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केरल : आपदा जोखिम वाले क्षेत्रों की तत्काल पहचान की आवश्यकता

Lokesh Pal October 05, 2024 05:30 85 0

संदर्भ : 

  • हाल ही में, केरल के वायनाड जिले में हुए भूस्खलन के कारण बड़ी संख्या में लोगों को अपनी असमय जान गंवानी पड़ी। इस घटना ने जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न चुनौतियों के कारण बेहतर आपदा प्रबंधन रणनीतियों की तत्काल आवश्यकता को उजागर किया है।     
  • अरब सागर और पश्चिमी घाट के बीच स्थित केरल को कभी आपदा-मुक्त क्षेत्र माना जाता था। लेकिन भूस्खलन और बाढ़ की बढ़ती आवृत्ति और गंभीरता से पता चलता है कि ” ईश्वर का अपना देश” अब ईश्वर के क्रोध के परिणामों का सामना कर रहा है। 

आपदाओं की आवृति के प्रमुख कारण :

  • मानवीय हस्तक्षेप :
    • विकास गतिविधियाँ : समुद्र तट के किनारे अनियोजित बस्तियाँ विकसित हो गई हैं, जिससे जोखिम बढ़ गया है। 
    • अतिक्रमण : वनों और विकास परियोजनाओं में मानव अतिक्रमण अक्सर संरचनात्मक अखंडता, स्थलाकृति और जल निकासी की प्रणालियों की अनदेखी करता है।
    • बुनियादी ढांचे पर दबाव : बढ़ते मानव भार को समायोजित करने में असमर्थता के कारण भी बुनियादी ढांचे की चुनौतियाँ बढ़ गई हैं।
    • जनसंख्या विस्फोट : बढ़ती जनसंख्या राज्य के संसाधनों पर अधिक दबाव डालती है, जिससे बुनियादी ढांचे का पतन और आपदा संवेदनशीलता प्रभाव पड़ता है।
    • उदाहरण के लिए, उत्तराखंड को भी इसी प्रकार की चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, क्योंकि चार धाम यात्रा के लिए विकसित बुनियादी ढांचे ने निस्संदेह परिवहन को बढ़ावा दिया है, लेकिन साथ ही आपदा की आशंका भी बढ़ा दी है।
  • जलवायु परिवर्तन : अरब सागर के तेजी से गर्म होने से जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को देखा जा सकता है जिसने मौसम के पैटर्न को तीव्र कर दिया है, जिससे केरल में चक्रवात और बाढ़ जैसी घटनाओं की आवृत्ति और गंभीरता बढ़ गई है। इसके विशिष्ट प्रभावों में निम्नलिखित समस्याएं शामिल हैं :
    • 2000 के दशक से हिंद महासागर में ऊष्मा की मात्रा में अत्यधिक वृद्धि हुई है, जिससे चक्रवातजनन में योगदान हुआ है।
    • ग्रीष्मकाल में समुद्री सतह के तापमान में 1.2°C की असामान्य वृद्धि ने चिंता को और भी बढ़ दिया है।
    • वर्ष 2017 में चक्रवात ओखी का गंभीर प्रभाव बंगाल की खाड़ी से अरब सागर की ओर रुझान में बदलाव का उदाहरण था, तथा इसने जलवायु संबंधी आपदाओं के प्रति राज्य की संवेदनशीलता को उजागर किया।

नोट : विश्व मौसम विज्ञान संगठन ने 2018 की केरल बाढ़ को ‘सदी की बाढ़’ घोषित किया और इस आपदा के लिए जलवायु परिवर्तन को जिम्मेदार ठहराया।

केरल आपदा जोखिम हेतु प्रमुख समाधान  उपाय  :

