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मनरेगा योजना में सुधार संबंधी प्रमुख दृष्टिकोण

Lokesh Pal May 23, 2024 05:30 106 0

प्रारंभिक परीक्षा के लिए प्रासंगिकता : महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना, रोज़गार और बेरोज़गारी, महँगाई । 

मुख्य परीक्षा के लिए प्रासंगिकता : भारत में मनरेगा और बेरोजगारी के मुद्दे, मनरेगा योजना के लाभ एवं चुनौतियाँ आदि।

 

संदर्भ:

वर्तमान, महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (MGNREGS) जाँच किए जाने की आवश्यकता महसूस की जा रही है। 

महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (MGNREGS) के लाभ

  • महामारी के दौरान लचीलापन: पिछले कई वर्षों में मनरेगा के संबंध में अनेक संदेह और प्रश्न उठने के बावजूद, यह समय की कसौटी पर खरा उतरता हुआ प्रतीत होता है। 
    • यही कारण है कि यह कोविड जैसी महामारी के दौरान ग्रामीण श्रमिकों की मदद करने का एक प्रमुख साधन रहा।
  • कोविड के दौरान मनरेगा योजना के तहत माँगों में वृद्धि: जब भारतीय अर्थव्यवस्था के प्रबंधक अपने सबसे खराब अर्थात संकुचन की स्थिति से जूझ रहे थे, तब ग्रामीण रोजगार सृजन की योजना एक उपयोगी उपकरण साबित हुई, जिसके कारण 2020-21 में मनरेगा के तहत नौकरियों की माँग में वृद्धि दर्ज की गई।

महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (MGNREGS):

मनरेगा के बारे में: प्रत्येक ग्रामीण परिवार के लिए एक वर्ष में निर्दिष्ट मजदूरी दरों पर कम से कम 100 दिनों का काम प्रदान करने के लिए 2005 में एक विधायी विधेयक पारित होने के बाद संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (UPA) सरकार द्वारा मनरेगा की शुरुआत की गई थी ।

मनरेगा में सुधार के कारण

  • आर्थिक सुधार : जैसे-जैसे आर्थिक संकट कम होता है और नौकरी की माँग घटती है, सरकारी वित्त पर दबाव भी कम होता है।
    • उदाहरण के लिए, 2023-24 में,  केंद्र के कुल व्यय में मनरेगा का हिस्सा केवल 1.9 प्रतिशत था, जो 2014-15 या उससे भी पहले 2006-07 के स्तर के बराबर है, जब मजबूत अर्थव्यवस्था के कारण नौकरी की माँग कम थी।
  • आर्थिक संकट का संकेतक: आर्थिक संकट काल के बाद भी ग्रामीण नौकरियों की लगातार माँग नीति निर्माताओं को ग्रामीण अर्थव्यवस्था के स्वास्थ्य का आकलन करने का संकेत देती है।
    • परिणामस्वरूप, मनरेगा नौकरियों की आवश्यकता नीति निर्माताओं के लिए ग्रामीण भारत में चल रहे आर्थिक संकट को मापने के लिए एक महत्त्वपूर्ण संकेतक के रूप में कार्य करती है, जो समग्र आर्थिक माँग को बनाए रखने के लिए आवश्यक है।
  • मनरेगा की कार्यकुशलता बढ़ाना : मनरेगा उन योजनाओं में से एक है, जहाँ केंद्र अकेले ही इसके संचालन का पूरा खर्च वहन करता है, लेकिन योजना के तहत किए गए कार्यों की निगरानी राज्यों द्वारा की जाती है।
    • यह तर्क दिया जाता है कि यदि राज्यों की योजना में वित्तीय हिस्सेदारी है, तो मनरेगा के तहत वित्त पोषित कार्यों की गुणवत्ता में सुधार होगा, जिससे अधिक उत्पादक और उपयोगी संपत्तियों का निर्माण होगा।
  • माँग-संचालित कार्यान्वयन सुनिश्चित करना: मनरेगा एक माँग-संचालित योजना है , जहाँ परियोजनाओं पर पैसा तभी खर्च किया जाना चाहिए जब संकटग्रस्त श्रमिक नौकरी की तलाश में हों।
    • मौजूदा परियोजनाएँ, जिन्हें राज्यों द्वारा अपने-अपने बजट के तहत क्रियान्वित किया जाता है, उन्हें मनरेगा व्यय के माध्यम से वित्तपोषित नहीं किया जाना चाहिए।
    • ऐसा दुरुपयोग उन राज्यों में अधिक प्रचलित प्रतीत होता है, जहाँ मजदूरी अपेक्षाकृत अधिक है, और ये राज्य इस योजना के व्यय को अपनी कल्याणकारी योजनाओं के वित्तपोषण के लिए उपयोग कर सकते हैं।
  • अत्यधिक राजकोषीय बोझ: 2018 और 2022 के  मध्य , पश्चिम बंगाल ने मनरेगा निधि के उपयोग का नेतृत्व किया, इसके बाद तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान तथा कर्नाटक का स्थान आता है ।
    • 2023-24 में, पाँच दक्षिणी राज्यों – आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, केरल, तमिलनाडु और तेलंगाना का कुल केंद्रीय व्यय में एक तिहाई से अधिक रहा।
  • अनुपालन न करना: मनरेगा अधिनियम, 2005 की धारा 27 के तहत केंद्र सरकार के निर्देशों का अनुपालन न करने के कारण पश्चिम बंगाल को 2022-23 और 2023-24 में धन देने से इनकार कर दिया गया था। इससे स्पष्ट होता है कि केंद्र के पास उन राज्यों के धन को रोकने की शक्तियाँ हैं, जो नियमों का अनुपालन नहीं कर रहे हैं।

आगे की राह

  • मनरेगा में लागत-साझाकरण: राज्यों को मनरेगा व्यय का 20 या 40 प्रतिशत साझा करने की आवश्यकता से केंद्र का राजकोषीय बोझ कम हो सकता है, लेकिन इससे धन के दुरुपयोग पर रोक लगेगी यह निश्चित करना कठिन है।
  • सहयोगात्मक निगरानी पर ध्यान केन्द्रित करना: केंद्र को केवल अपने राजकोषीय बोझ को कम करने के बजाय, सहयोगात्मक निगरानी तंत्र के माध्यम से कार्यान्वयन संबंधी समस्याओं को ठीक करने पर अधिक ध्यान केन्द्रित करना चाहिए।

निष्कर्ष

अर्थात सतत ग्रामीण विकास के लिए प्रभावी सुधारों में, जवाबदेही, पारदर्शिता और योजना के मुख्य उद्देश्यों के साथ सामंजस्य को प्राथमिकता दी जानी चाहिए ताकि गारंटीकृत ग्रामीण आजीविका सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके। 

प्रारंभिक परीक्षा पर आधारित प्रश्न :                                                                                   (UPSC : 2011)

प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन “महात्मा गाँधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी अधिनियम” से लाभ पाने के योग्य हैं?

  1. केवल अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के परिवारों के वयस्क सदस्य।
  2. गरीबी रेखा से नीचे (बीपीएल) परिवारों के वयस्क सदस्य।
  3. सभी पिछड़े समुदायों के परिवारों के वयस्क सदस्य।
  4. किसी भी ग्रामीण परिवार के वयस्क सदस्य।

उत्तर: (d)

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