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ईरान इजराइल संघर्ष और भारत

Lokesh Pal April 17, 2024 05:00 157 0

प्रारंभिक परीक्षा के लिए प्रासंगिकता: वर्ल्ड मैप पर ईरान और इज़राइल की अवस्थिति, हिज़्बुल्लाह, गाजा पट्टी तथा मध्य एशियाई देशों के बारे में ।

मुख्य परीक्षा के लिए प्रासंगिकता: इज़राइल-फिलिस्तीन का मुद्दा, भारत द्वारा संबंधों को कमजोर करना।

संदर्भ:

हाल ही में, ईरान द्वारा 200-300 ड्रोन और बैलिस्टिक मिसाइलों का उपयोग करके इज़राइल पर हवाई हमले करवाए गए।

संघर्ष की पृष्ठभूमि

  • इजरायल पर ये हमले ईरान के अर्धसैनिक बल “ईरानी रिवोल्यूशनरी गार्ड कॉर्प्स” द्वारा इस माह की शुरुआत में सीरिया में एक ईरानी वाणिज्य दूतावास को निशाना बनाने वाले इजरायली युद्ध जेट विमानों के जवाब में किए गए थे। 
    • ईरान ने इस हमले को ऑपरेशन ट्रू प्रॉमिस नाम दिया है।
  • यह पहली बार है जबकि ईरान ने खुले और सीधे तौर पर इजराइल पर हमला किया है। इससे पहले इजराइल का आरोप था कि ईरान ने अपने प्रॉक्सी आतंकी संगठन हमास, हिजबुल्लाह और हौथी विद्रोहियों के जरिए हमला कराया।
  • ईरानी सरकार ने ज़ायोनी शासन से जुड़े सभी जहाजों पर ओमान सागर और फारस की खाड़ी में यात्रा करने पर प्रतिबंध लगाने की घोषणा की।
  • विश्व की प्रतिक्रिया:
    • विश्व भर के नेताओं ने ईरानी हमले की निंदा की है और शत्रुता को समाप्त करने का आह्वान किया है।

उभरती चिंता- पूर्ण युद्ध की संभावना:

  • इजरायल पर निर्भरता : यह इस बात पर निर्भर करता है कि ईरान द्वारा करवाए गए इस हमले का जवाब इजरायल किस प्रकार से देता है।
    • इस हमले के बाद से इजरायल की एक मजबूत प्रतिक्रिया ही दोनों देशों को पूरी तरह से युद्ध में धकेल सकती है, संभवतः अमेरिका भी इसमें शामिल हो सकता है।
  • अन्य देशों की भागीदारी: इसमें अमेरिका और ब्रिटेन की सेनाएँ पहले से ही शामिल हैं, जिमें उन्होंने जॉर्डन, सीरिया और इराक के ऊपर ईरानी ड्रोन को मार गिराया है।
    • अमेरिकी राष्ट्रपति ने इज़राइल की सुरक्षा के प्रति अपने देश की “दृढ़” प्रतिबद्धता की पुष्टि की है । 
    • शक्ति संतुलन पर प्रभाव: यदि संघर्ष बढ़ता है तो समस्या और भी जटिल हो जाएगी क्योंकि संयुक्त राज्य अमेरिका का सीधा प्रवेश अनिवार्यहो जाएगा।
  • संयुक्त राष्ट्र की प्रतिक्रिया: संयुक्त राष्ट्र ने ईरान और इज़राइल से संयम बरतने का आह्वान किया है, क्योंकि इन दोनों देशों के बीच मध्य पूर्व में पूर्ण पैमाने पर प्रत्यक्ष संघर्ष का खतरा मंडरा रहा है।
    • पिछले दो हफ्तों में आपसी हवाई हमलों के बाद संयुक्त राष्ट्र महासचिव ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की एक आपात बैठक में विरोधियों को आगाह किया कि वे आगे से हमले करके इस क्षेत्र में तनाव को न बढ़ाएं।
    • हालाँकि, ईरान और इज़राइल ने एक दूसरे पर शांति के लिए ख़तरा होने का आरोप लगाने पर ध्यान केंद्रित किया है ।

