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शहरीकरण और आदर्श परिवहन समाधानों की चुनौती से संबंधित मुद्दे

Lokesh Pal June 14, 2025 05:15 9 0

संदर्भ:

भारत वर्ष 2047 तक एक विकसित राष्ट्र की आकांक्षा हेतु प्रतिबद्ध है। जैसा कि 2060 के दशक तक, 60% से अधिक जनसंख्या के शहरों में बसने की संभावना है, जिससे भारत शहरी विकास का प्रमुख इंजन बन जाएगा।

शहरी दबाव:

  • सार्वजनिक परिवहन प्रणाली: बड़े पैमाने पर, विशेष रूप से सार्वजनिक परिवहन प्रणाली और ग्रामीण क्षेत्रों से शहरों की ओर पलायन के माध्यम से शहरी बुनियादी संरचना पर भारी दबाव डालेगा।
  • शहरी परिवहन की भूमिका: इस बदलाव को नियोजित करने और शहरी केंद्रों में उत्पादकता सुनिश्चित करने के लिए कुशल, समावेशी और टिकाऊ गतिशीलता प्रणालियाँ आवश्यक होंगी।
  • स्मार्ट शहर: इन्हें इस दृष्टिकोण के साथ विकसित किया जाना चाहिए कि कार्यस्थल और आवासीय क्षेत्रों का एकीकरण करके दैनिक आवागमन को न्यूनतम किया जा सके।
  • कार्यान्वयन अंतराल: हालाँकि, अधिकांश नए स्मार्ट शहर अभी तक प्रभावी रूप से संचालित नहीं हुए हैं अर्थात चीन के नियोजित शहरी मॉडल की तरह सफल शुरुआत नहीं कर सके हैं।
  • अनियंत्रित शहरी विस्तार: इस बीच, मौजूदा मेट्रो और टियर-1 शहर तेजी से विस्तारित होते जा रहे हैं, जिससे शहरी दबाव और अधिक बढ़ रहा है।
  • खराब योजना के परिणाम: इसके परिणामस्वरूप बढ़ती यातायात भीड़, अपर्याप्त सार्वजनिक परिवहन और अतिंम छोर तक कनेक्टिविटी की कमी के रूप में सामने आता है।

शहरी गतिशीलता संकट से निपटने के लिए सरकार द्वारा उठाए गए कदम:

  • पीएम-ई-बस सेवा – पेमेंट सिक्योरिटी मैकेनिज्म (PSM): इस योजना का उद्देश्य शहरी क्षेत्रों में लगभग 10,000 इलेक्ट्रिक बसों की तैनाती करना है।
  • पीएम इलेक्ट्रिक ड्राइव रेवोल्यूशन इन इनोवेटिव व्हीकल एन्हांसमेंट (पीएम ई-ड्राइव): इसका लक्ष्य निम्नलिखित वाहन खरीद को साकार करना है:
    •  14,000 ई-बसें
    •  1,10,000 ई-रिक्शा
    •  ई-ट्रक और ई-एम्बुलेंस
  • मेट्रो निवेश में वृद्धि: बजट में टियर 1 शहरों में मेट्रो रेल विकास के लिए आवंटन में भी वृद्धि की गई है, जो उच्च शहरी घनत्व को संभालने और भीड़ कम करने के प्रयासों के अनुरूप है।

शहरों में परिवहन संबंधी समस्याएँ:

  • शहरी बस की कमी: भारत को 2 लाख शहरी बसों की आवश्यकता है, लेकिन इसमें से केवल 35,000 बसें ही संचालन में हैं, जो मांग और आपूर्ति के बीच के बड़े अंतर को दर्शाता है।
  • सीमित संसाधन: जहाँ हरित गतिशीलता को बढ़ावा देने के लिए सक्रिय प्रयास किया जा रहा है, वहीं वित्तीय प्रतिबंध स्केलिंग और स्थिरता को सीमित कर रहे हैं।
  • पहुँच में अंतर: केवल 37% शहरी भारतीयों के पास सार्वजनिक परिवहन तक आसान पहुँच है, जबकि ब्राज़ील और चीन में यह आंकड़ा 50% से अधिक है।
  • लागत वसूली संबंधी चुनौतियाँ: अधिकांश मेट्रो परियोजनाओं को लागत वहन करने में कठिनाई का सामना करना पड़ता है, क्योंकि सवारियों की संख्या कम होती है और समग्र संचालन में घाटा होता है।
  • अंतिम मील की समस्याएँ: सार्वजनिक परिवहन में अधिक किराया होने के कारण उपयोग में कमी आती है, वहीं अंतिम छोर तक की ख़राब कनेक्टिविटी यात्रियों को और हतोत्साहित करती है।
  • सीमित वित्तीय क्षमता: भारत पश्चिमी देशों की तरह बड़े पैमाने पर मेट्रो सब्सिडी वहन नहीं कर सकता, जिससे मूल्य निर्धारण में लचीलापन सीमित हो जाता है।

वर्तमान शहरी बस निवेश संबंधी प्रमुख चुनौतियाँ:

