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माइक्रो-फाइनेंस में सुधार से संबंधित मुद्दा

Lokesh Pal June 20, 2025 05:00 10 0

संदर्भ:

हाल ही में, आरबीआई के डिप्टी गवर्नर एम. राजेश्वर राव ने सूक्ष्म वित्त के क्षेत्र में तत्काल आंतरिक सुधारों का आह्वान किया है।

भारत में माइक्रोफाइनेंस:

  • लघु ऋणों का प्रावधान: माइक्रोफाइनेंस से तात्पर्य निम्न आय वाले व्यक्तियों या समूहों को लघु ऋणों (सूक्ष्म ऋणों) के प्रावधान से है।
  • पारंपरिक पहुंच का अभाव: इन व्यक्तियों के पास आमतौर पर पारंपरिक बैंकिंग सेवाओं तक पहुंच का अभाव होता है।
  • वित्तीय समावेशन को बढ़ावा देना: इसका उद्देश्य वित्तीय समावेशन को बढ़ावा देना है।
  • आजीविका सृजन को सक्षम बनाना: इसका उद्देश्य गरीबों के बीच आजीविका सृजन को सक्षम बनाना भी है।
  • अग्रणी मॉडल: ग्रामीण बैंक जैसे माइक्रोफाइनेंस संस्थानों (एमएफआई) ने इस मॉडल को कुशल नेतृत्व प्रदान किया। बांग्लादेश के डॉ . मुहम्मद यूनुस ने इस नवाचार के लिए नोबेल शांति पुरस्कार जीता, इसके महत्वपूर्ण प्रभाव को स्वीकार किया।

माइक्रोफाइनेंस के क्षेत्र में विद्यमान चुनौतियाँ:

  • उच्च ब्याज दर: कुछ माइक्रोफाइनेंस संस्थान (एमएफआई) उच्च ब्याज दर वसूलते हैं, कभी-कभी इसकी सीमा 30-40% तक पहुँच जाती है।
  • अधिक-ऋणग्रस्तता: उधारकर्ताओं को कई बार ऋण दिए जाने से प्रायः अति-ऋणग्रस्तता हो जाती है, जिससे वे ऋण के चक्र में फंस जाते हैं।
  • कठोर वसूली पद्धति: कुछ कठोर वसूली पद्धतियों के उदाहरणों में बलपूर्वक व दबावपूर्ण ढंग से सम्पन्न की जाने वाली रणनीतियां भी शामिल हैं, जिनके कारण कभी-कभी उधारकर्ता आत्महत्या कर लेते हैं।
  • आंध्र प्रदेश में 2010 का संकट: 2010 में आंध्र प्रदेश संकट में उधारकर्ताओं की गंभीर परेशानी और आत्महत्याएं देखी गईं, जो सीधे तौर पर आक्रामक ऋण वसूली प्रथाओं से जुड़ी हुई थी।
  • क्षेत्र का व्यावसायीकरण: माइक्रोफाइनेंस क्षेत्र का तेजी से व्यावसायीकरण हो गया है, तथा इसका ध्यान गरीबों के वास्तविक सशक्तीकरण के बजाय उच्च लाभ की ओर स्थानांतरित हो गया है।
  • आत्म-मंथन का आह्वान: आरबीआई के डिप्टी गवर्नर ने उद्योग के भीतर आत्म-मंथन और आत्मनिरीक्षण की महत्वपूर्ण आवश्यकता पर बल दिया है, तथा नैतिक चिंताओं पर प्रकाश डाला है।

माइक्रोफाइनेंस के लिए आरबीआई के सुधार उपाय (मार्च 2022 से आगे):

  • ब्याज दर की सीमा: आरबीआई ने माइक्रोफाइनेंस संस्थानों (एमएफआई) को अत्यधिक ब्याज दरें वसूलने से रोकने के लिए ब्याज दर सीमा लागू की।
  • उन्नत ग्राहक सुरक्षा: ग्राहक सुरक्षा को बढ़ाने के लिए नए दिशानिर्देश लागू किए गए, विशेष रूप से कठोर तरीकों को रोकने के लिए ऋण वसूली प्रथाओं को विनियमित किया गया है।
  • कार्यान्वयन: इन सुधारों के प्रभावी कार्यान्वयन पर जोर दिया जा रहा है, जो कि नियमों के निर्माण से आगे बढ़कर उनके व्यावहारिक अनुप्रयोग और प्रभाव को सुनिश्चित कर सकते हैं।
  • नीतिगत बदलाव: पहले यह नियम था कि MFI की 75% संपत्ति माइक्रोफाइनेंस ऋणों में होनी चाहिए परंतु अब इस सीमा को संशोधित कर 60% कर दिया गया है, जिससे अधिक लचीलापन सुनिश्चित हो सकेगा।
  • विविधीकरण की अनुमति: यह परिवर्तन एमएफआई को अन्य उत्पादों में विविधता लाने में सक्षम बनाता है, जिसमें सुरक्षित ऋण (जैसे, गृह सुधार ऋण, स्वर्ण ऋण) शामिल हैं। इस विविधीकरण से एमएफआई की वित्तीय सेहत में सुधार होने की उम्मीद है।
  • बेहतर ब्याज दर निर्धारण: यह बेहतर ब्याज दर निर्धारण की भी अनुमति देता है।
  • जोखिम में कमी: अंततः, इससे उनकी समग्र जोखिम में कमी आती है, क्योंकि सभी परिसंपत्तियां एक ही प्रकार के ऋण में केंद्रित नहीं होतीं।

