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भारत में चुनावी सत्यनिष्ठा को अक्षुण्ण बनाए रखना

Lokesh Pal May 11, 2024 05:15 88 0

प्रारंभिक परीक्षा के लिए  प्रासंगिकता: आदर्श आचार संहिता तथा भारत के निर्वाचन आयोग के बारे में 

मुख्य परीक्षा के लिए प्रासंगिकता: भारत में चुनावों की पारदर्शिता बनाए रखने की आवश्यकता, तथा चुनाव आयोग के कार्य।

संदर्भ:

आदर्श आचार संहिता (MCC) ने 18वीं लोकसभा के चुनाव प्रचार के दौरान वरिष्ठ राजनेताओं द्वारा इसके उल्लंघन के कारण राष्ट्र का ध्यान आकर्षित किया है।

प्रमुख तथ्य:

  • एमसीसी का पालन करने की आवश्यकता: राजनीतिक दल उस संहिता का पालन करने के लिए बाध्य हैं, जिसे शांतिपूर्ण, व्यवस्थित और निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करने के लिए आम सहमति के आधार पर भारत के चुनाव आयोग (ECI) द्वारा तैयार किया गया था।
  • प्रमुख मुद्दा: व्यवहार में, भारतीय चुनाव एक अनियंत्रित संघर्ष बनते जा रहे हैं, जिसमें विकृतियाँ, झूठ और व्यक्तिगत टिप्पणियाँ आम हैं।

ईसीआई (ECI) का संवैधानिक अधिदेश:

  • स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव: संविधान में ईसीआई को स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव (संविधान की बुनियादी संरचना का हिस्सा) आयोजित करने की आवश्यकता है।
  • पूर्ण शक्तियाँ: अनुच्छेद 324 स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव और चुनावी प्रक्रिया की पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए ईसीआई को पूर्ण शक्तियाँ प्रदान करता है।
    • अनुच्छेद 324: निर्वाचनों के अधीक्षण, निदेशन और नियंत्रण का निर्वाचन आयोग में निहित होना। 
  • सर्वोच्च न्यायालय की पुष्टि: भारत एवं तमिलनाडु राज्य (1993) में, सर्वोच्च न्यायालय ने स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित कराने के लिए भारत निर्वाचन आयोग (ECI) की व्यापक शक्तियों और संवैधानिक कर्तव्यों की पुष्टि की है।

भारत के चुनाव आयोग (ECI) के पास उल्लंघनों के लिए दंडित करने का अधिकार:

  • पार्टी की मान्यता निलंबित/वापसी : ईसीआई का 1968 का चुनाव चिह्न आदेश उसे मॉडल कोड ऑफ कंडक्ट के उल्लंघन के लिए पार्टियों की मान्यता को निलंबित करने या उसे वापस लेने की अनुमति देता है।
  • आरक्षित प्रतीक से वंचित करना : मान्यता के निलंबन/वापस लेने से पार्टी आरक्षित प्रतीक से वंचित हो जाती है, जिससे चुनावी कठिनाइयाँ पैदा होती हैं।
  • उल्लंघनकर्ताओं को प्रचार से रोकना : ईसीआई व्यक्तिगत उल्लंघनकर्ताओं को 24-48 घंटे या पूरी चुनाव अवधि के लिए प्रचार करने से भी रोक सकता है।
  • निवारक प्रभाव: ईसीआई द्वारा निर्णायक कार्रवाई उल्लंघनों के लिए मजबूत निवारक के रूप में कार्य कर सकती है (टी.एन. शेषन की सख्ती का उदाहरण)। 

आदर्श आचार संहिता (MCC) के प्रावधान

  • निषिद्ध कार्य:
    • मौजूदा मतभेदों को बढ़ाना या सांप्रदायिक तनाव पैदा करना।
    • दूसरे दलों पर असत्यापित आरोप लगाना। 
    • वोट के लिए जाति या सांप्रदायिक भावनाओं की अपील करना।
    • भ्रष्ट आचरण या चुनाव कानून अपराध।
  • तर्क: उल्लंघनों से स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराना और चुनावी शुचिता बनाए रखना असंभव हो जाता है।

चुनावी बयानबाजी की विषाक्तता:

