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लद्दाख द्वारा छठी अनुसूची की माँग: समग्र विश्लेषण

Lokesh Pal June 04, 2025 05:30 40 0

संदर्भ:

हाल ही में, केंद्र सरकार ने लद्दाख के लिए आरक्षण, भाषा, निवास प्रमाणपत्र और पर्वतीय विकास परिषदों की संरचना से संबंधित नई नीतियों को अधिसूचित किया है। लद्दाख वर्ष 2019 में संघ राज्यक्षेत्र बना था

नए नियम और विनियम

  • अनुच्छेद 370 के बाद के घटनाक्रम: 2019 में अनुच्छेद 370 को हटाए जाने के बाद जम्मू और कश्मीर राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशोंजम्मू-कश्मीर तथा लद्दाख में विभाजित कर दिया गया।
    •  इस निर्णय से लद्दाख में भूमि, भाषा और संस्कृति की सुरक्षा को लेकर चिंताएँ उत्पन्न हुईं।
  • रोज़गार में आरक्षण: एक प्रमुख प्रावधान के तहत सरकारी नौकरियों में स्थानीय निवासियों के लिए 85% तक के आरक्षण का प्रावधान है। यह प्रावधान पूर्वोत्तर राज्यों में उच्च आरक्षण कोटों की तरह ही है।
  • पूर्वोत्तर राज्यों से तुलना: मिजोरम 92% आरक्षण, अरुणाचल प्रदेश 80% आरक्षण। ये उदाहरण लद्दाख की मूल निवासियों के हितों की सुरक्षा की माँग को वैधता प्रदान करते हैं।
  • लद्दाख के लिए निवास प्रमाणपत्र नीति: लद्दाख के निवास प्रमाणपत्र के लिए व्यक्ति को 2019 से लगातार 15 वर्षों तक क्षेत्र में निवास करना आवश्यक है। इसका अर्थ है, कि 2019 के बाद आए प्रवासियों को 2034 से पहले निवास प्रमाणपत्र नहीं दिया जाएगा।
  • जम्मू-कश्मीर केंद्र शासित प्रदेश से तुलना: इसके विपरीत, जम्मू और कश्मीर केंद्र शासित प्रदेश में 15 वर्षों से पंजीकृत प्रवासी के रूप में निवास करने वाले व्यक्ति को निवास प्रमाणपत्र के योग्य माना जाता है।
  • महिलाओं के लिए आरक्षण: नई नीति के अनुसार, यह अनिवार्य किया गया है कि पर्वतीय विकास परिषदों में एक तिहाई सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित होंगी, जिससे स्थानीय शासन में उचित लैंगिक प्रतिनिधित्व को बढ़ावा मिलेगा।
  • आधिकारिक भाषा नीति: लद्दाख की अधिसूचित आधिकारिक भाषाएँ अंग्रेजी, हिंदी, उर्दू, भोटी और पुर्गी हैं। इस नीति का उद्देश्य क्षेत्र की भाषाई विविधता को प्रतिबिंबित और संरक्षित करना है।

 लद्दाख स्वायत्त पर्वतीय विकास परिषद (LAHDC)

  • एलएएचडीसी (LAHDC) स्वायत्त निकाय हैं, जो लद्दाख स्वायत्त पर्वतीय विकास परिषद अधिनियम, 1995 के तहत स्थापित किए गए हैं। ये निकाय लेह और कारगिल जिलों को प्रशासनिक और विकासात्मक स्वायत्तता प्रदान करते हैं।
  • अधिकार और उत्तरदायित्व: परिषदों को स्थानीय विकास, बजट निर्धारण और संसाधन प्रबंधन पर निर्णय लेने का अधिकार है, हालाँकि उनके पास छठी अनुसूची के तहत मिलने वाले विधायी अधिकार नहीं हैं।

