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सत्ता में सशक्त विपक्ष तथा विपक्ष के नेता की प्रमुख जिम्मेदारियाँ

Lokesh Pal June 27, 2024 05:00 308 0

संदर्भ: 

2024 का आम चुनाव ऐतिहासिक रूप से महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि इसके परिणामस्वरूप लोकसभा में संख्यात्मक रूप से विपक्ष की स्थिति मज़बूत हुई है; ऐसे में विपक्षी नेता की जिम्मेदारियों के विषय में बात करना महत्वपूर्ण हो जाता है।

प्रारंभिक परीक्षा के लिए प्रासंगिकता: विपक्ष का नेता, संसद अधिनियम, 1977 में विपक्ष के नेताओं के वेतन और भत्ते, किसी व्यक्ति को विपक्ष का नेता मानने के मानदंड, वेस्टमिंस्टर प्रणाली और छाया मंत्रिमंडल आदि।

मुख्य परीक्षा के लिए प्रासंगिकता: लोकसभा में विपक्ष के नेता (LoP) का महत्त्व एवं भूमिका, वेस्टमिंस्टर प्रणाली में विपक्ष के नेता की भूमिका आदि।

 नेता प्रतिपक्ष की प्रमुख जिम्मेवारियाँ:

  •  यह सदन के इतिहास में संभवतः संख्यात्मक रूप से सबसे बड़ा नेता प्रतिपक्ष है।
  • विपक्ष को 234 से अधिक सीटें प्राप्त हुई के साथ ही विपक्ष के नेता (LoP) के विषय में बात करना महत्त्वपूर्ण हो गया है।
  • 16वीं और 17वीं लोकसभा में कोई विपक्ष का नेता नहीं था, क्योंकि 1950 के दशक में अध्यक्ष द्वारा जारी निर्देश के अनुसार सदन में एक पार्टी के रूप में मान्यता प्राप्त करने के लिए, उसके पास सदन में न्यूनतम 10% सदस्य होने चाहिए (निर्देश 121)
  • यह निर्देश संसदीय दलों को संसद में कुछ सुविधाएँ प्रदान करने के उद्देश्य से उनकी मान्यता और वर्गीकरण के लिए जारी किया गया था।
    • लेकिन यह निर्देश विपक्ष के नेता की मान्यता से संबंधित नहीं है।
  • बाद में, संसद ने विपक्ष के नेताओं के वेतन और भत्ते अधिनियम (1977) को अधिनियमित किया, जिसमें पहली बार विपक्ष के नेता को “सरकार के विपक्षी दल का सदन में नेता, जिसके पास सबसे अधिक संख्याबल है और जिसे राज्य सभा के सभापति या लोक सभा के अध्यक्ष द्वारा, जैसा भी मामला हो, मान्यता प्राप्त है” के रूप में परिभाषित किया गया।
    • विपक्ष के नेताओं के वेतन और भत्ते अधिनियम (1977) की  परिभाषा से पता चलता है कि किसी व्यक्ति को विपक्ष का नेता मानने के लिए दो शर्तें पूरी होनी आवश्यक हैं।
      • पहला, सरकार के विपक्ष में पार्टी संख्यात्मक रूप से सबसे बड़ी होनी चाहिए।
      • दूसरा, उस पार्टी को लोकसभा अध्यक्ष द्वारा सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी के रूप में मान्यता दी जानी चाहिए।
  • जैसा कि पहले बताया गया है, लोकसभा अध्यक्ष किसी पार्टी को तभी मान्यता दे सकता है जब उसके पास सदन की कुल सदस्य संख्या का 10% हो।
  • दूसरे शब्दों में, सदन में कुल सदस्यों की संख्या का 10% हिस्सा रखने वाली पार्टी ही विपक्ष के नेता के पद पर अपना दावा पेश कर सकती है।
  • उल्लिखित निर्देश के तहत, जिस पार्टी के पास 10% से कम सदस्य हैं, उसे ऐसे समूह के रूप में वर्गीकृत किया जाएगा जो विपक्ष के नेता के पद का दावा नहीं कर सकता।
  • इस प्रकार, कांग्रेस संसदीय दल, जिसके पास वर्ष 2019 में लोकसभा में केवल 52 सदस्य थे, 54 से दो कम, अतः यही कारण है कि उसे विपक्षी पार्टी का दर्जा नहीं दिया गया था।

वेस्टमिंस्टर प्रणाली:

