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न्यायपालिका बनाम कार्यपालिका तथा शक्तियों का पृथक्करण

Lokesh Pal April 22, 2025 05:15 11 0

संदर्भ: 

भारत और संयुक्त राज्य अमेरिका दोनों राष्ट्रों में न्यायपालिका तथा कार्यपालिका के मध्य संस्थागत तनाव में तीव्रता आई है।

न्यायपालिका तथा कार्यपालिका संबंध

  • व्यावहारिक घर्षण या तनाव: संविधान एक प्रमुख दस्तावेज़ है, जिसके अनुसार न्यायपालिका कानूनों की व्याख्या करती है, जबकि कार्यपालिका शासन करती है। लेकिन वास्तव में, जैसा कि भारत और अमेरिका दोनों में देखा जा सकता है, दोनों के मध्य सीमाएँ धुंधली हो जाती हैं। कार्यपालिका प्रायः न्यायिक हस्तक्षेपों या न्यायिक सक्रियता से नाराज़ होती है |
  • सार्वजनिक टकराव: भारत में उप-राष्ट्रपति और अमेरिका में जेडी वेंस – दोनों ने अपनी-अपनी न्यायपालिकाओं का  सार्वजनिक तौर पर विरोध किया है।
    • यह कोई सूक्ष्म संस्थागत संवाद नहीं है, यह न्यायिक प्राधिकार को प्रत्यक्ष चुनौती है, जो लंबे समय से चले आ रहे तनावों को उजागर करती है।
  • वैधता संघर्ष: संस्थाओं की वैधता दाँव पर है, जबकि न्यायालयों का उद्देश्य संवैधानिक मूल्यों को बनाए रखना है, उनकी सक्रियता को प्रायः अतिक्रमण के रूप में देखा जाता है। 
    • इसके विपरीत कार्यकारी प्रतिरोध, विशेषकर गैर-अनुपालन या मौखिक हमले, विधि के शासन को कमजोर कर सकते हैं।

संबंधित चुनौतियाँ

  • भारतीय परिदृश्य: उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने सर्वोच्च न्यायालय की आलोचना करते हुए कहा, कि वह ” सुपर संसद” की तरह कार्य कर रहा है, खासकर राज्य विधेयकों पर राष्ट्रपति के निर्णय के लिए समय-सीमा तय करने को लेकर। 
    • उन्होंने जोर देकर कहा, कि न्यायाधीशों को संविधान का केवल ’पालन’ करना चाहिए, जबकि राष्ट्रपति को इसका ’बचाव’ करना चाहिए।
  • न्यायिक अतिक्रमण: न्यायिक जवाबदेही की कमी के बारे में गंभीर चिंताएँ व्यक्त की गई हैं, जिनमें न्यायाधीशों से जुड़े भ्रष्टाचार के मामलों में एफआईआर का अभाव तथा संपत्ति का खुलासा न करना शामिल है
    • अनुच्छेद 142 का अत्यधिक प्रयोग, जिसे उपराष्ट्रपति धनखड़ ने विवादास्पद रूप से लोकतंत्र के खिलाफ “परमाणु मिसाइल” बताया था, न्यायिक अतिक्रमण और लोकतांत्रिक जाँच तथा संतुलन के क्षरण की आशंकाओं को उजागर करता है
  • अमेरिकी संदर्भ: उपराष्ट्रपति जेडी वेंस ने किल्मर अब्रेगो गार्सिया मामले  में ट्रम्प प्रशासन के खिलाफ संघीय अपीलीय न्यायालय के निर्णय की कड़ी आलोचना की।
    • न्यायाधीश जे. हार्वी विल्किंसन ने कार्यपालिका की अराजकता की निंदा की, तथा इसके विपरीत, पृथक्करण के दौरान आइजनहावर के अनुपालन का उदाहरण दिया।
  • कार्यकारी प्रतिक्रिया: कार्यकारी प्रतिक्रिया, जिसमें वेंस ने निर्वासन का बचाव करते हुए फैसले को खारिज कर दिया और न्यायाधीशों को “कट्टरपंथी पागल” के रूप में संबोधित किया, ट्रम्प-युग के अधिकारियों के बीच न्यायिक अधिकार के लिए बढ़ते तिरस्कार को दर्शाता है।
  • संस्थागत टकराव: दोनों देशों में यह कोई पृथक संघर्ष नहीं है:
    • भारत: चुनाव सुधारों में न्यायिक भूमिका और राज्यपालों की देरी के प्रति नाराजगी।
    • अमेरिका: न्यायालय के आदेशों का खुला उल्लंघन (उदाहरण के लिए, निर्णय के बावजूद गार्सिया अभी भी अल साल्वाडोर में है)।
  • संस्थागत समस्या: यह सिर्फ़ दो अभिजात वर्गों के बीच की लड़ाई नहीं है – यह लोकतांत्रिक शासन के भविष्य की लड़ाई है। जब अधिकारी न्यायाधीशों पर हमला करके जवाबदेही से बचते हैं और अदालतें शासन की विफलताओं से उत्पन्न हुए खालीपन को भरने के लिए वास्तविक विधायक बन जाती हैं
  • अंतिम उपाय: दोनों देशों में, जब सरकारें पंगु हो जाती हैं या अधिकारों पर खतरा मंडराता है, तो न्यायपालिका अक्सर लोगों का सहारा बन जाती है। हालाँकि अदालतें इस बोझ को प्रायः अकेले ही उठाती हैं।

