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भारत-श्रीलंका संबंध के परिप्रेक्ष्य में कच्चाथीवू और पाक जलडमरूमध्य विवाद

Lokesh Pal September 11, 2025 05:00 110 0

संदर्भ:

भारत ने पंचशील, गुटनिरपेक्ष आंदोलन (NAM), सार्क (SAARC), पड़ोस पहले (Neighbourhood First) और गुजराल सिद्धांत (Gujral Doctrine) के माध्यम से एक उत्तरदायी क्षेत्रीय जुड़ाव बनाए रखा है। अप्रैल 2025 में प्रधानमंत्री की कोलंबो यात्रा में पाक जलडमरूमध्य और कच्चाथीवू (Katchatheevu) जैसे विवादों पर चर्चा हुई, जिसमें मानवीय संतुलन और संबंधों पर बल दिया गया।

पाक जलडमरूमध्य विवाद:

  • साझा मत्स्यन की विरासत: तमिलनाडु और उत्तरी श्रीलंका के मछुआरा समुदाय सदियों से पाक जलडमरूमध्य में मछली पकड़ते आ रहे हैं।
  • विवाद का वर्तमान स्रोत: भारतीय मशीनीकृत ट्रालर श्रीलंकाई जलक्षेत्र में प्रवेश कर बॉटम ट्रॉलिंग (bottom trawling) करते हैं।
  • पारिस्थितिकी क्षति: बॉटम ट्रॉलिंग, जिसे 2017 से श्रीलंका में प्रतिबंधित कर दिया गया है, प्रवाल भित्तियों (coral reefs), झींगा मछली के आवासों तथा मछलियों आदि को नष्ट कर देती है।
  • पारंपरिक मछुआरों पर प्रभाव: तमिलनाडु के पारंपरिक मछुआरों को तट के समीप मत्स्यन संसाधनों की कमी का सामना करना पड़ता है और वे विवादित जलक्षेत्रों में जाने हेतु बाध्य हो जाते हैं।
    • यह संघर्ष केवल भारत और श्रीलंका के मध्य नहीं है, बल्कि “व्यावसायिक लालच बनाम अस्तित्व” का है, क्योंकि तमिलनाडु में छोटे स्तर के पारंपरिक मछुआरे भी बड़े ट्रालरों से प्रभावित हैं, जिसके कारण उन्हें श्रीलंकाई जलक्षेत्र में जाना पड़ता है।
  • संबंधित कानून: संयुक्त राष्ट्र समुद्री कानून अभिसमय (UNCLOS) समुद्री संसाधनों के न्यायसंगत उपयोग पर ही नहीं, बल्कि उनके संरक्षण पर भी बल देता है।
    • इसी तरह, एफएओ (FAO) की “उत्तरदायी मत्स्य पालन आचार संहिता” (Code of Conduct for Responsible Fisheries), 1995 – बॉटम ट्रॉलिंग जैसी विनाशकारी प्रथाओं को अस्वीकार्य करती है।

कच्चाथीवू द्वीप विवाद:

  • कच्चाथीवू एक छोटा, बंजर द्वीप (1.5 वर्ग किमी.) है, जहाँ केवल एक चर्च (सेंट एंथोनी चर्च) है।
  • यह मुद्दा अक्सर राजनीतिक विवादों में सामने आता है, जिसमें यह आरोप लगाया जाता है कि इंदिरा गांधी ने द्वीप को श्रीलंका को ‘उपहार’ स्वरूप दे दिया था।
    • हालाँकि, 1974 में कच्चाथीवू को श्रीलंका को सौंपना एक “सोचा-समझा सीमा समझौता” था।
  • संधि समझौता: 1974 के भारत-श्रीलंका समुद्री सीमा संधि ने इसे श्रीलंकाई जलक्षेत्र में रखा था।
    • यह संधि कानूनी रूप से बाध्यकारी है।
    • भारत का निर्णय ऐतिहासिक साक्ष्यों पर आधारित था, जिसमें पुर्तगाली और डच शासन तथा इससे पूर्व जाफना (Jaffna) के तमिल राजाओं के समय से श्रीलंकाई प्रशासनिक नियंत्रण को दर्शाया गया था।
  • प्रासंगिक उदाहरण: मिनक्विर्स और एक्रेहोस मामले (Minquiers and Ecrehos) (फ्रांस बनाम यूनाइटेड किंगडम, अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय-1953) में, अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय (ICJ) ने संप्रभुता यूनाइटेड किंगडम को दी थी, भले ही नॉर्मंडी के डची के माध्यम से फ्रांस का ऐतिहासिक दावा था, क्योंकि यूनाइटेड किंगडम ने प्रशासनिक अधिकार क्षेत्र का प्रयोग किया था।
    • इसी तरह, भारत ने स्वीकार किया कि श्रीलंका का दावा अधिक सही था।
    • एक अन्य उदाहरण भारत और पाकिस्तान के बीच कच्छ के रण की मध्यस्थता (1968) है।
      • इस मुद्दे को एक द्विपक्षीय संधि के कारण अंतर्राष्ट्रीय कानून के तहत सुलझा हुआ माना जाता है और इसे राजनीति में बार-बार उठाना एक कानूनी वास्तविकता की बजाय “राजनीतिक बयानबाजी” के रूप में देखा जाता है।
      • मत्स्यन अधिकार एक पृथक मुद्दा है, जो द्वीप पर संप्रभुता से जुड़ा नहीं है।