विश्व पर प्रभाव:

  • आर्थिक निहितार्थ:
    • तेल की कीमतें: इसका प्रभाव तेल की अधिक होती कीमतों पर पड़ेगा।
      • कच्चा तेल, जो पहले से ही छह महीने के उच्चतम स्तर पर है, अगर तनाव बढ़ता है तो यह 100 डॉलर प्रति बैरल को पार कर सकता है।
  • आपूर्ति-श्रृंखला में व्यवधान: संपूर्ण युद्ध से आपूर्ति श्रृंखला में भी व्यवधान उत्पन्न होगा क्योंकि ईरान स्वेज नहर को बंद कर सकता है ।
  • उच्च मुद्रास्फीति का खतरा: जब विकसित देश ब्याज दरों को कम करने पर विचार कर रहे हैं तो यह सब मुद्रास्फीति को बढ़ा देगा। 
    • वैश्विक आर्थिक वृद्धि 3.1% की दर से नीचे गिर सकती है,  मुद्रास्फीति में इस गिरावट का अनुमान अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने वर्ष 2024 के लिए लगाया है।
  • अंतरराष्ट्रीय कूटनीति के लिए चुनौती:
    • इस टकराव का असर ईरान परमाणु समझौते पर पड़ सकता है। साथ ही, किसी भी तरह की आगे की वृद्धि क्षेत्र में शांति प्रक्रियाओं में बाधा उत्पन्न कर सकती है, क्योंकि देश राजनयिक समाधानों पर राष्ट्रीय सुरक्षा चिंताओं को प्राथमिकता दे रहे हैं।
  • वैश्विक राजनीतिक पर प्रभाव:
    • इजराइल के समर्थन में अमेरिका के शामिल होने से अंतरराष्ट्रीय संबंधों में बदलाव आ सकता है।
      • उदा. रूस और चीन, ईरान का समर्थन कर सकते हैं।
  • क्षेत्रीय अस्थिरता :
    • इज़राइल और ईरान दोनों ही इस क्षेत्र के लिए महत्त्व रखते हैं, और उनके मध्य  कोई भी तनाव क्षेत्रीय स्थिरता को प्रभावित कर सकता है।
    • सीरिया, लेबनान और सऊदी अरब जैसे अन्य देश भी इस व्यापक संघर्ष में शामिल हो सकते हैं।

ईरान-इज़राइल संबंध:

