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न्यायिक कदाचार: न्यायिक पारदर्शिता का आह्वान

Lokesh Pal June 17, 2025 05:30 7 0

संदर्भ:

हाल ही में, अधिकारियों को न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा के आवास पर आग लगने के दौरान आधी जली हुई नकदी मिली थी।

न्यायिक कदाचार:

  • साक्ष्य गायब: इस घटना के बाद तत्काल उनका तबादला कर दिया गया और वे महाभियोग का सामना कर रहे हैं, फिर भी नकदी और जांच रिपोर्ट जैसे महत्वपूर्ण साक्ष्य गायब हैं या रोक दिए गए हैं, जिससे पारदर्शिता संबंधी चिंताएं बढ़ गई हैं।
  • गोपनीय प्रक्रिया: न्यायमूर्ति वर्मा के मामले में अस्पष्टता कदाचार जांच के लिए न्यायपालिका की आंतरिक प्रक्रियाकी एक विशिष्ट मिसाल है।
    • यह स्व-निर्मित प्रणाली शिकायतों, जांचों या दोष निष्कर्षों को सार्वजनिक रूप से प्रकट किए बिना गुप्त रूप से संचालित होती है, जिससे पारदर्शिता कम या प्रभावित होती है।
  • संदिग्ध जांच: हालांकि इस अपारदर्शी प्रक्रिया की पहले भी जांच हो चुकी है, जिसमें न्यायमूर्ति रमण के खिलाफ आरोपों को खारिज करना भी शामिल है।
    • इसी प्रकार, मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई के खिलाफ यौन उत्पीड़न के आरोपों को अस्पष्ट तरीके से निपटाया गया, तथा शिकायतकर्ता को कानूनी प्रतिनिधित्व और रिपोर्ट तक पहुंच से वंचित रखा गया।

अन्य उदाहरण:

  • बिना जांचे गए दावे: न्यायमूर्ति सूर्यकांत, जो 2025 में भारत के मुख्य न्यायाधीश बनने वाले हैं, पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप हैं, जिनकी जांच की सिफारिश की गई है।
    • इसके बावजूद, इस बारे में कोई सार्वजनिक जानकारी नहीं है कि इन शिकायतों की कभी जांच की गई थी या नहीं, जो व्यवस्था में पारदर्शिता की निरंतर कमी को उजागर करता है।
  • न्यायिक पारदर्शिता का आह्वान: सर्वोच्च न्यायालय नागरिकों के सूचना के अधिकार का समर्थन करता है, जिसे उसकी अपनी जांच तक विस्तारित किया जाना चाहिए।
    • जवाबदेही और भरोसे के लिए रिपोर्ट का सार्वजनिक खुलासा करना अति आवश्यक है। भविष्य में घोटालों को रोकने और लोकतांत्रिक सिद्धांतों को बनाए रखने के लिए मौजूदा इन-हाउस प्रक्रियामें सुधार की ज़रूरत है।

न्यायिक कदाचार के लिए इन-हाउस प्रक्रिया‘:

  • गोपनीयता: इन नियमों के तहत, केवल साथी न्यायाधीश ही कदाचार की जांच करते हैं। महत्वपूर्ण बात यह है कि शिकायत के अस्तित्व से लेकर अंतिम रिपोर्ट तक लगभग कोई भी पहलू सार्वजनिक नहीं किया जाता है। न्यायाधीश को हटाने का निर्धारण करने का मानक अज्ञात रहता है।
  • वैधता का मुद्दा: हालांकि ‘इन-हाउस प्रक्रिया’ की वैधता पर सवाल उठाए गए हैं। 2020 में, जस्टिस रमना के खिलाफ आरोपों को खारिज कर दिया गया था, जबकि जस्टिस जेके माहेश्वरी के खिलाफ संबंधित दावों की जांच के बारे में कोई विशेष जानकारी नहीं दी गई थी।

न्यायपालिका में पारदर्शिता का आह्वान:

  • सूचना का अधिकार और लोकतंत्र: सर्वोच्च न्यायालय ने बार-बार नागरिकों के सूचना के अधिकार को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और सहभागी लोकतंत्र के लिए महत्वपूर्ण बताया है। न्यायिक स्वतंत्रता के लिए अपवादों के बिना, इस अधिकार को उच्च न्यायपालिका तक विस्तारित किया जाना चाहिए।
  • मनमानी के खिलाफ सुरक्षा: चूंकि आंतरिक जांच के निष्कर्षों पर अपील नहीं की जा सकती, इसलिए रिपोर्ट का सार्वजनिक खुलासा बहुत जरूरी है। यह मनमानी के खिलाफ एक महत्वपूर्ण सुरक्षा के रूप में काम करेगा और न्यायपालिका की अधिक सार्वजनिक जवाबदेही सुनिश्चित करेगा।

निष्कर्ष:

सूचित पारदर्शिता संस्थाओं में जनता के विश्वास को बढ़ाती है, आत्म-सुधार के प्रति प्रतिबद्धता प्रदर्शित करती है और कदाचार के कारण होने वाले प्रणालीगत मुद्दों की पहचान करती है। ऐसी उम्मीद है कि भविष्य में घोटालों की आवश्यकता नहीं होगी, क्योंकि ‘इन-हाउस प्रक्रिया’ अपने गुप्त स्वभाव को त्यागकर, केवल प्रतीकात्मक इशारों से आगे बढ़ जाएगी।

मुख्य परीक्षा हेतु अभ्यास प्रश्न:

प्रश्न: न्यायिक स्वतंत्रता का उपयोग सार्वजनिक जवाबदेही के विरुद्ध ढाल के रूप में नहीं किया जा सकता। न्यायपालिका के भीतर नैतिक शासन सुनिश्चित करने में न्यायिक स्वायत्तता और पारदर्शिता के बीच संतुलन पर चर्चा करें।

(10 अंक, 150 शब्द)

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