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ईरान और इजरायल संकट : भारत के अरब साझेदार

Lokesh Pal October 10, 2024 05:45 61 0

संदर्भ: 

हाल के दिनों में, ईरान और इजरायल मध्य पूर्व को व्यापक स्तर पर क्षेत्रीय युद्ध में धकेलने की धमकी दे रहे हैं, इसलिए भारत को अपने अरब साझेदारों के साथ मजबूती से खड़ा होना चाहिए, जो दोनों देशों के बीच संघर्ष से प्रभावित हो रहे हैं।

अरब क्षेत्र का महत्व

  • जनसांख्यिकी और आर्थिक पैमाना : लगभग विश्व के कुल 23 देशों और 500 मिलियन की आबादी के प्रतिनिधित्तव के साथ, अरब एक वृहद बाजार का भी प्रतिनिधित्व करता है, जो इज़राइल और ईरान की विशाल आबादी के चलते सम्पूर्ण अरब को प्रभावित कर रहा है।
  • रणनीतिक स्थान और ऊर्जा सुरक्षा : खाड़ी देश भारत के कच्चे तेल के सबसे बड़े आपूर्तिकर्ताओं में से एक हैं, जो इसकी तेज़ी से बढ़ती अर्थव्यवस्था को बनाए रखने के लिए ज़रूरी है। इन देशों की रणनीतिक निकटता भारत की ऊर्जा सुरक्षा को बढ़ाती है।
  • सांस्कृतिक और ऐतिहासिक संबंध : इस क्षेत्र के साथ भारत के ऐतिहासिक, धार्मिक और सांस्कृतिक संबंध हैं। भारत के अनेक धार्मिक यात्री हज और उमराह के लिए अरब जाते हैं।
  • धार्मिक संबंध : अरब के साथ भारत के साझा धार्मिक संबंध, विशेष रूप से इस्लाम के माध्यम से, सांस्कृतिक मूल्यों के प्रति गहरी समझ और सम्मान को बढ़ावा देते हैं। 
  • उदार इस्लाम को बढ़ावा : अरब प्रायद्वीप द्वारा उदार इस्लाम को बढ़ावा देने से भारतीय उपमहाद्वीप के सामाजिक-राजनीतिक परिदृश्य पर सकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है, जिससे क्षेत्र में स्थिरता और शांति को बढ़ावा मिल सकता है।
  • बढ़ता व्यापार और निवेश: भारत और अरब जगत के बीच व्यापार संबंधों में उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई है, भारत कई अरब देशों के लिए सबसे बड़े व्यापारिक साझेदारों में से एक है।
  • भारतीय प्रवासी समुदाय : भारतीय प्रवासी समुदाय न केवल मेजबान देशों की अर्थव्यवस्थाओं में योगदान देता है, बल्कि सांस्कृतिक आदान-प्रदान और कूटनीति के लिए एक सेतु का काम भी करता है, जिससे लोगों के बीच आपसी संपर्क बढ़ता है।

ईरान के साथ संबंध

  • ऐतिहासिक संबंध : ईरान के साथ भारत के संबंध अरब के साथ उसके संबंधों की तरह ही प्राचीन और गहरे हैं।
  • भू-राजनीतिक महत्तव : भौगोलिक दृष्टि से, अरब प्रायद्वीप की तुलना में ईरान भारत के और भी करीब है। इसकी सीमाएँ अफ़गानिस्तान और पाकिस्तान से लगती हैं।
  • चाबहार बंदरगाह : ईरान में चाबहार बंदरगाह के माध्यम से पाकिस्तान की राजनीतिक बाधाओं को दरकिनार करते हुए भारत के लिए मध्य एशियाई क्षेत्रों तक पहुंचने के लिए एक सेतु या प्रवेश द्वार के रूप में कार्य करने की क्षमता है।
  • ईरान एक हाइड्रोकार्बन महाशक्ति : ईरान अपने विशाल तेल और प्राकृतिक गैस भंडार के साथ एक हाइड्रोकार्बन महाशक्ति है।

भारत-ईरान संबंधों की प्रमुख चुनौतियाँ

  • पश्चिम द्वारा प्रतिबंध : ईरान के साथ सहयोग की भारत की संभावना तेहरान के पश्चिम के साथ चल रहे संघर्ष और उस पर लगे भारी प्रतिबंधों के कारण बाधित है। इससे ईरान के साथ व्यापार करना मुश्किल हो जाता है।
  • ईरान की विदेश नीति : ईरान की विदेश नीति टकराव की प्रकृति की है। उदाहरण के लिए, ईरान के सर्वोच्च नेता अली खामेनेई ने कश्मीर मुद्दे पर टिप्पणी की है और भारत की मुस्लिम अल्पसंख्यकों की आलोचना की है।
  • ईरान की धार्मिक विचारधारा: अपनी विचारधारा के अनुसार मध्य पूर्व को नया आकार देने की ईरान की महत्वाकांक्षा खाड़ी शासनों की नज़र में अस्तित्वगत चुनौती पेश करती है। 
  • उदारवादी इस्लाम को बढ़ावा: अरब प्रायद्वीप उदारवादी इस्लाम को बढ़ावा देता है जो ईरान के इस्लाम के संस्करण, जो क्रांतिकारी इस्लाम है, के विपरीत है।
  • ईरान के प्रतिनिधि: ईरान क्षेत्र में अस्थिरता लाने के लिए हमास, हौथी विद्रोहियों और हिजबुल्लाह जैसे अपने प्रतिनिधियों का उपयोग करता रहा है।
  • भारत का दोहरा रुख : हालाँकि भारत ने ईरान द्वारा ऐसे तत्वों को दिए जा रहे समर्थन पर टिप्पणी करने से परहेज किया है, लेकिन यह लश्कर-ए-तैयबा जैसे समूहों को पाकिस्तान द्वारा दी जा रही सहायता पर उसके रुख के विपरीत है। भारत ने अक्सर विभिन्न मंचों पर पाकिस्तान की आलोचना की है, लेकिन ईरान के मामले में वह अक्सर मौन रहा है।

