प्रारंभिक परीक्षा के लिए प्रासंगिकता: कच्चातिवू द्वीप की भौगोलिक अवस्थिति, भारत-श्रीलंका 1974 और 1976 का समझौता
मुख्य परीक्षा के लिए प्रासंगिकता: मछुआरों का मुद्दा और द्वीप के नियमों से संबंधित मुद्दे
संदर्भ:
हाल ही में, विदेश मंत्री द्वारा कच्चातिवू द्वीप पर भारतीय मछुआरों के अधिकारों के संबंध में एक बयान ज़ारी किया गया।
अवस्थिति:
स्थान: कच्चातिवू द्वीप भारत और श्रीलंका के मध्य पाक जलडमरूमध्य में एक निर्जन स्थान है।
भूगोल: यह भारतीय तट पर रामेश्वरम के उत्तर-पूर्व में, जाफना के दक्षिण-पश्चिम में और श्रीलंका के उत्तरी सिरे पर स्थित है जो श्रीलंका से संबंधित डेल्फ़्ट द्वीप (Delft Island) से 24 किमी दूर अवस्थित है।
सेंट एंथोनी चर्च: इस द्वीप की एकमात्र संरचना 20वीं सदी का प्रारंभिक कैथोलिक पूजाघर यानि सेंट एंथोनी चर्च है ।
चर्च का वार्षिक उत्सव: चर्च के वार्षिक उत्सव के दौरान भारत और श्रीलंका के ईसाई पुजारियों द्वारा विभिन्न सेवाएँ दी जाती हैं, जिसमें भारत और श्रीलंका दोनों के श्रद्धालुओं द्वारा तीर्थयात्रा की जाती हैं।
द्वीप का इतिहास:
निर्माण : कच्चातिवू द्वीप भूवैज्ञानिक समयरेखा के अनुसार अपेक्षाकृत नया है, जिसका निर्माण 14वीं शताब्दी में ज्वालामुखी विस्फोट के कारण हुआ था।
शासक राजशाही: प्रारंभिक मध्यकालीन युग में इस द्वीप पर श्रीलंका की जाफना राजशाही का शासन था।
नियंत्रण: रामनाद जमींदारी द्वारा, जो रामेश्वरम से लगभग 55 किमी उत्तर पश्चिम में रामनाथपुरम में स्थित थे, 17वीं शताब्दी में इस द्वीप पर नियंत्रण कर लिया गया।
मद्रास प्रेसीडेंसी का हिस्सा: ब्रिटिश राज के दौरान यह मद्रास प्रेसीडेंसी का हिस्सा बन गया था ।
विवाद: वर्ष 1921 में, जब भारत और श्रीलंका ब्रिटिश उपनिवेश थे, दोनों देशों द्वारा मछली पकड़ने हेतु सीमा निर्धारित करने के लिए कच्चातिवू पर दावा किया गया ।
स्वामित्व विवाद: एक सर्वेक्षण के दौरान श्रीलंका में कच्चातिवु को चिह्नित किया गया था, लेकिन भारत के एक ब्रिटिश प्रतिनिधिमंडल द्वारा द्वीप के स्वामित्व के संबंध में रामनाद साम्राज्य का हवाला देते हुए इसे चुनौती दी गयी।
वर्ष 1974 तक यह विवाद नहीं सुलझा था।
कच्चातिवू द्वीप पर समझौता
1974 का भारत-श्रीलंका समुद्री समझौता
समुद्री सीमा का निपटान: वर्ष 1974 में, इंदिरा गांधी के नेतृत्व में तत्कालीन भारत सरकार द्वारा भारत और श्रीलंका के मध्य समुद्री सीमा को हमेशा के लिए व्यवस्थित करने का प्रयास किया गया था ।
श्रीलंका को द्वीप सौंपना: इस समझौते के एक हिस्से के रूप में, जिसे ‘भारत-श्रीलंकाई समुद्री समझौते’ के रूप में जाना जाता है, कच्चातिवु को श्रीलंका को सौंप दिया गया था।
1974 का समझौता और भारतीय मछुआरों के मछली पकड़ने के अधिकार:
भारतीय मछुआरों को पहुँच प्रदान करना: इस समझौते के अनुसार, भारतीय मछुआरों को अभी भी कच्चातिवू तक पहुँचने की अनुमति प्राप्त थी।
दुर्भाग्य से, इस समझौते से मछली पकड़ने के अधिकार का मुद्दा नहीं सुलझ सका।
मछली पकड़ने के सीमित अधिकार: श्रीलंका द्वारा भारतीय मछुआरों के कच्चातीवू तक पहुँचने के अधिकार को, मछुआरों के विश्राम करने, जाल सुखाने और बिना वीज़ा के कैथोलिक मंदिर की यात्रा तक, सीमित बताया गया।