  • वर्ष 1948 में इज़राइल के गठन के पश्चात्, ईरान इस क्षेत्र के उन देशों में से एक था जिसने इजराइल को मान्यता प्रदान की थी । हालाँकि वर्ष 1979 के बाद ही उनके मध्य के राजनयिक संबंध समाप्त हो गए।
  • वर्ष 1979 से पूर्व के ईरान-इज़राइल संबंध: वर्ष 1948 में, अरब राज्यों का इजरायल के साथ विरोध के कारण प्रथम अरब-इज़राइल युद्ध हुआ था । 
    • हालाँकि इरान उस संघर्ष का हिस्सा नहीं था, इज़राइल की जीत के पश्चात् उसने यहूदी राज्यों के साथ संबंध स्थापित किए थे । 
    • तुर्की के बाद ऐसा कदम उठाने वाला वह दूसरा मुस्लिम बहुल देश था।
  • 1979 की क्रांति: 1979 की इस्लामी क्रांति के दौरान शाह को सत्ता से पदच्युत करने के  पश्चात् ईरान में एक धार्मिक राज्य की स्थापना हुई। 
    • इसके पश्चात् इज़राइल के प्रति ईरानी शासन के दृष्टिकोण में आए परिवर्तन के कारण इसे फ़िलिस्तीनी भूमि पर अधिग्रहण कर्ता के रूप में देखा जाने लगा।
  • मिस्र के साथ ईरान के संबंध: मिस्र के नेता नासिर द्वारा लंबे समय तक इस क्षेत्र में “पैन-अरबी” के विचार का समर्थन किया गया था, ताकि अरब राज्यों के मध्य की  सांस्कृतिक समानताओं को विशाल एकजुटता और एकता में परिवर्तित किया जा सके। 
    • इस अवधारणा ने एक गैर-अरब देश ईरान को इसके साथ खड़ा कर दिया।
    • हालाँकि, 1970 में नासिर की मृत्यु के साथ ही ईरान के मिस्र जैसे देशों के साथ संबंध विवादित हो गए ।
  • ईरान-इराक समझौता, 1975: इस समझौते के तहत ईरान द्वारा कुर्द-इराकी अलगाववादियों को समर्थन देना बंद कर दिया गया एवं विद्वेष में कमी लायी गयी जिसने ईरान के संबंध में  इज़राइल के रणनीतिक मूल्य को प्रभावित किया।
  • 1979 के पश्चात्: हालाँकि इज़राइल और ईरान कभी भी सीधे सैन्य टकराव में शामिल नहीं हुए बल्कि दोनों के द्वारा छद्म एवं सीमित रणनीतिक हमलों के माध्यम से एक-दूसरे को क्षति  पहुँचाने का प्रयास किया गया।
  • स्टक्सनेट साइबर हमला, 2010: माना जाता है कि अमेरिका और इज़राइल द्वारा दुर्भावनावश एक कंप्यूटर वायरस ‘स्टक्सनेट’ का विकास किया गया, जिसने ईरान की नटान्ज़ (Natanz) परमाणु सुविधा को बाधित कर दिया I इसे एक प्रकार का साइबर युद्ध की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम माना जाता है।
    • यह “औद्योगिक मशीनरी पर सार्वजनिक रूप से ज्ञात प्रथम साइबर हमला” था।
  • ईरान का प्रॉक्सी समर्थन: ईरान को इस क्षेत्र में कई आतंकी समूहों को वित्त पोषण और समर्थन के लिए जिम्मेदार ठहराया जाता है जो इजरायल विरोधी एवं अमेरिका विरोधी माने जाते हैं I 
    • उदाहरणस्वरूप लेबनान में हिजबुल्लाह और गाजा पट्टी में हमास

दोनों देशों के साथ भारत के संबंध और स्थिति:

  • महत्वपूर्ण सहयोगी: ईरान और इजराइल को लेकर प्राथमिकता संबंधी चयन हेतु इस समय भारत के पास मौजूदा विकल्प काफी कठिन माने जा रहे हैं, क्योंकि ईरान-इज़राइल दोनों ही भारत के राष्ट्रीय हितों के लिए महत्त्वपूर्ण माने जाते हैं।
  • भारत की स्थिति: भारत दोनों देशों के मध्य व्याप्त तनाव में कमी लाना चाहता है I दोनों देशों का हिंसा से पीछे हटना और कूटनीतिक तरीकों को अपनाना भारत के राष्ट्रीय हित के लिए महत्त्वपूर्ण और आवश्यक है ।

भारत के लिये चुनौतियाँ:

  • रणनीतिक आवश्यकताओं पर प्रभाव: भारत के प्रमुख अरब देशों क्रमशः ईरान और इज़राइल के साथ अच्छे रणनीतिक संबंध रहे है। 
    • भारत द्वारा इस क्षेत्र में भारत-मध्य-पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारे को आगे बढ़ाने हेतु कार्य किये जा रहे हैं, जिसमें भारत के रणनीतिक और आर्थिक लाभ भी अन्तर्निहित हैं।
    • दोनों देशों के मध्य संघर्ष में हुई वृद्धि के कारण लोगों की आम सहमति पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है।
  • आर्थिक हितों पर प्रभाव: यद्यपि रूस से भारत को होने वाले आयात में वृद्धि हुई है, लेकिन अरब देशों द्वारा भी भारत की दो-तिहाई तेल जरूरतों को पूरा किया जाता है। 
    • तेल की बढ़ती कीमतों से मुद्रास्फीति में वृद्धि होगी, जिसके परिणामस्वरूप सकल घरेलू उत्पाद में वृद्धि हेतु उत्तरदायी ब्याज दरों की कटौती में देरी होगी। 
    • साथ ही पहले से ही धीमा चल रहे व्यापारिक वस्तु निर्यात में और भी गिरावट आएगी ।
    • ईरान-इज़राइल संघर्ष में वृद्धि के कारण सेंसेक्स और निफ्टी में गिरावट आई है , जिसकी वजह से निवेशक जोखिम लेने से बच रहे हैं।