इज़राइल के साथ भारत के संबंध

  • संबंधों को मजबूत करना : पिछली यूपीए सरकारों के विपरीत, एनडीए सरकार ने इस रिश्ते को और मजबूत बनाने का प्रयास किया है।
  • सुरक्षा और तकनीकी प्रभुत्व: इजरायल भारत के लिए, खासकर सुरक्षा और प्रौद्योगिकी के मामले में, एक महत्वपूर्ण भागीदार बन गया है।
  • पश्चिम की सद्भावना का ह्रास : गाजा और वेस्ट बैंक में अपनी आक्रामक नीतियों के कारण इजरायल ने पश्चिम सहित वैश्विक स्तर पर अपनी सद्भावना गँवा दी है।
  • हमास हमले पर इजरायल की प्रतिक्रिया: इजरायल ने इस संकट में लगभग अपने 1500 नागरिकों को खो दिया जो दुर्भाग्यपूर्ण था। लेकिन उसके बाद इजरायल ने असंगत प्रतिक्रिया की जिसके परिणामस्वरूप गाजा में 40,00 नागरिक मारे गए।

अरब राज्यों के समक्ष दुविधा

  • अतः अनेक चुनौतियों मे मध्य, अरब देश दुविधा में हैं। उनके सामने निम्नलिखित  चुनौतियाँ हैं
  • ईरान का बढ़ता प्रभाव: इजरायल के हमले के बाद ईरान खुद को मुस्लिम दुनिया के नेता के रूप में स्थापित कर रहा है। उसका दावा है कि वह एकमात्र ऐसा देश है जिसने फिलिस्तीन की ओर से आवाज़ उठाई है। इसके ज़रिए और अपने प्रॉक्सी समूहों के ज़रिए ईरान इस क्षेत्र में अपना प्रभाव बढ़ाने की कोशिश कर रहा है।
  • इजराइल का आक्रामक व्यवहार: हर बार जब इजरायल आक्रामक रुख अपनाता है, तो अरब देशों पर इजरायल की आलोचना करने और फिलिस्तीनी मुद्दे का समर्थन करने का दबाव बढ़ जाता है, क्योंकि उनकी मुस्लिम पहचान एक जैसी है।
    • उदाहरण के लिए,  इससे पहले सऊदी अरब इजरायल के साथ अपने संबंधों को सामान्य बनाने की कोशिश कर रहा था। लेकिन गाजा पर इजरायल के हमले के बाद इन प्रयासों को रोक दिया गया क्योंकि उसे इजरायल का समर्थन न करने का दबाव और विरोध का सामना करना पड़ा।
  • ईरान के साथ संबंधों को सामान्य बनाना : खाड़ी क्षेत्र के अरब समुदायों ने भी ईरान के साथ साझा आधार तलाशने की कोशिश की है। हाल ही में चीन ने ईरान और सऊदी अरब के बीच राजनयिक संबंधों को फिर से शुरू करने के लिए मध्यस्थ की भूमिका निभाई। 
  • ईरान के साथ अस्थिर संबंध के कारण : ईरान द्वारा प्रॉक्सी समूहों को दी जाने वाली सहायता ने अरब देशों को ईरान के साथ स्थिर संबंध बनाए रखने से रोका है।
    • उदाहरण के लिए, सऊदी अरब के पड़ोसी यमन में हूथी विद्रोहियों को ईरान से समर्थन मिला है। इस सहायता के कारण सऊदी अरब और ईरान के बीच संबंध खराब हो गए हैं।

आगे की राह 

  • भारत एक शांतिपूर्ण और आर्थिक रूप से एकीकृत मध्य पूर्व की कामना करता है जो धार्मिक संयम की वकालत करता हो।
  • भारत एक ऐसा मध्य पूर्व भी चाहता है जो भारत और मध्य एशिया के बीच एक सेतु के रूप में कार्य कर सके। 
  • भारत को अरब राज्यों का समर्थन करना चाहिए। भारत को ईरान और इज़राइल के बीच विनाशकारी युद्ध को रोकने में भी मदद करनी चाहिए, ठीक उसी तरह जैसे वह रूस-यूक्रेन युद्ध के मामले में के मध्यस्थ के रूप में सक्रिय भूमिका निभा रहा है।

निष्कर्ष 

भारत को संतुलित दृष्टिकोण अपनाना चाहिए। उसे ईरान और इजराइल के साथ संबंध बनाए रखने चाहिए, लेकिन अरब देशों के साथ संबंधों पर अधिक ध्यान देना चाहिए क्योंकि ये देश भारत के लिए अधिक महत्वपूर्ण हैं।

मुख्य परीक्षा पर आधारित प्रश्न : 

प्रश्न : मध्य पूर्व के साथ भारत के जुड़ाव और भारत के आर्थिक, ऊर्जा और सुरक्षा हितों के लिए इसके रणनीतिक महत्तव का आलोचनात्मक विश्लेषण करें। 

(15 अंक, 250 शब्द)

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