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ईरान, पाकिस्तान और बलूच उग्रवाद (Iran, Pakistan and Baloch insurgency)

Samsul Ansari January 22, 2024 05:11 163 0

संदर्भ

हाल के मिसाइल हमलों, ड्रोन हमलों और ईरान और पाकिस्तान के मध्य उत्पन्न क्षेत्रीय विवादों ने इन दो देशों और संबंधित क्षेत्र को सुर्खियों में ला दिया है।

प्रीलिम्स के लिए प्रासंगिकता: गोल्डस्मिथ लाइन।

मुख्य परीक्षा के लिए प्रासंगिकता: ईरान-पाकिस्तान संबंध और भारत पर प्रभाव।

ईरान-पाकिस्तान संबंध

  • रिश्ते में सुदृढ़ता
  • सहयोगी: ईरान में हुई वर्ष 1979 की इस्लामी क्रांति से पहले, दोनों देश ईरान और पाकिस्तान, अमेरिका के साथ दृढ़ता से जुड़े हुए थे और वर्ष 1955 में वे बगदाद संधि में शामिल हुए, जिसे बाद में केंद्रीय संधि संगठन (CENTO) के रूप में जाना जाता है। यह नाटो पर आधारित एक सैन्य गठबंधन था।
  • युद्ध के दौरान समर्थन: ईरान ने भारत के खिलाफ वर्ष 1965 और 1971 के युद्धों के दौरान पाकिस्तान को सामग्री और हथियार सहायता प्रदान की थीI यहाँ तक कि उसने बांग्लादेश की मुक्ति के बाद भी पाकिस्तान को सहयोग जारी रखा था और उस समय  ईरान के शाह का कथन भी था कि वह पाकिस्तान केऔर अधिक विघटनको बर्दाश्त नहीं करेंगे।
  • मतभेदों का आविर्भाव 
  • अमेरिकी कारक: वर्ष 1979 के बाद से, ईरान में पाकिस्तान के प्रति अविश्वास रहा था, जो 9/11 के बाद और बढ़ गया क्योंकि इस्लामाबाद ने अमेरिका कोआतंकवाद के खिलाफ युद्धमें बिना शर्त समर्थन दे दिया था।
  • विभिन्न रणनीतिक संबंध: वर्ष 1979 के बाद की क्रांति के पश्चात् जहाँ ईरान की निर्यात केंद्रित विदेश नीति ने उसके अरब पड़ोसियों के साथ संबंधों में दरार ला दी थी, वहीँ दूसरी तरफ इन अरब राज्यों के साथ पाकिस्तान के निरंतर चलायमान रणनीतिक संबंधों ने ईरान के साथ उसके संबंधों को भी प्रभावित किया।
  • अफगानिस्तान कारक: अफगानिस्तान में सोवियत सेना की वापसी के बाद पाकिस्तान और ईरान अलग-अलग  रुख थे, अर्थात् उनमें मत-भिन्नता थी।
  • ईरान ने पाकिस्तान निर्मित तालिबान के विरुद्ध उत्तरी गठबंधन का समर्थन किया और वर्ष 1998 में इस युद्ध में शामिल हो गया।

सुलह के प्रयास

  • 1995: इस समय पाकिस्तान की प्रधानमंत्री बेनजीर भुट्टो द्वारा ईरान कोइस्लाम में एक मित्र, एक पड़ोसी और एक भाईक रूप में संबोधित किया गया और साथ ही गैस का आयात भी शुरू किया गया, विभिन्न सहयोगों  पर जोर दिया गया और अमेरिकी प्रतिबंधों पर खेद व्यक्त किया गया।
  • 2013: जरदारी के राष्ट्रपतित्व में ईरान के साथ सहयोग में वृद्धि हुई, विशेषकर व्यापार और ऊर्जा के क्षेत्र में। वर्ष 2013 में, ईरान-पाकिस्तान गैस पाइपलाइन परियोजना को भी मंजूरी प्राप्त हुई थी।
    • हालाँकि, जून 2013 में नवाज शरीफ की अध्यक्षता में संबंधों में दरार देखी गयी, जिसके परिणामस्वरूप ईरान पाइपलाइन परियोजना अधूरी रह गई।