ईरान का इजराइल पर जवाबी हमला 

  • तनाव में वृद्धि: ईरान द्वारा इज़राइल पर बड़े पैमाने पर ड्रोन और मिसाइल द्वारा हमला किया गया, जिसे दमिश्क में उसके दूतावास परिसर पर बमबारी का प्रतिशोध माना जा रहा है ।
  • संघर्ष: पश्चिम एशिया जो पहले से ही अस्थिर था, वहाँ तनाव में अब और वृद्धि होने से यह क्षेत्र पूर्ण रूप से युद्ध के कगार पर पहुँच गया है।
  • ईरान को क्षति : हमले में मोहम्मद रज़ा ज़ाहिद सहित दो जनरलों और रिवोल्यूशनरी गार्ड्स के पाँच वरिष्ठ अधिकारियों की मृत्यु के कारण ईरानी प्रतिक्रिया की अत्यधिक आशंका जताई गयी थीं।
  • ऐतिहासिक पैटर्न: ईरान आमतौर पर अपने अधिकारियों पर इजरायली हमलों के जवाब में प्रॉक्सी का उपयोग करता आया है या अन्य देशों में इजरायली संपत्तियों को निशाना बनाता है।
  • तेहरान का इजराइल पर सीधा हमला: तेहरान द्वारा अपने देश से ही सीधे इजराइल को निशाना बनाते हुए हमले शुरू कर दिए गए थे। गौरतलब है कि पश्चिम एशिया में तनाव अब बढ़ चुका है।
  • अंतर्राष्ट्रीय प्रतिक्रिया: इज़राइल द्वारा यू.एस., यू.के., फ्रांस और जॉर्डन की सहायता से “99%” की सफलता दर के दावे के साथ अधिकांश ईरानी प्रोजेक्टाइल अर्थात् मिसाइलों को रोक दिया जाता  है। 

ईरान:

  • अमेरिका समेत इजराइल के सहयोगी देश भी इजराइल की मिसाइल रक्षा प्रणाली की सराहना करते हैं।
  • क्षेत्रीय संघर्ष को रोकने के लिए इजरायली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू से संयम  बरतने का आह्वान किया गया है ।
  • इज़राइल का रुख: इज़राइल द्वारा ईरान की आक्रामकता का निर्णायक रूप से जवाब देने का संकल्प लिया गया है ।

आगे की राह :