  • करो या मरो की लड़ाई: चुनाव करो या मरो की लड़ाई बन गए हैं, जहाँ राजनीतिक विरोधियों (विपक्ष) को दुश्मन माना जाता है।
  • विभाजनों का शोषण: मौलिक भावनाओं को भड़काने और सामाजिक विभाजनों, विशेषकर धार्मिक विभाजनों का शोषण करने का प्रयास किया जाता है।
  • धार्मिक अपील: लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 धार्मिक अपील को एक भ्रष्ट आचरण बनाता है जो चुनावों को अमान्य कर सकता है।
  • धर्मनिरपेक्षता को कमज़ोर करना: हालाँकि, राजनेता अभी भी चुनावी लड़ाई के केंद्र में धर्म को रखते हैं और संवैधानिक धर्मनिरपेक्षता को कमज़ोर करते हैं।

मंत्रियों के साम्प्रदायिक भाषण:

  • शपथ का उल्लंघन: वरिष्ठ कैबिनेट सदस्यों ने कुछ समूहों के खिलाफ नफरत को बढ़ावा देने वाले सांप्रदायिक रूप से आरोपित भाषण दिए हैं। 
    • यह मंत्रियों द्वारा सभी लोगों के साथ बिना किसी दुर्भावना के समान व्यवहार करने की ली गई शपथ का उल्लंघन है।
  • उच्चतम न्यायालय का निर्देश: उच्चतम नयायालय द्वारा ईसीआई के उन मंत्रियों के खिलाफ धारा 125 के तहत आपराधिक कार्यवाही शुरू करने का निर्देश देना चाहिए जो नफरत भरे भाषण (Hate Speech) के माध्यम से अपनी संवैधानिक शपथ का उल्लंघन करते हैं।
  • कानूनी प्रावधान: संविधान और चुनाव कानून संवैधानिक शपथ का उल्लंघन करने वाले मंत्रियों के लिए विशिष्ट दंड निर्धारित नहीं करते हैं जबकि आरपीए की धारा 125 धार्मिक आधार पर समूहों के मध्य दुश्मनी को बढ़ावा देने के लिए 3 वर्ष तक की कैद की अनुमति देती है।
  • ईसीआई की कार्रवाई: ईसीआई को ऐसे उल्लंघनकर्ताओं को पूरी चुनाव अवधि के लिए प्रचार करने से भी रोकना चाहिए।

चुनाव की शुचिता बनाये रखना:

  • स्वतंत्र और निष्पक्ष: सर्वोच्च न्यायालय चुनावों की शुचिता बनाए रखने पर जोर देता है, जिसका अर्थ है कि चुनाव  भ्रष्ट और बुरे दोनों तरीकों से मुक्त होने चाहिए।
  • घृणा को रोकना: धार्मिक/जातीय घृणा को बढ़ावा देना एक बुरी प्रथा है जो स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनावों को कमजोर करती है अतः इन्हें रोकना चाहिए।
  • ईसीआई की शक्तियाँ: संविधान चुनावी अखंडता को बनाए रखने के लिए ईसीआई को आवश्यक शक्तियाँ प्रदान करता है।
  • सख्त प्रवर्तन: ईसीआई द्वारा आदर्श आचार संहिता को सख्ती से लागू करने तथा विशेष रूप से वरिष्ठ राजनीतिक नेताओं द्वारा किए गए उल्लंघनों के लिए दंडित करने के लिए अपनी शक्तियों का सक्रिय रूप से उपयोग करना चाहिए।

निष्कर्ष:

निष्कर्षतः आदर्श आचार संहिता को सख्ती से लागू करना, विशेषकर सांप्रदायिक बयानबाजी के खिलाफ, भारतीय चुनावों की अखंडता की रक्षा के लिए महत्त्वपूर्ण है।

प्रारंभिक परीक्षा पर आधारित प्रश्न :                                                                                        (UPSC : 2017)

प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये:

  1. भारत का निर्वाचन आयोग पाँच-सदस्यीय निकाय है।
  2. संघ का गृह मंत्रालय, आम चुनाव और उप-चुनावों दोनों के लिये चुनाव कार्यक्रम तय करता है।
  3. निर्वाचन आयोग मान्यता-प्राप्त राजनीतिक दलों के विभाजन/विलय से संबंधित विवाद निपटाता है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं ?

  1. केवल 1 और 2
  2. केवल 2
  3. केवल 2 और 3
  4. केवल 3

उत्तर:(d)

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