  • बजट में प्रोत्साहन का प्रावधान: 2025 के बजट में शहरी बस प्रणालियों के लिए आवंटन बढ़ाया गया है, विशेष रूप से मेट्रो शहरों की कनेक्टिविटी को मजबूत करने के उद्देश्य से। इसका लक्ष्य अंतिम छोर तक पहुंच को बेहतर बनाना है।
  • निजी क्षेत्र की अनिच्छा: सरकार के समर्थन के बावजूद, सार्वजनिक परिवहन में निजी निवेश सीमित ही रहा है, क्योंकि लाभ की अनिश्चितता और दीर्घकालिक पुनर्प्राप्ति निजी निवेशकों को हतोत्साहित करता है।
  • महंगी ई-बसों की ओर रुख: पहले सीएनजी बसों पर जोर दिया जाता था, लेकिन अब इलेक्ट्रिक बसों की ओर ध्यान केंद्रित किया जा रहा है, जिनका प्रारम्भिक खरीद और रखरखाव खर्च अधिक होता है, जिससे सार्वजनिक एजेंसियों पर वित्तीय बोझ बढ़ता है।
  • विकल्पों की खोज: भविष्य के परिवहन मॉडल में सड़क आधारित परिवहन विकल्पों पर अधिक ध्यान केंद्रित किया जा सकता है, जो बिजली, सीएनजी, हाइड्रोजन या जैव ईंधन से संचालित होंगे। हालांकि, ट्राम और ट्रॉलीबस जैसे महत्वपूर्ण विकल्पों को अक्सर नज़रअंदाज़ किया जाता है।
  • नीतिगत दृष्टिकोण में कमी: लंबी अवधि में अधिक कुशल होने के बावजूद, ट्राम और ट्रॉलीबस को नीतिगत स्तर पर बहुत कम महत्व दिया जाता है। इनके जीवन चक्र विश्लेषण से ज्ञात होता है कि ये वित्तीय और पर्यावरणीय दोनों दृष्टियों से ई-बसों से बेहतर साबित हो सकते हैं।
  • स्थिरता में असंतुलन: वर्तमान में ई-बसों पर केंद्रित नीति एक सब्सिडी-आधारित पारिस्थितिकी तंत्र बना रही है, न कि एक आत्मनिर्भर परिवहन मॉडल। यह असंगति दीर्घकालिक निवेश की व्यवहार्यता को लेकर चिंताएं उत्पन्न करती है।

तुलनात्मक जीवन चक्र एवं लाभप्रदता:

  • ट्राम: 70 साल के जीवन चक्र में 45% लाभप्रदता प्रदान करती हैं, साथ ही ये जलवायु के अनुकूल और विस्तार योग्य होती हैं।
  • ई-बसें: उच्च परिचालन और प्रतिस्थापन लागत के कारण समान अवधि में 82% शुद्ध हानि दर्ज करती हैं।
  • ट्रॉलीबस: ई-बसों की तुलना में अधिक कुशल होती हैं, लेकिन जीवन चक्र के दौरान मामूली शुद्ध हानि होती है।

ट्राम प्रणाली को अपनाने के पक्ष में तर्क:

  • कोच्चि ट्राम पायलट प्रोजेक्ट: कोच्चि एक ट्राम पायलट प्रोजेक्ट शुरू करने की योजना बना रहा है, जो टिकाऊ परिवहन के पुनरुद्धार का अवसर प्रदान करता है। ट्राम कम लागत वाली, पर्यावरण के अनुकूल शहरी गतिशीलता के साथ उच्च विस्तार क्षमता प्रदान करती हैं।
  • कोलकाता: कोलकाता ने अपनी ट्राम विरासत को संरक्षित रखा है, जिसे अब एक स्मार्ट शहरी रणनीति के रूप में देखा जा रहा है।
  • वैश्विक उदाहरण: ज्यूरिख और एम्स्टर्डम जैसे वैश्विक शहरों ने ट्राम को पुनर्जीवित किया है, जो उनकी आधुनिकता और प्रासंगिकता को सिद्ध करता है।
  • नीतिगत पुनर्विचार: भविष्य की गतिशीलता योजना में प्रमाणित पुरानी तकनीकों को शामिल करने के लिए नीतिगत पुनर्विचार पर ध्यान दिया जाना चाहिए।

निष्कर्ष:

अतः शहरीकरण समावेशी और टिकाऊ गतिशीलता समाधानों की मांग करता है, जहाँ ट्राम और अन्य सड़क-आधारित सार्वजनिक परिवहन के संसाधनों को समान नीतिगत महत्व दिया जाना चाहिए। महंगी ई-बसों और मेट्रो सिस्टम पर अत्यधिक निर्भरता से बचने के लिए परिवहन निवेशों में जीवन चक्र लागत विश्लेषण को लागू करना आवश्यक है।

 मुख्य परीक्षा हेतु अभ्यास प्रश्न

प्रश्न. भारत में सतत शहरीकरण को प्राप्त करने में परिवहन की भूमिका का परीक्षण करें। समावेशी और पर्यावरण-संवेदनशील शहरी गतिशीलता प्रणाली विकसित करने से जुड़ी प्रमुख चुनौतियों को रेखांकित करें और समाधान हेतु प्रभावी सुझाव प्रस्तुत करें।

(15 अंक, 250 शब्द)

 प्रश्न. ई.गवर्नेन्स सेवा प्रदायगी की प्रक्रिया में डिजिटल प्रौद्योगिकी का नैत्यिक कार्यों में मात्र अनुप्रयोग ही नहीं है। इसमें पारदर्शिता और जवाबदेहिता सुनिश्चित करने के लिए विविध प्रकार की अन्तरक्रियाएं भी हैं। इस सन्दर्भ में ई.गवर्नेन्स के ‘इन्टरैक्टिव सर्विस मॉडल’ का मूल्यांकन कीजिए।

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