लद्दाख के लोगों की मुख्य माँगें

  • लद्दाख के नागरिक समाज: केंद्र सरकार के प्रयासों के बावजूद, लद्दाख की नागरिक समाज संस्थाओं का कहना है, कि ये कदम उनकी मुख्य माँगों को पूरा नहीं करते। उनकी प्रमुख माँगें निम्नलिखित हैं:
    •  लद्दाख को पूर्ण राज्य का दर्जा दिया जाए।
    •  संविधान की छठी अनुसूची में लद्दाख को शामिल किया जाए (जनजातीय संरक्षण के लिए)।
    •  लेह और कारगिल दोनों के लिए अलग-अलग लोकसभा सीटों की माँग।
    •  एक लोक सेवा आयोग की स्थापना।
  • छठी अनुसूची की माँग: भारतीय संविधान की छठी अनुसूची कुछ जनजातीय क्षेत्रों में स्वायत्त जिला परिषदों का प्रावधान करती है, विशेषकर पूर्वोत्तर भारत में।
    •  लद्दाख की जनजातीय-बहुल जनसंख्या अपनी पहचान, संस्कृति और भूमि को बाह्य प्रभावों तथा जनसांख्यिकीय परिवर्तनों से बचाने के लिए संवैधानिक संरक्षण की माँग कर रही है।
  • बेरोज़गारी: विशेषकर युवाओं के बीच रोजगार के अवसरों की कमी 2019 से लद्दाख में असंतोष का एक प्रमुख कारण रहा है।
  • राजपत्रित पदों की रिक्तता: एक संसदीय समिति के अनुसार, केंद्रीय गृह मंत्रालय ने बताया कि 2019 में लद्दाख के केंद्र शासित प्रदेश बनने के बाद से 1,275 राजपत्रित पदों में से एक भी पद भरा नहीं गया है।
    •  इस प्रशासनिक शून्यता ने स्थानीय आबादी को और अधिक अलग-थलग कर दिया है।
  • सरकारी प्रतिक्रिया: कारगिल और लेह दोनों में लगातार जारी विरोध प्रदर्शनों के जवाब में, सरकार ने 2023 में एक उच्चाधिकार प्राप्त समिति का गठन किया, जिसकी अध्यक्षता केंद्रीय राज्य मंत्री नित्यानंद राय कर रहे हैं। इस समिति का गठन लद्दाख की जनता द्वारा लगातार दबाव और जन आंदोलन के चलते किया गया था।

 लद्दाख का रणनीतिक महत्त्व

  • भौगोलिक-राजनीतिक महत्त्व: लद्दाख भारत, चीन और पाकिस्तान के त्रिकोणीय सीमाक्षेत्र पर स्थित है, जहाँ दोनों पड़ोसी देशों के साथ भारत के क्षेत्रीय विवाद हैं।
  • चीन-पाकिस्तान गठजोड़: हालिया घटनाक्रमों से स्पष्ट है, कि चीन और पाकिस्तान प्रायः आपसी समन्वय के साथ कार्य करते हैं, जिससे लद्दाख का रणनीतिक प्रबंधन राष्ट्रीय सुरक्षा का एक अहम विषय बन गया है।

आलोचना और सीमाएँ

  • संवैधानिक आधार की कमी: सभी नियम अनुच्छेद 240 के तहत बनाए गए हैं, जिससे उन्हें बिना किसी विधायी प्रक्रिया के केंद्र सरकार द्वारा संशोधित किया जा सकता है।
  • भूमि स्वामित्व पर कोई प्रतिबंध नहीं: बाहरी लोगों द्वारा भूमि खरीदने पर कोई कानूनी प्रतिबंध नहीं है, जिससे पारिस्थितिक और सांस्कृतिक प्रभावों को लेकर चिंताएँ बढ़ रही हैं।
  • कोई स्थानीय विधायी निकाय नहीं: छठी अनुसूची की परिषदों के विपरीत, लद्दाख स्वायत्त पर्वतीय विकास परिषद (LAHDC) के पास विधायी अधिकार नहीं हैं; जो मुख्य रूप से प्रशासनिक निकायों के रूप में कार्य करते हैं।
  • कम अधिवास अवधि की आलोचना: नागरिक समाज 30 वर्षों की निवास प्रमाणपत्र शर्त की माँग कर रहे हैं, यह तर्क देते हुए कि 15 वर्ष की अवधि स्थानीय पहचान की सुरक्षा के लिए अपर्याप्त है

निष्कर्ष

लद्दाख की स्थिति से केंद्र सरकार द्वारा तत्काल और संवेदनशील प्रक्रियाओं के तहत निपटने की आवश्यकता है। लोगों की पहचान, अधिकारों और आकांक्षाओं की संवैधानिक सुरक्षा सुनिश्चित करना, देश के भीतर सद्भाव और राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए अत्यंत महत्त्वपूर्ण है।

 मुख्य परीक्षा हेतु अभ्यास प्रश्न

 संविधान की छठी अनुसूची में लद्दाख को शामिल करने की माँग, स्वायत्तता, सांस्कृतिक संरक्षण और राजनीतिक प्रतिनिधित्व से संबंधित गहन चिंताओं को दर्शाती है। हाल ही में केंद्र सरकार द्वारा घोषित नीतिगत उपायों के आलोक में समालोचनात्मक विश्लेषण कीजिए, कि क्या ये उपाय इस क्षेत्र की आकांक्षाओं को पर्याप्त रूप से संबोधित करने हेतु पर्याप्त हैं।

(15 अंक, 250 शब्द)

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