न्यायिक प्रतिक्रियाएँ

  • भारतभारत के सर्वोच्च न्यायालय ने तर्कसंगत नियंत्रण बनाए रखा है। निर्णयों के माध्यम से यह संकेत देता है, कि जब संसद विफल हो जाती है, तो न्यायालयों को संविधान को बनाए रखने के लिए कदम उठाना चाहिए, न कि शासन करने के लिए।
  • अमेरिका: न्यायाधीश विल्किंसन के विचार संविधान की दार्शनिक रक्षा के रूप में कार्य करते हैं और कार्यकारी अवज्ञा से “अराजकता” की चेतावनी देते हैं, जो याद दिलाते हैं कि उचित प्रक्रिया पर कोई समझौता नहीं किया जा सकता है तथा न्यायिक वैधता और अधिकार को संरक्षित किया जाना चाहिए।

सुधार प्रस्ताव

  • भारत: 
    • अनुच्छेद 145(3): उपराष्ट्रपति ने सांविधानिक पीठ की सीमा में संशोधन की माँग की है, उन्होंने इसकी स्थापना के बाद से अब तक इसकी संख्या में व्यापक वृद्धि होने का हवाला दिया है।
    • अनुच्छेद 142इसके दायरे को सीमित करने की माँग बढ़ रही है, क्योंकि यह न्यायालयों को “पूर्ण न्याय” सुनिश्चित करने के लिए व्यापक शक्तियाँ प्रदान करता है।
  • अमेरिका: सुधारों का ध्यान न्यायिक नैतिकताकार्यकाल सीमा और न्यायालय विस्तार पर है। हालाँकि, प्राथमिक मुद्दा कार्यकारी गैर-अनुपालन है – यदि न्यायालय के आदेशों की अनदेखी की जाती है तो कोई भी सुधार कार्य नहीं कर सकता है।

निष्कर्ष

लोकतंत्र सर्वाधिक बेहतर तरीके से तब कार्य करता है, जब उसकी प्रत्येक शाखा अपनी सीमाओं का सम्मान करती है। यह एक व्यवस्था या संबंध हैप्रभुत्व के लिए संघर्ष नहीं

मुख्य परीक्षा हेतु अभ्यास प्रश्न

न्यायिक जवाबदेही और पारदर्शिता को प्रायः संस्थागत अखंडता को बनाए रखने के लिए आवश्यक बताया गया है। कार्यपालिका तथा न्यायपालिका की गतिशीलता के विकास की पृष्ठभूमि में, जवाबदेही सुनिश्चित करते हुए न्यायिक स्वतंत्रता को मज़बूत करने के आवश्यक उपाय सुझाइए।

(15 अंक, 250 शब्द)

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