  • लोकसभा में विपक्ष के नेता का पद राजनीतिक महत्त्व रखता है।
  • ब्रिटिश संसदीय परंपरा में उन्हें प्रतीक्षा-रत प्रधानमंत्री (Prime Minister-in-waiting) कहा जाता है, क्योंकि जब वर्तमान सरकार गिर जाती है तो राजा वैकल्पिक सरकार बनाने के लिए उन्हीं की ओर रुख करता है।
  • इसलिए, वह अपनी पार्टी के सहयोगियों की एक छाया कैबिनेट बनाते हैं।
  • यह वेस्टमिंस्टर शासन प्रणाली की एक महत्त्वपूर्ण विशेषता है।
  • छाया मंत्रिमंडल का गठन विपक्ष के नेता के नेतृत्व में किया जाता है, जिसे छाया प्रधानमंत्री कहा जाता है।
  • इस परंपरा के अनुसार, छाया मंत्रिमंडल सरकार की नीतियों और कार्यों की जाँच करता है तथा वैकल्पिक नीति प्रस्तुत करता है।
  • इसे छाया मंत्रिमंडल इसलिए कहा जाता है क्योंकि इसके सदस्य वास्तविक मंत्रिमंडल के सदस्यों के पदों के समान होते हैं।
  • छाया मंत्रिमंडल के सदस्य के रूप में, ये विपक्षी सदस्य सरकार के कार्यों से पूरी तरह परिचित हो जाते हैं।
  • ये विपक्षी सदस्य सरकार की गतिविधियों के बारे में सभी प्रासंगिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। 
  • संसदीय प्रणाली पर अंतरराष्ट्रीय स्तर के विशेषज्ञ एर्स्किन के अनुसार, विपक्ष के नेता और दोनों सदनों में नेता के कुछ प्रमुख सहयोगी एक समूह बनाते हैं, जिसे छाया मंत्रिमंडलके रूप में जाना जाता है, जिसके प्रत्येक सदस्य को गतिविधियों की एक विशेष श्रृंखला दी जाती है, जिसमें सरकार की नीति और प्रशासन की आलोचना करना और वैकल्पिक नीतियों की रूपरेखा तैयार करना उनका कार्य होता है।”
  • यद्यपि हमने वेस्टमिंस्टर प्रणाली को अपना लिया है, लेकिन संसद या राज्य विधानसभाओं में छाया मंत्रिमंडल बनाने की प्रथा मौजूद नहीं है।
  • भारतीय संसद में विपक्ष के नेता का पद 1977 से एक वैधानिक पद रहा है।
  • हालाँकि, यह क़ानून विपक्ष के नेता के कार्यों को परिभाषित नहीं करता है।
  • परंपरागत रूप से, वह सदन में मुख्य विपक्षी दल का एक अति वरिष्ठ या प्रतिष्ठित सदस्य होता है, जिसे पार्टी में पर्याप्त सम्मान प्राप्त है और विपक्षी दलों के बीच उसकी व्यापक स्वीकार्यता है।

2024 में बदलाव के साथ चुनौतियाँ:

  • चूँकि भारतीय संसद में विपक्ष एकजुट नहीं है और इसमें भिन्न विचारधाराओं और कार्यक्रमों वाले अनेक दल भी शामिल हैं, इसलिए विपक्ष के नेता की भूमिका चुनौतियों से भरी है।
  • भारतीय संसद में, विपक्ष के नेता की सबसे बड़ी समस्या यह है कि उसके पास कोई विशेष शक्ति या अधिकार क्षेत्र नहीं है।
  • यही कारण है कि सत्ता में रहने वाली पार्टी के लिए अन्य पार्टियों को आकर्षित करना और सत्ता-साझेदारी व्यवस्था के माध्यम से गठबंधन को एकजुट रखना आसान होता है।
  • विपक्ष द्वारा  सरकार की नीतियों और कार्यक्रमों का विरोध करना एक प्रमुख कारक है जो उन्हें सत्ता पक्ष के सापेक्ष एकजुट रखता है।
  • कुछ स्थितियों में सरकार गिराने की उम्मीद एक एकीकृत कारक के रूप में कार्य करती है। वास्तव में, विपक्ष की पारंपरिक भूमिका “सरकार का विरोध करना, उसकी आलोचना करना और उसे बदलने की कोशिश करना” है।
  • पिछले 10 वर्षों में लोकसभा में विपक्ष का प्रदर्शन काफी कमजोर रहा है, जो सरकार के लिए कोई गंभीर चुनौती पेश नहीं कर सका।
  • सत्तारूढ़ दल को प्राप्त विशाल बहुमत और उसकी अनेक माध्यमों से दी गई चेतावनी के कारण विपक्ष भयभीत हो गया और वह प्रायः असहाय महसूस करने लगा।
  • लेकिन 2024 के आम चुनाव ने राजनीतिक माहौल और सदन की जनसांख्यिकी में बड़ा बदलाव लाने का प्रयास किया है।
  • संभवत: यह पहली बार है कि लोकसभा में विपक्ष की संख्या इतनी मजबूत स्थिति में है।
  • विपक्ष में 234 से अधिक सदस्यों के साथ सदन में लगभग बराबर बंटा हुआ है।
  • इसमें कोई संदेह नहीं कि इससे विपक्ष का मनोबल बढ़ा है, जो काफी हद तक सदन के कामकाज को प्रभावित कर सकता है।
  • यह प्रश्नों की स्वीकृति, उत्तरों की विषय-वस्तु, विधेयकों पर बहस, सामान्य बहस, जैसे- धन्यवाद प्रस्ताव पर बहस, जनहित के अत्यावश्यक मामलों, स्थगन प्रस्तावों की स्वीकृति तथा विधेयकों को विस्तृत जाँच के लिए समितियों को भेजने आदि में प्रतिबिंबित होगा।

अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य : 

  • विपक्ष के नेता को विपक्ष के इस नए परिवर्तन को समझने में सक्षम होना चाहिए तथा सदन में अपने विचार सबसे प्रभावी तरीके से प्रस्तुत करने चाहिए।
  • 18वीं लोकसभा के विपक्ष के नेता के सामने हर कीमत पर विपक्षी एकता बनाए रखना अत्यधिक कठिन कार्य है।
  • प्रधानमंत्री पद की दौड़ में आगे होने के नाते, उनकी जिम्मेदारी है कि वे देश को सरकार की विफलताओं के बारे में ईमानदारी और जिम्मेदारी के साथ प्रस्तुत करें। 
  • यह सर्वमान्य संसदीय परंपरा है कि अध्यक्ष विपक्ष के नेता को बिना किसी सूचना के किसी भी मामले में हस्तक्षेप करने की अनुमति देते हैं।
  • जब सदन में गंभीर मुद्दों पर बहस हो रही हो तो वह प्रधानमंत्री की उपस्थिति की माँग कर सकते हैं।
  • ब्रिटिश परंपरा के अनुसार, प्रधानमंत्री प्रमुख नीतिगत पहलों के बारे में सीधे विपक्ष के नेता को सूचित करते हैं।
  • इस प्रकार, प्रधानमंत्री और विपक्ष के नेता के बीच संवाद का माध्यम हमेशा खुला रहता है।

अतीत से सबक :

  • भारत में भी इस स्वस्थ परंपरा का पालन किया जा सकता है, जिससे निश्चित रूप से लोकतंत्र मजबूत होगा।
  • प्रधानमंत्री  जवाहरलाल नेहरू ने कुछ परम्पराएं स्थापित की थीं, जैसे कि अधिकांश अवसरों पर प्रश्नकाल के दौरान सदन में उपस्थित रहना और जब भी उन्हें लगता कि मंत्रियों के उत्तर अपर्याप्त हैं, तो उनका समर्थन करना।
  • कहा जाता है कि प्रधानमंत्री नेहरू ने लोकसभा अध्यक्ष से विपक्ष के नेताओं को अधिक समय देने का अनुरोध किया था और कहा था कि वे उनकी बात सुनने के लिए सदन में अवश्य उपस्थित रहेंगे।
  • प्रधानमंत्री नेहरू कहा करते थे कि उन्हें देश की वास्तविक स्थिति के बारे में केवल विपक्षी सदस्यों से ही पता चलेगा, न कि उनकी अपनी पार्टी के सदस्यों से, जो केवल उनकी प्रशंसा करेंगे तथा सच नहीं बोलेंगे।

अन्य संबंधित तथ्य :

  • भारतीय संसद का प्रारंभिक विकास एक संतुलित और सामंजस्य भरे वातावरण में हुआ।
  • अतीत में बहुत कुछ ऐसा है जिसे सांसदों की नई पीढ़ी द्वारा सीखा और अनुकरण किया जा सकता है।
  • अतीत का खंडन करने से कुछ भी हासिल नहीं होगा क्योंकि असहमति के प्रति असहिष्णुता कभी भी हमारी परंपरा का हिस्सा नहीं थी।
  • भारत की जनता ने राजनीतिक वर्ग को संसद में सामान्य स्थिति बहाल करने का एक बड़ा अवसर दिया है।
  • विपक्ष के नेता का मुख्य कार्य सत्तारूढ़ पक्ष को जगाना तथा सरकार की नीतियों व प्रशासन की आलोचना करना और जन-हित में वैकल्पिक नीतियों की रूपरेखा बनाने हेतु सरकार पर दबाव बनाना है।  

निष्कर्ष:

निष्कर्षतः 18वीं लोकसभा में विपक्ष के नेता की महत्वपूर्ण भूमिका एकता को बढ़ावा देने, सरकार को जवाबदेह बनाने और संसदीय लोकतंत्र को पुनर्जीवित करने के लिए महत्वपूर्ण है।

मुख्य परीक्षा पर आधारित प्रश्न :

 प्रश्न : लोकसभा में विपक्ष के नेता (एलओपी) के महत्व पर चर्चा करें। भारतीय संसदीय प्रणाली में विपक्ष के नेता की भूमिका की तुलना वेस्टमिंस्टर प्रणाली से करें। 

(15 अंक, 250 शब्द)

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