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लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक : 168वीं जयंती

Lokesh Pal August 01, 2024 05:15 109 0

संदर्भ: 

23 जुलाई 2024 को सम्पूर्ण देश में, लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक की 168वीं जयंती मनायी गई। इस अवसर पर भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन पर उनके गहन प्रभाव और एक सुधारक के रूप में उनके योगदान पर प्रकाश डाला गया। 

प्रारंभिक परीक्षा के लिए प्रासंगिकता: तिलक स्वराज फंड, होम रूल, केसरी, बाल गंगाधर तिलक कार्य, शिवाजी और गणपति उत्सव आदि। 

मुख्य परीक्षा के लिए प्रासंगिकता: बाल गंगाधर तिलक का राजनैतिक व सामाजिक दृष्टिकोण और विचारधाराएँ, भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन पर बाल गंगाधर तिलक का प्रभाव आदि।

बाल गंगाधर तिलक “लोकमान्य” और “महाराष्ट्र के शेर” के रूप में 

  • 23 जुलाई, 2024 को बाल गंगाधर तिलक की 168वीं जयंती मनाई गई, जिन्हें “लोकमान्य” और “महाराष्ट्र के शेर” के रूप में भी सम्मानित किया जाता है। 
  •  बाल गंगाधर तिलक को देश के लिए उनकी दोहरी भूमिका के लिए अर्थात एक स्वतंत्रता सेनानी और समाज सुधारक याद किया जाता है। 
  • उनके प्रभाव को उल्लेखनीय हस्तियों द्वारा भी रेखांकित किया गया है, जैसे कि ब्रिटिश पत्रकार वैलेंटाइन सिरोल ने उन्हें “भारतीय अशांति का जनक” कहा, जबकि जवाहरलाल नेहरू ने उन्हें “भारतीय क्रांति का जनक” कहा और महात्मा गांधी ने उन्हें “आधुनिक भारत का निर्माता” माना। 
  • तिलक एक प्रतिष्ठित संस्कृत विद्वान और विचारक थे, साथ ही वे एक दूरदर्शी नेता भी थे। 
  • प्रसिद्ध क्रांतिकारी व लेखक श्री अरबिंदो ने तिलक के लेखों और भाषणों के अपने संग्रह में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस पर तिलक के परिवर्तनकारी प्रभाव पर जोर दिया, जिसने इसे अपनी पाश्चात्य विशेषताओं से अलग करके स्वतंत्रता संग्राम में जन भागीदारी को अपनाने के लिए नया स्वरूप दिया। 

महात्मा गांधी द्वारा तिलक की तस्वीर का अनावरण

  • 1921 में महात्मा गांधी की नेल्लोर जिले की यात्रा भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में एक महत्वपूर्ण क्षण थी। 
  • उन्होंने पल्लेपाडु में सत्याग्रह आश्रम का उद्घाटन किया और टाउन हॉल और वी.आर. कॉलेज में महत्वपूर्ण भाषण दिए।
  • रेबाला लक्ष्मी नरसा रेड्डी टाउन हॉल में उन्होंने बाल गंगाधर तिलक की एक तस्वीर का अनावरण किया, जिसमें तिलक की गहरी देशभक्ति और नेतृत्व पर जोर दिया गया। 
  • गांधी ने तिलक की विरासत की प्रशंसा की, “स्वराज” (स्व-शासन) के आदर्शों का आह्वान किया और असहयोग आंदोलन को ‘आत्म-शुद्धि’ के कार्य के रूप में चित्रित किया। 
  • उन्होंने शैक्षणिक संस्थानों, खादी को बढ़ावा देने और स्वदेशी प्रयासों का समर्थन करने के लिए 1920 में स्थापित ‘तिलक स्वराज फंड’ में योगदान देने का आग्रह किया। जो एक सफल संगठित मिशन था।

राज हंस ओझा के विचार 

  • ‘जर्नल ऑफ रिसर्च इन ह्यूमैनिटीज एंड सोशल साइंस’ में प्रकाशित “बाल गंगाधर तिलक की बौद्धिक जीवनी” में राज हंस ओझा ने लिखा है कि “तिलक की कहानी भारत के स्वराज की कहानी है, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के वयस्क होने की कहानी है, और ‘स्वशासन’ और ‘स्वतंत्रता’ की तलाश में पहली बार भारतीय जनता के उत्थान की कहानी है।”