दोनों देशों की साझा बलूच समस्या

  • साझा सीमा: 909 किलोमीटर की लंबी ईरान-पाकिस्तान सीमा, जिसे गोल्डस्मिथ लाइन के नाम से जाना जाता है, अफगानिस्तान से उत्तरी अरब सागर तक फैली हुई है। रेखा के दोनों ओर लगभग 9 मिलियन  बलूच नृजातीय समूह निवास करते हैं।
  • संबंधों की साझेदारी : आधुनिक सीमाओं से परे दोनों देशों में विस्तृत ये बलूच समूह सांस्कृतिक, जातीय, भाषायी और धार्मिक संबंधों को साझा करते हैं।
  • एक अल्पसंख्यक समूह के रूप में : पाकिस्तान और ईरान दोनों में, बलूच एक अल्पसंख्यक नृजातीय समूह माना जाता है।
  • बलूच की मातृभूमि प्राकृतिक संसाधनों से समृद्ध है लेकिन यहाँ गरीबी व्याप्त है। ईरान में 80% बलूच आबादी गरीबी रेखा के नीचे जीवनयापन करती है और वे पाकिस्तान में भी वे गरीबी में जी रहे हैं।

विद्रोही और हमले संबंधी मुद्दे

  • बलूच राष्ट्रवाद की शुरुआत: बलूच राष्ट्रवाद की शुरुआत 20वीं सदी के शुरुआती दशकों में हुई, जब इस क्षेत्र में नई अंतरराष्ट्रीय सीमाएँ खींची गई थीं।
  • अलगाववादी आंदोलन: बाद के वर्षों में दोनों देशों में इस समूह के हाशिए पर जाने के कारण  “ग्रेटर बलूचिस्तानराष्ट्र राज्य के समर्थन के लिए कई अलगाववादी आंदोलनों को बढ़ावा मिला।
  • संबंधों में तनाव: ये विद्रोही छिद्रयुक्त सीमाओं (Porous Boundaries) के आर-पार यात्रा करते हुए अपने लक्ष्यों पर हमला करते हैं और साथ ही एक-दूसरे पर आतंकवादियों को पनाह देने और समर्थन करने का आरोप लगाकर संबंधों में जटिलता भी उत्पन्न करते हैं।
  • संगठन का आधार: ईरान में बलूच विद्रोही सुन्नी धार्मिक आधार पर संगठित होते हैं, जबकि पाकिस्तान में वे एक ज्यादा धर्मनिरपेक्ष नृजातीय-राष्ट्रवादी माने जाते हैं।

भारत-ईरान संबंध

  • मजबूत संबंध: देखा जाए तो ईरान के साथ भारत के संबंध मजबूत हुए हैं और ईरान पर अमेरिकी प्रतिबंधों के बावजूद उन्होंने ऊर्जा क्षेत्र में सहयोग भी किया है।
  • बुनियादी ढाँचा विकास: भारत शुरू से ही चाबहार बंदरगाह की योजना और उसके निर्माण में शामिल रहा है। रणनीतिक लिहाज से चाबहार की सीधी प्रतिद्वंदिता पाकिस्तान के ग्वादर बंदरगाह से की जाती है।
  • आतंकवाद पर: भारत आतंकवाद के प्रति अपनी शून्य सहनशीलता की स्थिति पर अडिग रहता है।
  • भारत का लंबे समय से यह मानना है कि पाकिस्तान आतंकवादियों को पनाह देता है। 
    • ईरान का भी यही मानना है कि भारत के पास वर्ष 2019 की बालाकोट सर्जिकल स्ट्राइक करने का भी यही औचित्य था।
  • पाकिस्तान के जवाबी हमलों का उद्देश्य: इन हमलों का उद्देश्य भारत को भी एक संदेश भेजना था एवं इससे पाकिस्तान को उम्मीद है कि संभवतः भारत को भविष्य में सीमा पार हमले करने से रोका जा सकेगा।

निष्कर्ष

ऐसा प्रतीत होता है कि ईरान और पाकिस्तान दोनों पक्षों के हालिया हमलों का उद्देश्य अपने दुश्मनों को उनके संबंधित क्षेत्रों में बाधाएँ उत्पन्न करने से रोकने के लिए चेतावनी देना था।

समाचार स्रोत: द इंडियन एक्सप्रेस

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