आरबीआई की वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट (दिसंबर 2024):

  • चूक दरों का दोगुना होना: चूक दरें (ऋण चूक) लगभग दोगुनी हो गईं।
  • एक से अधिक ऋणदाताओं से ऋण लेने वाले: 4 या अधिक ऋणदाताओं से ऋण लेने वाले उधारकर्ताओं का प्रतिशत 3.6% से बढ़कर 5.8% हो गया।
  • औसत ऋण आकार में वृद्धि: औसत ऋण आकार 43% बढ़कर ₹35,299 से ₹50,430 हो गया।
  • एकाधिक ऋणदाताओं के संपर्क में उच्च जोखिम: लगभग 6% उधारकर्ता 4 या अधिक ऋणदाताओं के संपर्क में हैं।
  • संयुक्त देयता मॉडल का कमजोर होना: संयुक्त देयता मॉडल, जो माइक्रोफाइनेंस का आधार है, कमजोर होता प्रतीत हो रहा है।

बढ़ी हुई निगरानी के लिए आरबीआई की सिफारिशें

  • आकस्मिक लेखा परीक्षा: आरबीआई ने एमएफआई रिकॉर्ड और नीतियों की नियमित आकस्मिक लेखा परीक्षा की सिफारिश की है।
  • गुमनाम क्षेत्रीय दौरे: इसने उधारकर्ता के साथ किए गए व्यवहार का आकलन करने और एकत्रित जानकारी की दोबारा जांच करने के लिए गुमनाम क्षेत्रीय दौरे का भी सुझाव दिया है, जो नियमों के उल्लंघन के खिलाफ एक निवारक के रूप में कार्य करेगा।
  • पर्यवेक्षी कार्यों का हस्तांतरण: इसके माध्यम से कुछ पर्यवेक्षी जिम्मेदारियों को स्वतंत्र संस्थाओं को सौंपने पर भी विचार किया जा सकता है।
  • गरीबों को सशक्त बनाना: माइक्रोफाइनेंस ने ऋण तक पहुंच को सफलतापूर्वक लोकतांत्रिक बनाया गया है और ऐसा करके, निम्न आय वाले व्यक्तियों और समुदायों को सशक्त बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

उधारकर्ताओं के संरक्षण के लिए राज्य की पहल

  • तमिलनाडु अधिनियम: तमिलनाडु धन उधार देने वाली संस्थाएं (बलपूर्वक कार्रवाई की रोकथाम) अधिनियम, 2025 अधिसूचित किया गया है।
    • उद्देश्य: इस अधिनियम का उद्देश्य एमएफआई सहित धन उधार देने वाली संस्थाओं द्वारा सूक्ष्म ऋणों की जबरन वसूली को रोकना है, तथा इसमें उत्पीड़न के लिए कारावास और जुर्माने का प्रावधान भी शामिल है।
  • कर्नाटक अध्यादेश: कर्नाटक सूक्ष्म ऋण और लघु ऋण (जबरदस्ती कार्रवाई की रोकथाम) अध्यादेश, 2025 में उन सूक्ष्म वित्तीय ऋणदाताओं के लिए कठोर दंड का प्रस्ताव है, जिनमें 10 वर्ष तक की जेल की सजा और 5 लाख रुपये का जुर्माना शामिल है, जो बलपूर्वक वसूली प्रथाओं के माध्यम से उधारकर्ताओं को “अनुचित कठिनाई” का कारण बनते हैं।

सख्त कानूनों के संबंध में चिंताएं

  • ऋण प्रदान करने की प्रकृति को नुकसान: ऐसे सख्त कानून संभवतः ऋण देने के माहौल को नुकसान पहुंचा सकते हैं।
  • पुनर्भुगतान की संस्कृति पर प्रभाव: इससे संबंधित ऐसी चिंताएं हैं कि ये कड़े नियम पुनर्भुगतान संस्कृति पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकते हैं, क्योंकि उधारकर्ता नए कानूनों का हवाला देते हुए भुगतान में देरी कर सकते हैं या इनकार कर सकते हैं।

निष्कर्ष:

इस क्षेत्र को एक सहानुभूतिपूर्ण लेकिन व्यावहारिक विनियामक दृष्टिकोण की आवश्यकता है, जो इसके सामाजिक मिशन और वित्तीय व्यवहार्यता की आवश्यकता दोनों को स्वीकार करता हो। माइक्रोफाइनेंस को मूल रूप से सामाजिक विकास के लिए एक उपकरण के रूप में देखा जाना चाहिए, न कि केवल लाभ पर केंद्रित एक वाणिज्यिक उद्यम के रूप में।

मुख्य परीक्षा हेतु अभ्यास प्रश्न

प्रश्न: भारतीय रिजर्व बैंक ने माइक्रोफाइनेंस क्षेत्र में प्रमुख नियामक सुधार पेश किए हैं। जैसे ब्याज दर सीमा और संशोधित परिसंपत्ति वर्गीकरण संबंधी मानदंड। इस प्रभाव का आलोचनात्मक परीक्षण करते हुए क्षेत्र में इन सुधारों की जानकारी प्रस्तुत कीजिए तथा उनके कार्यान्वयन में आने वाली चुनौतियों की पहचान कीजिए।

(15 अंक, 250 शब्द)

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