  • चूंकि वैश्विक पर्यावरण परिवर्तन के कारण केरल में ‘सुरक्षित संचालन स्थान’ कम होता जा रहा है, इसलिए उभरती चुनौतियों का निरंतर विश्लेषण और पहचान करना आवश्यक हो जाता है। आपदा जोखिमों से प्रभावी ढंग से निपटने के लिए निम्नलिखित कदम उठाए जा सकते हैं :
    • संवेदनशील क्षेत्रों की पहचान करना : आपदा जोखिम वाले संवेदनशील क्षेत्रों को चिन्हित करने के लिए भूवैज्ञानिक कारकों, ढलान स्थिरता, जल विज्ञान संबंधी मापदंडों और मानवीय गतिविधियों का आकलन करना चाहिए।
  • उदाहरण के लिए :
  • तटीय क्षेत्र : ये तटीय कटाव और समुद्री उछाल के कारण विशेष रूप से संवेदनशील हैं, जिसे वनस्पति बहाली के माध्यम से कम किया जा सकता है।
    • निचले भू-क्षेत्र : वेम्बनाड झील के आसपास के क्षेत्रों में मानसून के दौरान अक्सर बाढ़ आती है।
  • भूस्खलन – प्रवण क्षेत्रों का मानचित्र : पश्चिमी घाट के साथ भूस्खलन-प्रवण क्षेत्रों को दर्शाने वाला मानचित्र तैयार करना।
    • इसमें बाधित नदी मार्गों की निगरानी करना तथा भूदृश्य में संभावित दरारों का कारण बनने वाले टेक्टोनिक बदलावों की पहचान करना शामिल है।
    • भूस्खलन की घटनाओं के संबंध में ज्ञान के अंतर को पाटने की अत्यंत आवश्यकता है।
  • दृष्टिकोण में आमूलचूल परिवर्तन : ऊपर से नीचे (टॉप टू बॉटम अप्रोच) की ओर बढ़ना तथा एक सक्रिय रणनीति का पालन करना आवश्यक है।
    • इस नए दृष्टिकोण में आपदा चक्र के सभी पहलुओं को शामिल किया जाना चाहिए, जिसमें तैयारी, लचीलापन, जोखिम में कमी, शमन, पुनर्निर्माण, पुनर्प्राप्ति, प्रतिक्रिया और राहत कार्य शामिल है, जो अंततः ” बिल्ड बैक बेटर ” प्रथाओं को बढ़ावा देगा।
  • प्रभावी सहयोगात्मक ढाँचे हेतु हेलिक्स मॉडल : सामुदायिक संगठनों, शिक्षाविदों, सरकार और निजी उद्योग को शामिल करने वाला एक सहयोगात्मक ढांचा प्रभावी आपदा प्रतिक्रिया और लचीलापन निर्माण के लिए राज्य की क्षमता में सुधार करके आपदा प्रबंधन प्रयासों को बढ़ा सकता है।
  • निगरानी तंत्र : वर्षा और भूकंपीय गतिविधि जैसे कारकों की निगरानी के लिए उन्नत प्रणालियों को लागू करना, ताकि प्रभावित समुदायों को समय पर चेतावनी देकर व्यवस्थित किया जा सके।
  • सामुदायिक सहभागिता : व्यापक और प्रभावी आपदा प्रबंधन रणनीति सुनिश्चित करने के लिए सरकारी प्रयासों को सामुदायिक सहभागिता से पूरित किया जाना चाहिए।

सेंडाइ फ्रेमवर्क : आपदा जोखिम न्यूनीकरण हेतु सेंडाइ फ्रेमवर्क आपदा जोखिम न्यूनीकरण के लिए महत्वपूर्ण  दिशा-निर्देश प्रदान करता है।

निष्कर्ष :

इस प्रकार, केरल में आपदाओं से प्रभावी ढंग से निपटने के लिए सामाजिक-पारिस्थितिक ढांचे के भीतर सामाजिक और भौतिक दोनों घटकों को पहचानना आवश्यक है। यह दृष्टिकोण पारिस्थितिकी स्थिरता और विकास के बीच एक सामंजस्यपूर्ण संतुलन सुनिश्चित करता है, जो अंततः भविष्य के जोखिमों के खिलाफ लचीलेपन को बढ़ाता है।

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