प्रारंभिक परीक्षा के लिए प्रासंगिकता: भारतीय चुनाव आयोग, वोटर सत्यापनीय पेपर ऑडिट ट्रेल, इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन I
मुख्य परीक्षा के लिए प्रासंगिकता: वीवीपीएटी ( VVPAT ) मशीनों के साथ समस्याएँ और चुनाव आयोग के साथ जुड़ी चुनौतियाँ I
संदर्भ:
हाल ही में, भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों के माध्यम से किए गए मतों के पेपर ट्रेल की 100% सत्यापन की माँग को खारिज कर दिया।
मुख्य बिंदु :
पेपर ट्रेल परिचय:पेपर ऑडिट ट्रेल की शुरूआत ही स्वयं उस चिंता के उत्तर में किया गया था कि मतदाताओं को यह पता कैसे चलेगा कि उनके वोट सही तरीके से दर्ज हुए हैं अथवा नहीं ।
सत्यापन की विडंबना: यह विडंबना है कि इस तरह की आशंकाओं को दूर करने के लिए लगायी गयी सत्यापन प्रणाली खुद ही एक विवाद का कारण बन गई है कि पेपर ट्रेल को किस स्तर तक सत्यापित किया जाना चाहिए।
सर्वोच्च न्यायालय की सिफारिशें:
मतदान स्थलों की संख्या में वृद्धि: एक और मामले में, वह प्रत्येक विधानसभा क्षेत्र या सेगमेंट में वीवीपीएटी (VVPAT) सत्यापन की संख्या को एक से पाँच करने के पक्ष में था।
स्वचालित वीवीपीएटी (VVPAT) संख्या की गणना: जस्टिस संजीव खन्ना ने सुझाव दिया कि वीवीपीएटी (VVPAT) स्लिप को मशीनों के माध्यम से गिनी जा सकती हैं,, और भविष्य में सुविधाजनक गणना के लिए वीवीपीएटी VVPAT इकाइयों में भरे गए प्रतीक को बारकोड किया जा सकता है।
प्रतीक लोडिंग इकाइयों की सुरक्षा: न्यायालय ने कहा कि प्रतीक लोडिंग इकाइयों को सुरक्षित रखा जाए और परिणामों की घोषणा के बाद 45 दिनों के लिए सुरक्षित रखा जाए।
ईवीएम माइक्रो-नियंत्रक सत्यापन:शीर्ष दो हारने वाले उम्मीदवारों को निर्दिष्ट पोलिंग बूथों में 5% ईवीएम में माइक्रो-नियंत्रकों की प्रमाणिकता की जाँच करने की अनुमति है, ताकि यदि कोई भ्रम हो, तो उसे पता लगाया जा सके।
चुनावी विश्वसनीयता सुनिश्चित करना:
चुनावी सत्यापन के साथ कोई हस्तक्षेप नहीं:यह पहली बार नहीं है कि न्यायालय ने वर्तमान प्रणाली में हस्तक्षेप करने से इंकार किया है; इससे पहले एक मामले में कागजी रास्ते की 50% प्रमाणिती का आदेश देने से इनकार किया था और दूसरे मामले में 100% प्रमाणिती का आदेश देने से भी इनकार किया था।
प्रशासनिक और तकनीकी सुरक्षा की समीक्षा:न्यायालय ने इस याचिका का उपयोग प्रणाली में प्रशासनिक और तकनीकी संरक्षणों की पुनरावलोकन के लिए किया और उसमें कोई ऐसी चीज़ नहीं मिली जो उसके विश्वास में कोई कमी उत्पन्न करे।
संदेह मुक्त चुनाव: यह स्पष्ट होना चाहिए कि ऐसी प्रौद्योगिकी उन्नति ही प्रक्रिया को संदेह-मुक्त बना सकती है।
विश्वास की कमी:एक व्यापक अवलोकन यह है कि संभावित परिवर्तन के संदेश और संदेह के संबंध में उत्पन्न चिंताएँ और एक पूर्वानुपयुक्त क्षेत्र में भारतीय चुनाव आयोग में विश्वास की एक विशेष कमी का संकेत देती है।
निष्कर्ष:
निष्कर्षतः भारत में चुनावों के विश्वसनीयता को सुनिश्चित करने के लिए, चुनाव आयोग को इन चुनौतियों का सामना करने के लिए तकनीकी सुधार, अधिक पारदर्शिता, जागरूकता बढ़ाने, और कानूनी मुद्दों का सक्रिय रूप से समाधान करने पर काम करना होगा।
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