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Lokesh Pal September 03, 2024 05:15 80 0
जम्मू और कश्मीर (J&K) के आगामी विधानसभा चुनावों को महत्वपूर्ण माना जा रहा हैं, क्योंकि वर्ष 2019 में अनुच्छेद 370 के निरस्तीकरण के बाद, जिसने J&K को दो केंद्र शासित प्रदेशों यथा जम्मू और कश्मीर एवं लद्दाख में पुनर्गठित किया था। इसके बाद अक्टूबर 2024 में सम्पन्न होने वाले ये इस क्षेत्र के प्रथम चुनाव होंगे। इस परिवर्तन के तहत जम्मू-कश्मीर की विशेष राज्य की स्थिति को समाप्त कर इसे प्रत्यक्ष रूप से केंद्र सरकार के नियंत्रण में ला दिया गया था। हाल के लोकसभा चुनावों (2024) में 58.6% के उच्च मतदान के मद्देनज़र चुनाव में राजनीतिक व्यस्तता में वृद्धि के भी संकेत प्राप्त हुए हैं। पीडीपी और नेशनल कॉन्फ्रेंस जैसे क्षेत्रीय दल अनुच्छेद 370 की पुनर्बहाली, राज्य का दर्जा पुनः स्थापित करने और पाकिस्तान के साथ नए सिरे से बातचीत जैसे मुद्दों की वकालत कर रहे हैं। हालाँकि, इन मांगों की जांच पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (POK) और गिलगित-बाल्टिस्तान (G-B) जैसे क्षेत्रों में पाकिस्तान द्वारा किये जा रहे शासन के संदर्भ में की जानी चाहिए, जहां प्रशासनिक नियंत्रण और लोकतांत्रिक स्वतंत्रता उल्लेखनीय रूप से प्रतिबंधित हैं।
कराची समझौता: 1948 के युद्ध और यथास्थिति स्थापित होने के पश्चात्, उत्तरी क्षेत्र (जो पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (POK) का 85% हिस्सा है) को पाकिस्तान द्वारा प्रत्यक्ष प्रशासनिक नियंत्रण में रखा गया और इसका नाम परिवर्तित कर गिलगित-बाल्टिस्तान कर दिया गया। मुस्लिम कांफ्रेंस और पाकिस्तान सरकार के मध्य हस्ताक्षरित 1949 के कराची समझौते के तहत शेष क्षेत्र को “आजाद कश्मीर” नामित किया गया था।
संयुक्त राष्ट्र के प्रस्तावों का उल्लंघन: यद्यपि कराची समझौते को दशकों तक गुप्त रखा गया, जो पाकिस्तान द्वारा जनमत संग्रह कराए बिना, क्षेत्रीय यथास्थिति में रणनीतिक हेरफेर को उजागर करता है, जिसके परिणामस्वरूप संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रस्तावों का उल्लंघन हुआ। पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (POK) उच्च न्यायालय द्वारा वर्ष 1993 में इस उल्लंघन को स्वीकार किया गया ।
न्यायिक सिफ़ारिशें और फैसले को पलटना: पीओके उच्च न्यायालय द्वारा पीओके को स्वायत्तता बहाल करने और पाकिस्तान द्वारा किये जा रहे प्रत्यक्ष नियंत्रण को समाप्त करने की सिफारिश की गयी। हालाँकि, पीओके सुप्रीम कोर्ट द्वारा इस निर्णय को पलटते हुए फैसला सुनाया गया कि पीओके उच्च न्यायालय के पास इस मामले पर अधिकार क्षेत्र का अभाव है।
तुलनात्मक विश्लेषण: यह स्थिति इस बात पर प्रकाश डालती है कि जहां भारत को जम्मू और कश्मीर के पुनर्गठन के संबंध में आलोचनाओं का सामना करना पड़ रहा है, वहीं पाकिस्तान द्वारा पहले ही, वर्ष 1948 में कराची समझौते के तहत इस क्षेत्र को विभाजित कर दिया गया था।
टिप्पणी:
अपने पड़ोसियों के साथ चल रहे विवादों एवं आर्थिक कठिनाइयों सहित अनेक महत्वपूर्ण आंतरिक मुद्दों के साथ, पाकिस्तान की स्थिति पहले से ही अनिश्चित है। इन चुनौतियों से प्रभावी ढंग से निपटने में देश की असमर्थता और एक पड़ोसी देश के रूप में इसका समस्याग्रस्त ट्रैक रिकॉर्ड, भारत के चुनावी मामलों में मध्यस्थ के रूप में इसकी विश्वसनीयता को कमजोर करता है। इससे विदित होता है कि जम्मू-कश्मीर के भविष्य संबंधी चर्चा में पाकिस्तान की भागीदारी, उसके घरेलू संघर्षों और तनावपूर्ण अंतरराष्ट्रीय संबंधों को देखते हुए, संदिग्ध प्रतीत होती है। |
जम्मू-कश्मीर के भविष्य संबंधी प्रकरण में पाकिस्तान को पुनः शामिल करने की मांग, पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (POK) और गिलगित-बाल्टिस्तान (जी-बी) में शासन एवं मानवाधिकारों की वास्तविकताओं से अलग होती जा रही है। इन क्षेत्रों में पाकिस्तानी प्रशासन का अत्यधिक केन्द्रीकृत नियंत्रण, स्थानीय स्वायत्तता का दमन और आर्थिक शोषण है, जो लोकतांत्रिक शासन संबंधी आदर्शों के ठीक विपरीत है। विदित है कि जब जम्मू और कश्मीर एक नए राजनीतिक अध्याय की शुरुआत कर रहा है, ऐसे में आंतरिक लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं को बढ़ाने और भारतीय संविधान के ढांचे के भीतर स्थानीय आकांक्षाओं को संबोधित करने पर ध्यान केंद्रित करना अधिक महत्वपूर्ण है। यह दृष्टिकोण सुनिश्चित करता है कि अनुच्छेद 370 के निरस्त होने के बाद से हुई प्रगति, प्रतिगामी राजनीतिक आख्यानों या वाह्य प्रभावों से प्रभावित न होने पाए।
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