लोकमान्य तिलक के विचार एवं योगदान 

  • लोकमान्य तिलक का मानना ​​था कि “स्वराज हमारी भावी समृद्धि की नींव है, न कि ऊँचाई।” 
  • हमें एक नया राष्ट्र बनाना है, एक नया चरित्र विकसित करना है, उन सिद्धांतों पर चलना है, जिनकी हम वकालत करते हैं, आध्यात्मिक मूल्यों में आस्था, देश के प्रति प्रेम और उन विचारों के प्रति सहिष्णुता जिनसे हम असहमत हैं। 
  • तिलक के बौद्धिक योगदान के अंतर्गत उनकी रचनाएँ जैसे, “द ओरियन ऑर रिसर्च इनटू द एंटिक्विटी ऑफ़ द वेदाज़” (1893) और “द आर्कटिक होम ऑफ़ वेदाज़” (1901) ने उनकी राजनीतिक सक्रियता को पूरक बनाया। 
  • स्वतंत्रता के प्रति अपने समर्पण के बावजूद, उन्होंने शिक्षा के प्रति अपनी प्राथमिकता व्यक्त की। 
  • उन्होंने ‘न्यू इंग्लिश स्कूल’, ‘डेक्कन सोसाइटी फॉर एजुकेशन’ और ‘फर्ग्यूसन कॉलेज’ जैसी संस्थाओं की सह-स्थापना की और हंटर आयोग (1882 और 1919) के समक्ष एक व्यापक शैक्षिक खाका प्रस्तुत किया।
  • बाल गंगाधर तिलक एक रणनीतिकार थे, जो एक आदर्शवादी और दार्शनिक की भूमिकाओं से परे थे और उनके बहुमुखी दृष्टिकोण ने भारत के ऐतिहासिक और शैक्षिक परिदृश्य को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
  • एक प्रखर पत्रकार के रूप में, तिलक अपने साप्ताहिक प्रकाशन ‘केसरी’ में अपने निडर और निष्पक्ष रुख के लिए प्रसिद्ध थे।
  • उन्होंने निष्पक्ष व स्वतंत्र पत्रकारिता के प्रति कठोर दृष्टिकोण का समर्थन किया और कहा कि ‘केसरी’ सभी मुद्दों को साहसपूर्वक संबोधित करेगा, अंग्रेजों को खुश करने की प्रचलित प्रवृत्ति का विरोध करेगा और अपने नाम के साहस को मूर्त रूप देगा।
  • बाल गंगाधर तिलक ने अपने तर्कों के समर्थन में हिंदू धर्मग्रंथों और भगवद गीता का हवाला देते हुए लोगों की वकालत करने के लिए अपने पत्र ‘मराठा’ का भी लाभ उठाया।
  • 1 अगस्त, 1920 को 64 वर्ष की आयु में उनकी असामयिक मृत्यु ने उनके परिवर्तनशील व विकास मार्ग को अवरुद्ध कर दिया।

निष्कर्ष: 

बाल गंगाधर तिलक की विरासत भारत के स्वतंत्रता आंदोलन पर उनके परिवर्तनकारी प्रभाव, उनकी गहन विद्वता और स्वराज और राष्ट्रीय प्रगति के प्रति उनकी अटूट प्रतिबद्धता के साथ ही उनके साप्ताहिक प्रकाशन ‘केसरी’ और पत्र ‘मराठा’ व अन्य शैक्षिक व सुधारवादी गतिविधियों के माध्यम से जीवित है।

मुख्य परीक्षा पर आधारित प्रश्न:

 प्रश्न: बाल गंगाधर तिलक और महात्मा गांधी दोनों ही भारत के स्वतंत्रता संग्राम के महत्वपूर्ण नेतृत्वकर्ता थे, लेकिन उनके दृष्टिकोण और विचारधाराएँ काफी भिन्न थी। उनके विचारों और तरीकों में समानताओं और अंतरों की आलोचनात्मक जाँच करें और भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन पर उनके प्रभावों का मूल्यांकन करें। 

(15 अंक, 250 शब्द)

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