  • संवाद-आधारित कूटनीतिक समाधान: भारत द्वारा हमेशा से ही इस दृष्टिकोण को महत्त्व दिया गया है। भारत को इजराइल के साथ और अधिक जुड़ने की आवश्यकता है क्योंकि सीरिया के दमिश्क में एक ईरानी परिसर पर इजराइली हमले के परिणामस्वरूप ईरानी कार्रवाई शुरू की गई।
  • सक्रिय भागीदारी: वर्तमान में यह इज़राइल की ज़िम्मेदारी है कि वह ईरान द्वारा शुरू किए गए ड्रोन हमलों को स्वीकार कर तब तक संयम बरते जब तक कि ईरान इसे और आगे न बढ़ा दे। 
    • इस संघर्ष पर पर विराम की सुनिश्चितता हेतु भारत को संयुक्त राज्य अमेरिका, ईरान, रूस और इज़राइल के साथ सक्रिय रूप से जुड़ना आवश्यक है ।
    • भारत को हर संभव यह प्रयास करना होगा कि ईरान इजरायल के साथ निरंतर चलने वाले इस संघर्ष में शामिल न हो क्योंकि इसका अर्थ होगा संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ संघर्ष, जो पहले से ही विश्व के इस क्षेत्र में उभरना शुरू हो गया है।
  • भविष्य संबंधी चुनौतियों पर विचार: संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ वार्ता आवश्यक है क्योंकि अमेरिका रूस-यूक्रेन युद्ध, इज़राइल-हमास युद्ध, लाल सागर में हौथी हस्तक्षेप और संभावित ईरान-इज़राइल संघर्ष से जुड़ा हुआ है।
    • इसलिए अगर चीन द्वारा ताइवान एकीकरण या ऐसे अन्य दावों के संबंध में दक्षिण चीन सागर में संघर्ष बढ़ाया जाता है, तो संयुक्त राज्य अमेरिका के लिए अपनी जिम्मेदारियों को पूरा करना कठिन हो जाएगा।
  • पूर्ण प्रक्रिया निर्धारण: भारत को अपने स्वदेशीकरण अभियान को बढ़ावा देने और नई वैश्विक व्यवस्था में अपने बढ़ते दायित्वों के अलावा चीन और पाकिस्तान से जुड़े खतरे का मुकाबला करने के लिए समग्र रूप से ‘प्रक्रिया निर्धारण’ को अपनाने की आवश्यकता है ।
  • विकास पर केन्द्रित : देश में रक्षा विनिर्माण सुविधाएँ स्थापित करने के लिए भारत को इज़राइल के साथ चर्चा करना आवश्यक है, जिससे  भारत, इज़राइल और अन्य मित्र देशों की जरूरतें भी पूरी हो सकेंगी। 
    • इसके परिणामस्वरूप इज़राइल को अपने रक्षा उद्योग को विकसित करने के लिये अधिक सुरक्षित स्थान प्राप्त हो सकेगा ।
    • देखा जाए तो, भारत को ईरान में चाबहार बंदरगाह संबंधी कार्यों को तीव्रता से पूरा करने की आवश्यकता है। 
    • एक बार इसके पूर्ण रूप से चालू हो जाने और उपयोग में लाये जाने के उपरांत, यह ईरान को अपने क्षेत्रीय और वैश्विक मामलों पर उसकी राय को आकार देने के संबंध में अतिरिक्त लाभ प्रदान करेगा ।

निष्कर्ष:

निष्कर्षतः भारत को मध्य-पूर्व क्षेत्र में विभिन्न महत्त्वपूर्ण देशों के साथ होने वाली अपनी वार्ता में संतुलित दृष्टिकोण बनाए रखने का प्रयास करना चाहिए। गौरतलब है कि इन देशों में मिस्र, ईरान, इज़राइल, कतर, तुर्की, सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात जैसे देश भी शामिल हैं, जिनमें से प्रत्येक के झुकाव और हित, इस क्षेत्र में चल रहे संघर्षों के मध्य, अलग-अलग हैं।

Source: The Indian Express 

प्रारंभिक परीक्षा पर आधारित प्रश्न :

Q. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये : 

  1.  ‘टू स्टेट सॉल्यूशन’ दशकों से चल रहे  इज़राइल-ईरान  संघर्ष में शांति बहाल करने के प्रयासों का प्राथमिक केंद्र रहा है।
  2. 1967 में हुए प्रसिद्ध ‘सिक्स डे वॉर’ (Six-Day War) जिसे अरब-इजराइल युद्ध के नाम से भी  जाना जाता है; इस युद्ध  में ईरान ने अरब के तरफ से  भाग लिया था|

उपरोक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1

(b) केवल 2

(c) केवल 1 और 2 

(d) इनमें से कोई नहीं

उत्तर – d

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