समुद्री शासन का विधिक ढाँचा:

  • ऐतिहासिक जल का सिद्धांत: पाक जलडमरूमध्य और निकटवर्ती जल को भारतीय तथा श्रीलंकाई कानून के तहत ‘ऐतिहासिक जल’ के रूप में मान्यता दी गई थी – ये ऐसे क्षेत्र हैं जहाँ संप्रभु अधिकार सामान्य क्षेत्रीय समुद्रों की तुलना में भी अधिक सुदृढ़ होते हैं।
  • न्यायिक उदाहरण: ऐतिहासिक अधिकारों की न्यायिक मान्यता मद्रास उच्च न्यायालय के “अन्नकुमारु पिल्लै बनाम मुथुपायल और अन्य (1904)” मामले से मिलती है, जिसने पारंपरिक मोती और शंख मत्स्य पालन के आधार पर दावों को बरकरार रखा।
    • अतः 1974 में भारत की समुद्री सीमा को स्वीकार करना मनमाना नहीं था, बल्कि कानूनी रूप से ऐतिहासिक निर्णय के अनुरूप था।
  • अंतर्राष्ट्रीय दायित्व: संयुक्त राष्ट्र समुद्री कानून अभिसमय (UNCLOS) (अनुच्छेद 123) पाक की खाड़ी और मन्नार की खाड़ी (Gulf of Mannar) जैसे अर्द्ध-संलग्न समुद्रों में सहयोग को प्रोत्साहित करता है। यहाँ संयुक्त संसाधन प्रबंधन केवल आदर्श नहीं बल्कि अनिवार्य है।
  • तुलनात्मक मॉडल: बाल्टिक सागर मत्स्य पालन सम्मेलन यह दर्शाता है, कि लातविया, पोलैंड और यूरोपीय संघ संसाधनों के संरक्षण के लिए कोटा किस प्रकार साझा करते हैं।

आगे की राह:

  • संयुक्त संसाधन प्रबंधन: भारत और श्रीलंका को मत्स्यन के दिनों और मछलियों को पकड़ने के लिए न्यायसंगत कोटा निर्धारित करना चाहिए।
  • अनुसंधान सहयोग: कच्चाथीवू पर एक संयुक्त समुद्री अनुसंधान स्टेशन संसाधनों की निगरानी कर सकता है और संधारणीय प्रथाओं का सुझाव दे सकता है।
  • गहरे समुद्र में मत्स्यन का विस्तार: भारत को अपने 200-समुद्री मील के अनन्य आर्थिक क्षेत्र (Exclusive Economic Zone – EEZ) में गहरे समुद्र में मत्स्यन में निवेश करना चाहिए, जिससे तट के समीप के जलक्षेत्रों पर दबाव कम होगा और अवैध रूप से जलक्षेत्र पार करने में कमी आएगी।
  • बहु-स्तरीय सहयोग: समाधानों में केंद्र सरकार की बातचीत, तमिलनाडु-उत्तरी प्रांत के बीच जुड़ाव, और समुदाय-स्तरीय संवाद का संयोजन होना चाहिए।
  • सहानुभूति को बढ़ावा देना: शत्रुता को कम करने और सांस्कृतिक संबंधों को बनाए रखने के लिए लोगों-से-लोगों के बीच संपर्क तथा उत्तरदायी मीडिया कवरेज आवश्यक है।

निष्कर्ष:

एक सहयोगी मत्स्य पालन व्यवस्था (Collaborative fisheries regime), गहरे समुद्र के विकल्प और विधिक समझौतों का सम्मान, भारत-श्रीलंका के मछुआरों के संबंधों को संघर्ष से सहयोग में बदल सकता है, जिससे दक्षिण एशियाई कूटनीति की दृष्टि में शांति, समृद्धि और आपसी सम्मान सुनिश्चित होगा।

मुख्य परीक्षा हेतु अभ्यास प्रश्न

पाक जलडमरूमध्य और कच्चाथीवू द्वीप पर भारत-श्रीलंका विवाद के ऐतिहासिक तथा कानूनी पहलुओं पर चर्चा कीजिए, तथा द्विपक्षीय संबंधों में तनाव उत्पन्न किए बिना स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए भारत को नेपाल के मौजूदा संकट को किस प्रकार संभालना चाहिए।

(10 अंक, 150 शब्द)

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