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लद्दाख का विरोध: न्याय की भूख

Lokesh Pal April 03, 2024 05:15 165 0

प्रारंभिक परीक्षा के लिए प्रासंगिकता: छठी अनुसूची क्षेत्र, हिमनदी झील का विस्फोट

मेन्स के लिए प्रासंगिकता: लद्दाख के शासन संबंधी मुद्दे और पर्यावरणीय चुनौतियाँ

संदर्भ:

हाल ही में, सोनम वांगचुक द्वारा लद्दाख को राज्य का दर्जा देने और छठी अनुसूची में शामिल करने की माँग को लेकर  लेह, लद्दाख में 21 दिनों की भूख-हड़ताल शुरू की गई  है ।

कालक्रम: लद्दाख का जटिल इतिहास

  • नामग्याल राजवंश: लद्दाख पर कभी उसके नामग्याल राजवंश (Namgyal Dynasty) का ही शासन हुआ करता था।
  • स्वतंत्रता की क्षति : वर्ष 1834 में यह क्षेत्र डोगरा शासन के अधीन हो गया, जिसका शासन एक शताब्दी तक चला।
  • भारत का हिस्सा: लद्दाख, 1947 के बाद जम्मू और कश्मीर के अंतर्गत भारत में शामिल हो गया।

स्वायत्तता की माँग

  • सांस्कृतिक मतभेद: लद्दाख द्वारा विशिष्ट सांस्कृतिक पहचान के आधार पर कश्मीर से अलग होने की माँग की गई।
  • अपूर्ण अनुरोध: हालाँकि केंद्र सरकार द्वारा लद्दाख को स्वायत्तता प्रदान नहीं की गई ।
  • उपेक्षा और भेदभाव:
    • 1951-55 बजट आवंटन: इस बजट में लद्दाख को शून्य बजट आवंटन प्राप्त हुआ था I
    •  प्रति व्यक्ति फंडिंग: लद्दाख की प्रति व्यक्ति फंडिंग जम्मू-कश्मीर से 5-6 गुना कम है I
  • केंद्र शासित प्रदेश आंदोलन का उदय
    • उपेक्षा: लद्दाखियों को उपेक्षा महसूस होने के कारण उनके द्वारा केंद्रशासित प्रदेश के दर्जा की माँग की गई ।
    • जिला प्रभाग: 1979 में लद्दाख को लेह और कारगिल में विभाजित किया गया था I
    • धार्मिक राजनीति: हालाँकि इस विभाजन को राजनीतिक रणनीति के रूप में देखा जाता है।
  • माँगों की आंशिक पूर्ति
    • अनुसूचित जनजाति क्षेत्र: वर्ष 1989 में, लद्दाख को आरक्षण का लाभ प्राप्त हुआ।
    • स्थानीय परिषदें: वर्ष 1995 में यहाँ स्वायत्त परिषदों का गठन किया गया।
    • सीमित शक्तियाँ: हालाँकि इन परिषदों के पास सीमित अधिकार थे।
  • केंद्र शासित प्रदेश के रूप में लद्दाख का निर्माण
    • अनवरत  माँगें: लद्दाखी अपने यूटी दर्जे के लिए हमेशा से अडिग रहे हैं।
    • अनुच्छेद 370 निरस्त: वर्ष 2019 में, लद्दाख एक अलग केंद्र शासित प्रदेश बन गया।
  • यूटी स्थिति पर प्रतिक्रियाएँ
    • लेह में जश्न: लेह में बौद्धों द्वारा इस बदलाव का जश्न मनाया गया ।
    • कारगिल में विरोध: कारगिल में मुसलमानों द्वारा इस फैसले का विरोध किया गया ।

यूटी दर्जे के पश्चात् चिंताएँ और विभिन्न माँगें:

  • सुरक्षा संबंधी क्षति : धारा 370 और 35A के हटाये जाने से लद्दाखवासी चिंतित हैं । 
  • बाहरी प्रभाव: इन धाराओं के हटने से उन्हें इस क्षेत्र में अनियंत्रित विकास और सांस्कृतिक क्षीणता का भय पैदा हो गया है ।
  • सीमित शासन: स्थानीय शासन पर नियंत्रण संबंधी अभाव भी लद्दाख के स्थानीय निवासियों के चिंता का विषय बन गया है ।

लद्दाख में समसामयिक विरोध प्रदर्शन:

  • एकीकृत विरोध
    • एकता : इस विरोध के कारण लेह एपेक्स बॉडी और कारगिल डेमोक्रेटिक अलायंस एकजुट हो गए हैं ।
    • प्रमुख माँगें: इनकी प्रमुख माँगों में लद्दाख को छठी अनुसूची में शामिल करना और उसे राज्य का दर्जा प्रदान करना शामिल है।
  • विरोध प्रदर्शन और भूख हड़ताल
    • विरोध प्रदर्शन: कठोर सर्द मौसम के बावजूद इनके द्वारा निरंतर विरोध जारी रहा ।
    • भूख हड़ताल: वांगचुक की भूख हड़ताल ने लोगों का ध्यान आकृष्ट किया है।
  • सरकार का रुख
    • सुरक्षा संबंधी चिंताएँ: सरकार का मुख्य फोकस सैन्य बुनियादी ढाँचे पर ध्यान देना है ।
    • आर्थिक प्राथमिकताएँ: साथ ही इस क्षेत्र में कॉर्पोरेट निवेश को भी सुविधाजनक बनाना है।
    • एक मिसाल कायम करना: भविष्य में अन्य समूहों द्वारा ऐसी समान माँगों की आशंका के कारण सरकार द्वारा इसमें अनिच्छा प्रकट की जा रही है, ताकि यह हड़ताल एक मिसाल का रूप धारण न कर ले ।
  • विश्वास और विकास का मुख्य मुद्दा
    • भरोसे की कमी: लद्दाखियों को अपने विकास संबंधी नियंत्रण को खोने का भय है।
    • विकास संबंधी चिंताएँ: वे ऐसा विकास चाहते हैं, जो उनकी विरासत का सम्मान करे।

निष्कर्ष

लद्दाख में भूख हड़ताल क्षेत्र के पर्यावरणीय और शासन संबंधी कठिनाइयों को संबोधित करने के महत्त्व पर जोर देती है एवं उनका मानना है कि क्षेत्र में दीर्घकालिक शांति और समृद्धि सुनिश्चित करने के लिए सतत विकास एक महत्वपूर्ण समाधान है।

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