प्रारंभिक परीक्षा के लिए प्रासंगिकता: भारतीय संविधान के अनुच्छेद 124 और अनुच्छेद 217, कॉलेजियम प्रणाली।
मुख्य परीक्षा के लिए प्रासंगिकता: कॉलेजियम प्रणाली, न्यायाधीशों की नियुक्ति प्रक्रिया के वैश्विक उदाहरण।
संदर्भ:
हाल ही में, कलकत्ता उच्च न्यायालय के एक न्यायाधीश (चित्तरंजन दास) ने अपने विदाई (सेवानिवृत्त) भाषण में यह स्वीकार किया कि वह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के सदस्य रहे हैं और रहेंगे।
भारत में न्यायिक नियुक्तियों में राजनीतिक विचारधारा में बदलाव की समयरेखा
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
1970 के दशक से पूर्व: न्यायिक नियुक्तियों में राजनीतिक विचारधारा कोई प्रमुख कारक नहीं थी।
1970 के बाद नियुक्ति प्रथाओं में परिवर्तन: न्यायिक नियुक्तियों की यह प्रथा तब बदल गई जब इंदिरा गांधी की सरकार को प्रमुख मामलों (गोलक नाथ, बैंक राष्ट्रीयकरण, प्रिवी पर्स) में सर्वोच्च न्यायालय से असफलताओं का सामना करना पड़ा।
इन असफलताओं ने मंत्रियों को सर्वोच्च न्यायालय में न्यायिक नियुक्तियों की विचारधारा पर विचार करने के लिए बहस शुरू करने के लिए मजबूर कर दिया।
योग्य लोगों पर प्रभाव: न्यायमूर्ति एमएन चांदुरकर को योग्यता के बावजूद, सर्वोच्च न्यायालय में पदोन्नत होने से रोक दिया गया।
अस्वीकृति के कारण: RSS नेता के अंतिम संस्कार में उपस्थिति और नेता के बारे में सकारात्मक टिप्पणी करना।
कॉलेजियम प्रणाली: 1990 के दशक से, न्यायिक नियुक्तियाँ कॉलेजियम प्रणाली के माध्यम से की जाती रही हैं जहाँ न्यायाधीश, न्यायाधीशों की नियुक्ति करते हैं।
यह प्रणाली न्यायिक तटस्थता पर आधारित है और न्यायाधीशों से अपेक्षा करती है कि वे प्रत्यक्ष राजनीतिक संबद्धता से बचें।
विवादास्पद न्यायिक नियुक्ति: पिछले वर्ष फरवरी में, मद्रास उच्च न्यायालय के अतिरिक्त न्यायाधीश के रूप में वकील लक्ष्मना चंद्र विक्टोरिया गौरी की नियुक्ति विवादों में रही। कथित नफरत भरे भाषण (हेट स्पीच) पर मद्रास उच्च न्यायालय के 21 वकीलों की आपत्तियों के बावजूद, उच्चतम न्यायालय की बेंच ने याचिका खारिज कर दी, जिसमें कहा गया कि उपयुक्तता का मूल्यांकन न्यायालयों द्वारा नहीं किया जाना चाहिए।
न्यायाधीशों की नियुक्ति के वैश्विक उदाहरण
देश
नियुक्ति प्रक्रिया और न्यायिक दिशानिर्देश
यूनाइटेड किंगडम
योग्यता आधारित न्यायिक चयन: यूनाइटेड किंगडम में न्यायाधीशों का चयन एक ऐसी प्रक्रिया द्वारा किया जाता है जिसमें राजनीतिक संबद्धता की तुलना में योग्यता और अनुभव को प्राथमिकता दी जाती है।
यह प्रणाली न्यायाधीशों को चुनने के लिए न्यायपालिका के वरिष्ठ सदस्यों और न्यायपालिका से परिचित अन्य लोगों पर निर्भर करती है, जिनका चयन “योग्यता के आधार पर होना चाहिए।”
न्यायिक निष्पक्षता: सार्वजनिक बयानों के कारण मामले से संबंधित विषयों पर मजबूत विचार रखने वाले यूके के न्यायाधीशों को खुद को अलग करने पर विचार करना चाहिए। विवादास्पद या राजनीतिक चर्चाओं में शामिल होने से निष्पक्षता को ख़तरा होता है।
यूके के न्यायाधीशों की राजनीतिक तटस्थता: यूके में न्यायाधीशों से अपेक्षा की जाती है कि वे राजनीतिक संबंधों की किसी भी उपस्थिति से बचें, जैसे कि राजनीतिक सभाओं में भाग लेना, राजनीतिक धन उगाहने वाले कार्यक्रम, राजनीतिक दलों को योगदान देना या राजनीतिक मंचों पर बोलना।
उनसे यह भी अपेक्षा की जाती है कि वे ऐसे सार्वजनिक प्रदर्शनों में भाग न लें जो उन्हें किसी राजनीतिक मुद्दे से जोड़ते हों, उनके अधिकार को कम करते हों तथा उनकी स्वतंत्रता पर संदेह करते हों।
हाउस ऑफ कॉमन्स (अयोग्यता) अधिनियम, 1975 के तहत न्यायाधीशों को संसदीय प्रणाली के चुनाव लड़ने से प्रतिबंधित किया गया है।
संयुक्त-राज्य अमेरिका
अमेरिकी न्यायिक नियुक्तियों पर राजनीतिक प्रभाव: अमेरिकी न्यायिक प्रणाली न्यायिक नियुक्तियों हेतु राजनेताओं को अधिकृत करती है।
