • सेमीकंडक्टर संयंत्र 24/7 बिजली और अधिक जल के उपयोग पर निर्भर होती हैं। 
  • सेमीकंडक्टर संयंत्रों का उद्देश्य: भारत में स्थापित प्रमुख सेमीकंडक्टर संयंत्र मुख्य रूप से डिजाइन, असेंबली के लिए हैं।
  • 28 नैनोमीटर चिप्स: भारत में उत्पादित चिप्स आमतौर पर 28 नैनोमीटर या उससे अधिक के होते हैं, जिन्हें आईबीएम जैसी कंपनियों द्वारा विकसित 1-3 नैनोमीटर जैसे अत्याधुनिक चिप्स की तुलना में पुराना माना जाता है।
  • निवेश: टीएसएमसी, एएमडी और इंटेल जैसी प्रमुख सेमीकंडक्टर कंपनियाँ भारत में निवेश को लेकर सतर्क हैं।
    • इसके बजाय वे इन क्षेत्रों में चिप्स अधिनियम जैसी पहलों के माध्यम से पेश किए गए आकर्षक प्रोत्साहनों के कारण संयुक्त राज्य अमेरिका और यूरोप में निवेश को प्राथमिकता दे रहे हैं।

आगे की राह :

  • अनुसंधान: सेमीकंडक्टर अनुसंधान प्रतिभागियों में से 20% भारतीय हैं, जो उद्योग में प्रगति में वैश्विक प्रगति में योगदान दे रहे हैं।
  • इसरो का चिप उत्पादन: भारत का इसरो मोहाली में एससीएल में अपने स्वयं के चिप्स का उत्पादन करता है, जो भारत के युवाओं के बीच तकनीकी कौशल को बढ़ाता है।
  • 28-नैनोमीटर चिप्स: भारत में उत्पादित 28-नैनोमीटर चिप्स की सबसे अधिक माँग है और यह टीएसएमसी जैसी कंपनियों के राजस्व में महत्वपूर्ण योगदान देता है।
  • वैश्विक एकीकरण: भारत खुद को सेमीकंडक्टर आपूर्ति श्रृंखला में एकीकृत कर सकता है, यहाँ तक कि असेंबली या परीक्षण से भी शुरुआत कर सकता है।

निष्कर्ष: उचित नीतियों और पहलों को लागू करके, भारत धीरे-धीरे कच्चे माल, बुनियादी ढाँचे और कुशल श्रम की कमी जैसी चुनौतियों का सामना करने के बावजूद सेमीकंडक्टर के क्षेत्र मेंअपनी महत्वाकांक्षाओं को एक नई दिशा दे सकता है, इसके अलावा भारत संभावित लाभ रखता है और यह बड़ी मात्रा में निवेश को भी आकर्षित कर सकता है।

News Source: Forbes

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