1976 का समझौता
विभिन्न प्रतिबंध: वर्ष 1976 में भारत में आपातकाल की अवधि के दौरान एक और समझौता संपन्न हुआ, जिसके तहत किसी भी देश को दूसरे देश के विशेष आर्थिक क्षेत्र में मछली पकड़ने से प्रतिबंधित कर दिया गया।
मछली पकड़ने के अधिकार पर अनिश्चितता: एक बार पुनः, कच्चातिवू के किसी भी देश के EEZ के बिल्कुल किनारे पर होने के कारण, मछली पकड़ने के अधिकार के संबंध में कुछ हद तक अनिश्चितता बनी रही।
श्रीलंकाई गृहयुद्ध के कारण कच्चातिवू का प्रभावित होना:
1983 और 2009 के मध्य की अवधि के दौरान:
श्रीलंकाई गृहयुद्ध: 1983 से 2009 के मध्य, श्रीलंका में गंभीर गृहयुद्ध छिड़ जाने के कारण सीमा विवाद के मुद्दे के तरफ किसी का ध्यान नहीं गया।
भारतीय मछुआरों का श्रीलंका में प्रवेश: चूँकि श्रीलंकाई नौसैनिक बलों द्वारा जाफना से लिट्टे की आपूर्ति लाइनों को अवरुद्ध करने पर ध्यान केंद्रित किया जा रहा था, इसलिए भारतीय मछुआरे अक्सर श्रीलंकाई जलक्षेत्र में प्रवेश कर जाते थे ।
बड़े ट्रॉलरों का प्रवेश: अत्यधिक मात्रा में मछली पकड़ने और स्थानीय मछली पकड़ने के गियर और नौकाओं को नुकसान पहुँचाने के कारण बड़े भारतीय ट्रॉलरों को विशेष रूप से नापसंद किया जाने लगा ।
2009 के बाद:
समुद्री बलों को सुदृढ़ करना: कोलंबो द्वारा उसकी अपनी समुद्री सुरक्षा को मजबूत किया गया और साथ ही भारतीय मछुआरों पर ध्यान केंद्रित किया गया ।
परिणाम: भारतीय समुद्री सीमा में समुद्री संसाधनों की कमी का सामना करने के कारण मछुआरों द्वारा बार-बार श्रीलंकाई जलक्षेत्र में प्रवेश किया जाता रहा, जैसा कि वे वर्षों से करते आ रहे थे, लेकिन अंततः भारतीय मछुआरों को इसका परिणाम भुगतना पड़ा।
भारतीय मछुआरों की गिरफ्तारी: आज तक, श्रीलंकाई नौसेना द्वारा नियमित रूप से भारतीय मछुआरों की गिरफ्तारी की जाती रही है और हिरासत में उनकी यातना और मौत के कई आरोप भी लगते रहे हैं।
ऐसी किसी भी घटना के घटित होने पर कच्चातिवू की माँग फिर से बढ़ जाती है।
कच्चातिवू पर तमिलनाडु की स्थिति ?
बिना परामर्श : कच्चातिवू द्वीप को तमिलनाडु राज्य विधानसभा से परामर्श किए बिना श्रीलंका को “दे दिया गया”।
1991 के पश्चात् मछली पकड़ने के अधिकारों की पुनर्स्थापना : वर्ष 1991 में, श्रीलंकाई गृहयुद्ध में भारत के एक बड़े हस्तक्षेप के बाद, तमिलनाडु विधानसभा द्वारा कच्चातिवू को पुनः प्राप्त करने और तमिल मछुआरों के मछली पकड़ने के अधिकारों की बहाली की माँग की गई।
2008 की याचिका: वर्ष 2008 में, तत्कालीन अन्नाद्रमुक नेता दिवंगत जे.जयललिता द्वारा अदालत में दायर एक याचिका के अनुसार संवैधानिक संशोधन के बिना कच्चातिवु को दूसरे देश को नहीं सौंपा जा सकता है।
याचिका में दर्ज तर्क के अनुसार 1974 के समझौते ने भारतीय मछुआरों के पारंपरिक मछली पकड़ने के अधिकार और आजीविका को प्रभावित किया है।
द्वीप के स्थानांतरण का प्रभाव: राज्य सरकार की सहमति के बिना, केंद्र सरकार द्वारा कच्चातिवु के श्रीलंका में स्थानांतरण से तमिलनाडु के मछुआरों को अपने अधिकारों से वंचित होना पड़ा और उनकी आजीविका पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ा।
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