राष्ट्रपति उच्च न्यायपालिका में न्यायाधीशों की नियुक्ति करते हैं तथा नियुक्तियों की पुष्टि संयुक्त राज्य सीनेट द्वारा की जाती है, जो अक्सर एक पक्षपातपूर्ण वोट होता है।
अमेरिकी न्यायाधीश आजीवन सेवा करते हैं, तथा उनके राजनीतिक विचार, रूढ़िवादी या उदारवादी हो सकते हैं।
राजनीतिक गतिविधि पर प्रतिबंध: अमेरिकन बार एसोसिएशन मॉडल कोड ऑफ ज्यूडिशियल कंडक्ट, 1990 के कैनन 5सी के अनुसार न्यायाधीशों को कानून, कानूनी प्रणाली या न्याय प्रशासन में सुधार के उपायों के अलावा किसी भी राजनीतिक गतिविधि में शामिल होने से रोका जाता है।
2007 के आदर्श संहिता के सिद्धांत 4 में प्रावधान है कि एक न्यायाधीश “ऐसी राजनीतिक गतिविधि में शामिल नहीं होगा जो न्यायपालिका की स्वतंत्रता, अखंडता या निष्पक्षता के साथ असंगत हो”।
इसमें न्याय प्रशासन से संबंधित राजनीतिक गतिविधि के लिए कोई स्पष्ट अपवाद शामिल नहीं है।
सिंगापुर
मूलभूत सिद्धांत: सिंगापुर सुप्रीम कोर्ट की न्यायिक आचार संहिता में प्रावधान किया गया है कि इसकी कानूनी प्रणाली कार्डिनल सिद्धांत पर आधारित है “एक स्वतंत्र और सक्षम न्यायपालिका को देश के कानूनों की व्याख्या और उसे लागू करना चाहिए और बिना किसी डर या पक्षपात, स्नेह या द्वेष के अपनी सर्वोत्तम क्षमता और इच्छाशक्ति से न्याय करना चाहिए।”
न्यायिक स्वतंत्रता: न्यायाधीशों को ईमानदारी से यह सुनिश्चित करना चाहिए कि विधानमंडल और/या कार्यपालिका के सदस्यों के साथ उनके संबंधों का स्तर, यदि कोई हो, उनकी स्वतंत्रता के बारे में किसी भी संदेह को जन्म न दे या ऐसी किसी भी अनपेक्षित उपस्थिति को जन्म न दे जिससे कि न्यायपालिका ऐसे संबंधों के कारण किसी भी तरह से दूसरों के प्रति कृतज्ञ हो जाये।
कोई राजनीतिक संबद्धता नहीं: न्यायाधीशों को “किसी भी राजनीतिक दल के साथ कोई वास्तविक या दिखावटी संबंध” रखने वाले क्लबों या संघों का सदस्य नहीं होना चाहिए, और उन मामलों की सुनवाई नहीं करनी चाहिए जहाँ उनके जीवनसाथी या परिवार के वर्तमान सदस्य की राजनीतिक गतिविधि या संबद्धता के कारण उनकी निष्पक्षता की कमी के बारे में सार्वजनिक धारणा हो सकती है।
ऑस्ट्रेलिया
राजनीतिक तटस्थता: न्यायिक आचरण के लिए ऑस्ट्रेलियाई मार्गदर्शिका के अनुसार न्यायाधीशों को नियुक्ति के बाद राजनीतिक दलों के साथ सभी संबंध समाप्त करने होंगे, हालाँकि पूर्व संबद्धता को स्वचालित रूप से पक्षपातपूर्ण नहीं माना जाता है।
राजनीतिक सभाओं, राजनीतिक धन उगाहने वाले कार्यक्रमों में भाग लेने या किसी राजनीतिक दल को विभिन्न माध्यमों से फण्ड देने के संबंधों को जारी रखने का दिखावा करने से बचना चाहिए।
न्यायाधीश की अयोग्यता : सार्वजनिक रूप से व्यक्त किए गए पूर्वाग्रह न्यायाधीश को अयोग्य ठहरा सकते हैं। प्रासंगिक विषयों पर उनके ज्ञात विचार संभावित अयोग्यता पर ध्यान देने की आवश्यकता हो सकती है, भले ही पक्ष इस मुद्दे को उठाएं अथवा नहीं।
निष्कर्ष
अतः इन वैश्विक प्रथाओं को समझना चाहिए जो न्यायिक स्वतंत्रता और निष्पक्षता बनाए रखने के महत्त्व को रेखांकित करती हैं, जो कानून के शासन और न्यायपालिका में जनता के विश्वास को बनाए रखने के लिए आवश्यक है।
प्रारंभिक परीक्षा पर आधारित प्रश्न :
प्रश्न. “कॉलेजियम प्रणाली” ; के संदर्भ में, निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये:
कॉलेजियम प्रणाली उच्चतम न्यायालय के निर्णयों के माध्यम से स्थापित एक संवैधानिक संस्था है।
यह उच्च न्यायालय तथा उच्चतम न्यायालय में न्यायाधीशों की नियुक्ति एवं स्थानांतरण करने वाली संस्था है।
सर्वोच्च न्यायालय के कॉलेजियम की अध्यक्षता सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश द्वारा की जाती है, इसमें सर्वोच्च न्यायालय के दो अन्य वरिष्ठतम न्यायाधीश भी शामिल होते हैं।
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